जानें हिन्दू – मुसलमानों के बीच विष के बीज बोने वाले ब्रिटिश गवर्नर के बारे में, उत्तराखंड में जिसके नाम से बसा हुआ है पूरा का पूरा शहर !


भारत में आये दिन गौहत्या और हिन्दू-मुस्लिम मुद्दे लगातार चर्चा में बने रहते हैं ! इन दो मुद्दों ने भारत को पिछले सैकड़ों वर्षों से उलझा कर रहा है ! इसी समस्या की वजह से महान भारतवर्ष के टुकड़े-टुकड़े हो गए लेकिन यह मुद्दा है कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा है ! भले ही अमेरिका में होने वाले गृहयुद्ध समाप्त हो गये, ब्रिटेन में होने वाले ब्रिटिश-आयरिश लोगों के बीच होने वाले कत्लेआम शांत हो गये यहाँ तक कि, हजारों वर्षों से चला आ रहा यूरोप में यहूदी-ईसाई संघर्ष भी खत्म हो गया परन्तु भारत में आज तक हिन्दू-मुस्लिम मुद्दा खत्म नहीं हो पाया आखिर क्योँ ? क्या आज तक भारत में इस गंभीर मुद्दे पर स्वतंत्र रूप से विचार किया गया ? 

हिन्दू हो या मुस्लिम बिना जाने बस लडे जा रहे है बिना यह जाने कि वह भारत को बांटने की उस नीति के तहत आपस में लड़ रहे है जिसका नाम ही ‘बांटो और राज करो नीति’ रही ! जो सिर्फ सेक्युलर-और सांप्रदायिकता पर आकर खत्म हो हो जाती है ! गौहत्या और हिन्दू-मुस्लिम दंगों की जड़ों के बारे में जानने के लिए हमें इतिहास में चलना होगा जब ब्रिटिशों ने खुद की गर्दन बचाने के लिए भारतीयों को ही आपस में लडवा दिया ताकि खुद सुरक्षित रह सकें और भारत आजाद होने के बाद भी आजाद न हो पाए ! 

१८५७ की क्रांति का इतिहास तो ज्यादातर भारतीयों को पता ही होगा जब गौमाता के कारण ही क्रान्ति हुयी थी जिसमें हिन्दू-मुसलमान सभी मिलकर ब्रिटिशों के खिलाफ लड़े थे ! १८५७ की इसी क्रांति के बाद भारत देश में गोहत्या निषेध के लिए एक जबरदस्त आंदोलन शुरू हुआ था ! वर्ष 1870 में प्रारम्भ हुए इस आंदोलन का इतिहास अंग्रेजो ने दबा कर रखा और अंग्रेजों के देश छोड़ने के बाद हमारे इतिहासकारों ने भी इस बात पर ज्यादा शोध नहीं किया ! 1870 से लेकर 1894 तक 24 वर्षों के मध्य भारत में गौ हत्या निषेध को लेकर जबरदस्त आंदोलन हुआ ! इस आन्दोलन को लेकर अंग्रेजों की खुफिया विभाग की रिपोर्ट के अनुसार अंग्रेजों के खुफिया अधिकारी का यह कहना था कि 1857 का आंदोलन जितना बड़ा था उससे कई गुना बड़ा यह गौ हत्या निषेध का आंदोलन था जो 1870 में शुरू हुआ और 1894 तक चला ! इस आंदोलन की शुरुआत महर्षि दयानंद जी की शिक्षाओं से प्रेरित और प्रभावित होकर हुई ! इस आंदोलन ने भारत ने ब्रिटिश राज की चूलें हिलाकर रख दीं थीं !

