1962 तक का शिवपुरी जनसंघ - रोचक संस्मरण !



झंझावातों में भी अविरल, आस्था का दीपक जला,
यह उस श्रम का प्रतिफल, जो भाजपा का कमल खिला !

आज मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी सत्तासीन है| केंद्र में भी हमारे प्रिय नेता मा. नरेंद्र दामोदर दास मोदी प्रधान मंत्री हैं| कठिनाईयों के पहाड़ लांघकर जनता का जो विश्वास हमें प्राप्त हुआ है, उसके पीछे कार्यकर्ताओं की अनथक साधना है| हममें से अनेकों ने आपातकाल की विभीषिका देखी है| जनसंघ काल वह समय भी स्मरण है, जब चुनाव केवल इसलिए लड़ा जाता था कि इस बहाने पार्टी का चुनाव चिन्ह जनता तक पहुँच जाए| खाने के नाम पर चने व साईकिलों से चुनाव प्रचार, इसके बाद जमानत जब्त होने पर भी उत्साह में कोई कमी नहीं| पिछली बार से वोट ज्यादा मिले हैं, हमारा वोट प्रतिशत बढ़ा है, कहकर, सुनकर कार्यकर्ता संतोष कर लेते थे|

जिन ज्योतिस्वरूप प्रकाशपुंज व्यक्तित्वों ने शिवपुरी जिले में राष्ट्रवाद की अलख जगाई, संघकार्य का विस्तार किया, उनमें से अधिकाँश दिव्यज्योति में विलीन हो चुके हैं| कार्यकर्ताओं की नई पीढी को उस दौर की परिस्थितियों से अवगत कराना, राजमाता श्रीमंत विजयाराजे सिंधिया किस प्रकार राजपथ छोड़कर लोकपथ पर अग्रसर हुईं, वह बताना, निश्चय ही उनकी तत्वनिष्ठा को बढ़ाने में सहायक हो सकता है, इसी विचार के साथ शिवपुरी जिले की विचार यात्रा को आज से सोशल मीडिया पर सार्वजनिक करने का क्रम शुरू कर रहा हूँ|

निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें,
स्वार्थ साधना की आंधी में वसुधा का कल्याण न भूलें !

तो प्रस्तुत है, संघ जनसंघ की विचार वाटिका का यह प्रथम पुष्प -

बैसे तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का प्रादुर्भाव 1925 की विजयादशमी के शुभ दिन नागपुर में हुआ, किन्तु इस प्रवाह को शिवपुरी तक आने में कई वर्ष लगे| सन 1939-40 में नागपुर से पधारे श्री जाधवराव जी ने शिवपुरी में संघकार्य प्रारम्भ किया| श्री जगदीश स्वरुप निगम सर्वप्रथम संपर्क में आने वाले स्वयंसेवक बने| सन 1942 में श्री जगदीश स्वरुप निगम, श्री गोपीचंद सक्सेना एवं श्री मोहरसिंह यादव लखनऊ गए, जहाँ कालीचरण हाईस्कूल में लगे संघ शिक्षा वर्ग में इन लोगों ने प्रथम वर्ष का प्रशिक्षण लिया| अगले वर्ष अर्थात 1943 में श्री जगदीश स्वरुप निगम ने वाराणसी जाकर द्वितीय वर्ष का प्रशिक्षण लिया|

1943 में श्री मनोहर राव परचुरे विस्तारक के रूप में शिवपुरी आये| कुछ्काल पश्चात् उनके वापिस जाने पर श्री ज्ञानचन्द्र शास्त्री प्रचारक के रूप में आये| वे जैन मतावलंबी थे और जैन दर्शन तथा कर्मकांड के विद्वान् भी| संघ कार्य विस्तार हेतु उन्होंने एक विचित्र नियम बनाया| वे जैन समाज में अनुष्ठान व पूजापाठ तो करते, किन्तु भोजन उसी परिवार में करते, जिस परिवार का कमसेकम एक सदस्य संघ स्वयंसेवक हो| शास्त्री जी के इस नियम के चलते अनेक जैन परिवार संघ से जुड़े, उनमें से कई की वर्तमान पीढी भी आज तक निष्ठावान है|

