गणेश और गणेश चतुर्थी की अद्भुत व्याख्या - पूज्य सद्गुरू जग्गी वासुदेव महाराज



सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में घूमते यायावर शिव | इधर कैलाश पर नितांत एकाकी पार्वती | आज के समान कोई सेलफोन और ईमेल भी नहीं, कि शिवजी से कोई संपर्क हो सके । शिव की प्रकृति, उनका यक्ष स्वभाव और मानवेतर होना, ये सब कारण, जिनके चलते माता पार्वती ने किसी संतति को भी जन्म नहीं दिया ।

लेकिन जगजननी का मातृत्व प्रबल था, अतः अपने शरीर के उबटन चन्दन के साथ हिमालय की पवित्र माटी को मिश्रित कर उसे एक बच्चे का रूप दे जीवित कर दिया । इसे कपोलकल्पित न मानें, आज का विज्ञान कह रहा है कि आपकी एक कोशिका से आपकी अनुकृति बनाई जा सकती हैं । तो पार्वती ने उस छोटे बच्चे में जीवन डाल दिया, तो उसमें असंभव क्या है ?

कुछ साल बाद, जब लड़का लगभग दस वर्ष का हुआ, शिव अपने गणों के साथ वापस आये। पार्वती स्नान कर रही थीं, और उन्होंने उस नन्हे बच्चे से कहा था, "ध्यान रखना कि कोई इस ओर नहीं आये।" लड़के ने इसके पूर्व कभी शिव को देखा भी नहीं था, इसलिए जब शिव आये, तो लड़के ने उन्हें रोक दिया। शिव को यह सहन नहीं हुआ और उन्होंने बालक का सिर धड से अलग कर दिया ।

पार्वती ने जब उनके हाथ में खून से सने शस्त्र को देखा तो उन्हें समझते देर नहीं लगी, कि क्या अघटित घट गया है | उनके क्रोध का ठिकाना न रहा । शिव ने उन्हें मनाने की बहुत कोशिश की किन्तु पार्वती कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थीं ।

गणपति का जन्म

इसलिए इस मुद्दे को सुलझाने के लिए, शिव ने अपने गणों के नायक का सिर उस बालक के धड पर प्रत्यारोपित कर दिया । यह कार्य गणेश चतुर्थी को ही संपन्न हुआ । चूंकि उन्होंने अपने गण के प्रमुख का सिर प्रयोग में लिया था, अतः उन्होंने कहा, "अब से तुम गणपति अर्थात जनों के मुखिया हो। 

अब प्रश्न उठता है कि गणपति के चित्रों में हाथी का सिर क्यों दर्शाया जाता है । गण शिव के साथी थे। हम नहीं जानते कि वे कहां से आए, लेकिन आम तौर पर विद्वान उन लोगों के रूप का जो वर्णन करते हैं, उससे लगता है कि वे हमारे इस ग्रह के लोग नहीं थे। उनका जीवन हमारे यहाँ के जीवन से बहुत भिन्न था । विद्वानों के अनुसार शिव गणों के अवयव हड्डी रहित हुआ करते थे, हाथी की सूंड में भी कोई अस्थि या हड्डी नहीं होती, अतः चित्रकार की कल्पना ने उस सिर को हाथी का रूप दे दिया | जबकि वास्तविकता यह है कि वहां बर्फ से ढके कैलाश मानसरोवर के किनारों पर किसी हाथी के होने की संभावना नहीं है, ना ही हाथी की भोज्य वनस्पति ही वहां संभव है | यही कारण है कि हमें गणेश, गणपति, विनायक आदि नाम तो मिलते हैं, किन्तु उन्हें गजपति कभी नहीं कहा गया |

आज, आधुनिक जीवविज्ञान की स्पष्ट मान्यता है कि सृष्टि का सर्वाधिक जटिल रूप इंसान, एक एकल-कोशिका वाले जीव से रूपांतरित हुआ है । लेकिन जीवन की मौलिक प्रकृति सबकी समान है - यह अपरिवर्तिनीय है। यह अलग बात है की जटिलता बढ़ती ही जा रही है | जो भी हो, गण प्रथ्वीलोक के वासी नहीं थे, उनकी जीवन चर्या यहाँ से बहुत भिन्न थी, यहाँ तक कि उनके शारीरिक अवयव अस्थिरहित थे ।

