जानिये आखिर कितना प्राचीन है "सनातन" (हिन्दु) धर्म ? – भाग 2

मैक्सिको में ऐसे हजारों प्रमाण मिलते हैं जिनसे यह सिद्ध होता है |जीसस क्राइस्ट्स से बहुत पहले वहां पर हिन्दू धर्म प्रचलित था | अफ्रीका में 6,000 वर्ष पुराना एक शिव मंदिर पाया गया और चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, लाओस, जापान में हजारों वर्ष पुरानी विष्णु, राम और हनुमान की प्रतिमाएं मिलना इस बात का सबूत है कि हिन्दू धर्म संपूर्ण धरती पर था | उदाहरण के तौर पर एरिक वॉन अपनी बेस्ट सेलर पुस्तक ‘चैरियट्स ऑफ गॉड्स’ में लिखते हैं :~

विश्व की सबसे प्राचीन सुमेरियन सभ्यता(2300 B.C.)से भी प्राचीन लगभग 5,000 वर्ष पुराने महाभारत के तत्कालीन कालखंड में उन्नत सामाजिक व्यवस्था, उन्नत शासन प्रणाली, उन्नत भाषा आदि का विस्तारित विवरण एवं उक्त कालखंड के योद्धाओं द्वारा आज के अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्रों के समान ही अनेक शस्त्रों का प्रयोग केवल कल्पना मात्र नहीं हो सकता | वे किसी ऐसे अस्त्र के बारे में कैसे जानते थे जिसे चलाने से 12 साल तक उस धरती पर सूखा पड़ जाता, ऐसा कोई अस्त्र जो इतना शक्तिशाली हो कि वह माताओं के गर्भ में पलने वाले शिशु को भी मार सके ? इसका अर्थ है कि ऐसा कुछ न कुछ तो था जिसका ज्ञान आगे नहीं बढ़ाया गया अथवा लिपिबद्ध नहीं हुआ और गुम हो गया |

प्राचीन भारत बहुत ही समृद्ध और सभ्य देश था, जहां हर तरह के हथियार इस्तेमाल किये जाते थे, तो वहीं मानव के मनोरंजन के भरपूर साधन भी थे | ऐसा कोई खेल या मनोरंजन का साधन नहीं है जिसका आविष्कार भारत में न हुआ हो | आज शेष विश्व में जितनी भी संस्कृतियाँ, सामाजिक व्यवस्थाएँ एवं धार्मिक मान्यताएँ प्रचलित हैं; प्राचीन भारतीय ग्रंथों का गहन अध्ययन करने से ये प्रमाणित हो जाता है कि ये सभी भारत में प्रचलित हिन्दू धर्म एवं संस्कृति से पूरी तरह प्रभावित हैं | कई विश्व विख्यात विद्वानों एवं वैज्ञानिक शोधों ने ये प्रमाणित भी किया है |

संस्कृत और अन्य भाषाओं के ग्रंथों में इस बात के कई प्रमाण मिलते हैं कि भारतीय लोग समुद्र में जहाज द्वारा अरब और अन्य देशों की यात्रा करते थे और सनातन धर्म एवं सभ्यता का परिचय कराते थे | वहीं किसी भी ग्रंथ एवं उल्लेखों में अपने धर्म एवं सभ्यता को प्रचारित करने में किसी भी देश या मानव समूहों में किसी भी प्रकार की जबरदस्ती एवं बलप्रयोग का उल्लेख नहीं मिलता | प्राचीन भारतायों का लम्बी यात्राएं कर विश्व के विभिन्न स्थानों पर जाना केवलमात्र शेष विश्व को सभ्यता से परिचय कराना था |

विमानों से यात्रा करने की कई कहानियां भारतीय ग्रंथों में भरी पड़ी हैं जो इतनी अधिक बार उल्लेखित हुई हैं कि इसे असत्य नहीं माना जा सकता। यहीं नहीं, कई ऐसे ऋषि और मुनि भी थे, जो योगबल से अंतरिक्ष में दूसरे ग्रहों पर जाकर पुन: धरती पर लौट आते थे | वर्तमान समय में भारत की इस प्राचीन तकनीक और वैभव का खुलासा कोलकाता संस्कृत कॉलेज के संस्कृत प्रोफेसर दिलीप कुमार कांजीलाल ने 1979 में एंशियंट एस्ट्रोनट सोसाइटी (Ancient Astronaut Society) की म्युनिख (जर्मनी) में संपन्न छठी कांग्रेस के दौरान अपने एक शोध पत्र से किया | जिससे विश्व आश्चर्यचकित हो गया था | उन्होंने उड़ सकने वाले प्राचीन भारतीय विमानों के बारे में एक उद्बोधन दिया और पर्चा प्रस्तुत किया |

