डिजिटल लेनदेन के साथ की जाये साईबर सुरक्षा पुख्ता - डॉ. मयंक चतुर्वेदी

यह प्रश्‍न हर उस भारतीय का अपनी सरकार से है, जो यह देख रहा है कि किस प्रकार से उनके देखते ही देखते साइबर अपराध से जुड़े असंख्‍य मामले दर्ज किए जा रहे हैं। सरकार मूकदर्शक है और उसके सभी प्रयास अपराधियों को पकड़ने के साथ इन अपराधों को रोक पाने में असफल साबित हो रहे हैं। ऐसे में हर किसी को यही लग रहा है कि ज्‍यादा डिजिटल भुगतान की ओर गए तो कहीं ऐसा न हो कि उनके खाते में किसी की सेंधमारी हो जाए और उन्‍हें जब तक इस बात का पता चले तब तक कोई उनके खाते को ही खाली न कर दे।

डिजिटल ट्रांसफर आम उपभोक्ता पर मंडराते खतरे की तरह दिखाई दे रहा है बल्कि कहना चाहिए कि रोजमर्रा के जीवन में उपभोक्ता ठगा जा रहा है, जिसके कारण भी आज कोई आर्थ‍िक व्‍यवस्‍था को लेकर पूरी तरह डिजीटल होना नहीं चाहता। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि जब आप किसी होटल में भोजन करते हैं या वहां एक दिन के लिए रुकते हैं तो सरकार आपकी जेब चार तरह से खाली करवाती है। सबसे पहले वह केंद्र का टैक्‍स वसूलती है, फिर राज्‍य का कर आपसे वसूला जाता है, उसके बाद सर्विस टैक्‍स आपको देना है, लेकिन यहाँ तक ही बात बनने वाली नहीं है आगे और अंत में आपने यदि अपने डेबिट, क्रेडिट कार्ड से पेमेंट किया तो कुल बिल में अतिरिक्‍त 2 प्रतिशत जोड़कर आपसे राशि वसूली जाएगी। यानि कि कैश के मुकाबले आप डिजिटल हुए तो आपको बिल के अलावा दो प्रतिशत खर्च करना ही है। सर्विस टैक्स की राशि‍ देना जो केंद्र सरकार के अनुसार आपकी इच्छा पर निर्भर है, वह भी आपसे पूरी तरह धरा ली जाएगी। केंद्र सरकार और खासतौर से वित्‍तमंत्री अरुण जेटली कह रहे हैं कि हम इसका उपाय जल्‍द निकाल लेंगे । अब इसमें भी प्रश्‍न यही है कि आप जब इसका मर्ज ढूंढ़ेंगे तब ठीक है, लेकिन अभी तो उपभोक्‍ता हलाकान हो रहा है, इसे रोकने के लिए आपके पास क्‍या उपाय है। वस्‍तुत: इस प्रश्‍न के उत्‍तर में सरकार मौन है।

डिजिटल ट्रांसफर के बढ़ते खतरों पर यदि गौर करें तो स्‍थ‍ि‍ति सभी के समक्ष बिल्‍कुल स्‍पष्‍ट है। आंकड़ें कुछ इस प्रकार हैं कि भारत में लगातार साइबर क्राइम के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। आज से बारह वर्ष पूर्व वर्ष 2004 में जहां साइबर क्राइम की संख्या उंगलियों पर गिनने लायक सिर्फ 23 थी, वह अगले दस साल गुजरने पर बढ़कर 1 लाख 49 हजार 254 की संख्‍या में दर्ज किए गए । कहने का तात्‍पर्य यह है कि ऐसे मामले देखते ही देखते सिर्फ दस सालों के अंतराल में चार हजार गुना तक बढ़ गए । इसके बाद पिछले दो वर्षों में भी‍ जितने प्रभावी उपाय होने चाहिए थेवे अब तक नहीं हो सके हैं। अर्थव्‍यवस्‍था के लिए खासकर कालेधन, हवाला एवं आतंकवाद पर अंकुश लगाने के लिए पिछले साल सरकार ने एकाएक नोटबंदी कर दी। भले ही यह देशहित में अच्‍छा फैसला था, इसका जो लाभ होना था वह हुआ किंतु इसके कारण जो डिजिटल मनी ट्रांसफर में एकाएक बढ़ोत्‍तरी हुई उसके बाद साइबर अपराध के ग्राफ में भी दोगुनी वृद्ध‍ि होने का अनुमान लगाया गया है।