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में प्रख्यात गांधीवादी धर्मपाल जी को आमंत्रित किया और उनसे भारत में गौहत्या के इतिहास पर शोध करने को कहा ! इसके साथ ही वाजपेयी जी ने धर्मपाल से निवेदन किया कि, इसके लिए आवश्यक ब्रीटिश दस्तावेजों का भी अध्ययन किया जाय जो इंडिया हाउस ब्रिटेन में उपलब्ध थे ! 2002 में धर्मपाल जी और उनके सहायक टी.एम. मुकुन्दन ने वर्ष 2002 में प्रधानमंत्री वाजपेयी के समक्ष अपना शोध प्रस्तुत किया ! इस शोध पर लिखी गयी पुस्तक का नाम था “The British Origin of Cow-Slaughter in India” अर्थात ‘भारत में गौहत्या का ब्रिटिश मूल’ इस शोध में धर्मपाल जी और उनके सहायक मुकुन्दन जी ने पूरे ब्रिटिश साजिश की पोल खोलकर रख दी ! किस तरह ब्रिटिशों ने भारत में गौहत्या शुरू की और गायें काटने के लिए मुस्लिम धर्म से संबंध रखने वाले एक समुदाय को जबरदस्ती गायें काटने के लिए तैयार किया और यहीं से शुरुआत होती है हिन्दू-मुस्लिमों में तनाव की !

अंग्रेजो के खुफिया रिपोर्ट बताती है कि सबसे पहले यह आंदोलन वर्ष 1870 में जींद से शुरू हुआ था ! आज जिस स्थान पर हरियाणा है पहले यह पंजाब हुआ करता था हरियाणा आजादी के बाद बना है इस इलाके से यह आंदोलन शुरू हुआ और अंग्रेजो के खुफिया रिपोर्ट बताती है कि सबसे पहले यह आंदोलन जींद से शुरू हुआ था जींद एक बड़ी रियासत हुआ करती थी उस जमाने में वहां से गौ रक्षा आंदोलन 1870 में शुरू हुआ गौरक्षा सभा बनाई गई थी ! आपको जानकर हैरानी होगी कि, गौरक्षा के लिए बनी इस 18 सदस्यीय कमेटी में 11 सदस्य हिन्दू थे जबकि 7 सदस्य मुस्लिम समुदाय से थे ! जींद में उसमें कार्यकर्ताओं ने संकल्प लिया था कि गाय को कटने नहीं देंगे और जो अंग्रेज गाय काटेगा उस अंग्रेज को हम काटेंगे ! ऐसे जींद जैसे एक छोटे से स्थान से प्रारम्भ हुआ आंदोलन धीरे धीरे संपूर्ण भारत में फैल गया 1894 तक आते-आते 1 करोड़ से ज्यादा कार्यकर्ता इस गौरक्षा आंदोलन में शामिल हो गए एक करोड़ से ज्यादा कार्यकर्ता पूरे देश में और इन कार्यकर्ताओं ने जगह-जगह कत्लखाने बंद करवाना शुरू कर दिया और यह कत्लखाने बंद करवाने का काम कैसे किया करते थे अंग्रेजो के कत्लखाने जो चला करते थे उनके सामने जाकर यह लेट जाते थे और जो गाड़ियां पशुओं को भरकर ले जाती थी उनके सामने ये कार्यकर्ता लेट जाते थे और कहते थे कि हमारे ऊपर से ले कर जाओ तब पशुओं का कत्ल होगा हम पहले मरेंगे बाद में यह पशु कटेंगे इतना जबरदस्त आंदोलन था परिणाम यह होने लगा जगह-जगह अंग्रेजों को कत्ल करने के लिए जानवर मिलना बंद हो गए इन 1 करोड़ से ज्यादा कार्यकर्ताओं ने गाँव गांव के किसानों को समझाना शुरू किया कि अंग्रेज तो गाय काटते हैं हम तो गाय पालते हैं हम गाय बेचेंगे नहीं अंग्रेजों को गाय देंगे नहीं अंग्रेजों को तो अंग्रेज काटेंगे कैसे तो इस तरह से यह आंदोलन बड़ा और अंग्रेजों की हालत खराब हो गई जब जगह-जगह कत्लखानों को गाय मिलना बंद हो गई !

अंग्रेज जो गाय के मांस के आदि बन चुक थे और एक दिन भी बिना गाय के मांस के नहीं रह सकते थे ! जिसके चलते अंग्रेजी सेना में विद्रोह की स्थिति आ गई ! ज्ञात हो कि, 1857 के विद्रोह के डर से भारत में ब्रिटिशों ने अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा दी थी जिस कारण गौमांस की खपत भी ज्यादा हो गयी थी और कत्लखानों की संख्या भी बढ़ गयी थी, लेकिन आंदोलन के कारण अब अंग्रेजी सरकार के लिए एक तरफ कुआँ और एक तरफ खाई की स्थिति बन गयी थी ! गौ रक्षा करने करने वाले कार्यकर्ता गाय मिलने नहीं दे रहे थे और अंग्रेजी सैनिक गाय का मांस ना मिले तो बगावत करने को तैयार थे ! यह सब देखते हुए तत्कालीन ब्रिटिश शासकों ने एक युक्ति निकाली जिसके चलते ना ही मात्र गौरक्षा आंदोलन कमजोर होता गया बल्कि गायें कटना फिर उसी तरह जारी हो गया जैसे पहले होता था ! एक बार फिर ब्रिटिशों ने इस मुद्दे पर अपनी वही पुरानी ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपनाई !

उस समय भारत का ब्रिटिश गवर्नर लार्ड लैंसडाउन हुआ करता था ! लैंसडाउन ब्रिटिश राजपरिवार के एक महत्त्वपूर्ण अंग रहे ‘मार्कस ऑफ़ लैंसडाउन’ परिवार से था ! लार्ड लैंसडाउन का दादा ब्रिटेन का प्रधानमंत्री भी हुआ करता था ! यही कारण था कि, लैंसडाउन उन मुख्य ब्रिटिश साजिशकर्ताओं में आता था जो भारत में ब्रिटिश राज कायम रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे ! रानी विक्टोरिया और लैंसडाउन ने पत्र व्यवहार के माध्यम से इस समस्या का हल निकालने के लिए गहरी साजिशें रचीं ! लैंसडाउन ने एक मीटिंग बुलाई ! मीटिंग बुलाकर उसने आदेश दिया कि जितने सरकारी कत्लखाने हैं उनमें मुसलमानों की भर्ती की जाए ! चूँकि गौरक्षा आंदोलन में हिन्दुओं के साथ मुस्लिम भी लगे थे इसलिए सैकड़ों वर्षों से इस काम से परहेज करने वाले मुस्लिम समाज में से कोई भी इस भर्ती के लिए तैयार ही नहीं हुआ !

कुछ भी सूझता दिखाई न देख अंग्रेजों ने कुरैशी समूह के मुसलमानों को प्रताड़ित कर गाय के कत्ल के काम में लगा दिया ! जो इस काम के लिए तैयार नहीं होता था अंग्रेज उन्हें भयानक यातनाएं देते थे ! बहुत ही कम लोग यह जानते होंगे कि, पहले बकरों का मांस काटने वाले लोगों को ‘बकर-कसाब’ कहा जाता था लेकिन कत्लखानों में उनकी भर्ती होने के बाद एवं गाय का मांस काटने के चलते उन्हें ‘कसाई’ कहा जाने लगा ! कसाई आज भले ही मांस काटने संबंधी एक प्रोफेशन का साधारण सा नाम बन गया हो लेकिन पहले यह बेहद ही घृणित शब्द हुआ करता था जिसका प्रयोग निर्दयी लोगों के लिए किया जाता था ! आज भी कई बार निर्दयी लोगों के लिए कसाई का शब्द का प्रयोग किया जाता है ! इसी तरह अंग्रेजों ने बकर-कसाबों को ‘कसाई’ बना डाला !अंग्रेजों के दवाब में आकर कुरेशी समाज के लोग गाय काटते थे परन्तु गौरक्षा के लिए मिलकर आंदोलन कार्य कर रहे हिन्दू मुस्लिमों के बीच अंग्रेज इस बात का जोर-शोर से यह कहकर प्रचार प्रसार करते कि कत्लखानों में गायें काटने का काम मुस्लिम कर रहे हैं ! परन्तु जब इसके बाद भी हिन्दू-मुस्लिमों की एकता इस साजिश के चलते नहीं टूटी अंग्रेजों ने दोनों तरफ से कुछ लोगों को डरा धमकाकर एवं लालच देकर तनाव फ़ैलाने के काम में लगा लिया ! लैंसडाउन ही वह खलनायक था जिसने रानी विक्टोरिया और ब्रिटिश नीतिकारों के साथ मिलकर हिन्दू-मुस्लिमों के बीच तनाव बढाने के लिए साजिशें रचीं थीं !