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संगीत और वाद्ययंत्रों का अविष्कार भारत में ही हुआ है | अत्याधुनिक पाश्चात्य वाद्ययंत्र इन्हीं के रूपान्तर हैं |हिन्दू धर्म का नृत्य, कला, योग और संगीत से गहरा नाता रहा है | हिन्दू धर्म मानता है कि ध्वनि और शुद्ध प्रकाश से ही ब्रह्मांड की रचना हुई है। आत्मा इस जगत का कारण है |चारों वेद, स्मृति, पुराण और गीता आदि धार्मिक ग्रंथों में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को साधने के हजारों हजार उपाय बताए गए हैं |उन उपायों में से एक है संगीत। संगीत की कोई भाषा नहीं होती | संगीत आत्मा के सबसे ज्यादा नजदीक माना जाता था |

हिन्दुओं के लगभग सभी देवी और देवताओं के पास अपना एक अलग वाद्य यंत्र है | संगीत का सर्वप्रथम ग्रंथ चार वेदों में से एक सामवेद ही है | इसी के आधार पर भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र लिखा और बाद में संगीत रत्नाकर, अभिनव राग मंजरी लिखा गया | दुनियाभर के संगीत के ग्रंथ सामवेद से प्रेरित हैं |भारतीय ऋषियों ने ऐसी सैकड़ों ध्वनियों को खोजा, जो प्रकृति में पहले से ही विद्यमान है | उन ध्वनियों के आधार पर ही उन्होंने मंत्रों की रचना की, संस्कृत भाषा की रचना की और ध्यान एवं स्वास्थ्य में लाभदायक ध्यान ध्वनियों की रचना की | इसके अलावा उन्होंने ध्वनि विज्ञान को अच्छे से समझकर इसके माध्यम से शास्त्रों की रचना की और प्रकृति को संचालित करने वाली ध्वनियों की खोज भी की | आज का विज्ञान अभी भी संगीत और ध्वनियों के महत्व और प्रभाव की खोज में लगा हुआ है, लेकिन ऋषि-मुनियों से अच्छा कोई भी संगीत के रहस्य और उसके विज्ञान को नहीं जान पाया |

प्राचीन भारती नृत्य शैली से ही दुनियाभर की नृत्य शैलियां विकसित हुई है | भारतीय नृत्य मनोरंजन के लिए नहीं बना था |भारतीय नृत्य ध्यान की एक विधि के समान कार्य करता है | मूलतः यह प्राचीन हिन्दुओं द्वारा निर्मित एक योग क्रिया है |

सामवेद में संगीत के साथ साथ नृत्य का भी उल्लेख मिलता है। हड़प्पा सभ्यता में नृत्य करती हुई लड़की की मूर्ति पाई गई है |भरत मुनि का नाट्य शास्त्र नृत्यकला का सबसे प्रथम व प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है। इसको पंचवेद भी कहा जाता है। यही नहीं सृष्टि के आरम्भिक हिन्दू ग्रंथों और पुराणों में भी शिव और पार्वती के नृत्य का वर्णन मिलता है |

भारत में प्राचीनकाल से ही ज्ञान को अत्यधिक महत्व दिया जाता था | कला, विज्ञान, गणित और ऐसे अनगिनत क्षेत्र हैं जिनमें भारतीय योगदान अनुपम है | आधुनिक युग के ऐसे बहुत से आविष्कार हैं, जो प्राचीन भारतीय शोधों के निष्कर्षों पर आधारित हैं |

