कश्मीर समस्या का मूल कारण - ओशो रजनीश



अद्भुत अंतर्दृष्टि युक्त यह दुर्लभ प्रसंग पठनीय और मनन करने योग्य है । उदारवादी और छद्म शांतिदूतों जैसे भेड़ के बच्चों के लिए ये शब्द किसी सदमे से कम नहीं हैं । तो प्रस्तुत है ओशो रजनीश की पुस्तक “Darkness to Light” के एक अंश का हिन्दी अनुवाद - 

"भारत में मैं कई राजनेताओं को जानता हूँ, किन्तु मैंने उनमें दिमाग नहीं पाया।

जिन सामान्य बातों को कोई भी समझ सकता है, जिन्हें समझने के लिए किसी महान प्रतिभा की जरूरत नहीं है, उन्हें भी राजनेता समझ नहीं पाते । मेरा एक मित्र भारतीय सेना का कमांडर इन चीफ था। उनका नाम था जनरल चौधरी | जब पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया, तो इस आदमी ने प्रधान मंत्री से हमले का मुकाबला करने की अनुमति मांगी | उसने कहा कि इस समय सिर्फ रक्षात्मक होने से कुछ नहीं होगा क्योंकि यदि आप रक्षात्मक हैं तो इसका अर्थ है, आप पहले ही हार गए हैं | यह एक सरल सैन्य रणनीति है कि बचाव का सबसे अच्छा तरीका आक्रामक होना है |

चौधरी का सुझाव था कि अगर पाकिस्तान ने कश्मीर के एक हिस्से पर हमला किया है, तो हमें पाकिस्तान पर चार – पांच मोर्चों से आक्रमण करना चाहिए। वे घबरा जायंगे और समझ नहीं पायेंगे कि वे अपनी सेना कहाँ भेजें । उन्हें अपने देश की पूरी सीमा का बचाव करना होगा, तो उनका हमला अपने आप विफल हो जाएगा ।

लेकिन उफ़ ये राजनेता ! प्रधान मंत्री नेहरू ने उन्हें कहा कि सुबह तक 6 बजे तक इंतजार करो।
जनरल चौधरी ने मुझे बताया कि उसके बाद उन्हें सेना से निकाल दिया गया था – लेकिन यह बात सार्वजनिक नहीं की गई । सार्वजनिक रूप से तो वे ससम्मान सेवानिवृत्त हुए, लेकिन सचाई यह है कि उन्हें निकाला गया था | उनसे कहा गया था - 'या तो आप इस्तीफा दें या हम आपको बाहर निकाल देंगे।'

अपराध क्या था उनका ? उनका अपराध यह था कि उन्होंने छः बजे के स्थान पर सुबह 5 बजे पाकिस्तान पर हमला कर दिया । क्योंकि उनकी नजर में यही सही समय था, छः बजे तो सूर्योदय हो जाएगा, लोग जाग जायेंगे। सुबह पांच बजे का समय एकदम उपयुक्त था - सब लोग सो रहे थे – वे लोग हक्के बक्के हो गए । और उसने जैसा कहा था, बैसा ही हुआ - उसने पूरे पाकिस्तान को थरथरा दिया । देखते ही देखते भारतीय सेनायें पाकिस्तान से सबसे बड़े शहर लाहौर से सिर्फ 15 मील दूर रह गईं |

तब तक राजनेता क्या कर रहे थे ? पूरी रात नेहरू और उनकी कैबिनेट विचार विमर्श में उलझी रही - ऐसा करने का क्या नतीजा होगा, बैसा करने से क्या होगा और सुबह 6 बजे तक भी वे किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाए । तभी उन्होंने रेडियो पर सुना - 'जनरल चौधरी लाहौर में प्रवेश कर रहे हैं।'

यह स्थिति राजनेताओं के लिए असहनीय थी | उन्होंने लाहौर से सिर्फ 15 मील दूर उन्हें रोक दिया और जहाँ तक मैं समझता हूँ, यह मूर्खता की पराकाष्ठा थी | यदि उस दिन लाहौर जीत लिया जाता, कश्मीर की समस्या और भारत का सरदर्द हमेशा के लिए हल हो गया होता। कश्मीर के उस क्षेत्र की समस्या अब कभी हल नहीं हो सकती, जिस पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया है - और ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि जनरल चौधरी को वापस आने के लिए कहा गया | कहा गया कि भारत एक अहिंसक देश है और आपने आदेश का इंतजार नहीं किया । 

उन्होंने प्रधान मंत्री से साफ़ शब्दों में कहा - ' सैन्य रणनीतियों को मैं समझता हूं, आप नहीं । आप छः बजे की बात करते हैं, पर उस समय भी आपका ऑर्डर कहाँ था? पाकिस्तान ने पहले ही कश्मीर के सबसे सुंदर हिस्से पर कब्जा कर लिया था - और आप पूरी रात चर्चा ही करते रहे । यह चर्चा का समय नहीं था - युद्ध के मैदान पर फैसला किया जाना चाहिए था । अगर आपने मुझे लाहौर में जाने की अनुमति दी होती तो हम सौदेबाजी की स्थिति में होंते । अब हम सौदेबाजी की स्थिति में नहीं हैं। आपने मुझे वापस बुला लिया और मुझे वापस आना पड़ा। '

संयुक्त राष्ट्र ने युद्ध विराम लाइन का निर्णय किया । तो अब वर्षों से संयुक्त राष्ट्र सेनाएं वहां गश्त कर रही हैं, दूसरी ओर पाकिस्तानी सेनाएं गश्त कर रही हैं, इस तरफ भारतीय सेनाएं गश्त कर रही हैं। वर्षों से सिर्फ बकवास हो रही है ! और वे संयुक्त राष्ट्र में गए, जहाँ सिर्फ चर्चा होती है, और नतीजा वही ढाक के तीन पात ।

और पाकिस्तान द्वारा कब्जाए गए क्षेत्र को आप युद्ध विराम के कारण वापस नहीं ले सकते। उन्होंने अपनी संसद में फैसला किया है कि उनके द्वारा कब्ज़ा किया गया क्षेत्र पाकिस्तान का अभिन्न अंग है । अब वे इसे अपने नक्शे पर दिखाते हैं। अब यह क्षेत्र कब्जाया हुआ नहीं, पाकिस्तानी क्षेत्र है।

मैंने जनरल चौधरी से कहा था- 'यह एक साधारण सी बात थी कि आपको सौदेबाजी की स्थिति में होना चाहिए था। यदि आपने लाहौर ले लिया होता, तो वे कश्मीर छोड़ने के लिए मजबूर हो जाते | क्योंकि वे लाहौर खोना बर्दास्त नहीं कर सकते थे। उसके बाद अगर कोई संघर्ष विराम होता भी तो सौदेबाजी करते समय लाहौर हमारे पास होता । अब सौदेबाजी के लिए भारत के पास क्या है ? पाकिस्तान को क्या परेशानी? '

लेकिन राजनेताओं में दिमाग होता ही कहाँ हैं? "

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