शादी के दिन मंदिर रक्षार्थ हेतु ओरंगजेब से लोहा लेते वीरगति को प्राप्त होने वाले गुमनाम वीर योद्दा सुजान सिंह शेखावत


*ढाता मंदिर सिर दियो,आता दल अवरंग । इन बाता सूजो अमर,रायसलोत रंग ।।*

राजस्थान की वीर प्रसतुता धरती ने अनगनित वीर पैदा किये ! पुराने गाँवों मे आज भी उन वीरो की गाथाये लोक कथाओं, गीतों मे गूंजती है ! जगह जगह मौजूद समाधियाँ ओर चबूतरे उनके यश का गुणगान कर रहे है ! हमारे इतिहासकारो या राजनीतिक लोगों का उन महान धर्म योद्दाओ से क्या मनमुटाव रहा होगा जो उनको आज तक कभी पाठयक्रम मे स्थान नही दिया गया ? ख़ैर जो भी हो मुझे तो मेरा कार्य करना है , गुमनाम योद्दाओ को मेरी सच्ची श्रदाजंली यही होगी की मे आप सभी पाठकों को उनकी महानता से रूबरू करवाऊ ! *श्रदाजंली गुमनाम योद्दाओ को* पुस्तक की एक और कहानी मे आपके सामने रखने जा रहा हूँ !

आज मे आपको ऐसे महान योद्दा के जीवन से रूबरू कराने जा रहा हुँ जो मंदिर रक्षार्थ शादी वाले दिन औरंगज़ेब की फोज से लड़ते हुये वीरगति को प्राप्त हुये ! मे *वीरेन्द्र सिंह* प्रयास करूँगा की मेरी लेखनी से इनकी अतुलनिय वीरता का थोड़ा सा चित्रण आपके सामने कर सकूं ! 

दिनांक *7 मार्च 1679*, गोधुली वेला का समय, वातावरण मे शेखावटी की बालू माटी की सोंधी महक छा रही थी,गायों की पवित्र चरण रज से आच्छदित हो सूर्य देव आकाश मार्ग से विश्राम को जा रहे थे और शेखावाटी की धरती पर छापोली ठाकुर साहब सुजान सिंह जी शेखावत की बारात छापोली की दिशा मे बढ़ रही थी ! लगभग बाईस वर्षीय तेजोमय चेहरे से युक्त दुल्हे वाली बारात जिसमें अस्सी नब्बे सजीले ऊँट घोड़ों पर सवार बाराती ऐसा आभास करा रहे थे जैसे किसी देव पुरूष की बारात हो ! दूल्हे के साथ चल रहे नवयुवक ने उम्रदराज़ से दिख रहे राजपुत सरदार से पुछा , बाबोसा आज का रात्रि विश्राम ? उधर से प्रतिउत्तर आया , छापोली पहुँच कर होगा , नज़दीक ही है ! सभी के चेहरे पर अजीब सी चमक उभर आयी और घोड़ों की चाल स्वत ही बढ़ गयी , इतने दिनों बाद घर का विश्राम , इस सोच ने दिन भर की सारी थकान दूर कर दी ! 

ठाकुर सुजान सिंह ने गायों बैलों के गले मे बंधी घण्टियों के मधुर स्वर के बीच से आ रही आवाज़ों का सुनने का प्रयास किया , आवाज़ कुछ स्पष्ट नही थी पर ऐसा लग रहा था जैसे कोई आह्वान कर रहा हो ? 

सबसे पिछे चल रहे घुड़सवार की ओर देखते हुये सुजान सिंह बोले , ये शायद चरवाहों की आवाज़ है ? जरा सुनो क्या कहना चाहते है ? तुरंत उत्तर आया , हुकम कुछ नही ,ऐसे ही बकवास कर रहे है , घुड़सवार ठाकुर सुजान सिंह के व्यवहार से शायद बहुत ज़्यादा परिचित रहा होगा , उसने चरवाहों को डाँट कर भगाना चाहा , भागो यहाँ से , और उनकी ओर लपका , हल्ला मत करो यहाँ , जाओ यहाँ से ! 

सुजान सिंह ने देखा ओर सरदार को रोका , ठहरो ठहरो , बुलाओ इनको ,,, क्या बात है , सुजान सिंह की आवाज़ आई , प्रतिउत्तर बहुत स्पष्ट सुनाई दिया 

"*झिरमीर झिरमीर मेवा बरसे , मोरा छतरी छाई !
कुल मे है तो जाण सुजान, फोज देवरे आई !!

सुजान सिंह ने चौंक कर साथ चल रहे राजपूत सरदारों की ओर देखा " किस की फ़ौज , किस मंदिर पर आई है ?" चरवाहों के साथ आये गुर्जर और अहीर समाज के लोगो ने जो बताया वो सुन कर सुजान सिंह सोच में पड़ गए , हुकम , बादशाह ओरेंजगेब की फ़ौज ने खण्डेला कस्बे के बाहर डेरा डाल दिया है, कस्बा पूरा खाली हो चुका हैं कुछ बुजुर्ग और मंदिर के पुजारी ही है वहां , कल मोहन देव जी के मंदिर को तोड़ने की मुनादी है, साथ् ही 100 गायों को हलाल करने वाले है। कस्बे वासी पहाड़ो में चले गए है ,अब क्या करे ? क्या वीर शेखा जी की धरती पर राजपूत नही रहे ? 

सुजान सिंह बोले , जिस धरती पर राजपूतों का निवास हो वहाँ ऐसा केसे हो सकता है ? 

गुर्जर और अहीर समाज के मुखिया ने उत्तर दिया , हुकम औरंगज़ेब ने विशाल फ़ौज भेजी है जिसका सेनापति दाराब खां है और उसके साथ् बड़ा तोपखाना है, हस्ती दल (हाथी सेना) और घुड़सवार सेना है जिसने काशी ,मथुरा , ब्रज भुमि और देश भर के बड़े मंदिरों को तोड़ डाला ,अब यहाँ छोटे से कस्बे के मंदिर की रक्षा का साहस कोन करे ?

सुजान सिंह बोले , उस पापी ने कही कुछ भी किया हो पर यहाँ वो तब तक इस घर्णित काम को नही कर पायेगा , जब तक इस धरती पर सुजान सिंह जैसे क्षत्रिय पैदा होते रहेंगे ! हमारे साथ कौन कौन चलना चाहेगा खण्डेला मोहन देव जी के मंदिर की रक्षार्थ ? 

एक बुज़ुर्ग राजपुत सरदार बोले , हुकम हमारे साथ सत्तर लोग है ओर लड़ने वाले केवल पचास ! और हम अभी माँगलिक कार्य से निकले हुये है इसलिये युद्द के लायक हथियार भी नही है हमारे पास सिवाय तलवार ओर भाले के ? सुजान सिंह गहरी सोच मे पड़ गये , वक़्त बहुत कम था ओर वो जानते भी थे की छापोली जैसा छोटा गाँव कितने भी हथियार इक्कठे कर ले दिल्ली के बादशाह औरंगज़ेब की फ़ौज का मुक़ाबला नही कर सकता ! सुजान सिंह जी के दिमाग़ मे बहुत से विचार आ जा रहे थे , परिवार की ज़िम्मेदारी , नयी नयी शादी होकर सेकडो स्वप्न सज़ा कर आई डोली मे बैठी दुल्हन जिनका अभी तक चेहरा भी नही देखा उन्होने , क्या बीतेगी उस लड़की पर जिसने सुहाग का लाल जोड़ा भी ठीक से नही देखा हो ओर वैध्वय की सफ़ेदी की और बढ़ने जा रही हो ? 

पर सुजान बचपन से माँ ने जो क्षत्रिय धर्म सिखाया उस सिखलाई का क्या होगी ? गौ ,हिन्दु धर्म ,मंदिर और ब्राह्मण की रक्षा का जो पाठ पढ़ाया गया उसका क्या होगा ?

क्षत्राणी जब बच्चे को दूध पिलाती है तब उसके गाये गीतों का क्या होगा ? वो अपने दुधमुँहे बच्चे से बार बार जो दूध नही लज्जाने का वचन लेती है उसका क्या होगा ? सुजान आपकी माता जी ने भी आपसे ये वचन लिया था की राजपूति धर्म को मत छोड़ना , धर्म रक्षा के लिये सदैव तैयार रहना ! 

औहहह अजीब दुविधा है , अपने इष्ट देव को मन ही मन प्रणाम करके ठाकुर सुजान सिंह शेखावत ने फ़ैसला लिया ....

उनकी रोबीली आवाज़ शेखावाटी की धरती पर गुंजी "मेरे राजपूत सरदारों, गौ, मंदिरों ओर हिन्दु धर्म की रक्षा के लिये क्षत्रिय सदैव तैयार रहे है ओर इनकी रक्षा करते हुये ये शरीर काम आ जाये तो इससे बडा सौभाग्य क्या हो सकता है ? जिस मोक्ष की प्राप्ति के लिये साधु संत ऋषि मुनी सालों तपस्या करते है उस मोक्ष को एक क्षत्रिय अपने धर्म का पालन करते हुये कुछ ही पलो मे पा लेता है, मे आपसे आह्वान करता हुँ जो मेरे साथ लड़ाई मे खण्डेला चलना चाहे वो स्वीकृति दे"। वीर शेखा जी की पवित्र भूमि पर सुजान सिंह शेखावत के शब्द गूँज रहे थे ओर बारात मे मौजुद सभी व्यक्ति मूक से खड़े सुजान सिंह शेखावत के तेजोमय चेहरे को देख रहे थे ! गाँव वालो ओर बाराती सबको ऐसा लग रहा था जैसे खुद भगवान श्री कृष्ण सुजान सिंह की देह से बोल रहे हो ? 

निर्णय हो चुका था, बारात मे शामिल पचास राजपूत सरदारों ने घोड़ों पर युद्द के लिये जीण कस ली और शेष रहे बुज़ुर्ग, नाई ख्वास जी, मंगलगान गाने वाले ढोली ओर बारात मे शामिल अन्य वर्ग के लोगों को दुल्हन की डोली लेकर छापोली जाने को बोल दिया गया ! कुछ ही पलो मे सबकुछ बदल गया, सबके चेहरों के भाव बदल गये, ख़ुशियों के गीत युद्द की आवाज़ मे बदल गये और डोली मे बैठी नवविवाहिता सब कुछ समझ चुकी थी ! सुजान सिंह की नज़र डोली की तरफ़ गयी जैसे किसी ने आवाज़ लगाई हो, पर वहाँ तो सब कुछ शांत था ! डोली से मेहंदी लगा कोमल हाथ बाहर निकला ओर स्वामी को कुछ संदेश दे गया ! सुजान सिंह ने मन ही मन क्षत्राणी को प्रणाम किया, "भगवान जाने किस मिट्टी से बनाते है इन क्षत्राणीयो को ? मोह माया से कोसो दुर रहने वाली इन क्षत्राणीयो ने जाने कितने वीर सुजान देश धर्म की रक्षा के लिये हँसते हँसते बलिदान कर दिये ? यदि ये क्षत्रराणिया ना हो तो धरती से क्षत्रियत्व ही समाप्त हो जाये, इन वीर रजपूतानियो के होते इस धरती से क्षत्रियत्व नि:शेष नही हो सकता ! धन्य है उनको, सत सत प्रणाम"।

युद्ध की रणनीति बनाई जाने लगी, सभी गाँवो में शेखावतों को युद्ध के लिए निमंत्रण भेजने का फैसला हुआ । गुर्जर और अहीर समाज के लोगो ने रात्रि में हमला करके भूखी प्यासी मरणासन गायों छुड़वाने का सकंल्प लिया । सुजान सिंह ओर अन्य पचास घुड़सवार पवन वेग से खण्डेला की और बढ़ चले ! 

उधर खण्डेला निवासियों को आज की रात बहुत भयानक दिख रही थी, सब और भगदड़ मची थी, जवान बहन बेटियों को सुरक्षित जगह भेजा जा चुका था । मंदिर के पुजारी मोती बाबा मोहन देव जी के मन्दिर मे नारायण कवच का जाप कर रहे थे, हे नाथ क्या ज़माना आ गया ? आपने अधर्मियों का हमेशा नाश किया ओर आज ये अधर्मी आपके मंदिर पर ही हमला करने वाले है, हे द्वारिकाधीश कुछ करो ! रूँधे गले से मोती बाबा ने द्वारिकाधीश से गुहार लगाई ओर एकटक मोहन की निगाहों की और देखने लगे, भक्त ओर भगवान का आपस का सम्बंध जुड़ चुका था, कन्हैया की मुस्कुराती हुई निगाहें मोती बाबा को देख रही थी, बाबा के शरीर मे झुरझरी सी दोड गयी, हे प्रभु ये क्या चमत्कार ? 

उधर कस्बे मे पचास घुड़सवारों का दल प्रविष्ट हो गया ओर पहले से ही आंशकित कस्बे वाले " तुर्क आ गये , तुर्क आ गये " करते भागने लगे ! घुड़सवारों का दल सीधा मोहनदेव जी के मंदिर के सामने रूका ! लोग छापोली ठाकुर साहब सुजान सिंह शेखावत को पहचान चुके थे, जय जय कार होने लगी, सुजान सिंह ने घोड़े से उतर कर द्वारिकाधीश और मोती बाबा को प्रणाम किया, मोती बाबा ने आशिर्वाद दिया ओर रूँधे गले से सुजान सिंह को सीने से लगा लिया "कंहैया क्या लीला है ये आपकी, वो समझ चुके थे की सुजान सिंह शेखावत को द्वारिकाधीश ने ही भेजा है ।"

बाबा मंदिर में रात्रि जागरण ओर कीर्तन का कार्यक्रम रखिये हम बाहर सुरक्षा मे खड़े है, देखते है कोन असुर आता है ? पूरी रात्रि आसपास के गाँवो से शेखावत राजपूतो का खण्डेला आना लगा रहा । सुबह तक पूरे तीन सौ शूरवीर शेखावत मंदिर की रक्षा के लिए अपने प्राण देने को आ चुके थे ।

(8मार्च 1679)सूर्य देव ने पहली किरण से घोड़ों पर सवार सूर्य वंशी वीरो को आशिर्वाद दिया ! 

सुजान सिंह ने दुर आकाश मे उड़ती धुल देखी तो समझ गये म्लेच्छ असुरों की सेना आ पहुँची है ! सुजान सिंह शेखावत ने अपने साथियों को सम्बोधित किया "आज हम सब पर भगवान महादेव का आशिर्वाद हुआ है मेरे शूरवीर शेखावतो, हम सुर्यवंशी भगवान श्री राम के वंशज आज इस म्लेच्छ सेना से लड़ते हुये मोक्ष के मार्ग पर बढ़ेंगे ! भगवान श्री राम और लक्ष्मण ने जैसे खर दुषण सहित चौदह हजार राक्षसों को अकेले ही मार गिराया था वैसे ही हमे इन म्लेच्छों को मारना है शुरवीर शेखावतो,आख़िर हमारी रगो मे भी तो उन्हीं का खून दोड रहा है ! जिन क्षत्राणियों माताओं का दूध पिया है उनके दूध की लाज रखनी है सरदारों"।

आकाश हर हर महादेव के नारों से गूँज उठा, सभी के हाथ तलवारों ओर भालों की मुठ पर कस गये, रणबाँकुरो की भुजाएँ युद्द उन्माद मे फड़कने लगी, म्रत्यु के देवता यम भी असमंजस मे थे ईश्वर ने इन्हें कैसा ह्रदय दिया है ? लोग मौत से दूर भागते है ये मौत की तरफ़ भाग रहे है ! यमराज ने सोचा मेरा यहाँ क्या काम ये सब तो पहले से ही बैकुंठ वासी हो गये है, सब नारायण के पार्षद है, धन्य है ये ! 

मुगल सेनापति हज़ारों की फ़ौज के साथ मोहन देव जी के मंदिर के सामने खडा था ! वो बडा आश्चर्यचकित था, क्यो तुमने तो कहा था वहाँ कोई प्रतिकार करने वाला नही होगा ? ये कौन है ? मुगल गुप्तचर का मुँह बंद था, वो भी सोच रहा था ये रात ही रात मे कंहा से प्रकट हो गये ?

मुगल सेनापति ठाकुर सुजान सिंह की ओर मुख़ातिब हुआ, सुनो नौजवान, तुम अभी बहुत छोटे हो और समझ की कमी है ! क्या इन तीन सौ आदमियों के भरोसे हो ? तुम से न ये मंदिर बचेगा ओर न तुम्हारे प्राण ! इसलिये अभी भी वक़्त है चले जाओ !

ठाकुर सुजान सिंह ने उस लम्बी बेतरतीबी ढाढी और भद्दी शक्ल वाले की ओर देखा ओर बोले, ज़बान से क्या बात करता है तलवार से बात कर म्लेच्छ ! ये मंदिर तो बचेगा पर तेरे प्राण नही बचेंगे राक्षस, ये निर्णय हमारी तलवारें करेगी की तीन सौ आदमी कैसे तीस हज़ार आदमियों को जवाब देंगे ? तू हमारी चिन्ता छोड़ अपनी कर ! 

सेनापति को ऐसे जवाब की उम्मीद नही थी,उसके सामने जो था वो बीस बाईस वर्ष से ज़्यादा उम्र का नही था पर उसके चेहरे के तेज़, रोबदार मुच्छो ओर उसके शक्तिशाली गठीले कसरती बदन से लग रहा था कि लड़ाई इतनी आसान नही होगी ! उसने ख़तरे को भाँपते हुये चाल बदली, बोला,सुनो मे तुम्हारी बहादुरी से बहुत प्रसन्न हुँ, मे इस मंदिर को नही तोड़ुगा, बस बाहर चबूतरे का एक कोना प्रतीकात्मक रूप से तोड़ कर आगे बढ़ जाऊँगा ! 

सुजान सिंह उस तुर्क की चाल को समझ रहे थे, वो जानते भी थे ओर समझते भी थे की ये अगली बार जरूर आयेगा और इससे अधिक सेना के साथ अधिक नुक़सान पहुँचा कर जायेगा ! ये मुगलो की नीति रही है कि वो धोखे मे रखकर वार करते है ! 

वो बोले , नही हमे मंजूर नही ! हमारे आराध्य देव का ये अपमान होगा, हम इस शर्त को नही मान सकते ! 

मुगल सेनापति क्रोध मे बोला, तो मरो 

मुगलो की सेना अल्लाह हो अकबर करती आगे बढ़ी उधर तीन सौ घुड़सवार हर हर महादेव के जय घोष के साथ मुगलो पर टुट पड़े ! मैदान मे लाशें बिछने लगी थी, सुजान सिंह की नज़र उस सेनापति पर थी पर वो लड़ाई शुरू होते ही पीछे सरक लिया ! ये मुगलो की सदैव की नीति रही थी, सेनापति या बादशाह कभी सामने नही आता था ! अब तक चालीस के आसपास मुगल सैनिक ठाकुर सुजान सिंह के हाथो मारे जा चुके थे, ऐसा लग रहा था जैसे खुद द्वारिकाधीश ही युद्द मे आ गये हो ! तीन सौ शेखावत राजपुत सरदारों ने हज़ारों की मुगल सेना की हालत ख़राब करके रख दी ओर तभी एक ज़ोरदार आवाज़ मैदान मे गूंजी हर हर महादेव, सबने देखा मुगल सेनापति का सिर उसके धड़ पर नही था वो तो सुजान सिंह की तलवार का शिकार हो चुका था ! मुगल सेना मे भगदड़ सी मच गयी ! युद्द निर्णायक दौर पर पहुँच चुका था, सभी तीन सौ शेखावत सरदार हजारों म्लेच्छों को मारकर मोक्ष की राह पर चले गये थे पर ठाकुर सुजान सिंह की तलवार अभी भी मुगलो पर क़हर बरपा रही थी, मंदिर तोड़ने आये मुगल खुद की जान बचाने के रास्ते तलाशते दिखे ! मोती बाबा ओर बाकि ग्रामीणों ने ऐसा द्रश्य कभी न देखा न सोचा, एक अकेला घुड़सवार ओर सेंकडो की फ़ौज ! सुजान सिंह की तलवार की गति इतनी तेज़ थी कि आँखो से तलवार दिखाई ही न दे ! अचानक किसी मुगल ने शमशीर ( एक लम्बी तलवार जिससे दुर से वार किया जा सकता है ) से वार किया ! अब जो द्रश्य सबके सामने था उसकी कल्पना न मुगलो ने की थी ओर न ही मोती बाबा ओर ग्रामीणों ने !

हे भगवान, ये क्या मोती बाबा बोल पड़े ! 

ग्रामीणों ने जयकारा लगाया "झुझार जी महाराज की जय"

ठाकुर सुजान सिंह शेखावत का सिर उनके धड़ पर नही था पर तलवार चलने की गति मे कोइ फ़र्क़ नही पड़ा था, मुगल सेना मे भगदड़ मच गयी, सब जान बचाने को इधर भाग रहे थे ! ये सुजान सिंह नही उनके ईष्ट देव लड़ रहे है मोती बाबा बोले ! 

उधर छापोली की और रवाना हुई दुल्हन ने अपनी डोली रूकवा दी, ऐसा कभी नही हुआ की बिना दुल्हे के दुल्हन ससुराल जाये ! हम खण्डेला जायेंगे ! क्षत्राणी की बात सुन डोली फिर से खण्डेला की और मोड़ दी गयी !

