पाकिस्तान के 70 वें स्वतंत्रता दिवस पर, पाक मीडिया में झलकती निराशा और हताशा - जिन्ना का सपना टूटा !



पाकिस्तान ने इस सप्ताह 14 अगस्त को अपना 70 वां स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाया। इस अवसर पर, पाकिस्तानी मीडिया ने पिछले सात दशकों में देश की उपलब्धियों और विफलताओं पर प्रकाश डाला । इस अवसर पर प्रकाशित अधिकाँश लेखों में जिन्ना के स्वप्न को धराशाई मानते हुए निराशा जाहिर की गई है ।

'वस्तुतः आज पाकिस्तान एक भिखारी दिखाई देता है'

स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर, सबसे ज्यादा बिकने वाले उर्दू दैनिक जंग ने इस विषय पर डॉ सफदर महमूद का एक आलेख प्रकाशित किया है, जिसका शीर्षक है – “सत्तर साल” | उक्त आलेख में आर्थिक रूप से पाकिस्तान की बदहाली की दास्तान है ।

डॉ. महमूद के अनुसार सत्तर वर्ष किसी राष्ट्र के जीवन में कम नहीं होते । चीन हमसे दो साल बाद स्वतंत्र हुआ और सिंगापुर, कोरिया और मलेशिया जैसे देशों ने भी महज तीन दशक पहले आर्थिक प्रगति की यात्रा शुरू की। लेकिन आज ये सब हमें पीछे छोड़ चुके है | हकीकत यह है कि आज पाकिस्तान एक ऐसा भिखारी बन गया है, जिसने कर्ज के बदले अपने भविष्य को गिरवी रख दिया है।"

पाकिस्तानी नेतृत्व में न तो क्षमता है, नाही दूरदृष्टि | उनके पास उस आदर्श चरित्र का पूर्णतः अभाव है, जो लोगों को प्रेरित कर सके | सुयोग्य नेतृत्व ही किसी देश में कोई बड़ा बदलाव ला सकता है ... आर्थिक प्रगति के लिए आवश्यक है – कठोर परिश्रम, अनुशासन और लक्ष्य तक पहुंचने की तीव्र इच्छाशक्ति । 

डॉ सफदर महमूद का मानना है कि पाकिस्तान का निर्माण केवल जिन्ना की अदम्य निष्ठा और उनके ईमानदार नेतृत्व के कारण संभव हुआ था। "लोगों ने उनके नेतृत्व पर भरोसा किया, और उन्होंने भी जो वादा किया, उसे निभाया । अपनी सेहत की चिंता किये बिना, उन्होंने कठोर परिश्रम किया, और अंततः अपने जीवन का बलिदान कर दिया । "

लेकिन दुर्भाग्य से जिन्ना के बाद सत्ता की राजनीति शुरू हुई, जिसमें लूट, भ्रष्टाचार और परिवारवाद का बोलबाला हो गया, नैतिक मूल्यों का भारी क्षरण हुआ ।"

भ्रष्टाचार सबसे बड़ा खतरा 

एक अन्य लेख में अनुभवी पत्रकार नजम सेठी ने पाकिस्तान में गहराते राजनीतिक और सामाजिक संकट का जिक्र किया और माना कि देश तेजी से अस्थिरता की ओर बढ़ रहा है। उनके अनुसार भ्रष्टाचार ने पाकिस्तान की न्यायपालिका, सेना और राजनीतिक पार्टियों को इतना अधिक अपनी गिरफ्त में ले लिया है कि संकट बढ़ता ही जा रहा है और कहा जा सकता है कि एक भयावह भविष्य हमारा इंतजार कर रहा है।

ब्रिटिश काउंसिल द्वारा तीन साल पूर्व किये गए एक सर्वेक्षण के हवाले से सेठी ने लिखा है कि देश की आधी से अधिक आबादी युवा है, जिनकी उम्र 20 से कम है | 30 के कम उम्र के लोगों की संख्या तो 65 प्रतिशत से भी अधिक है । और 2018 के चुनाव तक तो 15 मिलियन युवा और बढ़ जायेंगे | इस नौजवान पीढी में यथास्थितिवाद और बेरोजगारी को लेकर जबरदस्त गुस्सा है जो मतदान के दौरान दिखाई देगा |

अगर धार्मिक उन्माद के बल पर कट्टरतावादी शक्तियां सत्ता हथियाने में कामयाब हो गईं तो देश मध्यपूर्व जैसी हिंसा, अस्थिरता और गृहयुद्ध के आगोश में समा जाएगा ।

कश्मीर तो पाया नहीं पाकिस्तान का आधा हिस्सा खो दिया '

आईये अब नजर डालते हैं कि एक अन्य लोकप्रिय उर्दू दैनिक नवाई वक्त अपने 14 अगस्त के सम्पादकीय में क्या लिखता है – 

जिन्ना की मृत्यु के बाद पाकिस्तान को मिला अयूब खान का निरंकुश सैन्य शासन, जिसने अमेरिका को हमारा स्वामी बना दिया । आजादी के बाद के 70 वर्षों में से 33 वर्ष से अधिक समय तो पाकिस्तान पर सैन्य हुकूमत ही काबिज रही । हमारी विदेश नीति की इससे बड़ी असफलता क्या होगी कि हमने कश्मीर पाने की जगह आधा पाकिस्तान खो दिया | हमें इन्तजार है कायदे आजम के असली राजनीतिक उत्तराधिकारी का, जो लोकतंत्र को सुदृढ़ करे और जिसके नेतृत्व में पाकिस्तान अपने संसाधनों का उपयोग करके प्रगति करे और सफल हो।
संपादकीय का कहना है कि अवसरवादी राजनेताओं के अपवित्र गठबंधन और प्रतिष्ठान ने पाकिस्तान को इतना कमजोर कर दिया है, जिसके कारण राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो गई है । आतंकवाद ने देश की नींव को ही हिला दिया है । 

एक अन्य लेख में रिटायर्ड जनरल असलम बेग याद दिलाते हैं कि कैसे जनरल ज़िया-उल-हक ने लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित प्रधान मंत्री भुट्टो को मार डाला था और कैसे एक अन्य सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ ने देश की सुरक्षा से समझौता किया था । इनके ही कार्यकाल में देश में आतंकवाद आया साथ ही न्यायपालिका, प्रशासन, कुछ राजनीतिक और धार्मिक पार्टियाँ भी इस अपराध में बराबर की साझेदार बन गईं । 

बांग्लादेश के साथ तुलना 

16 अगस्त को जंग में प्रकाशित एक लेख में इरफान सिद्दीकी लिखते हैं कि पाकिस्तान प्रगति और समृद्धि के रास्ते पर जाने के बजाय विनाश के रास्ते पर चला गया । इसका मुख्य कारण यह है कि हम लोगों में अच्छे और बुरे नेतृत्व के बीच भेद करने की क्षमता नहीं है । कई देशों ने पाकिस्तान के बाद स्वतंत्रता प्राप्त की, लेकिन आज वे सब इसे पीछे छोड़ चुके हैं यहाँ तक कि भारत और पाकिस्तान के बहुत बाद स्वतंत्रता हासिल करने वाले बांग्लादेश की मुद्रा टका पाकिस्तानी रुपये के मुकाबले ज्यादा मजबूत है । बांग्लादेश के सिर्फ कपड़ा क्षेत्र का निर्यात, पाकिस्तान के पूरे निर्यात के बराबर है। बांग्लादेश के कस्बों और शहरों का बुनियादी ढांचा, पाकिस्तान से बेहतर हैं।
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