कैसे सुलझे कांस्टेबल समीर भट्ट के गायब होने की गुत्थी ? - संजय तिवारी

जम्मू -कश्मीर पुलिस का एक कांस्टेबल एक पखवाड़े से गायब है। उसके एक दोस्त पर उसकी हत्या कर शव को नदी में फेक देने की खबर है। गायब कांस्टेबल के माता पिता पुलिस अधिकारियो के दफ्तरों के चक्कर काट काट कर थक चुके हैं लेकिन कही से उनके बेटे के बारे में कोई सही जानकारी उन्हें नहीं दी जा रही। कश्मीर के श्रीनगर में पोस्टेड समीर भट्ट नाम के इस कांस्टेबल के गायब होने की खबर अब कश्मीरी पंडितो के लिए मुद्दा बनती जा रही है। उनका कहना है कि उन्हें तो 2017 और 1990 में कोई अंतर नज़र नहीं आ रहा है.. वही डर वही दहशत वही दरिंदगी घाटी की मिट्टी को मैला करती ही जा रही है. आज भी कश्मीरी पंडित वहां अपनी सुरक्षा तो छोड़िये अपने अस्तित्व तक को ढूंढता है। फिर से 1990 का वही मातम कानों में चीख चीख कर इन्साफ की गुहार लगाता है पर सुनेगा कौन? क्योंकि कश्मीर का 2017 तो 1990 का हमशक्ल निकला... कैसे फिर कश्मीरी हिन्दू समाज वापस जाने की सोचेगा?

समीर की कहानी भी बड़ी अजीब है। जम्मू के नगरोटा कैम्प में कांस्टेबल समीर भट्ट का परिवार रहता है. समाज का एक चेहरा ये भी है कि कईं विस्थापित कश्मीरी हिन्दू अब भी कैंप में ही रह रहे है, उन्हें सरकारें एक अच्छी छत भी नही दे सकी और ना ही किसी संस्था ने अपना हाथ आगे बढ़ाकर उनकी मदद करने की सोची। कश्मीर की एक पत्रकार इस बारे में अपना नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताती हैं कि 14 मई से रूप किशन भट्ट का लापता पुत्र समीर भट्ट लाख प्रयासों के बाद भी नहीं मिल रहा था. कईं दिनों पहले समीर की तस्वीर को सोशल मीडिया पर वायरल होते हुए देखा पर किसी अखबार और किसी चैनल पर इसकी ख़बर नही देखी. अचानक मेरे एक मित्र ने मुझ से इस मुद्दे पर बात की और उन्होंने बताया की समीर के माता-पिता उसे ढूँढने के लिए कश्मीर में हर दफ्तर में भटक रहे है और कोई भी उनकी बात नही सुन रहा है.. ले देकर बहुत कुछ करने के बाद कांस्टेबल समीर की ख़बर तो चल गई पर बात केवल समाचार तक खत्म नही होनी चाहिए, ये मुद्दा तब तक जगाकर रखना होगा जब तक कश्मीरी पंडित समाज अपनी ही मिट्टी पर सुरक्षित नही होगा.. जब बात आगे बढ़ी तो मैंने जम्मू-कश्मीर के ट्विटर हैंडल पर देखा कि उन्होंने इसे 'फेक' न्यूज़ का नाम दे दिया है। साथ ही ये लिखा कि समीर के साथ जो कांस्टेबल गया था उसका नाम एजाज़ अहमद है। उसने बताया कि समीर ने आत्महत्या कर ली है। 

वह बताती हैं कि पुलिस का ये ट्वीट मेरे दिमाग में शक को जगाकर रखे था क्योंकि कांस्टेबल समीर भट्ट एक एनकाउंटर स्पेशलिस्ट था जिसने कईं आतंकवादियों को ढेर किया था, जो ऐसे हौसले से भरे कार्यों को कर सकता है वो भला क्यों आत्महत्या करेगा? एक पहलू सोचने का ये भी है.. रूप किशन भट्ट अपनी पत्नी कुंती भट्ट के साथ के साथ अब भी कश्मीर में भटक रहे है और वो खुद अस्थमा से जूझ रहे है, इस उम्र में एक पिता अपने गायब बेटे को ढूंढ रहा है और हर उस दरवाज़े पर अपनी दुखदायी उँगलियों को जोड़कर मदद मांग रहा है कि उसे उसका बेटा मिल जाए.. दुःख की बात है कि अपनी धरती पर एक पिता अपने पुत्र के लिए प्यासा भटक रहा है.. यह ख़बर एक कश्मीरी पंडित की अपनी ही घाटी में घायल अस्तित्व की छवि दर्शाती है..

