विकास - पागलपन या जूनून - डाँ नीलम महेंद्र


साहब यह पागलपन नहीं जूनून है !
आलोचना करना आसान है, उदाहरण प्रस्तुत करना मुश्किल।
सोशल मीडिया के इस दौर में आज एक वाक्य काफी चर्चा में है कि “विकास पागल हो गया है।“
विकास की बात बाद में, पहले पागलपन की बात करते हैं।
इस बात से तो हम सभी सहमत होंगे कि दिन में आठ घंटे काम करके कोई महान नहीं बनता और सफल होने के लिए पागलपन की हद तक का जुनून होना चाहिए।
वर्षों पहले आइन्सटीन ने इस पागलपन के जुनून से ही सापेक्षता के सिद्धांत की खोज की थी।
अभी कुछ साल पहले बिहार के माउन्टेन मैन दशरथ माँझी भी इसी पागलपन का शिकार हुए थे जब उन्होंने केवल एक छेनी और हथौड़े से अकेले ही 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काट कर एक सड़क बना डाली।
शायद वो भी पागलपन का एक जुनून ही था जब 2016 में सूखे की भयंकर मार झेल रहे महाराष्ट्र के लातूर में ट्रेन से पानी भेजा गया था।
और गुजरात के समुद्री तट पर रोल आँफ रोल आँन फेरी सेवा भी शायद पागलपन का ताजा उदाहरण ही है जिसमें 360 किमी की दूरी को 31 किमी के दायरे में समेट कर 8 घंटे के सफर को एक घंटे का कर दिया गया है जो कि अब अन्य राज्यों के लिए रोल माँडल बनने जा रही है।
ऐसे पागलपन की फेहरिस्त काफी लम्बी है लेकिन
अब हम आगे बढ़ते हैं और बात करते हैं विकास की।
तो जनाब इसे क्या कहियेगा कि इक्कीसवीं सदी के भारत में 60 सालों से भी अधिक समय तक राज करने वाली पार्टी विकास के नाम पर आज भी बिजली सड़क और पानी जैसे मुद्दों पर ही अटकी है ? वो यह कैसे भूल सकती है कि इस मुद्दे पर आज अगर वो भाजपा की तीन साल पुरानी सरकार पर एक अंगुली उठा रही है तो उसी की तीन अंगुलियाँ खुद उसकी तरफ इशारा करके उसके 60 सालों के शासन का हिसाब भी मांग रही हैं।
जब मोदी 2014 में शौचालय निर्माण और स्वच्छता की बात करते हैं तो आप इसका मजाक उड़ाते हैं लेकिन यह नहीं बता पाते कि 1947 से लेकर 2014 तक हमारा देश इन मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित क्यों रहा?
जब मोदी विकास के नाम पर डिजिटल इंडिया की बात करते हैं तो आप पिछड़ेपन के नाम पर बेसिक इन्फ्रास्टक्चर की कमियाँ गिनाने लगते हैं लेकिन इस सवाल का जवाब नहीं दे पाते कि इस इन्फ्रास्टक्चर को आप क्यों खड़ा नहीं कर पाए जबकि कम्प्यूटर इंटरनेट और मोबाइल जैसी सुविधाएँ तो आपके शासन काल में भी थीं?
आज मोदी न्यू इंडिया की बात करते हैं लेकिन आप 'इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा की सोच से आगे बढ़ ही नहीं पाए।
पागलपन की बात करें तो आप उस विकास को पागल कह रहे हैं जिसने 2001 में भूकंप से होने वाली भारी तबाही के बावजूद गुजरात को 'इंडिया का ग्रोथ इंजन ' बना दिया।
इस सब के बावजूद जब कुछ लोग गुजरात मॉडल पर अंगुली उठाते हैं तो एक सवाल उनसे कि क्या उनके पास इससे बेहतर कोई हिमाचल प्रदेश मॉडल, कर्नाटक मॉडल है या फिर निकट भविष्य में क्या वे कोई पंजाब मॉडल दे पाएंगे?
