प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर लिखी पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में श्री मोहन भागवत का उद्बोधन |

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत ने आज नोयडा में सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक द्वारा प्रधानमंत्री मोदी पर लिखी गई पुस्तक "The making of a legend" के विमोचन कार्यक्रम को संबोधित किया | 

उन्होंने प्रारंभ इस प्रकार किया - 

कर्तित्व संपन्न लोगों के चरित्र लिखे जाते हैं | जिन्हें बाह्य जगत में करिश्माई नेता कहा जाता है, उनके चरित्र लिखे जाते हैं | स्वाभाविक बात है, उससे स्फूर्ति मिलती है, प्रेरणा मिलती है | लेकिन उसको ठीक से पढ़ना पड़ता है | गुजरात के मुख्यमंत्री बनने से लेकर प्रधानमंत्री बनने के बाद की नरेंद्र भाई मोदी की यात्रा के बाद लोगों की जिज्ञासा उनके विषय में जानने की बढी | वस्तुतः उनकी गुजरात के मुख्यमंत्री बनने से पहले की जो अप्रसिद्ध यात्रा है, उसके कारण ही उनकी मुख्यमंत्री से प्रधान मंत्री बनने तक की यात्रा इतनी उज्वल हो पाई | प्रसिद्धि के प्रकाश में भी अपने वृत को निभाते हुए चलना महत्वपूर्ण है | 

नरेंद्र भाई एक व्यक्ति के नाते, स्वयंसेवक के नाते, कार्यकर्ता के नाते, गुजरात क मुख्यमंत्री बनने से पहले जैसे थे, बैसे ही आज भी हैं | दुनिया में नाम हो रहा है, सब दूर प्रसिद्धि हो रही है, इसका कोई प्रभाव उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर नहीं है | आज हम इस चरित्र को इस दृष्टिकोण से पढ़ें, इसकी आवश्यकता है | नरेंद्र भाई के लिए नहीं, हमारे लिए | सब काम सरकार नहीं कर सकती, समाज के प्रत्येक व्यक्ति को बैसा तैयार होना पडेगा | अस्पृश्यता विरोधी क़ानून तो बहुत पहले बन गया, लेकिन मन से उस अस्पृश्यता को निकालकर समाज का हर व्यक्ति व्यवहार करे, इसके लिए प्रयास हमें ही करना होगा | हमको अपने जीवन के परिवर्तन से प्रारम्भ करना होगा | 

व्यक्तित्व, कृतित्व और नेतृत्व के गुणों के कारण ही हमारा ध्यान नरेंद्र भाई की ओर है | व्यक्तित्व एक तो दिखने वाला होता है और एक प्रत्यक्ष होने वाला होता है | दिखने वाला दिखता है, होने वाला देखना पड़ता है, आँख खोलकर | देखने वाला और होने वाला में जितनी एकरूपता है, उतना आदमी अधिक व्यक्तित्व संपन्न होता है | व्रन्दावन एक एक संत मिले थे | उन्होंने मुझे पहले कहा था कि भारत के नेतृत्व में जब धर्म आयेगा, तब देश का कल्याण होगा | धर्म को उन्होंने डिफाईन किया – उन्होंने कहा धर्म के चार पैर हैं - सत्य, करुणा, अंतरबाह्य स्वच्छता-शुचिता और इन तीनों को प्राप्त करने के लिए तपश्चर्या | 

हम नरेंद्र भाई ने क्या किया, यह देखते समय ध्यान इधर रखें – वह सत्य कैसा है | सत्य कठोर होता है और कई बार कटु भी होता है | सत्य को जब समाज में देना पड़ता है, मन मन में बोना पड़ता है, उस पर करुणा का पुट चढ़ाए बिना देंगे तो अनर्थ होगा | तथागत ने यही किया, ऐसा मुझे लगता है | उन्होंने कहा आत्मा, परमात्मा की तरफ बाद में देखना, पहले अपना दुखी जीवन सुखी करो | भगवान बुद्ध ने कहा कि आत्मा है, नहीं है, ईश्वर है, नहीं, इससे तुम्हारा लेनादेना क्या है भाई | तुम तो त्रस्त हो कि तुम्हारे साथ भेदभाव हो रहा है, तुम तो त्रस्त हो तुम्हारी गरीबी के लिए, तुम डर रहे हो बुढ़ापे से, कभी मरोगे इस लिए | पहले इससे अपने को मुक्त करो, बाक़ी बातें छोडो | यह उन्होंने क्यों कहा ? क्या वे सत्य के पक्षधर नहीं थे ? वे न केवल सत्य के पक्षधर थे, वरन उन्होंने सत्य की प्राप्ति भी की थी | बोधिसत्व थे | लेकिन उन्होंने जाना कि समाज को दुःख मुक्त करना पहली आवश्यकता है | यह उनके मन में इसलिए आया, क्योंकि वे करुणावातार थे | बिना करुणा के सत्य का कोई अर्थ नहीं है | सत्य है, वह अपनी जगह है, हम मानें या ना मानें, वह है |


उन्होंने आगे कहा कि करुणा के लिए अंतर बाह्य शुचिता चाहिए | जिसका मन विकारग्रस्त है, वहां कहाँ करुणा आयेगी | वो तो अपने स्वार्थ के लिए राक्षस बन सकता है | गांधी जी का स्वच्छता पर इतना जोर क्यों था ? डॉ. अम्बेडकर साहब ने भी जब अपने समाज को जागृत करने का उद्यम प्रारम्भ किया, तब बाक़ी बातों के साथ वे अपने लोगों से साफ़ रहने को भी कहते थे | कपडे ढंग से पहनो, अपनी भाषा ठीक करो | क्यों ? क्योंकि अंतर्बाह्य स्वच्छता के परिणाम मन बुद्धि पर भी होते हैं | 