साइबर अपराध को लेकर उद्योग मंडल एसोचैम के साथ मिलकर जब महिंद्रा एसएसजी ने देशभर में जब एक वर्ष पूर्व अध्‍ययन किया था तो उसका निष्‍कर्ष भी यही आया था कि भारत सरकार ने साइबर क्राइम को रोकने के लिए यदि ठोस कदम नहीं उठाए तो आगे स्‍थ‍िति बहुत भयावह हो जाएगी। यह दोगुनी संख्‍या में वर्ष-प्रतिवर्ष बढ़ेंगे। इसमें भी सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि इन अपराधों का मूल स्थान चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश व अल्जीरिया सहित विदेश स्थित अन्य स्‍थान हैं, जिन पर भारत सरकार का कोई हस्‍तक्षेप नहीं है।

व्‍यक्‍तिगत तो छोड़ि‍ए खुद भारत सरकार की गोपनीय और संवेदनशील सूचनाएं चुराने में पश्चिमी देश ही नहीं अन्‍य देश भी शामिल हैं। इससे आगे साइबर सुरक्षा पर नजर रखने वाली अमेरिकी कंपनी फायर आई ने अपनी एक रिपोर्ट में सीधेतौर पर बताया था कि किस प्रकार से भारत सरकार के प्रतिष्ठान इसके निशाने पर हैं। फायर आई का कहना है कि भारतीय नौकरशाहों के कंप्यूटरों को पाकिस्तानी कंपनी मालवेयर (साइबर हमला और डाटा चुराने के लिए इस्तेमाल में आने वाला सॉफ्टवेयर) के जरिये निशाना बना रही है। इस्लामाबाद स्थित ट्रैंकुलाज नाम की कंपनी पाकिस्तान सरकार को साइबर हमले से बचाने में मदद करने का दावा करती है। यही कंपनी भारत सरकार के संगठनों के सिस्टम पर लगातार साइबर हमले भी कर रही है। ये हमले वर्ष 2013 से ही जारी हैं।पाकिस्तानी कंपनी निगरानी से बचने के लिए अमेरिकी सर्वर का इस्तेमाल कर रही है।

आमजन के खातों में सेंधमारी की बात करें तो ऑनलाइन बैंकिंग खातों पर फिशिंग हमले या एटीएम डेबिट कार्ड की क्लोनिंग वर्तमान में आम साइबर अपराध हो गया है। इसके अलावा आनलाइन बैंकिंग, वित्तीय लेनदेन के लिए मोबाइल, स्मार्टफोन, टेबलेट के बढ़ते इस्तेमाल के बीच साइबर अपराध भी बढ़ रहे हैं। इस ई-गवर्नेंस, ऑनलाइन कारोबार और सूचना प्रौद्योगिकी सम्बद्ध सेवाओं के बढ़ते इस्तेमाल के बीच आप जरा भी चूके कि व्यक्तिगत तथा संवेदनशील डेटा में सेंधमारी हो गई समझो। भारत में आज ऑनलाइन वित्तीय लेन-देन का नोटबंदी के बाद से गहरा असर हुआ है, उसमें पहले की तुलना में कई गुना वृद्ध‍ि हुई है। सरकार देश की 1.3 अरब की जनसंख्या को डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर भेज रही है। पर जमीनीहकीकत यह है कि पिछले साल ही देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक से 32 लाख क्रेडिट और डेबिट कार्ड की जानकारी कथित तौर पर चोरी हो गई थी और आज तक जांच एजेंसियां ज्यादा कुछ प्रगति नहीं कर पाई हैं। देश को कैशलेस सिस्‍टम में लाने के पूर्व सरकार को यह तो जरूर ही सोचना चाहिए कि भारत आज भी एक ऐसा देश है जहां संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक, 28.7 करोड़ व्यस्क अब भी निरक्षर हैं1 वहां चलो किसी तरह सभी लोगों को कैशलेस लेनदेन में शामिल भी कर लिया गया तो क्‍या उनके धन की सुरक्षा की जिम्‍मेदारी का वहन सरकार उठाने को तैयार है? 