1948 में महात्मा गांधी की निर्मम ह्त्या हुई| देशभर में संघ स्वयंसेवकों को इस जघन्य कार्य के झूठे आरोप में जेल में ठूंस दिया गया| संघ प्रचारक श्री शास्त्री जी के साथ श्री भगवती प्रसाद अग्रवाल उपाख्य “भगवती भैया”, बझे साहब, श्री किशन सिंह जी मास्टर, श्री जगदीश निगम, श्री बाबूलाल गुप्ता, श्री सुशील बहादुर अष्ठाना, श्री मोतीलाल अग्रवाल डेरी वाले, तथा हिन्दू महासभा के श्री लक्ष्मीनारायण गुप्ता, श्री नारायण प्रसाद गर्ग, श्री राजबिहारीलाल सक्सेना वकील साहब, श्री बुद्ध शरण जी, श्री रामसिंह जी आदि इस दौरान गिरफ्तार किये गए|

श्री जगदीश स्वरुप निगम ने शासकीय नौकरी से त्यागपत्र देकर सबलगढ़ में चौराहे पर सत्याग्रह किया व भाषण देते हुए गिरफ्तारी दी| मगरौनी में शिक्षक श्री राखे साहब तथा करैरा के शिक्षक श्री निगुडीकर शासकीय सेवा से निकाल दिए गए| परिणाम स्वरुप वे जीवन भर आर्थिक कष्टों में ही रहे|

वर्ष 1949 में श्री प्यारेलाल खंडेलवाल संघ के जिला प्रचारक होकर आये| उनके कार्यकाल में जिले की सभी तहसील केन्द्रों – कोलारस, करैरा, पिछोर और पोहरी में भी संघ की शाखाएं लगना प्रारम्भ हुईं| श्री प्यारेलाल जी के व्यक्तित्व का प्रभाव था कि जो एक बार उनके संपर्क में आया, वह फिर सदैव के लिए संघ का हो गया| 1956 तक प्यारेलाल जी शिवपुरी में संघ प्रचारक रहे| उनके कार्यकाल में ही 1952 में शिवपुरी में जनसंघ का कार्य भी प्रारम्भ हुआ| श्री बाबूलाल जी शर्मा वकील साहब के आवास पर जनसंघ की प्रथम कार्यकारिणी का गठन किया गया| दीवान दौलतराम जी इसके प्रथम संस्थापक अध्यक्ष बने| 

दीवान दौलतराम जी, बैसे तो मूलतः गुजरांवाला पंजाब के निवासी थे, किन्तु भारत विभाजन के पश्चात पंजाब का यह हिस्सा पाकिस्तान में चले जाने के बाद वे शिवपुरी आकर बस गए थे|तथा सिंधिया परिवार के सहयोग से कत्था मिल नामक प्रथम उद्योग की स्थापना की| दीवान साहब के पूर्वज 1919 तक तत्कालीन कश्मीर रियासत के दीवान रहे थे, इस कारण दीवान उपनाम उनके साथ जुडा| जनसंघ की प्रथम कार्यकारिणी में श्री सुशील बहादुर अष्ठाना सचिव बने| नगर के प्रमुख व्यवसाई सेठ कालूराम जी हनुमान मिल वालों को कोषाध्यक्ष बनाया गया| श्री बाबूलाल गुप्ता, श्री शीतल चन्द्र मिश्रा व श्री राजकुमार जैन की उपस्थिति में इस प्रथम कार्यकारिणी का गठन हुआ| 

6 मार्च 1953 को कश्मीर सत्याग्रह प्रारम्भ हुआ| डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में एक देश में दो विधान, दो निशान, दो प्रधान नहीं चलेंगे के नारों से पूरा देश गूँज उठा| संघ के जिला प्रचारक श्री प्यारेलाल जी खंडेलवाल की प्रेरणा से शिवपुरी में भी सत्याग्रह का माहौल बना| पहले जत्थे में श्री बाबूलाल जी शर्मा वकील साहब, श्री हरिहर स्वरुप निगम व श्री राजकुमार जैन ने दिल्ली के कनाट प्लेस में सत्याग्रह कर गिरफ्तारी दी| इन्हें एक दिन तिहाड़ जेल में रखकर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा स्थित योल केम्प भेज दिया गया|

उज्जैन से सत्याग्रहियों का एक जत्था, श्री राजाभाऊ महाकाल के नेतृत्व में पैदल यात्रा करते हुए शिवपुरी पहुंचा| इस जत्थे के साथ श्री बाबूलाल गुप्ता व श्री शीतलचन्द्र मिश्रा भी दिल्ली को रवाना हे| इन दोनों को सत्याग्रह के बाद दो माह कारावास की सजा सुनाई गई व तिहाड़ जेल में ही रखा गया| दिल्ली के कश्मीरी गेट पर सत्याग्रह कर रहे तीसरे जत्थे में शामिल भगवानलाल कोली ”गुरू”, श्री शंकरिया कोली, श्री रामलाल कोली, श्री चतुर्भुज कोली, श्री मनीराम कोली व श्री घस्सी खटीक के साथ पुलिस ने बर्बरता पूर्ण व्यवहार किया| इन लोगों को बेरहमी से मारा पीटा गया| भगवानलाल गुरू के हाथों को तो गर्म सलाखों से दागा तक गया| 15 दिन दिल्ली कि तिहाड़ जेल में रखने के बाद इन लोगों को बरेली जेल भेजा गया, जहाँ ये लोग ढाई माह तक रहे| 1954 में हुए गोवा मुक्ति आन्दोलन में भी शिवपुरी के कार्यकर्ताओं ने सत्याग्रह किया|

