मोदी ने पकडे बेकाबू सांड के सींग ! भ्रष्टाचार की जड़ पर प्रहार !



असोशियेशन ऑफ़ डेमोक्रेटिक राइट्स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वॉच ने वर्ष 2004-05 और 2014-15 के बीच का एक सर्वेक्षण किया, जिसमें यह जानने की कोशिश की गई कि आखिर भारत के राजनीतिक दलों का आर्थिक स्त्रोत क्या है ! सर्वेक्षण का जो परिणाम निकला उसने कई सवालों को जन्म दे दिया ! यह जरूरत और सिद्दत से महसूस होने लगी कि राजनीतिक दलों की फंडिंग में पारदर्शिता लाने के लिए सख्त कानून की तुरंत जरूरत है ! साथ ही उन्हें कर अधिकारियों और भारत के निर्वाचन आयोग के प्रति जवाबदेह बनाया जाना चाहिए ।

ADR के इस सर्वेक्षण से यह तथ्य सामने आया कि उक्त अवधि में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों की कुल आय 11,367 करोड़ थी, किन्तु उसमें से 7,833 करोड़ रुपये कहाँ से आये. इसका कोई अतापता ही नहीं था, उनका जबाब था “अननोन सोर्स” !

अब जरा उस दल की हालत पर गौर फरमाएं जिसने वर्षों तक देश के सत्ता सूत्र संभाले ! कांग्रेस ने 2004 से लेकर 2015 तक कुल 3,323 करोड़ रुपये अज्ञात स्त्रोतों से जुटाए, जो उसकी कुल आय का 83 प्रतिशत है !

दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2,126 करोड़ गुमनाम स्रोतों से अर्जित किये, जो उसकी कुल आय का 65 प्रतिशत है ।

अपने आप को पाक साफ़ बताकर दिल्ली की सत्ता हथियाने वाली आम आदमी पार्टी और सीपीआई (एम) की आय का 50 फीसदी अज्ञात स्त्रोतों से है । अन्य क्षेत्रीय पार्टियों का तो कहना ही क्या है ? उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का नायब प्रदर्शन देखिये, जिसने इस अवधि के दौरान 766 करोड़ एकत्रित किये, जिसमें से करीब 94 प्रतिशत अज्ञात स्रोतों से आया था।

इतना भर नहीं है, विश्लेषण में कई और चोंकाने वाले विश्लेषण हैं: 

राष्ट्रीय पार्टियों की अज्ञात स्त्रोतों से होने वाली कुल आय जो 2004-05 में 274 करोड़ रुपये थी, 2014-15 में 313 फीसदी बढ़कर 1,131 करोड़ रुपये हो गई । जबकि क्षेत्रीय दलों ने इसी अवधि के दौरान 652 प्रतिशत की लम्बी छलांग लगाई, अज्ञात स्रोतों से क्षेत्रीय दलों की आय `37 करोड़ से बढ़कर 281 करोड़ रुपये हो गई । इससे भी अधिक चिंताजनक तथ्य यह है कि नोटबंदी पर सबसे ज्यादा हायतौबा मचाने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने तो ब्रह्मास्त्र ही चला दिया, कि उसने तो 20,000 से ऊपर की राशि का कोई दान ही प्राप्त नहीं किया, इस प्रकार से नतीजतन उसका तो आय का शत प्रतिशत ही "अज्ञात स्रोतों" से आया ! इस पार्टी की आय जो 2004 में 5 करोड़ रुपये थी, 2240 प्रतिशत बढकर 112 करोड़ रुपये हो गई ! और वह भी पूरी की पूरी गुमनाम दाताओं से!

इन निष्कर्षों बेहद खतरनाक हैं और इस बात का स्पष्ट प्रमाण भी कि देश में भ्रष्टाचार का महासागर वस्तुतः राजनीति से ही निकल रहा है और देश के राजनेता ही काले धन के सृजन की जड़ है। क्योंकि अधिकाँश गुमनाम दानदाता अपना "काला" पैसा ही दान में देते हैं ! 

अपने पसंदीदा राजनीतिक दलों को व्यापारियों, उद्योगपतियों और ठेकेदारों द्वारा दिया गया दान या तो सरकारी ठेके हासिल करने की आशा में दिया जाता है, अथवा पूर्व के अहसान पर आभार जताने के लिए दिया जाता है । यही तो राजनीतिक भ्रष्टाचार की जड़ है और इस राजनीतिक प्रणाली शुद्ध करने की अविलम्ब आवश्यकता है ! शायद इसीलिए प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कई बार कहा है कि वे भ्रष्टाचार के सांड के सींग पकड़ना चाहते हैं, तथा राजनैतिक दलों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता के पक्षधर हैं! 

चुनाव आयोग ने भी इस मुद्दे को प्राथमिकता से हल करने पर जोर दिया है । मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी ने गुमनाम दान को नियंत्रित करने के लिए चुनाव कानून में संशोधन का भी सुझाव दिया है। और प्रधान मंत्री मोदी ने चुनाव आयोग से वादा किया है कि उनकी सरकार में यह होगा ! 

शायद इसीलिए आज के बजट में राजनैतिक दलों को मिलने वाले चंदे को सीमा में बाँधा गया है ! राजनीतिक दलों के वित्त पोषण एवं चंदे में पारदर्शिता लाने की पहल के तहत केंद्रीय बजट में प्रस्ताव किया गया है कि राजनीतिक पार्टियां एक व्यक्ति से 2000 रुपए से अधिक नगद चंदा नहीं ले सकती लेकिन वे दानदाताओं से चेक या डिजिटल माध्यम से चंदा प्राप्त कर सकती हैं और इसके लिये चुनाव बांड भी जारी किये जायेंगे। राजनीतिक दलों को निर्धारित समय सीमा के भीतर अनिवार्यत: आय कर रिटर्न भरना होगा। केंद्रीय वित्त और कॉरपोरेट मामलों के मंत्री अरुण जेटली ने बुधवार (1 फरवरी) को संसद में आम बजट 2017-18 प्रस्तुत करते हुए कहा कि राजनीतिक दलों द्वारा चंदा लेने में सुविधा के लिए बैंक चुनावी बांड जारी किये जायेंगे। वित्त मंत्री ने कहा कि राजनीतिक दल एक व्यक्ति से अधिकतम दो हजार रुपए का नगद चंदा ले सकते हैं। 

साधुवाद मोदी जी ! आपकी हिम्मत और होंसले को नमन, आपका अभिनन्दन ! 

आधार - http://vsktelangana.org/the-unknown-who-fund-our-parties/

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