महात्मा बुद्ध जन्म से क्षत्रिय और कर्म से ब्राह्मण थे फिर दलितों से उनका क्या सम्बन्ध ???

( इस लेख का उद्धेश्य किसी वर्ग विशेष की भावनायें आहत करना नहीं बल्कि भगवान बुद्ध के नाम से जातिवाद की गन्दी राजनीति करने वालों की वास्तविकता से आम जन को अवगत कराना है )

प्राचीन भारत में कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था थी जिसका वर्तमान जन्म आधारित जाति व्यवस्था से कोई सम्बन्ध नहीं और भगवान बुद्ध ने अपने व्यवहारिक जीवन में वैदिक वर्ण व्यवस्था का ही पालन किया किसी अन्य व्यवस्था का नहीं |

बुद्ध का जन्म ईसा से ५६३ वर्ष पूर्व लुम्बिनी ( वर्तमान नेपाल ) के शाक्य क्षत्रिय राजपरिवार में हुआ | उनके पिता का नाम राजा शुद्धोधन और माता का नाम महामाया था | इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था और सोलह वर्ष की अवस्था में इनका विवाह क्षत्रिय राजपरिवार की राजकुमारी यशोधरा से हुआ था .................. ( सम्पूर्ण जीवनी के लिए भगवान बुद्ध का जीवन चरित्र पढ़ें )

बुद्ध के नाम से दुकान चलाने वाले छद्म बौद्ध स्वयं को मूल निवासी बताते हैं और आर्यों को विदेशी | ये बुद्धिहिन् आर्यों को विदेशी बताने से पहले ये भूल जाते हैं कि भगवान बुद्ध भी एक आर्य थे दलित नहीं |

भगवान बुद्ध स्वयं को आर्य कहते थे दलित नहीं | भगवान बुद्ध को आर्य शब्द से अत्यधिक प्रेम था उनके चार आर्य सत्य, आर्य अष्टांगिक मार्ग और आर्य श्रावक तो बहुत ही प्रसिद्ध हैं |

आर्यों की व्याख्या करते हुए भगवान बुद्ध कहते हैं कि –

न तेन अरियो होति येन पाणानि हिंसति |अहिंसा सब्ब पाणानि अरियोति पवुच्चति || (धम्मपद धम्मठवग्गो २७०:५ )

अर्थात प्राणियों की हिंसा करने से कोई आर्य नहीं कहलाता, समस्त प्राणियों की अहिंसा से ही मनुष्य आर्य कहलाता है |

भगवान बुद्ध ने सन्यास से पूर्व सदैव क्षात्र धर्म का पालन किया तथा सन्यास लेने के पश्चात् अपने कर्म एवं योग्यतानुसार ब्राह्मण वर्ण को धारण किया | भगवान बुद्ध के सम्पूर्ण जीवन में ऐसा कोई प्रसंग नहीं मिलता जिससे यह सिद्ध हो कि उन्होंने दलितवाद को धारण किया और ब्राह्मणवाद को गालियाँ दीं जबकि इसके विपरीत ऐसे कई प्रमाण हैं जिससे यह सिद्ध होता है कि वह सन्यास के बाद स्वयं को ब्राह्मण कहते थे जिसमें से एक प्रसंग मैं नीचे प्रस्तुत कर रहा हूँ - 

सुंदरिक भारद्वाज सुत्त में कथा है कि सुंदरिक भारद्वाज जब यज्ञ समाप्त कर चुका तो वह किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण को यज्ञ शेष देना चाहता था | उसने सन्यासी गौतम बुद्ध को देखा और जब उसने उनकी जाति पूछी तो बुद्ध ने कहा जाति मत पूछ मैं ब्राह्मण हूँ और वे उपदेश करते हुए बोले – “यदंतगु वेदगु यन्न काले, यस्साहुतिल ले तस्स इज्झेति ब्रूमि |” ( सुत्तनिपात ४५८ )
अर्थात वेद को जानने वाला जिसकी आहुति को प्राप्त करे उसका यज्ञ सफल होता है ऐसा मैं कहता हूँ | तब सुंदरिक भारद्वाज ने कहा - “अद्धा हि तस्स हुतं इज्झे यं तादिसं वेद्गुम अद्द्साम |” ( सुत्तनिपात ४५९ ) अर्थात सचमुच मेरा यज्ञ सफल हो गया जिसे आप जैसे वेदज्ञ ब्राह्मण के दर्शन हो गये |