श्री भागवत ने प्रधानमंत्री का जिक्र करते हुए कहा कि हमारा ध्यान नरेंद्र भाई के व्यक्तित्व और कृतित्व पर जाना स्वाभाविक है | क्योंकि किसने क्या किया यह देखा जाता है और जो कर सका उसका गुणगान होता है | लेकिन अगर हमें देश के लिए योग्य बनना है तो कर्तित्व संपन्न व्यक्तियों के पीछे क्या है, उसका मूल कहाँ है, इसे समझना होगा | मोदी जी के पास उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति, पराक्रम, ये छः गुण आपको दिखाई देंगे | उसके साथ साथ किसी कार्य को असंभव न मानते हुए, जो होना चाहिए, उसे करने के लिए सन्नद्ध होना भी एक बड़ा गुण है | 

होना क्या चाहिए, इसकी बात तो आजादी के बाद निरंतर चली है | 70 साल नहीं हुआ, क्यों नहीं हुआ ? अब हो रहा है, क्यों हो रहा है ? कर रहे हैं इसलिए हो रहा है | क्योंकि उसे असंभव नहीं मानते हुए कैसे करना यह सोचा गया | ऐसा नहीं होता, तो बैसा करके देखेंगे | कृतित्व के पीछे छुपे हुए इस कृतित्व पर हमारा ध्यान जाना चाहिए | 

वोट मिलते हैं तो कोई भी नेता हो जाता है | लेकिन वोट क्यों मिलते हैं ? केवल चमत्कार से नहीं मिलते, साथी व्यक्ति को देखते हैं, उनको यह अनुभव आता है कि यह आदमी कैसा है, पात्र है त्यागी, योग्य व्यक्ति के लिए छोड़ने वाला, देने वाला | गुणे रागी, गुणों को प्रेम करने वाला | गुणवान व्यक्ति को समाज की और समाज को गुणवान व्यक्ति की आवश्यकता है | भागी परिजनः सः, सबके साथ बांटकर लेता है | शास्त्रे बौद्धाः, शास्त्रों को जानता है | जिनको नहीं जानता, किन्तु आवश्यक हैं, उन्हें जानने का प्रयत्न करता है | रणे योद्धाः, जब युद्ध का प्रसंग आता है, तब आगे बढ़ता है | ये नेतृत्व के पीछे के गुण हैं |

नरेंद्र भाई का नेतृत्व देश की आशा की किरण क्यों बना ? इसका कारण गुण हैं, जो आदमी को चमकाते हैं | आदमी स्वार्थ, अहंकार, भय से भी काम कर सकता है, किन्तु काम जन गणों के लिए कल्याणकारी उनका होता है, जो चमक दमक में न बहते हुए अपना काम राष्ट्रभक्ति से करते है, समाज हित की भावना से करते हैं | तेरा बैभव अमर रहे माँ हम दिन चार रहें न रहें |

उस आत्मीयता में भी किसी के प्रति मोह नहीं रहता, तत्व निष्ठा रहती है | जो देश के भले के लिए उपयुक्त, वो मेरे लिए उपयुक्त | मेरी अपनी रूचि अरुचि कुछ भी हो | श्रद्धा रहती है, कुछ अच्छा होगा, निराशा नहीं रहती | अपने कार्य पर, कार्यकर्ताओं पर, कार्यपद्धति पर और लक्ष्य पर विश्वास होता है, और साथ ही समर्पण होता है | ये भक्ति देखना चाइये, उससे सीखना चाहिए | 

आज नरेंद्र भाई, प्रधान मंत्री हैं, तो कर पा रहे हैं, कल को ऐसा मौक़ा आ सकता है कि जिसको करना है, वह प्रधान मंत्री न हो, तब हम क्या करेंगे ? हम प्रधान मंत्री बनें न बनें उस भक्ति के साथ काम करेंगे और विवेक के साथ काम करंगे | बिना विवेक के कोई काम सफल नहीं होता | रास्ता टेढ़ा मेढ़ा हो सकता है, लेकिन लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए | नित्य अनित्य विवेक, सारासार विवेक, मन वचन कर्म का विवेक, ये सब बातें हम उस पुस्तक में पढेंगे | 

हमारे समाज में एक आदत है कि उसे एक ठेकेदार लगता है, सौभाग्य से आज एक समर्थ ठेकेदार मिल भी गया है | किन्तु खतरा यह है कि ठेकेदार के सर सब कुछ मढ़ देंगे हम लोग, और फिर सो जायेंगे | ऐसा नहीं होना चाहिए | चरित्र लेखन का असर कैसा होना चाहिए, बचपन में हमें पढ़ाया जाता था - थोर महात्मेन होइन गेले, चरित्र तेनचे पहादरा, आपण तेंचा समान व्हावे, हाच सापणे बोधकरा | अर्थात जो महात्मा हुए हैं, उनका चरित्र पढो, हम भी बैसे ही बनें, यही बोध रहना चाहिए |

नरेंद्र भाई के व्यक्तित्व के पीछे के जो गुण हैं, उन्हें आत्मसात करने की दृष्टि से हम यह चरित्र पढ़े यही अनुरोध है |


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