केरल में भाजपा की जन रक्षा यात्रा - पोपुलर फ्रंट ऑफ़ इण्डिया



अपने जबड़े में चाकू दबाये कुख्यात पोपुलर फ्रंट के नेता, भारत में वही कर रहे हैं जो पकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा ने पाकिस्तान में जमात-उद-दावा की शुरूआत के रूप में की थी ।
पोपुलर फ्रंट की गतिविधियां, विचारधारा और कार्यप्रणाली आईएस से बहुत अलग नहीं हैं। पीएफआई के छुपे हुए एजेंडे को निष्पादित करने देना, भारत के राजनीतिक माहौल, सामाजिक वातावरण और लोकतांत्रिक प्रणाली के कतई हित में नहीं है ।

1977 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में जमात ए इस्लामी हिन्द के छात्र संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूमेंट ऑफ़ इंडिया (SIMI) का गठन हुआ, जिसका घोष वाक्य था "अल्लाह हमारा मालिक है, कुरान हमारा संविधान है, मुहम्मद हमारा नेता है, जिहाद हमारा रास्ता है और शहादत हमारी इच्छा है" और ये ही इस्लाम के भी पांच स्तंभ होने के रूप में माने जाते है। 1980 और 1990 के दशक में हुए अधिकाँश हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक दंगों में इस संगठन का भयावह आतंकवादी और कट्टरपंथी रूप सामने आया । इसने कहना शुरू किया कि धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और राष्ट्रवाद, देश के संविधान के आधारभूत सिद्धांत उनको स्वीकार्य नहीं थे। उनका उद्देश्य खिलाफत के पुनरुत्थान के माध्यम से इस्लामिक वर्चस्व को फिर से स्थापित करना और मुस्लिम उम्मा और जिहाद के लिए आग्रह करना है। अयोध्या विध्वंस के विरोध में सिमी की पुलिस और वीएचपी कार्यकर्ताओं के साथ कई झड़प हुईं |
अमेरिका में 11 सितंबर के हमले के तुरंत बाद, इस संगठन को पहली बार 27 सितंबर, 2001 को प्रतिबंधित कर दिया गया था। दूसरा प्रतिबंध सितंबर, 2003 में लगा । तीसरा प्रतिबंध 2 फरवरी, 2006 को लगाया गया था, जोकि अभी भी जारी है। इस अवधि के दौरान सिमी के सदस्यों पर हिंसा और सांप्रदायिक उपद्रवों के अनेक आरोप लगे, तथा उनमें से ज्यादातर टाडा, मकोका और यूएपीए के तहत थे।
पोपुलर फ्रंट को भी विचारधारा, गतिविधियों और उद्देश्यों के मामले में सिमी के समान ही माना जाता है। एक प्रमुख पीएफआई नेता ने एक टीवी बहस के दौरान स्वीकार भी किया कि उसके नेताओं में से लगभग 20 लोग पूर्व में सिमी से सम्बंधित रहे हैं ! इसे 2006 में नेशनल डवलपमेंट फ्रंट (एनडीएफ), मैथा नीती पासारी, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और कुछ अन्य संगठनों का विलय कर प्रारम्भ किया गया था। इसने अपने आप को एक नव-सामाजिक आंदोलन के रूप में दर्शाया, जो न्याय, स्वतंत्रता और सुरक्षा प्राप्त करने हेतु लोगों के सशक्तिकरण करता है। उनके नेशनल वुमेन फ्रंट के नाम से राष्ट्रीय महिला मोर्चा और कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया के नाम से छात्र संगठन भी हैं ।
केरल में जो अनेक अतिवादी संगठन और माओवादी अपनी गतिविधियाँ संचालित कर रहे हैं, उनके लिए मानवाधिकार की आड़ में पोपुलर फ्रंट एक प्रभावी छलावरण है। यूएपीए शासन काल में पीएफआई ने मुसलमानों को धार्मिक आधार पर आरक्षण दिए जाने हेतु अभियान चलाया और विरोध प्रदर्शन किये। पीएफआई पर विभिन्न इस्लामिक आतंकवादी समूहों के साथ सांठगाँठ कर हथियार तस्करी, अपहरण, हत्या, धमकी, घृणा फ़ैलाने का अभियान, दंगों, लव जिहाद और विभिन्न धार्मिक उग्रवाद आदि के संबंध में विभिन्न समाज और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के आरोप लगते रहे हैं ।
सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) पीएफआई की राजनीतिक शाखा है। वे राजनीतिक मोर्चे पर पीएफआई का बचाव करते हैं, इस हद तक कि जब पीएफआई पुलिस वाहनों को और अनेक भवनों को जलाकर राख कर देती है, तब भी वे उसके बचाव में खड़े होते हैं ।
पी एफ आई के सबसे घृणित अपराधों में से एक है प्रो. टी.जे. जोसेफ का हाथ काटा जाना | कहा गया कि उन्होंने कॉलेज छात्रों के लिए एक विवादास्पद प्रश्न पत्र बनाया, जिससे कथित तौर पर पैगंबर मोहम्मद का अपमान हुआ ।
बामपंथियों पर पोपुलर फ्रंट के साथ मिलीभगत के आरोप लगते रहे हैं | कहा जाता है कि 15 अगस्त, 2006 को एक गुप्त बैठक हुई थी, जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री और अनुभवी सीपीएम नेता वी.एस. अच्युतानंदन के साथ वे लोग भी सम्मिलित हुए जो बैंगलोर और जयपुर में हुए विस्फोट के मामलों में शामिल थे।