यौगिक क्रियाओं और आसनों में हम देखते हैं कि अपने शरीर को विभिन्न तरीकों से इस्तेमाल किया जा सकता है | जब योगासन का अभ्यास किया जाता है, तो प्रयत्न होता है कि वह इतना लचीला हो जाए, मानो आपके कोई हड्डियां हैं ही नहीं । मैं जब सिर्फ 11 साल का था, तब मैंने अपना योगअभ्यास शुरू किया, जब मैं 25 वर्ष का हुआ, तब मैंने हठ योग सीखा, तो लोग मुझे देखकर कहा करते थे - "ओह, लगता है, तुम्हारे शरीर में हड्डियां हैं ही नहीं । यह हर योगी का सपना होता है: उसका शरीर ऐसा हो जाये, मानो हड्डी रहित हो, ताकि वह अपनी इच्छानुसार हर आसन कर सके !

भोजन प्रिय विद्वान

हजारों सालों से, गणेश चतुर्थी मनाई जा रही है, और गणपति भारत के सबसे लोकप्रिय और भारत से सबसे अधिक निर्यात होने वाले देवताओं में से एक बन गए हैं। वे बहुत लचीले है और उनकी मूर्तियाँ अनेक रूपों और भाव भंगिमाओं में मिलती हैं | वे विद्या और प्रज्ञा के देवता हैं । उद्भट विद्वान गणपति के चित्र अथवा मूर्तियों में हमेशा उन्हें किताबों और कलम के साथ दिखाया जाता है, यह उनकी विद्वत्ता का दिग्दर्शन कराता है । उनकी मेधा और बुद्धि, सामान्य मानवीय क्षमताओं से परे है ।

गणेश भोजन प्रिय हैं । सामान्यतः विद्वान दुबले पतले होते हैं । लेकिन गणेश एक अच्छी तरह से खाए पिए विद्वान है। अतः आम तौर पर लोग यह मानते हैं कि यह दिन भरपेट खाने का दिन है । लोग केवल गणेश का बड़ा पेट देखते थे, लेकिन नए सिर में विद्यमान बड़े मस्तिष्क की ओर ध्यान नहीं देते । जबकि वही सबसे महत्वपूर्ण बात है। इस तरह के एक असामान्य बड़े सिर के साथ, चलने फिरने में कठिनाई के कारण, शायद उनका पेट बाद में बढ़ गया होगा, किन्तु सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उनकी बुद्धिमत्ता या प्रज्ञा कई गुना बढ़ गई थी । अतः गणेशचतुर्थी केवल मात्र लड्डू या स्वादिष्ट भोजन करने का दिन नहीं है। यह वह दिन है, जब हमें और आपको अपनी मानसिक क्षमताएं बढ़ाने का प्रयत्न करना चाहिए, नाकि अपना पेट।

योगाभ्यास अपनी दक्षता और बुद्धिमत्ता बढाने का एक नायाब तरीका है । ऐसे हजारों उदाहरण हैं जहां लोगों ने, सरल आध्यात्मिक अभ्यास से प्रारम्भ कर अपनी बौद्धिक क्षमता कई गुना बढ़ाने में सफलता पाई । आप सूंड नहीं बढ़ा सकते, लेकिन आप बुद्धिमत्ता बढ़ाने के लिए तो प्रयास कर सकते हैं। अच्छे और समझदार लोगों ने हमेशा लोगों को अच्छा बनाने का प्रयत्न किया है, जबकि हमें अच्छे लोगों से ज्यादा समझदार लोगों की ज़रूरत है | यदि आपके पास समझ है, तो आप सही काम करेंगे | लोग केवल बेवकूफीभरी निरर्थक बातें करने में अपना समय बर्बाद करते हैं । चतुराई को बुद्धि मत मानो । बुद्धि और चतुरता का कोई सम्बन्ध नहीं है | यदि आप वास्तव में बुद्धिमान हैं, तो आप शत प्रतिशत अपने अस्तित्व के साथ होंगे, क्योंकि बुद्धिमान होने का कोई दूसरा तरीका नहीं है। 

बौद्धिकता का अर्थ है, अपने आसपास की चीज़ों के साथ तालमेल रखना, अपने भीतर और बाहर के जीवन में न्यूनतम पथच्युत होना । गणेश चतुर्थी वह दिन है, जब आप कम से कम अपनी बौद्धिक क्षमता बढाने का प्रयास तो प्रारम्भ करें । सफलता असफलता बाद की बात है | यदि आप सुबह सबेरे अस्थि रहित अवयव के लिए आसन शुरू करें, तो यह संभव है !
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