भाजपा सिंधिया विवाद – एक तटस्थ विश्लेषण |



मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने अटेर उपचुनाव की चुनावी सभा में सिंधिया राजवंश पर निशाना क्या साधा मानो भूचाल आ गया | निशाना था ज्योतिरादित्य सिंधिया पर किन्तु पहली प्रतिक्रिया व्यक्त की उनके केबिनेट में मंत्रीपद पर विराजमान यशोधरा राजे सिंधिया जी ने | दोनों बयानों को सुनने के बाद कल से अपनी प्रतिक्रिया देने की इच्छा थी, पर असमंजस में था | लिखूं कि न लिखूं | क्योंकि जो लिखना चाहता था, वह न शिवराज जी को पसंद आने वाला, न ही यशोधरा जी को | किन्तु अब लगा कि लिखना ही चाहिये | अपने स्वार्थ की खातिर गलत को गलत और सही को सही न कहना भी तो सामाजिक अपराध है | और मुझ जैसे फक्कड़ पर खोने को है ही क्या ?
शिवराज जी ने चुनावी सभा में कहा कि आजादी के पूर्व 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भिंड की जनता ने रानी लक्ष्मी बाई का साथ दिया था। जिसके बाद अंग्रेजों और सिंधिया परिवार ने लोगों पर बहुत जुल्म किए। तो आदरणीय शिवराज जी शायद आप भूल गए हैं कि वह भाजपा ही थी जिसने राजीव गांधी की सरकार गिराने के लिए जयचंद के वंशज मांडा के राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह का साथ दिया था | मान्यवर अगर अंग्रेजों का साथ देने वाले सिंधिया आपको याद है तो दिल्ली के मुग़ल बादशाह शाह आलम को भी उसकी औकात बताने वाले महाद जी सिंधिया को कैसे भूल गए | वर्तमान भूतकाल से नहीं आँका जाता | सिंधिया जैसे आज हैं, उसके आधार पर ही उनका विरोध या समर्थन होना चाहिए | ज्योतिरादित्य जी के खिलाफ क्या उनके पूर्वजों के क्रियाकलाप के अलावा कोई और तीर आपके तरकश में नहीं है ?
अब बात करते हैं श्रीमंत यशोधरा राजे के भावुक बयान की जिसमें उन्होंने रुंधे कंठ और भरी आँखों से भाजपा के उत्थान में अपनी मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया के योगदान की चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री जी के बयान को परोक्ष में अहसान फरामोशी निरूपित किया | राजे साहब आप अब राजनीति में कोई नई नौसिखिया नहीं हैं | आखिर आप कब तक यह मिलीजुली कुश्ती की राजनीति करती रहेंगी ? ज्योतिरादित्य पर हुए वार को अपने पर जताकर उसकी धार कुंद करना क्या उस पार्टी के साथ विश्वासघात नहीं है, जिसने आपको सदा यथोचित सम्मान दिया |


आखिर आप इतिहास के उस पन्ने को कैसे झुठला सकती हैं जिसमें आपके एक पूर्वज ने कायरता पूर्ण समाजघात किया ? जिस पेशवाई ने आपके पूर्वजों को शासक बनाया उन्हीं के उत्तराधिकारी नाना साहब पेशवा की अगुआई में अंग्रेजों के खिलाफ लडे जा रहे स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों का साथ देना क्या पाप नहीं था ? आपको साहस के साथ महारानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, अमरचंद बांठिया जैसों के बलिदान को नमन करना चाहिए | और अगर नहीं भी करना तो भी अपने वंश के उस काले पन्ने के उल्लेख पर आपत्ति तो कतई दर्ज नहीं करना चाहिए | जरा विचार कीजिए कि आप इतने लम्बे राजनैतिक जीवन में एक भी अपना ऐसा सहयोगी विकसित नहीं कर पाईं, जो आपके स्थान पर आपकी बात कह सके | आपको न कहना पड़े वह मुखर हो, चलो इतना न सही, कमसेकम आपकी बात का समर्थन भी कर सके | आज आप नितांत एकाकी है, राजे साहब और आपकी यह स्थिति आपने स्वयं बनाई है | कभी विचार कीजिएगा |

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