प्राचीन भारतीयों ने एक ओर जहां पिरामिडनुमा मंदिर बनाए तो दूसरी ओर स्तूपनुमा मंदिर बनाकर दुनिया को चमत्कृत कर दिया। आज दुनियाभर के धर्म के प्रार्थना स्थल इसी शैली में बनते हैं। तब हिन्दू मंदिरों को देखना सबसे अद्भुत माना जाता था। मौर्य, गुप्त और विजयनगरम साम्राज्य के दौरान बने हिन्दू मंदिरों की स्थापत्य कला को देखकर हर कोई दांतों तले अंगुली दबाए बिना नहीं रह पाता |अजंता-एलोरा की गुफाएं हों या वहां का विष्णु मंदिर। कोणार्क का सूर्य मंदिर हो या जगन्नाथ मंदिर या कंबोडिया के अंकोरवाट का मंदिर हो या थाईलैंड के मंदिर… उक्त मंदिरों से पता चलता है कि प्राचीन भारत में किस तरह के मंदिर बनते होंगे। समुद्र में डूबी कृष्ण की द्वारिका के अवशेषों की जांच से पता चलता है कि आज से 5,000 वर्ष पहले जब पूरी दुनियाँ जंगलों में नंगी घूमती थी तब भी हिन्दुओं के मंदिर और महल अत्यंत भव्य होते थे और हिन्दू सभ्यता, संस्कृति एवं ज्ञान से परिपूर्ण |

भारत के प्राचीन ग्रंथों में कहीं पर भी अन्यायपूर्ण युद्धों की प्रशंसा नहीं की गयी है। लोग साधारणता शान्तिपूर्ण जीवन जीने में विश्वास रखते थे|चारों ओर न्याय "वसुधैव कुटुम्बकम" सुख, शान्ति एवं ज्ञान का बोलबाला था |परन्तु आठवीं सदी में दुनियाँ की कई सभ्यताओं एवं संस्कृतियों को रौंदता, बर्बाद करता इस्लाम आखिर सोने की चिड़िया कहलाने वाले इस भूभाग पर भी आ धमका और इस पूरे क्षेत्र को धार्मिक एवं सांस्कृतिक रूप से तहस-नहस कर डाला | समस्त ज्ञान-विज्ञान एवं उस समय के भव्य मन्दिरों को नष्ट कर दिया गया। तक्षशिला, नालन्दा एवं विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों को नष्ट कर जला दिया गया | उल्लेखों के अनुसार उनमें प्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान, कला, संस्कृति, दर्शन, खगोलविज्ञान आदि से सम्बन्धित इतनी अधिक संख्या में पुस्तकें थीं जो कई महीनों तक जलती रहीं और विश्व ने मानव-सभ्यता की इस लिपिबद्ध अनमोल धरोहर को सदा के लिए खो दिया |

इसके साथ ही दुनियाँ की सबसे प्राचीन, सभ्य एवं समृद्ध हिन्दू सभ्यता का पराभव काल आरम्भ हुआ जो कालांतर में मुगल लुटेरों से लेकर अंग्रेजों के शासनकाल तक चलता रहा|

आज देश के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे वामपंथी इतिहासकारों के द्वारा लिखा गया भारत का नकली इतिहास पढ़ते हैं जिसमें उन्हें बताया जाता है मानों केवल मुगलों के शासन में ही भारत का इतिहास निहित है। उसके पहले का स्वर्णिम काल केवल मनगढ़ंत बातें हैं। आज मैकाले की शिक्षा पद्धति के कारण छात्र अपने ही अतीत से दूर हो गये हैं, एवं अपनी ही संस्कृति का उपहास करते हैं। परन्तु अब झूठ से पर्दा उठने लगा है। अब आशा बँधने लगी है कि भारत अपने खोये गौरव को पुन: प्राप्त करेगा।

वास्तविकता तो यह है कि हमारी अतिप्राचीन एवं अनादि सनातन धर्म से प्रेरित होकर एवं इसी पर मूलाधारित बाद में आने वाली कोई भी अन्य धार्मिक व्यवस्था हमारे आसपास भी नहीं ठहरती। यदि अनुभव, श्रेष्ठता एवं उत्पत्ति काल के सन्दर्भ में देखें तो संसार के अन्य धर्म हमारे सनातन धर्म के पोते, पड़पोते, छड़पोते आदि की भी जगह नहीं ले सकते तो हम सब मिलकर इस बात का गर्व क्यों ना करें कि हम उस हिन्दू संस्कृति, उस सनातनी संस्कृति के मानने वाले हैं जिसने जंगलों में नंगी घूमती दुनियाँ को सभ्यता सिखायी, समाजिक व्यवस्था सिखायी, जीने का तरीका सिखाया और हम आज भी उस महान परम्परा का एक हिस्सा बने हुए हैं |

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