भगवान बुद्ध जन्म आधारित जाति व्यवस्था के विरुद्ध थे वे कर्म आधारित वैदिक वर्ण व्यवस्था को मानते थे इस सम्बन्ध में उन्होंने वसल सुत्त ( वृषल सूत्र ) में कहा है –
न जच्चा वसलो होति न जच्चा होति ब्राह्मणो | कम्मना वसलो होति कम्मना होति ब्राह्मणो ||

अर्थात जन्म से कोई चाण्डाल ( शूद्र ) नहीं होता और जन्म से कोई ब्राह्मण भी नहीं होता | कर्म से ही चाण्डाल और कर्म से ही ब्राह्मण होता है |

भगवान बुद्ध ने ब्राह्मण के सन्दर्भ में जो व्याख्या की है वह वैदिक शास्त्रों के अनुसार ही की है उससे भिन्न नहीं | भगवान बुद्ध ब्राह्मण किसे मानते थे इसका वर्णन धम्मपद के ब्राह्मण वग्ग में इस प्रकार है –

पाली भाषा में - न जटाहि न गोत्तेहि न जच्चा होति ब्राह्मणो | यम्ही सच्चं च धम्मो च सो सुची सो च ब्राह्मणो ||
( श्लोक – न जटाभिर्न गोत्रेर्न जात्या भवति ब्राह्मणः | यस्मिन सत्यं च धर्मश्च स शुचिः स च ब्राह्मणः || )
अर्थ - न जटा से, न गोत्र से, न जन्म से ब्राह्मण होता है जिसमे सत्य और धर्म है वही पवित्र है और वही ब्राह्मण है |
पाली भाषा में – अकक्कसं विन्जापनिम गिरं सच्चं उदीरये | काय नाभिसजे किंच तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं ||
( श्लोक – अकर्कषाम विज्ञापनी गिरं
अर्थ – जो इस प्रकार की अकर्कश, आदरयुक्त तथा सच्ची वाणी को बोले कि जिससे कुछ भी पीड़ा न हो उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ |

पाली भाषा में – यस्सालया न विज्जन्ति अन्नाय अकथकथी | अमतोगधं अनुप्पत्तं तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं ||

अर्थ – जिसको आलस्य नहीं है, जो भली प्रकार जानकर अकथ पद का कहने वाला है, जिसने अमृत ( परमेश्वर ) को प्राप्त कर लिया है उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ |

भगवान बुद्ध के उपदेशों का अध्ययन करने से यह ज्ञात होता है कि उन्होंने अपने जीवन में कभी भी दलितपन को धारण नहीं किया और न ही किसी को दलित बनने के लिए प्रेरित किया | उन्होंने ब्राह्मणत्व को धारण किया तथा अन्यों को भी ब्राह्मण बनने के लिए प्रेरित किया | अतः यदि आप भगवान बुद्ध का अनुयायी बनना चाहते हैं तो आपको दलितपन त्याग कर ब्राह्मणत्व को धारण करना होगा तथा स्वार्थी राजनीतिज्ञों द्वारा फैलाये गये जातिवाद के जाल से निकलकर भगवान बुद्ध की तरह वैदिक वर्ण व्यवस्था को अपनाना होगा | भगवान बुद्ध के उपदेश किसी जाति विशेष के लिए नहीं है बल्कि उनके उपदेश सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण के लिए हैं |

साभार - व्हाट्स एप्प 
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9 टिप्पणियाँ

  1. Kis bawali puch ne likha h...
    Budh vedo ko mante nahi they wo brhma aur vedo ko tooch koti ka mante they..

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  2. U right sir but fir ravan ko barahman kyu nahi mante use kyu jlia jata hai

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  3. wah be jhatu sale dunia ko bewkuf samaj ke rakha hai kya

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  4. Buddh ek insaan the na ki bhagvaan aur chattriya the to dalit unko kyun pasand karte hain jyadatar dalit buddh dharam hi kyun apnate hain hindu hone mein kya buraai hai buddh bhi to hindu the

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  5. तथागत बुद्ध कोलीय/शाक्य वंश से थे और आज कोली संविधान के अनुसार अनुसूचित जातियों मे आते हैं। बुद्ध विचारधारा मे जातिगत भेदभाव के लिए कोई स्थान नहीं है। उनको जाति मे बांधना लेखक की छोटी सोच को दर्शाता है।

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