क्या है रायसीना संवाद और क्या है उसमें पाकिस्तान व चीन को दी गई चेतावनी का महत्व - प्रमोद भार्गव



वैश्वीकरण के इस दौर में आज सम्पूर्ण विश्व एक बाजार बन गया है, जहां एक देश की नीतियाँ, दूसरे देश को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं ! इसे ध्यान में रखकर लन्दन स्थित थिंक टैंक International institute for Strategic Studies “आईआईएसएस” ने वर्ष 2002 से प्रतिवर्ष सिंगापुर स्थित “शांगरी ला होटल” में एशिया प्रशांत क्षेत्र के रक्षा मंत्रियों का एक संवाद कार्यक्रम आयोजित करना प्रारम्भ किया जिसका नाम रखा गया – Shangri-La-Dialouge.
उसी तर्ज पर गत वर्ष से नई दिल्ली में भी रायसीना डायलोग के नाम से एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है ! 1 से 3 मार्च 2016 को हुए प्रथम सम्मेलन में 40 देशों के राजनेता, पत्रकार, उच्चाधिकारी तथा उद्योग एवं व्यापार जगत से सम्बंधित लोगों ने अपने विचार साझा किये थे ! साउथ ब्लाक स्थित विदेश मंत्रालय का मुख्यालय जिस रायसीना हिल पर स्थित है, उसके ही नाम पर इस आयोजन को रायसीना संवाद नाम दिया गया है ! इसका मुख्य उद्देश्य एशियाई एकीकरण एवं शेष विश्व के साथ बेहतर समन्वय की संभावनाओं को तलाशना है !
17 जनवरी 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरे रायसीना संवाद के उद्घाटन के अवसर पर अपने विचार व्यक्त किये । भारत के इस महत्वाकांक्षी भू-राजनीतिक सम्मेलन रायसीना संवाद में 65 देशों के 250 से भी अधिक प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं। प्रस्तुत है इस सम्मेलन को लेकर लिखा गया वरिष्ठ स्तंभकार श्री प्रमोद भार्गव का आलेख -


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘रायसीना संवाद‘ में बोलते हुए कहा है कि भारत अपने पड़ोसी देशों से अच्छे संबंध बनाए रखना चाहता है। इस नाते मोदी ने न सिर्फ पाकिस्तान को उसकी बेजा हरकतों के लिए चेताया, बल्कि चीन को भी नसीहत देते हुए कहा कि यदि वह भारत के हितों का ख्याल रखेगा तो भारत की प्रगति चीन के लिए बाधा नहीं बनेगी। बल्कि इससे बीजिंग को फायदा ही होगा। इस दृष्टि से भारत और चीन दोनों को ही एक-दूसरे की संप्रभुता का सम्मान करने की जरूरत है। लिहाजा अच्छा है पाकिस्तान आतंक का रास्ता छोड़े और चीन भारत से रिश्तों में संवेदनशीलता बरते। बदलते वैश्विक परिदृष्य में भारत की शक्ति जिस तरह से बढ़ रही है, उस परिप्रेक्ष्य में भारत ने दोनों पड़ोसियों को आइना दिखाने का काम किया है। 

चीन और पाकिस्तान की ओर से भारत की चुनौती लगातार बढ़ रही है। बीते साल नबंवर में कानपुर के पास जो भीषण रेल दुर्घटना हुई थी, उसमें पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का षड्यंत्र होने का खुलासा हुआ है। बिहार में गिरफ्तार एक व्यक्ति ने काबूल किया है कि उसी ने रेल पटरी को उड़ाया था। इसके बदले में उसे आईएसआई ने मोटी रकम दी थी। भारत में पाकिस्तान द्वारा निर्यात किए जा रहे आतंकवाद का यह एक नया रूप है। देश में अस्थिरता फैलाने के इस नए जघन्य तरीके से भारत हैरत में है। दूसरी तरफ चीनी मीडिया ने दावा किया है कि यदि भारत और चीन के बीच जंग शुरू होती है तो चीनी सेना महज 48 घंटों के भीतर नई दिल्ली पहुंच कर कोहराम मचा सकती है। इतना ही नहीं मीडिया का यह भी दावा है कि चीनी सैनिकों को दिल्ली भेजने में पैराशूट उपलब्ध करा दिए जाए तो केवल 10 घंटे में ही सैनिक दिल्ली पहुंच जाएंगे। साफ है, भारत और चीन भले ही सार्वजनिक मंचों पर एक-दूसरे के साथ शान्ति और मित्रतापूर्ण संबंधों को मजबूत करने की पैरवी करते हों, लेकिन अकसर चीनी मीडिया और सैनिक भारत को धमकाने का कोई मौका नहीं चूकते हैं। इसीलिए चीन हर बार आतंकी मसूद की ढाल बनने में भी कोई संकोच नहीं करता है। 

दरअसल चीन भारत के बरक्ष बहरूपिया का चोला ओढ़े हुए है। एक तरफ वह पड़ोसी होने के नाते दोस्त की भूमिका में पेश आता है, पंचशील का राग अलापता है और व्यापारी बन जाता है। किंतु पंचशील के सिद्धांतों का उल्लघंन करने से बाज नहीं आता है। यही वजह है कि वह अरुणाचल पर अपना दावा ठोकता है। अरुणाचल को अपने नक्षे में शामिल कर लेता है। अपनी वेबसाइट पर भारतीय नक्षे से अरुणाचल को गायब कर देता है। साथ ही उसकी यह मंशा भी रहती है कि भारत विकसित न हो, उसके दक्षिण एशियाई देशों से द्विपक्षीय संबंध मजबूत न हो और न ही चीन की तुलना में भारतीय अर्थवयवस्था मजबूत हो। इस दृश्टि से वह पाक अधिकृत कश्मीर, लद्दाख, उत्तराखंड और अरूणाचल में अपनी नापाक मौजदूगी दर्ज कराकर भारत को परेशान करता रहता है। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए रायसीना संवाद में भारत के विदेश सचिव एस जयशंकर ने चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) पर कड़ा विरोध जताते हुए कहा है कि ‘भारत को इस परियोजना पर ऐतराज है। क्योंकि ये गलियारा पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है, जो भारत का क्षेत्र है। इस लिहाज से चीन को दूसरों की संप्रभुता को भी समझने की जरूरत है। चूंकि यह परियोजना भारत की सलाह लिए बिना शुरू की गई है, इसलिए इसको लेकर हमारी संवेदनशीलता और चिंताएं स्वाभाविक है। 

दरअसल चीन उस सिंह की तरह है जो गाय का मुखौटा ओढ़कर धूर्तता से दूसरे प्राणियों का शिकार करता है। जैसे कि चीन 1962 में भारत पर आक्रमण करता है और पूर्वोत्तर सीमा में अक्साई चिन की 38 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन हड़प लेता है। बावजूद अरुणाचल की 90 हजार वर्ग किमी पर दावा जताता रहता है। कैलाश मानसरोवर जो भगवान शिव के आराधना स्थल के नाम से हमारे प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में दर्ज हैं, सभी ग्रंथों में इसे अखंड भारत का हिस्सा बताया गया है। लेकिन भगवान भोले भंडारी अब चीन के कब्जे में हैं। यही नहीं गूगल अर्थ से होड़ बररते हुए चीन ने एक ऑनलाइन मानचित्र सेवा शुरू की है। जिसमें भारतीय भू-भाग अरूणाचल और अक्साई चिन को चीन ने अपने हिस्से में दर्षाया है। विश्व मानचित्र खण्ड में इसे चीनी भाषा मंदारिन में दर्षाते हुए अरूणाचल को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताया गया है, जिस पर चीन का दावा पहले से ही बना हुआ है। 

