पर्रिवर्तन के बीज (मानसिक पराधीनता से स्वाधीनता) - रोहित त्रिवेदी

"ये तो अंग्रेज आ गए तो हम थोड़े पढ़ लिख गए, ट्रेन, बैंक देश में आ गए नही इनके जैसे ही रह जाते", झुग्गियों की ओर देखते हुए जेरी ने मोहन से कहा।

वैसे जेरी का नाम माता पिता ने जवाहर रखा था पर उसे पुराने ज़माने का पकाऊ नाम लगता था, तो उसने खुद जेरी कर लिया, दोस्त जेरी नाम से ही जानते थे। (shakespear को पढता था, पर उसकी 'नाम में क्या रखा है वाली फिलॉसफी उसको समझ नही आती थी)

"मोहन भाई सोचो हम कैसे होते, अफ्रीका के किसी जाहिल देश जैसे। न एजुकेशन, न टेक्नोलॉजी।" जेरी ने अपनी बात आगे बढ़ाई।

"मेरा तो पासपोर्ट बन गया है, वीसा मिलते ही UK या जर्मनी निकल जाऊंगा। यहाँ साला टैलेंट की वैल्यू ही नही करते लोग। जिंदगी तो वहीँ है मेरे भाई, कोई गंदगी नही, लोग भी समझदार हैं। तेरा क्या प्लान है आगे का ?"

जेरी और मोहन दोनों बचपन से साथ में पढ़े थे, इतने घनिष्ठ मित्र की बिलकुल भाई जैसे। जेरी और मोहन की मित्रता चौथी कक्षा में हुई थी जब जेरी के पिताजी का तबादला भोपाल हुआ था, फिर वहीँ से अभियांत्रिकी/इंजीनियरिंग की पढाई भी की। मोहन जन्म से ही भोपाल में रहा, उसके पिताजी एक व्यापारी थे और व्यवसाय भी अच्छा चल रहा था।

"यार मेरे पापा भी बोल रहे हैं, पर मेरा मन नही है जाने का।" मोहन ने अनमने मन से कहा। जेरी पल दो पल के लिए असमंजस में पड़ा और ठहाके मारके हंसने लगा। "अबे तेरा दिमाग ठीक है? क्यों नही जाना, यहाँ दुकान पे बैठेगा? करियर के बारे में सोच !"

"उसी दुकान के कारण में पढ़ पाया हूँ, मेरे दादाजी ने, पिताजी ने अपना खून पसीना लगाया है उसमें।" मोहन के चेहरे पर थोड़ा गुस्सा था, वातावरण की गर्मी जेरी समझ गया।

"मोहन, तू कुछ दिनों से अजीब क्यों behave कर रहा है? क्या बात है? रातों की नींद, दिन का चैन क्यों उड़ गया?" जेरी ने चुटकी लेते हुए कहा।

"नही, बस कुछ सोच रहा था।"

"क्या?"

"मैंने कुछ पढ़ा है। कुछ histroy के आर्टिकल थे।"

"तो क्या हुआ, हिस्ट्री को हमने कब सीरियसली लिया है? और जो हो गया, हो गया उससे क्या फर्क पड़ता है ? अपना फ्यूचर देखो। वैसे ऐसा क्या पढ़ लिया भाई ?"

"जेरी, मैंने Angus Meddison की वर्ल्ड इकनोमिक हिस्ट्री पढ़ी। उसने अपनी रिसर्च में बताया है कि इंडिया 0 A.D. से 17 A.D. तक दुनिया की 35% जीडीपी रखता था, वहीँ अमेरिका और इंग्लैंड 2,2%। 17 AD के बाद चीन पहले नंबर पर आ गया और हम दुसरे। और 1900 मैं हमारी जीडीपी 4% रह गयी थी।"

मोहन ने कभी इस प्रकार की बातों पर ध्यान नही दिया था। उसे क्रिकेट,अपने गिटार और बाइक से प्यार था। और सोचता था विदेश जाकर आगे पढूंगा, दुनिया देखूंगा। पर दो माह पहले पिकनिक में जगन्नाथपुरी में उसे कुछ अलग अहसास हुआ। चाय पी कर कुल्हड़ फेंकी तो 10,12 छोटे बच्चे बची हुई चाय चाटने के लिए आपस में छीना झपटी कर रहे थे।

(हर किसी के जीवन में परिपक्वता अलग अलग तरह से आती है। पर सौभाग्यशाली वो होते हैं जिन्हें स्वार्थ ने परिपक्व नही बनाया।)

"मैंने विलियम एडम की 1835 की रिपोर्ट भी डाउनलोड करी। 'House of Commons' की डिबेट में वो बताता है। भारत में 7,32,000 गांव हैं और 7,50,000 स्कूल। 15000 यूनिवर्सिटी (हायर लर्निंग इंस्टिट्यूट)। सभी आमिर, गरीब, हर कम्युनिटी के लोग साथ में पढ़ते हैं। आज के रिजर्व्ड लोग भी 96% एजुकेटेड थे !"

"मैंने इस बारे में और भी पढ़ना शुरू किया। भारत में सिकंदर की तलवार बनती थी, महाराणा प्रताप के भले की नोंक पर जो 'Alloy' है आज तक कोई बता नही पाया वो कौन सा alloy है!! यार thomas crook ने हाउस ऑफ कॉमन्स में बताया कि उसकी कटी हुई नाक को किसी वैद्य ने जोड़ दिया था, मतलब प्लास्टिक सर्जरी भी थी। कावेरी नदी पर एक डैम 1200 साल से सुरक्षित टिका हुआ है। मतलब हमारे पास पैसा, एजुकेशन और टेक्नोलॉजी तो थी। जेरी, हमें से सब क्यों नही पढ़ाया जाता ?"

जेरी के पास मोहन की बातों का जवाब नही था। जेरी बात बदलने के लिए बोला, "लेकिन आज तो नही है न ! तुझे क्या अन्ना हजारे बनना है ?"

"पता नही। पर हमारे देश से जो पहले लेवल के वैज्ञानिक होते हैं वो नासा जैसी जगहों में चले जाते हैं। जो दुसरे लेवल के होते हैं वो फेसबुक etc में तगड़े पैकेज भेजते हैं। तीसरे लेवल के आईएएस/आईपीएस बनते हैं। और चौथे लेवल के इसरो जाते हैं। जबकि हर छात्र पर 40 लाख रुपए देश का खर्च होता है। फिर भी वो चौथे लेवल के वैज्ञानिक देश को मंगलयान देते हैं और भारत विश्व का चौथा राष्ट्र बनता है मंगल पर पहुँचने वाला वो भी सबसे कम खर्च में और एक ही प्रयत्न में (नासा को 6वीं, जापान को तीसरी, फ्रांस को चौथी बार में सफलता मिली)"

जेरी को बात समझ आ रही थी। दिल मान रहा था पर दिमाग बगावत कर रहा था। लेकिन जाने अनजाने में मोहन ने जेरी के अंदर भी परिवर्तन का बीज अंकुरित कर दिया था।

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