मुगल सेना भाग खड़ी हुई ओर झुंझार सुजान सिंह जी का धड़ लिये घोड़े ने मंदिर की परिक्रमा की ओर खण्डेला से बाहर छापोली की ओर बढ़ चला ! 

क्षत्राणी के आदेश पर डोली खण्डेला की सीमा पर रूकवा दी गयी, वो मुझसे मिलने यही आयेंगे ! एक सती का सतीत्व बोल रहा था तो उनकी बात कोन टाल सकता है ? दूर से आती घोड़े की टापों ने बता दिया कि वो आ रहे है , झुंझार सुजान सिंह जी का कमध (धड़ )लिये घोड़ा सती क्षत्राणी की ओर बढ़ रहा था और पीछे पेचे मोती बाबा ओर सेंकडो गाँव वासी भागे चले आ रहे थे !

आ गये आप ? वीर क्षत्राणी का स्वर गूंजा ! आपने कुल की और मेरे धर्म की लाज रख ली प्रियतम, मे धन्य हुई जो आप जैसे स्वामी मुझे मिले ! वीर क्षत्राणी ने पति के शव को गोद मे लेकर अग्नि स्नान किया और अपना जोड़ा अमर कर लिया ! उसी जगह खण्डेला की सीमा पर दो देवलिया बनी जो आज भी इस त्याग और बलिदान की साक्षी है ! उसी रात गुर्जरो और अहीरों के दल ने मुग़ल सेना के उस भाग पर हमला कर दिया जहाँ गायो को हलाल करने के लिए बाँध रखा था,सभी 100 गायो को मुक्त करवा लिया गया । 

आज भी झुंझार जी महाराज ओर सती माता की पूजा वहां की जाती है ओर वहाँ पूजा करने से मनोकामनाये पूर्ण भी होती है ! आप भी कभी वहाँ जाये तो उन वीर देव पुरुष ओर सती माता का आशिर्वाद जरूर लेवे !

"आप सभी पाठकों से आग्रह है कि इन सत्यं कहानियो से सभी को अवगत कराये, साथ ही ये भी आग्रह है की शेयर,कॉपी, पेस्ट करते समय मेरी इस कहानी को मूल स्वरुप मे ही रहने दे ! देखने में आया है कि कुछ अति बुद्दीजीवि पाठक मेरा ओर मेरी पुस्तक का नाम उड़ा कर खुद का नाम चिपका कर पोस्ट आगे भेजते है, उनसे आग्रह है की ऐसा ना करे, एक लेखक के ह्रदय को बहुत गहरी चोट पहुँचती है आपकी ऐसी कार्यवाही से"।

मेरा ऐसी प्रेरक सत्य कहानियाँ लिखने का उद्देश्य हमारी आने वाली पीढ़ियों को बताना है की हमारे पुर्वर्ज कितने महान रहे है ? धर्म रक्षा और समाज हित मे उनके द्वारा निभाई गयी महान भागीदारी को हमे पूरी दुनिया को बताना है ! हम और हमारा समाज उनके जीवन चरित्र से बहुत कुछ सिख सकता है । अधिकांश इन कहानियो का संकलन में लोक कथाओं,लोकगीतों और स्थानीय बुजर्गो से करता हूँ और प्रयास मेरा ये ही रहता हैं कि अधिक वास्तविकता से आपको अवगत करा सकू! 


कुँवर वीरेन्द्र सिंह शेखावत
प्रदेश अध्यक्ष्अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा(युवा) राजस्थान

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5 टिप्पणियाँ

  1. शत शत नमन उस वीर योद्धा और उस क्षत्राणी को 🙏
    आपका भी आभार 💖 से आने वाली पीढ़ियों को इस स्वर्णिम इतिहास से रूबरू कराने के लिए ।

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  2. 7 मार्च 1679 ई0 की बात है ठाकुर सुजान सिंह अपनी शादी की बारात लेकर जा रहे थे, 22 वर्ष के सुजान सिंह किसी देवता की लग रहे थे, ऐसा लग रहा था मानो देवता अपनी बारात लेकर जा रहे हो, उन्होंने अपने दुल्हन का मुख भी नही देखा था, शाम हो चुकी थी इसलिए रात्रि विश्राम के लिए "छापोली" में पड़ाव डाल दिये, कुछ ही छनो में उन्हें गायो में लगे घुघरुओ की आवाजें सुनाई देने लगी, आवाजे स्पष्ट नही थी फिर भी वे सुनने का प्रयास कर रहे थे, मानो वो आवाजे उनसे कुछ कह रही थी । सुजान सिंह ने अपने लोगो से कहा शायद ये चरवाहों की आवाज है जरा सुनो वे क्या कहना चाहते है गुप्तचरों ने सूचना दी कि युवराज ये लोग कह रहे है कि कोई फौज "देवड़े" पर आई है। वे चौंक पड़े कैसी फौज किसकी फौज किस मंदिर पे आयी है ? जवाब आया "युवराज ये औरंगजेब की बहुत ही विशाल सेना है जिसका सेनापति दराबखान है जो खंडेला के बाहर पड़ाव डाल रखी है कल खंडेला स्थित श्रीकृष्ण मंदिर को तोड़ दिया जाएगा । निर्णय हो चुका था एक ही पल में सबकुछ बदल गया शादी के खुशनुमा चहरे अचानक शख्त हो चुके थे, कोमल शरीर वज्र के समान कठोर हो चुका था जो बाराती थे वे सेना में तब्दील हो चुके थे, वे अपने सेना के लोगो से विचार विमर्श करने लगे तब उनको पता चला कि उनके साथ सिर्फ 70 सेना थी तब वे रात्रि के समय मे बिना एक पल गवाए उन्होंने पास के गांव से कुछ आदमी इकठ्ठे कर लिए करीब 500 घुड़सवार अब उनके पास हो चुके थे, अचानक उन्हें अपनी पत्नी की याद आयी जिसका मुख भी वे नही देख पाए थे जो डोली में बैठी हुई थी क्या बीतेगी उसपे जिसने अपनी लाल जोड़े भी ठीक से नही देखी हो, वे तरह तरह के विचारों में खोए हुए थे तभी उनके कानों में अपनी माँ को दिए वचन याद आये जिसमे उन्होंने राजपूती धर्म को ना छोड़ने का वचन दिया था, उनकी पत्नी भी सारी बातों को समझ चुकी थी, डोली के तरफ उनकी नजर गयी उनकी पत्नी महँदी वाली हाथों को निकालकर इशारा कर रही थी मुख पे प्रसन्नता के भाव थे वो एक सच्ची क्षत्राणी के कर्तब्य की निभा रही थी मानो वो खुद तलवार लेकर दुश्मन पे टूट पड़ना चाहती थी परंतु ऐसा नही हो सकता था, सुजान सिंह ने डोली के पास जाकर डोली को और अपनी पत्नी को प्रणाम किये और कहारों और नाई को डोली सुरक्षित अपने राज्य भेज देने का आदेश दे दिया और खुद खंडेला को घेरकर उसकी चौकसी करने लगे इतिहासकार कहते है कि मानो खुद कृष्ण उस मंदिर की चौकसी कर रहे थे, उनका मुखड़ा भी श्रीकृष्ण की ही तरह चमक रहा था।
    8 मार्च 1679 को दराबखान की सेना आमने सामने आ चुकी थी, महाकाल भक्त सुजान सिंह ने अपने इष्टदेव को याद किये और हर हर महादेव के जयघोष के साथ 10 हजार की मुगल सेना के साथ सुजान सिंह के 500 लोगो के बीच घनघोर युद्ध आरम्भ हो गया, सुजान सिंह ने दराबखान को मारने के लिए उसकी ओर लपके और 40 मुगल सेना को मौत के घाट उतार दिए ऐसे पराक्रम को देखकर दराबखान पीछे हटने में ही भलाई समझी लेकिन ठाकुर सुजान सिंह रुकनेवाले नही थे वो भी उनके सामने आ रहा था वो मारा जा रहा था सुजान सिंह साक्षात मृत्यु का रूप धारण करके युद्ध कर रहे थे ऐसा लग रहा था मानो खुद महाकाल ही युद्ध कर रहे हो, इस बीच कुछ लोगो की नजर सुजान सिंह पे पड़ी लेकिन ये क्या सुजान सिंह के शरीर मे सिर तो है ही नही... लोगो को घोर आश्चर्य हुआ लेकिन उनके अपने लोगो ये समझते देर नही लगी कि सुजान सिंह तो कब के मोक्ष को प्राप्त कर चुके है ये जो युद्ध कर रहे है वे सुजान सिंह के इष्टदेव है, सबों ने मन ही मन अपना शीश झुककर इष्टदेव को प्रणाम किये । अब दराबखान मारा जा चुका था मुगल सेना भाग रही थी लेकिन ये क्या सुजान सिंह घोड़े पे सवार बिना सिर के ही मुगलो का संघार कर रहे थे उस युद्धभूमि में मृत्यु का ऐसा तांडव हुआ जिसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुगलो की 7 हजार सेना अकेले सुजान सिंह के हाथों मारी जा चुकी थी जब मुगल की बची खुची सेना पूर्ण रूप से भाग गई तब सुजान सिंह जो सिर्फ शरीर मात्र थे मंदिर का रुख किये, इतिहासकार कहते है कि देखनेवालों को सुजान के शरीर से दिव्य प्रकाश का तेज निकल रहा था, एक अजीब विश्मित करनेवाला प्रकाश निकल रहा था जिसमें सूर्य की रोशनी भी मन्द पड़ रही थी ये देखकर उनके अपने लोग भी घबरा गए थे और सबों ने एक साथ श्रीकृष्ण की स्तुति करने लगे, घोड़े से नीचे उतरने के बाद सुजान सिंह का शरीर मंदिर के प्रतिमा के सामने जाकर लुढ़क गया और एक शूरवीर योद्धा का अंत हो गया ।

    🚩🚩🙏🙏माँ भारती के इस शूरवीर योद्धा को कोटि-कोटि नमन🚩🚩🙏🙏

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  3. आदरणीय आपने अपने लेख के अन्त में इसे कहानी बोलकर इतिहास की अद्भुत धटना को कहानी मात्र बना दिया ये थोडा आखरता है । कहानी मनगढंत हो सकती है पर इतिहास एक प्रमाणिक वस्तु है । आपने जो विवरण दिया है वो मात्र एक काहानी नहीं है वो एक सच्ची एतिहासिक घटना है वो एक इतिहास है प्रमाणिक और गौरवशाली इतिहास जिसे उस समय के हमारे पुरखों ने जिया था।
    आप धन्य हैं आपने हिन्दु धर्म के लिए प्राण न्यैछावर करने वाले सुजान सिंह जी के इतिहास की इस धटना का विवरण बहुत ही अच्छे ढंग से किया है। किन्तु हमें कहानी और सच्चे इतिहास में फर्क करना चाहिए।

    आदरणीय रामायण के प्रमाण मांगे जाने के पीछे यही कारण है की हमने ये स्वीकार कर लिया था की रामायण एक ग्रन्थ है जैसे इलियड और औडेसी है या जैसे अन्य ग्रन्थ जो की मिथक भी हो सकते है और नही भी। उनका कोई प्रमाण नहीं है, लेकिन वास्तविकता ये है श्रीमान की हमारी संस्कति का ये इतिहास है हमारी सनातन धर्म का हमारी संस्कतिक विरासत का जो की इतना पुराना है की पश्वचिमि लोग इसको मानने को तैयार नही है उनके लिए तो एक हजार साल से पहले कुछ नहीं था सबकुछ ईसा के बाद में ही हुआ । दुरभाग्य से जो वो मानते है वही हमें भी मानने के लिए मजबूर किया जाता रहा है इसी मानसिकता के चलते 8वी कक्षा में हमारे बच्चों को फ्रेन्च रेवोलूशन और लियोनार्डो दा विन्चि पढाया जाता है शेक्सपीयर पढाया जाता है कालिदास का नामों निशान नहीं है और तो और भाई साहब पहली कक्षा से बीए तक कही किसी किताब में सनातन शब्द का नामों निशान तक नहीं है । ईसा, मूसा, मुगल, अगरेज, बोध, पुर्तगाली सब हैं पर सबसे प्राचीन सबसे वैज्ञानिक सनातन धर्म हर जगह से गायब कर दिया गया है जिसके प्रमाण आज भी मैजूद हैं और जो सबसे प्राचीन और सभी धर्मो का श्रोत है जोकी जीवन को जीने का पद्धती है । हमें इस पर भी अपने आप को और अपने आने वाली पीढी को जाग्रत कराना होगा और इतिहास और कहानी में अन्तर कराना होगा ।
    जय सनातन जय श्री राम

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  4. बहुत बहुत साधुवाद ऐसे ही हमारे इतिहास से अवगत कराते रहे ।

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