चीन की यह दोगली कूटनीति तमाम राजनीतिक मुद्दों पर साफ दिखाई देती है। चीन बार-बार जो आक्रामकता दिखा रहा है, इसकी पृश्ठभूमि में उसकी बढ़ती ताकत और बेलगाम महत्वाकांक्षा है। यह भारत के लिए ही नहीं दुनिया के लिए चिंता का कारण बनी हुई है। दुनिया जानती है कि भारत-चीन की सीमा विवादित है। सीमा विवाद सुलझाने में चीन की कोई रुचि नहीं हैं। वह केवल घुसपैठ करके अपनी सीमाओं के विस्तार की मंशा पाले हुए है। चीन ने जब तिब्बत पर कब्जा किया था, तब भारत ने तिब्बत के धर्मगुरू दलाई लामा के नेतृत्व में तिब्बतियों को भारत में शरण दी थी। जबकि चीन की इच्छा है कि भारत दलाई लामा और तिब्बतियों द्वारा तिब्बत की आजादी के लिए लड़ी जा रही लड़ाई की खिलाफत करे। दरअसल भारत ने तिब्बत को लेकर शिथिल व असंमजस की नीति अपनाई है। जब हमने तिब्बतियों को शरणर्थियों के रूप में जगह दे ही दी थी, तो तिब्बत को स्वंतत्र देश मानते हुए अंतराश्ट्रीय मंच पर समर्थन की घोशणा करने की जरुरत भी थी ? डॉ राममनोहर लोहिया ने संसद में इस आशय का बयान भी दिया था। लेकिन ढुलमुल नीति के कारण नेहरु ऐसा नहीं कर पाए ? इसके दुश्परिणाम भारत आज भी झेल रहा है?

चीन कूटनीति के स्तर पर भारत को हर जगह मात दे रहा है। पाकिस्तान ने 1963 में पाक अधिकृत कश्मीर का 5180 वर्ग किमी क्षेत्र चीन को भेंट कर दिया था। तब से चीन पाक का मददगार हो गया। चीन ने इस क्षेत्र में कुछ सालों के भीतर ही 80 अरब डॉलर का पूंजी निवेश की है। चीन की पीओके में शुरू हुई गतिविधियां सामरिक दृश्टि से चीन के लिए हितकारी हैं। यहां से वह अरब सागर पहुंचने की जुगाड़ में जुटा है। इसी क्षेत्र में चीन ने सीधे इस्लामाबाद पहंुचने के लिए काराकोरम सड़क मार्ग भी तैयार कर लिया है। इस दखल के बाद चीन ने पीओके क्षेत्र को पाकिस्तान का हिस्सा भी मानना शुरू कर दिया है। यही नहीं चीन ने भारत की सीमा पर हाइवे बनाने की राह में आखिरी बाधा भी पार कर ली है। चीन ने समुद्र तल से 3750 मीटर की ऊंचाई पर बर्फ से ढके गैलोंग्ला पर्वत पर 33 किमी लंबी सुरंग बनाकर इस बाधा को दूर कर लिया है। यह सड़क सामरिक नजरिए से बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि तिब्बत में मोषुओ काउंटी भारत के अरूणाचल का अंतिम छोर है। अभी तक यहां कोई सड़क मार्ग नहीं था। अब चीन इस मार्ग की सुरक्षा के बहाने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को सिविल इंजीनियर के रूप में तैनात करने की कोशिश में है। मसलन वह गिलगित-बलुचिस्तान में सैनिक मौजदूगी के जरिए भारत पर एक ओर दवाब की रणनीति को अंजाम देने के प्रयास में है। इसी दम पर चीनी मींिडया 48 घंटे में चीनी सैनिकों के दिल्ली पहुंच जाने का दावा कर रहा है। यह अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संतुलन बनाने के लिए दोनों देशों को एक-दूसरे की संप्रभुताओं का सम्मान करने का उचित संदेश दिया है। 

प्रमोद भार्गव
लेखक/पत्रकार
शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी म.प्र.
मो. 09425488224
फोन 07492 232007

लेखक वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं।


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