डिस्ट्रिक्ट पुलिस के कार्गो कैम्प से लेकर कहाँ कहाँ नही घूम रहे है समीर के पिता लेकिन बेहद शर्मनाक है ये देखना कि किसी ने भी समीर के पिता तक ये सूचना तक नही पहुंचाई कि समीर लापता है। रूप किशन जी 17 मई को समीर की तलाश में श्रीनगर पहुंचे. उनका कहना है कि 14 मई को समीर के मोबाईल नंबर पर उनकी बात समीर से हुई तो समीर ने उन्हें बताया कि वो अपने दोस्त कांस्टेबल एजाज़ अहमद के साथ है और समीर ने अपने अंकल दलीप भट्ट जो जम्मू-कश्मीर डिस्ट्रिक्ट पुलिस में हेड कांस्टेबल है उन्हें मारुती कार में कुपवाड़ा छोड़ा। उसके बाद समीर के पिता ने रात को 9 बजे फिर कॉल किया पर कोई जवाब नही मिला. अगले दिन सुबह यानि 15 मई को समीर के पिता ने एजाज़ अहमद को समीर के बारे में पता करने के लिए कॉल किया, एजाज़ से बात होने पर उसने बताया कि उसने समीर को डल गेट छोड़ा था पर समीर का नंबर बंद होने पर समीर के पिता की चिंता बढ़ गई. 16 मई को समीर के पिता को एजाज़ ने बताया कि वो जम्मू के लिए निकल चुका है पर समीर के दोनों नंबर बंद थे, जब शाम तक समीर नही पहुंचा तो पिता ने फिर समीर को कॉल किया पर नंबर बंद ही था. समीर के अंकल दलीप भट्ट को कॉल करने पर भी कुछ पता नही चला.

17 मई को रूप किशन भट्ट अपनी पत्नी कुंती भट्ट और बेटे संजय भट्ट के साथ श्रीनगर डिस्ट्रिक्ट पुलिस के कार्गो कैम्प पहुंचे वहां के मुंशी से समीर के बारे में पूछा तो मुंशी ने उन्हें बताया कि समीर 3 दिन से लापता है। उन्हें ये विश्वास ही नही हो रहा था। एजाज़ जो समीर का सबसे प्रिय दोस्त था उसने उनसे झूठ बोला। 17 मई की शाम को शेरगढ़ी थाने में समीर के पिता ने उसके लापता होने की रिपोर्ट लिखवाई और साथ डी जी पी एस पी वैद्य से भी मुलाकात की। समीर के पिता का कहना है 6 दिन के बाद पुलिस ने कार्रवाई शुरू की और एक स्टेटमेंट जारी किया और कहा कि समीर ने चोगल, हंदवारा में दारु पीकर पुहरू नदी में छलांग लगा दी है। फिर 21 मई को पुलिस ने अपने बयान में कहा कि उन्हें समीर की बॉडी नही मिली। 

ऐसे ही पुलिस के कईं बयानों के बाद एजाज़ अहमद को कस्टडी में लिया गया और उसके अलग अलग बयानों को बाद, जिसमें समीर को ड्रग एडिक्ट और दारुबाज़ साबित करना भी शामिल है, शक की सुई ये सोचने पर मजबूर करती है कि क्या जम्मू-कश्मीर पुलिस में एक ऐसा कांस्टेबल काम कर सकता है जो दारूबाज़ और ड्रग एडिक्ट हो? जिसने कईं आतंकवादियों को ढेर किया हो? बाद में एजाज़ अहमद ने अपने बयान में ये कबूला कि उसने ही समीर को मारा है पर अब भी इस केस का अंत पूरी तरह से नही हुआ है। जिस तरह से पुलिस ने ट्विटर पर इसे 'फेक' न्यूज़ कहकर टाल दिया था और बाद में कातिल भी पता लग गया तो समझा जा सकता है कि कश्मीर का प्रशासन भी कहीं आज़ादी के आन्दोलन के साथ तो नही?कश्मीरी पंडितो का कहना है कि जब घाटी में कश्मीरी हिन्दू सुरक्षित ही नही है तो सरकार किस दावे से उन्हें वहां भेजती है? आखिर कब तक ये समाज अपने बच्चों को अपने बूढों को इस तरह मरते हुए देखता रहेगा.. सच्चाई तो समीर के साथ बह गई और वो फिर कभी नही लौटेगा, हैरानी की बात है कि अब तक समीर का मृत शरीर भी नही मिला है.. प्रश्न ये उठता है कि क्या इस समाज को इतिहास के पन्नों पर विस्थापित समाज ही कहा जायेगा या इस इतिहास को बदलने कोई कृष्ण बनकर आएगा?? समीर के माता पिता को उनका पुत्र नही दे सकते तो उसके कातिल को सज़ा देने में इतना समय किस बात का लग रहा है?


संजय तिवारी
वरिष्ठ पत्रकार
संस्थापक,
भारत संस्कृति न्यास 

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