आज देश में बिना प्रशिक्षण के, बिना गहरी समझ के, नागरिकों से इंटरनेट बैंकिंग एवं मोबाइल एप्प आधारित वित्तीय लेनदेन के लिए कहा जा रहा है। जबकि हकीकत यह है कि लोगों को बैंकों के सर्वर से जोड़ने वाले ‘वर्चुअल सुपरहाइवे’ पर पहुंचने के लिए एक ऐसा सर्वव्यापी इंटरनेट चाहिए, जो गड़बड़ी से दूर हो, जिसे कोई हैक नहीं कर पाए और जहां किसी प्रकार की कोई सैंधमारी न हो सके। इसी से जुड़ा एक दूसरा पक्ष यह भी है कि भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के अनुसार, जून 2016 तक इंटरनेट के कुल 35 करोड़ सब्सक्राइबर थे। हो सकता है कि अब यह संख्‍या50 करोड़ पर पहुँच गई हो जिसमें कि कई लोगों के पास एक से अधिक मोबाइल फोन और एक से अधिक इंटरनेट कनेक्शन हैं। इस मायने में जानकारी यह है कि आज भी देश के दो तिहाई से ज्यादा नागरिकों की पहुंच डिजिटल दुनिया में जीने के लिए जरूरी इंटरनेट तक नहीं हो सकी है।देश में बड़ी संख्या किसानों की है, जिनमें से पुरानी पीढ़ी के अधिकांश लोग इतने शिक्षित नहीं हैं कि वे सुरक्षित तरीके से डिजिटल लेनदेन कर सकें। हमारे ये अन्नदाता अक्सर अपने बैंकिंग संबंधी कामकाज के लिए भी किसी न किसी की मदद लेते हैं और कई बार धोखाधड़ी के शिकार हो जाते हैं।ऐसे में इस वर्ग के लिए डिजिटल लेनदेन कितना मुफीद होगा, यह कह पाना मुश्किल है।

वस्तुत: कैशलेस डिजिटल दुनिया में खुद को सुरक्षित बनाना सबसे कठिन कार्य है। साइबर अपराधों के मामले में दुनिया भर के देशों में अमेरिका और जापान के बाद भारत तीसरे स्थान पर हैं। भारत के आगे जो दो देश हैं अमेरिका और जापान वहां अर्थव्‍यवस्‍था इतनी मजबूत और प्रति व्‍यक्‍ति आय इतनी अधिक है कि यदि किसी के साथ कोई डिजिटल धोखा हो भी जाए तो वह आसानी से सहन कर लेता है किंतु भारत के नागरिकों के लिए इसे सहनकर पाना असंभव है। यहां 10 रुपए के मायने इतने हैं कि आदमी जान पर खेल जाता है, वहां यदि कोई उसके खाते को धोखे से साफ कर दे तो उसका क्‍या हाल होगा सहज ही समझा जा सकता है। भारत द्वारा डिजिटल अर्थव्यवस्था को अपना लिए जाने का यहां विरोध नहीं हो रहा है कहना इतनाभर है कि साइबर सेंधमारी के खतरों को देखते हुए, कम नकदी एक बात है लेकिन पूरी तरह कैशलेस हो जाना दूसरी बात है। इसलिए यह जरूरी है कि साइबर अपराधों को रोकने के लिए सरकार वर्तमान कानून को कठोर करे। 

वहीं यह बात भी आज सभी जानते हैं कि किसी भी देश की आर्थिक वृद्धि तथा आंतरिक व बाह्य सुरक्षा तथा प्रतिस्पर्धी क्षमता इस बात पर निर्भर करती है कि उसका साइबर स्पेस कितना सुरक्षित व अभेद्य है। अत: यह जरूरी है कि समय रहते साइबर अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए नए सिरे से ठोस पहल की जाए ।

लेखक, केंद्रीय फिल्‍म प्रमाणन बोर्ड की एडवाइजरी कमेटी के सदस्‍य एवं पत्रकार हैं।

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