स्पेन के घोषित आधिपत्य से अमरीका का अघोषित उपनिवेश बना पनामा आखिर है क्या बला ?



आजकल पनामा पेपर्स की बड़ी चर्चा है, अतः यह जानने की इच्छा होना स्वाभाविक है कि आखिर पनामा बला क्या है? कुल जमा चालीस लाख की आबादी वाले अमेरिका के इस पड़ोसी देश से विश्व प्रसिद्ध पनामा नहर निकली है, जो अटलांटिक महासागर को प्रशांत महासागर से जोड़ती है। 28 नवम्बर 1821 तक इस पर स्पेन का आधिपत्य रहा, अतः स्वाभाविक ही यहाँ के लोगों की भाषा स्पेनिश ही है | 1821 के बाद इस पर कोलंबिया ने कब्जा कर लिया | 3 नवम्बर 1903 को अमेरिकी राष्ट्रपति किमोडोर रूजवेल्ट के हस्तक्षेप से इसे आजादी मिली । रूजवेल्ट ने अपने दोस्त व अमेरिकी बैंकर जेपी मोर्गन को उस देश का वित्तीय एजेंट नियुक्त किया। अपने सैनिकों की मदद से वहां अपनी समर्थक सरकार बनवाई और आर्थिक मदद व तकनीकी सहयोग देकर पनामा नहर का निर्माण काम शुरू करवाया जो कि उसके लिए आय का स्त्रोत होने वाली थी। सन 1914 में यह नहर बनकर तैयार हुई व इसके कई किलोमीटर हिस्से पर अमेरिका का अधिकार हो गया। फिर 1919 में वहां सैनिक शासन स्थापित हो गया जिसे अमेरिका का समर्थन हासिल था। अतः कहा जा सकता है कि पनामा की आजादी केवल दिखावा थी, बस्तुतः यह अमरीका का उपनिवेश ही रहा |

पनामा की स्थिति को समझने के पूर्व अमरीकी पूंजीवादी मानसिकता को समझना उचित होगा | अमेरिका में जहाज मालिकों को कड़े नियमों का पालन करना पड़ता था। उन्हें अपने नाविको को अच्छा वेतन सुविधाएं देने के साथ बेहतर सेवा शर्तों का पालन करना पड़ता था | उन धनपतियों ने इसका रास्ता निकाला तथा पनामा की सरकार ने वहां अमेरिकी जहाजों का पंजीकरण करना शुरू कर दिया। इन पंजीकृत जहाज़ों को पूर्ण स्वतंत्रता हासिल होती थी | उनके लिए किन्हीं सुरक्षा मानको का पालन करना भी जरूरी नहीं था। यहाँ तक कि जब अमेरिका में नशाबंदी लागू हो गई तो पनामा में पंजीकृत जहाज अपने यात्रियों को यात्रा के दौरान शराब परोसने के लिए भी स्वतंत्र थे।

आज तो स्थिति यह है कि पूरी दुनिया में जितने जहाज है, उसमें से आधे से ज्यादा जहाज अकेले पनामा में पंजीकृत करवाए गए हैं । फिर मामला और आगे बढ़ा। पनामा की सरकार ने अपने देश को कर चोरों, आतंकवादियों, तानाशाहों, नशीली दवाओं के व्यापारियों का स्वर्ग बना दिया। वहां बिना कोई लंबी चौड़ी कार्रवाई करे कोई भी कंपनी रजिस्टर करवाई जा सकती है। जिसे उस देश के बाहर काम करने पर देश के अंदर किसी भी तरह का आयकर, कंपनी कर, संपत्ति कर नहीं देना पड़ता। 

इसका परिणाम यह निकला कि पड़ोसी देश मैक्सिको के नशीली दवाओं के तस्करों ने वहां अपना पैसा रखना शुरू दिया। इसे टैक्स हैवन व कर चोरों का स्वर्ग कहा जाने लगा। यहां के बैंकों की खासियत यह है कि वे किसी भी दूसरे देश के न्यायालय का आदेश नहीं मानते हैं। यहां किसी कंपनी के निदेशकों के बारे में सूचना हासिल करना या उसके खातों के बारे में जानकारी हासिल करना असंभव है जब तक कि पनामा की कोई अदालत ऐसा करने का आदेश न दे, जो कि कभी होता ही नहीं है। 

दुनिया के 200 बड़े बैंकों के यहां दफ्तर है। बैंकों के बाद सबसे ज्यादा संख्या वकीलो की है जो कि हाथों-हाथ किसी भी विदेशी की कंपनी रजिस्टर करवा देते हैं। वे बड़े गर्व के साथ कहते हैं कि हम दुनिया भर के गंदे पैसे को यहां धोने, निचोड़ने और सुखाने (वाश, रिंस एंड ड्राई) की सुविधा प्रदान करते हैं। यहां 3.5 लाख बिजनेस कंपनियां पंजीकृत है जोकि सिर्फ कालेधन को सफेद करने का ही काम करती है। यह दुनिया का सबसे बड़ा मनी लांडरिंग देश है। इसका परिणाम यह हुआ कि चाहे कोई-सा भी देश हो या किसी तरह की भी शासन व्यवस्था - लोकतंत्र हो, तानाशाही हो अथवा वामपंथी शासन, सबके भ्रष्ट शासको के लिए पनामा मानों काले धन को सफेद करने व वहां छिपा कर रखने के लिए मक्का साबित हुआ है। 

अमेरिकी संगठन की विदेशी मामलों की समिति से लेकर अंर्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष तक पनामा में जारी इन धंधों पर चिंता जता चुके हैं मगर कुछ नहीं हुआ। आखिर होगा भी क्यों ? इस अवैध गोरखधंधे के जन्मदाता भी तो वे ही हैं | जिस पौधे को इतनी मेहनत से लगाया, सींचा और विशालकाय बनाया, उसे वे क्यों काटेंगे भला ?
साभार आधार - नया इण्डिया 


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