केरल में एलडीएफ शासन के दौरान ही एक अन्य चरमपंथी गतिविधि भी हुई, जिसके अंतर्गत दिसंबर 2007 में मून्नार के निकट वाग्मोन में एक गुप्त हथियार प्रशिक्षण शिविर लगा ।
2012 में, कांग्रेस नेतृत्व वाली यूडीएफ सरकार के समय, जब वरिष्ठ कांग्रेस नेता ओमेन चांडी मुख्यमंत्री थे, केरल सरकार ने केरल उच्च न्यायालय के समक्ष एक हलफनामा पेश किया था, जिसमें उल्लेख किया गया था कि पीएफआई की गतिविधियां राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है, और पीएफआई और कुछ नहीं, बल्कि प्रतिबंधित संगठन सिमी का ही बदला हुआ रूप है | इस हलफनामे के द्वारा सरकार ने पीएफआई द्वारा घोषित की गई फ्रीडम परेड पर प्रतिबंध लगाने के सरकार के निर्णय को सही ठहराया था | बाद में उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार द्वारा लगाये प्रतिबंध को बरकरार रखा। जुलाई 2010 में, केरल पुलिस ने पीएफआई के लोगों से देशी बम, हथियार और सीडी का जखीरा पकड़ा था, अल-कायदा की प्रचार सामग्री भी सम्मिलित थी ।
इसी प्रकार अप्रैल 2013 में, केरल पुलिस ने पीएफआई के ठिकानों पर छापे मारकर बड़े पैमाने पर हथियार, विदेशी मुद्रा, मानव शूटिंग लक्ष्य, बम, बम बनाने की सामग्री, बारूद, तलवार आदि जब्त की थी । पीएफआई का वास्तविक स्वरुप तब सामने आया, जब पीएफआई ने राष्ट्रव्यापी फिलिस्तीन – समर्थक मुहीम चलाई, इस अभियान को नाम दिया गया था - "मैं गाज़ा हूँ" ।
केरल में सीपीएम का गढ़ कहे जाने वाले कन्नूर के कनाकमाला में एनआईए द्वारा मारे गए छापे में पीएफआई के खिलाफ गंभीर सबूत मिले हैं । वहां से आठ लोग पकड़े गए, जिन पर आईएस के साथ संबंध होने का संदेह है। इन लोगों पर यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया है। संदिग्धों ने खुलासा किया है कि वे लोग केरल हाई कोर्ट के दो न्यायाधीशों को मारने और कोच्चि में जमात-ए-इस्लामी की एक बैठक आयोजित करने में संलिप्त रहे हैं । एनआईए ने बताया है कि आरोपी सुबहानी हाजी मोईदीन, 2015 में इराक गया था तथा सैन्य प्रशिक्षण लेकर आईएस में शामिल हो गया था ।
फरवरी 2012 में कासारगोड में सैन्य वर्दी में हुए पीएफआई मार्च ने पूरे देश में हलचल मचा दी थी । यह कानून के राज्य का खुला मखौल था । पिछले साल केरल के 21 लोगों द्वारा देश से बाहर जाने और आईएस में शामिल होने में पीएफआई की भूमिका की खबरों ने भी केरलवासियों को अचंभित कर दिया था ।
आरएसएस और आरएसएस-प्रेरित संगठनों द्वारा पीएफआई पर गंभीर आरोप लगाये गए हैं । उनका मानना है कि पीएफआई कार्यकर्ताओं द्वारा ही एबीवीपी कार्यकर्ता विशाल और अश्विनीकुमार तथा थानूर के आरएसएस कार्यकर्ता किलिमनूर सुनीलकुमार और विपिन की हत्या की गई थी ।
हिंदू ऐक्यवादी लीडर आर.वी. बाबू के अनुसार केरल पुलिस के खुफिया प्रमुख बी.एस. मोहम्मद यासीन ने उन्हें बताया था कि विभाग द्वारा संचालित "ऑपरेशन कबूतर" के अंतर्गत आईएस में शामिल होने के लिए तत्पर 350 युवाओं को समझाईस देकर रोका गया । पथानामथिटा सहित लगभग सभी जिलों में इस प्रकार के भर्ती अभियान चलाये जाने की सूचना है, जिनमें सीपीएम की गतिविधियों के सबसे बड़े केंद्र कन्नूर के भी 118 नाम शामिल हैं। मलप्पुरम के 89 और कासारगोड के 66 नाम सामने आये हैं। इन आंकड़ों से गंभीर इस्लामिक आतंकवाद का अपने आप खुलासा हो जाता है, जिससे राज्य पीड़ित है। आरएसएस सरसंघचालक श्री मोहन भागवत के विजयादशमी भाषण में जो कहा गया कि केरल सरकार राष्ट्र-विरोधी बल और हिंसा को समर्थन देती है, वह प्रासंगिक है । केरल के मुख्यमंत्री पिनाराययी विजयन ने भले ही उनकी आलोचना की हो कि वे राज्य की छवि को धूमिल कर रहे हैं, किन्तु सचाई तो सचाई ही है ।
और सचाई यह है कि केरल में बामपंथी एलडीएफ और कांग्रेस नेतृत्व वाला यूडीएफ, दोनों ही कट्टरपंथियों को अधिकतम लाभ प्रदान करने के लिए एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं। इसका स्पष्ट प्रमाण है कि केरल विधान सभा ने कोयंबटूर विस्फोट के आरोपी मदनी की जेल से रिहाई के लिए सर्वसम्मत संकल्प पारित किया । सीपीएम और कांग्रेस दोनों के नेता जेल में मदनी से मिलने जाते थे।
राज्य के लोग भाजपा के आभारी हैं, क्योंकि भाजपा की जन रक्षा यात्रा ने दोनों मोर्चों की हकीकत को उजागर किया है। यात्रा से लाल जिहाद और इस्लामी रूढ़िवाद दोनों भी बेनकाब हुए हैं |
साभार - ओर्गेनाईजर

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें