“सिद्धेश्वर बाणगंगा मेला” शिवपुरी शहर की एक महान एवं पुरातन संस्कृति को ख़त्म करने का षड़यंत्र


शिवपुरी शहर कभी रंग बिरंगी कलाओं एवं अनेक संस्कृतियों का परिचायक हुआ करता था, परन्तु वर्तमान में अधिकाँश शहरवासियों के ह्रदय में एक पीढ़ा है कि ऐसा क्या हुआ इस शहर को जो वह अपनी पुरानी पहचान खोता जा रहा है ? इस शहर की महान सभ्यता को नष्ट करने पर आखिरकार कौन उतारू है ? आखिर इस शहर के वाशिंदों से ऐसा कौन सा महापाप हुआ है जिसका दंड उन्हें नए नए तरीकों से दिया जा रहा है ? इसके अनेक उदाहरण शहरवासी पूर्व में भी देख चुके है और भुगत भी चुके है ! नए नए षड्यंत्रों को रचकर शिवपुरी शहर की अनुकूल हवा को प्रतिकूल किया जा रहा है ! इसी क्रम में हम आज चर्चा कर रहे है अस्तित्व विहीन होने की कगार पर खड़े प्राचीन सिद्धेश्वर बाणगंगा मेले की !

मेले निश्चित रूप से शहर के लिए एक महोत्सव की भूमिका का निर्वहन करते है ! शहर के लोगों को वर्ष भर इन्तजार रहता है शीत ऋतु ढलने पर एवं ग्रीष्म ऋतु के आगमन पर मधुर एवं आनंददायी बसंत ऋतु के काल में आयोजित होने वाले प्राचीन सिद्धेश्वर बाणगंगा मेले का ! लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि धीरे-धीरे इस मेले का स्वरुप समाप्त होता गया एवं वर्तमान में यह पूर्णतः ख़त्म होने की कगार पर है !

आखिर कैसे पड़ा मेले का नाम सिद्धेश्वर बाणगंगा मेला ?

वर्तमान की युवा पीढ़ी में से अधिकांशतः यह नहीं जानते होंगे कि जो मेला वर्तमान में सिद्धेश्वर प्रांगण में आयोजित होता है इस मेले को सिद्धेश्वर बाणगंगा मेले के नाम से क्योँ जाना जाता है ? यह विषय जानने के योग्य भी है ! यदि हम अतीत में जाए तो पता चलता है कि इस मेले का स्वरुप कितना विशाल था ! कई वर्षों पूर्व जब यह मेला भरा जाता था तो यह मेला सिद्धेश्वर से लेकर बाणगंगा तक फैला हुआ करता था अर्थात मेले में आनेवाली दुकानें सिद्धेश्वर से लेकर बाणगंगा तक लगा करती थी, इसलिए इस मेले का नाम सिद्धेश्वर बाणगंगा मेला पड़ा ! इस मेले में बाहर से व्यापारी आकर व्यापार करते थे, सिद्धेश्वर धर्मशाला में इलेक्ट्रॉनिक्स के सामानों का बड़ा बाजार भी लगता था, परन्तु वर्तमान में इस मेले की दुर्दशा हम सभी के सामने है !

क्या मेले को किसी षड़यंत्र के तहत किया जा रहा ही ख़त्म ?

यह अत्यंत ही चिंता का विषय है कि शिवपुरी शहर वर्तमान समय में अपने अस्तित्व को बचाने के लिए अनेक स्तरों पर जूझ रहा है और इसका सबसे बड़ा कारण है शहर के नागरिकों की शहर के प्रति उदासीनता ! कहीं न कहीं नगरवासी प्राकृतिक सौन्दर्य और अलौकिक घटा से घिरे अपने इस शहर के प्रति अपने दायित्वों को भूल चुके है ! यह कटु सत्य है कि इस शहर की दुर्दशा में सबसे मुख्य भूमिका निभाई है तो वह इस शहर के रहवासियों ने ! आज तक अधिकतर शिवपुरी वासियों ने यह जानने का प्रयास नहीं किया कि आखिर क्योँ हमारे इस शहर के साथ ऐसा बर्ताव किया जा रहा है ? क्या इसके पीछे कोई गहरी और कुटिल मानसिकता से पूर्ण षड़यंत्र रचा जा रहा है ? आखिर क्योँ एक के बाद एक ऐसे आघात इस सुन्दर शहर की छाती पर किये जा रहे है, जिनके घाव अत्यंत गहरे हो रहे है ? और शायद इतने गहरे कि इनका भर पाना भी अब नामुमकिन लगने लगा है ! लेकिन यह अवश्य याद रहे कि इन घावों के दुष्परिणामों से आप लोगों का जीवन भी अछूता नहीं रहेगा ! अगर न जागे तो शहर शमशान बनने की कगार पर एक न एक दिन निश्चित पहुँच जाएगा !

जनप्रतिनिधियों की उदासीनता 

शहर में वर्तमान में किसी भी जनप्रतिनिधि से अब कोई उम्मीद नहीं बची है ! यहाँ के नगर पालिका अध्यक्ष को निर्जीव मूर्तियों की अत्यंत चिंता है लेकिन सजीव व्यक्तियों को ये मुर्दा बनाने पर तुले हुए है ! अभी तक इनकी और से शहर के प्रति कोई भी संजीदा भूमिका नहीं निभाई गयी है !

शिवपुरी 

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