तुमने दिया देश को जीवन, देश तुम्हे क्या देगा

क्रांतिकारियों के सेनानायक पं. रामप्रसाद बिस्मिल का मकान बिककर ढह गया ! शहीद रोशन सिंह के मकान पर गोबर थापा जा रहा है ! शहीद राजेन्द्र लाहिड़ी के मंदिर को समर्पित घर को गिराकर वहां होटल बनने वाला है ! चंद्रशेखर आजाद की बनारस की कोठरी नेस्तानाबूद हो चुकी है ! शहीद मजीन्द्र बनर्जी का घर ढह रहा है ! मिदनापुर में शहीद प्रधोत भट्टाचार्य का घर बिक गया ! खरीदने वाला संगमरमर का वह पत्थर तक तोड़ रहा है जिस पर शहीद का नाम लिखा है ! चटगांव की क्रान्तिकारिणी श्रीमती सुहासिनी गांगुली तड़प-तड़प कर मर गयी और सरकारी डॉक्टर ने उन्हें एक ए.टी.एस का इंजेक्शन तक नहीं लगाया ! ये सलूक उनके साथ है जिनकी चिताओं पर हमने मेले लगाने का वादा किया था ! दिनकर ने सही लिखा था –‘तुमने दिया देश को जीवन, देश तुम्हे क्या देगा ?’ भगत सिंह ने सही लिखा था ‘गोरी चमड़ी की जगह काली चमड़ी के कुर्सी पर बैठ जाने से लड़ाई ख़त्म नहीं होगी, जब तक कि व्यवस्था नहीं बदलती !’ आज शोषण की स्पर्धा मची है ! शहीद अशफाक उल्ला खां ने सही कहा था – 

‘सुनाये गम की किसे कहानी, हमें तो अपने सता रहे है !
हमेशा वो सुबहो-शाम दिल पर, सितम के खंजर चला रहे है !
कोई इंग्लिश न कोई जर्मन, न कोई रशिया न कोई टर्की !
मिटाने वाले है अपने हिंदी, जो आज हमको मिटा रहे है !” 

क्या यही स्वतंत्रता है ? गुलाम भारत में की गयी भविष्यवाणी स्वतंत्रता के उजाले में सत्य हो गयी ! अनेक नकली स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी पैदा हो गए ! पांडिचेरी में फ्रेंच शासन के विरोध में अपना सर्वस्व लुटाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री रथकम को कभी पेंशन नहीं मिली ! एक दिन घर से 10 किलोमीटर दूर समुद्र किनारे उनकी चप्पलें और खद्दर की धोती मिली ! स्वाधीन देश में यह आधुनिक दांडी यात्रा थी ! 

जब भारतवर्ष आजाद हुआ तो एक विचार यह आया कि हिन्दू फौज के युवक सेनानियों तथा नाविक विद्रोह के देशप्रेमियों को, जो कल तक ब्रिटिश भारत की सेना के अंग थे, पुनः सेना में वापस ले लिया जाए ! तत्कालीन नौकरशाहों ने सत्ता के भूखे कर्णधारों तथा तत्कालीन प्रधानमंत्री को समझाया कि इससे तो सरकारी नियमों का उल्लंघन पुरुस्कृत हो जाएगा ! यही तो सन 31 के देशवासियों पर गोली चलाने से इनकार करने पर चन्द्रसिंह गढ़वाली और उनके साथियों को दंड देते हुए साम्राज्यवादियों ने कहा था ! जो अंग्रेज हुक्म रानों ने किया वही उनके पिट्ठुओं ने स्वतंत्र भारत में किया ! यह भारत माता की लालफीताशाही से हार थी ! आज भी सरकार का प्रमुख बदला, मगर प्रशासन वैसा ही चल रहा है, जैसा मैकाले ने बनाया था ! सार्वजनिक प्रशासन आज व्यक्तिगत भोग का साधन बन गया !

जहाँ गलत इतिहास पढ़ाया जाए, जहाँ शिक्षार्थी के सम्मुख आदर्श और भविष्य न हो वहां ऐसी दशा ही होनी थी ! 

काकोरी के शहीद अशफाक उल्ला खां ने देश को एक प्रश्न पूछा था – मौत और जिन्दगी है दुनिया का इक तमाशा, फरमान कृष्ण का था अर्जुन को बीच रण में ! जिसने हिला दिया था दुनिया को इक पल में, अफ़सोस, क्योँ नहीं है वह रूह अब वतन में ?

आज यह प्रश्न खुद अपना जवाब बन गया है ! शहीदों की यादगारें कराह रही है ! कुछ धर्मांधों ने स्वतंत्रता आन्दोलन की महान प्रेरणा ‘वन्दे मातरम्’ को हिन्दू साम्राज्यवाद कहना शुरू कर दिया है ! 

आज हम तिरंगे झंडे का महत्त्व भले ही न समझें परन्तु परतंत्र देश के भारतीयों में इसके लिए जूनून था ! सन 36 के बर्लिन ओलम्पिक में होकी फाइनल जर्मनी और भारत के बीच होना था ! वर्षा के कारण मैच 15 अगस्त को होना तय हुआ ! अभ्यास मैच में भारत जर्मनी से 4-1 से हार गया ! रात में सभी खिलाड़ी ठीक से सो भी न सके, न खा सके ! सबेरे टीम के मेनेजर पंकज गुप्ता ने ध्यानचन्द्र, दारा आदि सभी खिलाड़ियों को बुलाकर कुछ भी न कहा और केवल तिरंगा झंडा निकाल कर मेज पर फैला दिया ! सबने उस झंडे को सलामी दी ! मैच देखने स्वयं हिटलर आया ! भारतीयों ने 8-1 से जर्मनी को रौंद डाला ! विवशता की पराकाष्ठा यह थी कि जिस झंडे ने उन्हें शक्ति दी, उसे लेकर वह संसार में खड़े नहीं हो सकते थे ! ओलम्पिक परेड में यूनियन जैक को सलाम करने उन्हें शामिल होना पड़ा ! आज तिरंगे की कैसी दुर्गति है ! 

भारत के अभ्युदय में बलिदान, त्याग तथा समर्पण की शाश्वत परंपरा जारी रहेगी ! मैजनी का कथन था –‘विचार शहीदों के रक्त में सिंचकर पवित्र होते है !’ भगत सिंह से फांसी के पूर्व ग़दर पार्टी के सोहनसिंह मकना ने पूछा था –‘तुम्हारे रिश्तेदार मिलने नहीं आते ?’ उसने कहा था –‘बाबाजी ! मेरा खून का रिश्ता तो शहीदों के साथ है, जैसे खुदीराम, करतार सिंह आदि ! दूसरा रिश्ता आप लोगों से है जिन्होंने हमें प्रेरणा दी ! तीसरे रिश्तेदार वे होंगे जो आगे देश के लिए खून बहायेंगे !’ काजी नजरूल इस्लाम ने कहा था –‘फांसी के तख्ते पर, जिन्होंने जीवन के यशगान गाये, आज वे अदृश्य हमें निहार रहे है !’

लक्ष्य की पूर्ति के लिए तुम कौन सा बलिदान दोगे ? दिनकर ने कहा था – कलम आज उनकी जय बोल !

साभार - दामोदर भगेरिया जी द्वारा लिखित पुस्तक "श्रीमदभगवतगीता मर्म और सन्देश (15)" में प्रकशित श्र जगदीश जी 'जगेश' का एक लेख

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