अंग्रजों के द्वारा मुसलमानों के बीच में प्रचार किया गया कि कुरेशी को बहिष्कार करो क्योंकि यह गाय काट रहे हैं हिंदुओं में प्रचार किया गया कि कुरेशियों को मारो पीटो क्योंकि तुम्हारी गाय काट रहे हैं ! ऐसे काम के लिए लैंसडाउन ने कुछ टीम बना रखी थी ! उस टीम का काम था मस्जिदों के सामने सूअर काटकर फेंकना और मंदिरों के सामने गाय काटकर फेंकना ! यह साजिश अंग्रेजों ने मात्र इसीलिये रचीं कि, हिंदू मुसलमान अलग अलग हो जाएं एवं इस देश की गाय कटती रहे और अंग्रेजों का शासन सुरक्षित रहे ! 1894 से यह नीति बनी और 1897 में इस नीति ने पूरे देश में एक विस्फोट कर दिया ! इस प्रकार अंग्रेजों ने भारत में हिंदू मुसलमान का पहला दंगा 1897 में भड़काया ! इसके बाद तो १९०५ तक यह दंगे इतना भयानक रूप ले चुके थे कि अंग्रेजों ने हिंदू और मुसलमानों के आधार पर देश का विभाजन करने का तय कर लिया और बंगाल राज्य को पूर्वी बंगाल और पश्चिम बंगाल में बांट दिया !

ऐसा नहीं था कि भारतीय अंग्रेजों की इस साजिश को समझे नहीं थे बल्कि हमारे ही समाज के कुछ ऐसे लोग थे जो अंग्रेजों की इस साजिश से भलीं भांति न सिर्फ परिचित थे बल्कि समय समय पर उनके इस कुकृत्य में उनका सहयोग करते बल्कि उनके बचाव की मुद्रा में हमेशा तत्पर रहा करते थे ! आज यह जानकार प्रत्येक भारत वासी का सर शर्म से झुक जाना आवश्यक है कि जिस अंग्रेज अधिकारी लैंसडाउन ने हिंदू और मुसलमानों के बीच विष का बीज बोया उसी लैंसडाउन के नाम से हमारे भारत के उत्तराखंड (पौड़ी गढ़वाल) में एक पूरा शहर बसा हुआ है ! यही नहीं लैंसडाउन के नाम से हमारे देश में कई बाजार, रोड और बिल्डिंगें भी हैं ! भारत धरती का एकमात्र ऐसा अजूबा है जो अबतक गुलामी के दिनों वाले कलंकों को अपने साथ ढो रहा है ! हम हिन्दू मुस्लिम में ऐसे खो चुके हैं कि, हमारे देश में औरंगजेब रोड का नाम बदलवाने के लिए कैंपेन चल सकते हैं लेकिन लैंसडाउन जैसे शैतानों के बारे में लोग रत्ती मात्र भी ज्ञान नहीं रखते ! उसका कारण यही है कि, भारत का इतिहास अंग्रेजों ने लिखवाया था जिसमें सिर्फ और सिर्फ देश को बांटने और देश के लोगों के बीच नफरत को बनाये रखने वाली चीजें ही शामिल की गईं हैं ! भारत में करोड़ों लोगों का कत्लेआम करने के बावजूद भी अंग्रेज बड़ी चालाकी से साफ़ बच निकले !

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें