ज़फरनामा : गुरु गोविन्द सिंह जी का औरंगजेब के नाम पत्र !

भारत अनादि काल से हिन्दू देश रहा है. इस देश में जितने भी धर्म, संप्रदाय और मत उत्पन्न हुए हैं, उन सभी के अनुयायी, इस देश के वास्तविक उतराधिकारी हैं. लेकिन जब भारत पर इस्लामी हमलावरों का शासन हुआ तो उन्होंने हिन्दू धर्म और हिन्दुओं को मिटाने के लिए हर तरह के यत्न किये. आज जो हिन्दू बचे हैं, उसके लिए हमें उन महापुरुषों का आभार मानना चाहिए जिन्होंने अपने त्याग और बलिदान से देश और हिन्दू धर्म को बचाया था.

इनमे गुरु गोविन्द सिंह का बलिदान सर्वोपरि और अद्वितीय है, क्योंकि गुरूजी ने धर्म के लिए अपने पिता गुरु तेगबहादुर और अपने चार पुत्र अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतह सिंह को बलिदान कर दिया था. बड़े दो पुत्र तो चमकौर के युद्ध में शहीद हो गए थे और दो छोटे पुत्र जोरावर सिंह (आयु 8) साल और फतह सिंह (आयु 5) साल जब अपनी दादी के साथ सिरसा नदी पार कर रहे तो अपने लोगों से बिछड़ गए थे जिनको मुसलमान सूबेदार वजीर खान ने ठन्डे बुर्ज में सरहिंद में कैद कर लिया था ! वजीर खान ने पहले तो बच्चों को इस्लाम काबुल करने के लिए लालच दिया, जब बच्चे नहीं माने तो मौत की धमकी भी दी लेकिन बच्चों ने कहा कि हमारे दादा जी ने धर्म कि रक्षा के लिए दिल्ली में अपना सर कटवा लिया था ! हम मुसलमान कैसे बन सकते हैं? हम तेरे इस्लाम पार थूकते हैं. (गुरु तेगबहादुर ने 16 नवम्बर 1675 को हिन्दू धर्म कि रक्षा के लिए अपना सर कटवा लिया था) बच्चों का जवाब सुनकर वजीर खान आग बबूला हो गया उसने दौनों बच्चों को एक दीवाल में जिन्दा चिनवाने का आदेश दे दिया और उन्हें शहीद कर दिया ! यह सन 1705 की बात है उस समय देश पर औरंगजेब की हुकूमत थी ! 

जब गुरूजी को बच्चों के दीवाल में चिनवाए जाने की खबर मिली तो वह हताश नहीं हुए ! गुरुजी चाहते थे कि लोग अपनी कायरता को त्याग करके निर्भय होकर अत्याचारी मुगलों का मुकाबला करें ! तभी धर्म की रक्षा हो सकेगी ! इसके लिए गुरूजी ने अस्त्र -शस्त्र की उपासना की रीति चलाई ! 

वाह गुरूजी का भयो खालसा सु नीको. वाह गुरुजी मिल फ़तेह जो बुलाई है. धरम स्थापने को, पापियों को खपाने को, गुरु जपने की नयी रीतियों चलाई है .”

गुरु गोविन्द सिंह जी ने लोगों को सशस्त्र रहने का उपदेश दिया ! अस्त्र शस्त्र को धर्म का प्रमुख अंग बताया, ताकि लोगों के भीतर से भय निकल जाये ! गुरूजी ने कहा कि- नमो शस्त्र पाणे, नमो अस्त्र माणे. नमो परम ज्ञाता, नमो लोकमाता.गरब गंजन, सरब भंजन, नमो जुद्ध जुद्ध, नमो कलह कर्ता. नमो नित नारायणे क्रूर कर्ता. – जाप साहब ...फिर गुरूजी ने यह भी कहा -“चिड़ियों से मैं बाज लड़ाऊँ, सवा लाख से एक भिडाऊं. तबही नाम गोविन्द धराऊँ “

गुरुजी ने अपने इस में आने का यह कारण खुद ही बता दिया था.“इस कारण प्रभु मोहि पठाओ, तब मैं जगत जमम धर आयो.धरम चलावन संत उबारन, दुष्ट दोखियन पकर पछारन”

गुरु गोविन्द सिंह जी एक महान योद्धा होने के साथ साथ महान विद्वान् भी थे ! वह ब्रज भाषा, पंजाबी, संस्कृत और फारसी भी जानते थे और इन सभी भाषाओँ में कविता भी लिख सकते थे ! जब औरंगजेब के अत्याचार सीमा से बढ़ गए तो गुरूजी ने मार्च 1705 को एक पत्र भाई दयाल सिंह के हाथों औरंगजेब को भेजा इसमे उसे सुधरने की नसीहत दी गयी थी ! यह पत्र फारसी भाषा के छंद शेरों के रूप में लिखा गया है ! इसमे कुल 134 शेर हैं ! इस पत्र को “ज़फरनामा “कहा जाता है !

यद्यपि यह पत्र औरंगजेब के लिए था लेकिन इसमे जो उपदेश दिए गए है वह आज हमारे लिए अत्यंत उपयोगी हैं ! इसमे औरंगजेब के आलावा इस्लाम, कुरान, और मुसलमानों के बारे में जो लिखा गया है, वह हमारी आँखें खोलने के लिए काफी हैं इसीलिए ज़फरनामा को धार्मिक ग्रन्थ के रूप में स्वीकार करते हुए दशम ग्रन्थ में शामिल किया गया है ! जफरनामा से विषयानुसार कुछ अंश प्रस्तुत किये जा रहे हैं ताकि लोगों को इस्लाम की हकीकत पता चल सके —

1 – शस्त्रधारी ईश्वर की वंदना –

बनामे खुदावंद तेगो तबर, खुदावंद तीरों सिनानो सिपर. खुदावंद मर्दाने जंग आजमा, ख़ुदावंदे अस्पाने पा दर हवा. 2 -3.स 

ईश्वर की वंदना करता हूँ, जो तलवार, छुरा, बाण, बरछा और ढाल का स्वामी है और जो युद्ध में प्रवीण वीर पुरुषों का स्वामी है! जिनके पास पवन वेग से दौड़ने वाले घोड़े हैं !

2 – औरंगजेब के कुकर्म –

तो खाके पिदर रा बकिरादारे जिश्त, खूने बिरादर बिदादी सिरिश्त. वजा खानए खाम करदी बिना, बराए दरे दौलते खेश रा. 

तूने अपने बाप की मिट्टी को अपने भाइयों के खून से गूँधा, और उस खून से सनी मिटटी से अपने राज्य की नींव रखी और अपना आलीशान महल तैयार किया !

3 – अल्लाह के नाम पर छल – 

न दीगर गिरायम बनामे खुदात, कि दीदम खुदाओ व् कलामे खुदात. ब सौगंदे तो एतबारे न मांद, मिरा जुज ब शमशीर कारे न मांद !

तेरे खुदा के नाम पर मैं धोखा नहीं खाऊंगा, क्योंकि तेरा खुदा और उसका कलाम झूठे हैं ! मुझे उन पर यकीन नहीं है इसलिए सिवा तलवार के प्रयोग से कोई उपाय नहीं रहा !

4 – छोटे बच्चों की हत्या –

चि शुद शिगाले ब मकरो रिया, हमीं कुश्त दो बच्चये शेर रा. चिहा शुद कि चूँ बच्च गां कुश्त चार, कि बाकी बिमादंद पेचीदा मार !

 यदि सियार शेर के बच्चों को अकेला पाकर धोखे से मार डाले तो क्या हुआ. अभी बदला लेने वाला उसका पिता कुंडली मारे विषधर की तरह बाकी है, जो तुझ से पूरा बदला चुका लेगा !

5 – मुसलमानों पर विश्वास नहीं –

मरा एतबारे बरीं हल्फ नेस्त, कि एजद गवाहस्तो यजदां यकेस्त. न कतरा मरा एतबारे बरूस्त, कि बख्शी ओ दीवां हम कज्ब गोस्त. कसे कोले कुरआं कुनद ऐतबार, हमा रोजे आखिर शवद खारो जार.अगर सद ब कुरआं बिखुर्दी कसम, मारा एतबारे न यक जर्रे दम ! 

मुझे इस बात पर यकीन नहीं कि तेरा खुदा एक है ! तेरी किताब (कुरान) और उसका लाने वाला सभी झूठे हैं ! जो भी कुरान पर विश्वास करेगा, वह आखिर में दुखी और अपमानित होगा ! अगर कोई कुरान कि सौ बार भी कसम खाए, तो उस पर यकीन नहीं करना चाहिए !

6 – दुष्टों का अंजाम – 

कुजा शाह इस्कंदर ओ शेरशाह, कि यक हम न मांदस्त जिन्दा बजाह. कुजा शाह तैमूर ओ बाबर कुजास्त, हुमायूं कुजस्त शाह अकबर कुजास्त !

सिकंदर कहाँ है, और शेरशाह कहाँ है, सब जिन्दा नहीं रहे ! कोई भी अमर नहीं हैं, तैमूर, बाबर, हुमायूँ और अकबर कहाँ गए ! सब का एक सा अंजाम हुआ !

7 – गुरूजी की प्रतिज्ञा –

कि हरगिज अजां चार दीवार शूम, निशानी न मानद बरीं पाक बूम. चूं शेरे जियां जिन्दा मानद हमें, जी तो इन्ताकामे सीतानद हमें. चूँ कार अज हमां हीलते दर गुजश्त, हलालस्त बुर्दन ब शमशीर दस्त !

हम तेरे शासन की दीवारों की नींव इस पवित्र देश से उखाड़ देंगे ! मेरे शेर जब तक जिन्दा रहेंगे, बदला लेते रहेंगे ! जब हरेक उपाय निष्फल हो जाएँ तो हाथों में तलवार उठाना ही धर्म है !

8 – ईश्वर सत्य के साथ है –

इके यार बाशद चि दुश्मन कुनद, अगर दुश्मनी रा बसद तन कुनद. उदू दुश्मनी गर हजार आवरद, न यक मूए ऊरा न जरा आवरद !

यदि ईश्वर मित्र हो, तो दुश्मन क्या क़र सकेगा, चाहे वह सौ शरीर धारण क़र ले ! यदि हजारों शत्रु हों, तो भी वह बल बांका नहीं क़र सकते है ! सदा ही धर्म की विजय होती है !

गुरु गोविन्द सिंह ने अपनी इसी प्रकार की ओजस्वी वाणियों से लोगों को इतना निर्भय और महान योद्धा बना दिया कि आज भी मुसलमान सिखों से उलझने से कतराते हैं ! वह जानते हैं कि सिख अपना बदला लिए बिना नहीं रह सकते इसलिए उनसे दूर ही रहो ! पंजाबी कवि भाई ईसर सिंह ईसर ने खालसा के बारे में लिखा है - नहला उत्ते दहला मार बदला चुका देंदा, रखदा न किसीदा उधार तेरा खालसा, खदा कुनैन दियां गोलियां वी उन्हां लयी, चाह्ड़े जिन्नू तीजेदा बुखार तेरा खालसा. पूरा पूरा बकरा रगड़ जांदा पलो पल, मारदा न इक भी डकार तेरा खालसा !”

इसी तरह एक जगह कृपाण की प्रसंशा में लिखा है - हुन्दी रही किरपान दी पूजा तेरे दरबार विच, तूं आप ही विकिया होसियाँ सी प्रेम दे बाजार विच. गुजरी तेरी सारी उमर तलवार दे व्योपार विच, तूं आपही पैदा होईऊं तलवार दी टुनकार विच. 

तूं मस्त है, बेख़ौफ़ है इक नाम दी मस्ती दे नाल, सिक्खां दी हस्ती कायम है तलवार दी हस्ती दे नाल. लक्खां जवानियाँ वार के फिर इह जवानी लाई है, जौहर दिखाके तेग दे, तेगे नूरानी लाई है ! 
तलवार जे वाही असां पत्त्थर चों पानी काढिया, इक इक ने सौ सौ वीरां नूं वांग गाजर वाड्धीया.

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3 टिप्पणियाँ

  1. मुस्लमान,,,मुस्लमान ही होता है । किसी के बाप से नही डरता कसम है मुझे अपने उस आने वाले जलाल की ,,,,जब भी मेरे जैसे सच्चे मुस्लमान की तलवार उठेगी खून की नदियां बहेगी । डरो एक सच्चे मुस्लमान के जलाल से समझे एक बात और ज़रूरी नही जो हमारे पूर्वजों ने किया है । हमको भी उसी नज़रों से देखा जाये। हमारे पूर्वजों पर कुछ ज़्यादा ही धर्म का पर्दा पड़ा हुआ था । वो लोग ऐसे लोगों को इस्लाम धर्म का पाठ सीखा रहे थे । जो लोग उनके धर्म की बुरा भला कहते थे । इस्लाम को सीखने जिनके भाग्य में था ही नही । मैं सभी धर्म का आदर करता हूँ । गुरु साहेब को भी मानता हूं । लेकिन मुझ जैसे मुस्लमान को बुज़दिल कहे ये मुझे गवारा नही । समझे

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  2. Totally galat explain kiya hai Tumne Zafarnama Sahib ko.. Zafarnama Sahib ki explanation Sikh Scholar pehle hi kar chuke hain... Tumne to 98% galat bataya hai... 'Gangu Brahmin' Guru Ji ka kitchen mein employee tha.. Sirsa Nadi par Guru Gobind singh ji ke Mata ji 'Gujar Kaur ji' and guru ji ke 2 chot3 bacche, Gangu brahmin ke sath alag ho gaye the...
    To 'Gangu Brahmin' mata ji and bacchon ko apne ghar le gaya tha, fir 'Gangu Brahmin ' ne hi paise ke liye Guru Sahib ke chote 2 and Guru ji ke Mata ji ko Mugal nawab ko arrest karwa diya tha....
    Chamkaur Sahib ki jang v sirf aur sirf 22 Hindu Pahadi Kings ki wajah se hui thi, kyon ke Guru Ji ne Anandpur Sahib mein apna kila bana liya tha and apni army rakh li thi, to 22 Hindu Pahadi Kings iske khilaaf the...
    Woh khud to mukabla kar nahi sakte the,, tab ja kar unho ne Aurangjeb ke kaan bhar diye ke 'Gobind' name ka ek aadmi apne apko guru batate hue bahut si army and weapons ikatthe karke apne khud ke rules ke hisaab se rehta hai, tabi ja kar Aurangjeb ne apni bahut saari army Hindu Padadi kings ke sath bheji thi and Chamkaur sahib ki jang hui thi... Sawa Lakh wali baat tab se chali aa rahi hai..
    Zafarnama mein Guru Ji ne Hindu Pahadi Kings and Aurangjeb ko jhootha and dhokhebaaz bataya hai... Kyon ke Hindu Kings v Devi ki kasme kha kar mukar gaye the.. Zafarnama mein read kar lo last mein hai..
    Agar full information chahiye to mujhe mail kar lo.. Magar sach batao logon ko...

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  3. kuch chutiye ye soch k khush hain ki pahadi rajao ne kaan bhare the abe g**nd k ched salo, jo guru gobind singh ji ki fauj mein unke saath lade the na vo bhi hindu hi the, aur sab chodo, khud guru sahab ki bhi lineage agar nikal lo to vo bhi hindu khatri family se hi aate the, aaj kal k bail budhi sikho aur inke nae papa musalmano ka yahi 1 naya funda ban gaya hai ki hindu ko gali do, abe chutiyo khud ki history nikal k dekho pata chal jaega kya ho, ab bahut se log jo guru gobind singh ji ne devi maa ki bhakti mein lekh likhe the usko bhi galat batate hain aur kahte hain usme 'shiva' guru sahab talvaar ko bata rahe hain, matlab koi sense hai is baat ka, salo saal se devi maa ko shiva bola jata hai, aise to apne hi guru pe sawaal uthate ho, vo itne bade gyani the to kuch nae shabd k saath nhi bana sakte the bhajan, 1 sanskrit word jiska ullekh already hai, uska kyun kia, abe 1 dam hi budhi ka istemaal karna chor die ho kya tum log, pehle jano samjho sahi kya hai phir vichaar karo aur bolo, ur ye guru gobind singh ne hi kaha tha musalman pe vishwaas na karna sali kayar aur dhokebaaj kaum hai.

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