1952 के प्रथम आम चुनाव में तो भारतीय जनसंघ का कोई भी प्रत्यासी पूरे जिले में चुनाव नहीं लड़ा, किन्तु 1957 में शिवपुरी से श्री सुशील बहादुर अष्ठाना व पिछोर से श्री राजाराम लोदी भारतीय जनसंघ के प्रत्यासी के रूप में चुनावी अखाड़े में उतरे| हरिनगर ग्राम के श्री राजाराम लोदी, पूर्व में अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के सहयोगी रह चुके थे, इस नाते क्षेत्र में उनको लोग जानते मानते भी थे| इसी प्रकार श्री सुशील बहादुर अष्ठाना भी उसके पूर्व शिवपुरी महाविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष का चुनाव जीत चुके थे, किन्तु अत्यंत निर्धन पृष्ठभूमि के थे| अपनी आजीविका हेतु वे साईकिल के पंचर जोड़ने की दूकान करते थे| किन्तु जैसे तैसे श्री कौशल चन्द्र जैन, श्री प्रसन्न जी रावत, श्री भगवती भैया, श्री बाबूलाल गुप्ता व मगरौनी के श्री महावीर प्रसाद जैन जैसे सहयोगियों की दम पर और पार्टी का चुनाव चिन्ह गाँव गाँव पहुँचाने की ललक के साथ यह चुनाव लड़ा गया| 

आजादी की लड़ाई के दौरान कांग्रेस का संगठन गाँव गाँव तक फ़ैल चुका था| इसी प्रकार सिंधिया राजवंश का सहयोग हिन्दू महासभा को प्राप्त था| स्वाभाविक ही इन दो दिग्गज दलों के सामने पहली बार चुनाव मैदान में उतरे नवोदित भारतीय जनसंघ के प्रत्यासियों की विजय की संभावना दूर दूर तक नहीं थी| किन्तु कार्यकर्ताओं ने साधनहीनता के विकल्प ढूंढें| पुरानी धोतियों को केसरिया रंग से रंगकर अपने हाथों से झंडे सिले| उन पर स्टेंसिल से दीपक चिन्ह छापा गया| दीवार लेखन का कार्य भी सबने मिलकर स्वयं ही किया| फिर शुरू हुआ साईकिल से गाँव गाँव जाकर पार्टी के लिए वोट माँगने का काम|

कार्यकर्ता सुबह एक थैले में चने मुरमुरे लेकर साईकिल से गाँवों के लिए निकलते| लोगों से मिलते जुलते और जनसंघ को दीपक चुनाव चिन्ह पर वोट देने के लिए आग्रह करते| दो दो चार चार की टोलियों में, धूल भरी कच्ची गढ़वातों पर साईकिल चलाते, गिरते पड़ते, एक गाँव से दूसरे गाँव जाते, और चुनाव प्रचार करते| रास्ते में जहाँ भूख लगी, चने मुरमुरे खाकर गाँव में ही किसी से मांगकर पानी पिया और आगे बढ़ लिए| ऐसा था 57 का चुनाव| नतीजा अपेक्षा के अनुरूप ही निकला| दोनों प्रत्यासियों की जमानतें जब्त हुईं|

1962 के आम चुनाव में स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ| श्री कौशल चन्द्र जैन, ग्वालियर से एक एक लाल रंग की ओपेल कार कबाड़े से खरीद लाये| सुशील जी के मित्र व सहयोगी शमशाद भाई मिस्त्री ने उस पर अपने जौहर आजमाए व उसे चालू कर लिया| 1972 तक हुए हर चुनाव में यह ऐतिहासिक लाल डिब्बा सुशील जी के हर चुनाव का अभिन्न भाग रहा| चुनाव आता और यह लाल कार शमशाद मिस्त्री और सन्ना ड्राईवर की मेहरवानी से सडकों पर आ जाती और चुनाव निबटते ही, मित्तल जी के बाड़े के एक कोने में पांच साल आराम करने पहुँच जाती|

भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष दीवान दौलतराम जी ने नाम मात्र की कीमत पर एक विशालकाय हडसन कार और एक खुली जीप प्रदान कर दी| इस जीप में लकड़ी के फट्टे ठोककर शमशाद भाई ने कार्यकर्ताओं के बैठने की सीट ईजाद की| इस जीप जैसे दिखने वाले अजूबे की ख़ास बात यह थी कि इसमें पैट्रॉल की टंकी सिरे से गायब थी| चुनावों में एक कट्टी में पैट्रॉल लेकर कार्यकर्ता बैठते व कट्टी में ही लेजम लगाकर ईंधन इंजिन तक पहुँचाया जाता| 

एक बार तो हद ही हो गई| पिछोर के प्रमुख धार्मिक केंद्र धाय महादेव जाते समय, गाडी का पहिया निकल गया| शमशाद साथ में थे| उन्होंने रास्ते से एक कील ढूंढकर, पहिये को उस कील के सहारे ठोककर गाडी के साथ अटका दिया, और गाडी अपने गंतव्य तक तो पहुँच ही गई| तो ऐसी नायाब गाड़ियों के सहारे लड़ा गया 62 का चुनाव|

इस चुनाव में पूर्ववत शिवपुरी से सुशील जी व पिछोर से राजाराम जी लोदी ही लडे, किन्तु साथ ही कोलारस से श्री बाबूलाल गुप्ता ने भी प्रत्यासी के रूप में अपने हाथ आजमाए| लोकसभा चुनाव भी साथ ही थे, तो उसके लिए अड़ाया गया श्री प्रसन्न कुमार जी रावत को| 

प्रसन्न जी के चुनाव लड़ने की भी एक अलग ही कहानी है| 1957 तक वरिष्ठ हिन्दू महासभाई नेता पंडित वृजनारायण बृजेश ही शिवपुरी से सांसद रहते आये थे| 62 में प्रयत्न हुआ कि शिवपुरी विधानसभा सीट, हिन्दू महासभा जनसंघ के लिए छोड़ दे, बदले में लोकसभा व अन्य विधानसभा सीटों पर जनसंघ हिन्दू महासभा का सहयोग करे| किन्तु बृजेश जी इसके लिए कतई सहमत नहीं हुए| उन्होंने हेकड़ी से कहा कि चड्डी कबड्डी वालों की पार्टी, बनिए बक्कालों की पार्टी, जमानत तक तो बचती नहीं है, सीट किस दम पर माँगते हो? 

प्रसन्न जी को यह दंभ चुभा गया| उन्होंने अपना अशोकनगर का पैतृक मकान बेचकर लोकसभा का चुनाव लड़ा| तब तक प्रसन्न जी अपना नाम जैन लिखते थे, किन्तु चुनावी व्यूह रचना के अनुसार उन्होंने अपने वंश का नाम “रावत” आगे लिखकर प्रसन्न कुमार रावत के नाम से फ़ार्म भरा व चुनाव लड़ा|

चुनाव परिणाम तो 62 में भी 57 जैसे ही आये, किन्तु कुछ उल्लेखनीय सफलताएं भी मिलीं| पिछोर प्रत्यासी श्री राजाराम जी की जमानत जब्त नहीं हुई, साथ ही शिवपुरी के नगरीय क्षेत्र में श्री सुशील बहादुर अष्ठाना आगे रहे| हालांकि सुशील जी व कोलारस से बाबूलाल जी की जमानत तो जब्त हुई ही| किन्तु सबसे प्रमुख घटना लोकसभा चुनाव की हुई| रावत नाम आगे लगा होने के कारण, प्रसन्न जी को क्षेत्र के रावत वोट मिल गए| उन्हें 19 हजार वोट मिले| जमानत तो जब्त हुई, किन्तु अहंकार अवश्य पराजित हुआ| हिन्दू महासभा के दिग्गज प्रत्यासी श्री वृजनारायण बृजेश 12 हजार वोट से चुनाव हार गए तथा उसके बाद कभी सांसद नहीं बन पाए| बृजेश जी को सपने में भी अनुमान नहीं था कि उनका बडबोलापन उनको इतना भारी पडेगा| इस पराजय को वे जीवन भर नहीं भुला पाए| अपने चुटीले अंदाज में भाषण देने में महारथी बृजेश जी हर सभा में प्रसन्न जी को कोसते रहे| इस जैन ने अपने नाम के आगे रावत लिखकर मेरे वोट काटे| इसके जन्म के समय इसके माता पिता भले प्रसन्न हुए हों, मैं इससे सख्त अप्रसन्न हूँ|

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