अब गुजरात मॉडल पर सवाल उठाने वालों के लिए कुछ 'तथ्य'।
पूरे देश में जहाँ बिजली सड़क और पानी आज भी चुनावी मुद्दे हैं, वहाँ गुजरात के गांव गांव में चौबीस घंटे बिजली पानी की आपूर्ति के साथ साथ सड़कें भी मौजूद हैं।
2002 तक जो गुजरात बिजली की कमी से लड़ रहा था आज बिजली के क्षेत्र में सरप्लस में है।
2012 में नैशनल ग्रिड के फेल हो जाने पर जब देश के 19 राज्य दो दिन तक अंधेरे में डूबे थे तब गुजरात न केवल अपनी खुद की रोशनी से जगमगा रहा था, बल्कि गाँवों में शत प्रतिशत बिजली की आपूर्ति करने वाला देश का पहला राज्य बनने की ओर बढ़ रहा था।
कृषि के क्षेत्र में गुजरात के विकास दर की अगर बात करें तो 2001-2011.के बीच यह 11.2% थी जबकि पूरे देश की कृषि विकास दर 2002 - 2007 के बीच 2.13% थी और 2007 -2012 के दर्मियान 3.44% थी। वह भी तब जब गुजरात का 70% इलाका सूखाग्रस्त है, राज्य की एकमात्र साबरमति नदी भी 1999 में सूख गई थी और वर्षा के मामले में गुजरात कोई चेरापुंजी नहीं है यह हम सभी जानते हैं। मप्र से नर्मदा का पानी गुजरात में लाकर उसे खुशहाल करना पागलपन नहीं है तो क्या है?
चिकित्सा सेवा के क्षेत्र में अहमदाबाद का सिटी अस्पताल एशिया का सबसे बड़ा अस्पताल है।
टूरिज्म के क्षेत्र में गुजरात के पास कोई ताजमहल, बर्फ से ढके पहाड़, खूबसूरत झीलें या झरने नहीं हैं अगर कुछ है तो गिर के शेर या फिर कच्छ का रन उसके बावजूद गुजरात का पर्यटन में 4% की विकास दर को लाना जो कि पूरे देश के पर्यटन के विकास दर का दुगना है, इस पागलपन के बारे में अपने आप में बहुत कुछ कहता है।
गुजरात में स्थित जामनगर रिफाइनरी विश्व की सबसे बड़ी रिफाइनरी है।
महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से यह मुम्बई से भी बेहतर है और 2002 के बाद गुजरात से एक भी दंगे की खबर नहीं आई है।
व्यापार के क्षेत्र में गुजरात में कोई मुम्बई (भारत की आर्थिक राजधानी), चेन्नई(देश की हेल्थ कैपिटल) , बैंगलोर (देश का आईटी हब) या फिर कोलकाता जैसा शहर नहीं है जो अपने कंधे पर पूरे राज्य की अर्थव्यवस्था को तार दे उसके बावजूद आज गुजरात से देश ही नहीं विश्व के मानचित्र पर सूरत और अहमदाबाद जैसे शहर देना शायद पागलपन की पराकाष्ठा है।
गुजरात के विकास में मोदी ने प्राकृतिक संसाधनों की कमी को आड़े आने नहीं दिया बल्कि वाइब्रेन्ट गुजरात के कन्सेप्ट से औद्योगीकरण को बढ़ावा देकर न सिर्फ रोजगार के अवसर पैदा किए बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था को भी गति प्रदान की।
और पागलपन की सबसे बड़ी बात तो यह है कि जब पूरा देश भ्रष्टाचार से लाचार था और यूटीआई, सटैम्प पेपर, ताज कारिडोर, सत्यम, खाद्यान्न, आदर्श, 2 जी स्पेक्ट्रम, कामनवेल्थ जैसे घोटालों के बोझ तले विकास का दम घुट रहा था, तब गुजरात तरक्की के नए सोपान चढ़ता जा रहा था।
यह पागलपन नहीं तो और क्या है कि अब तक के अपने शासन काल में चाहे गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में हो या फिर देश के प्रधानमंत्री के रूप में, उनपर या फिर उनकी सरकार पर आज तक भ्रष्टाचार का एक भी मामला सामने नहीं आया है।
उनके शासन काल में पहले गुजरात और अब पूरा देश अगर किसी चीज़ में पीछे है तो वो है भ्रष्टाचार और घोटाले जिसकी वजह से कुछ 'खास लोगों का विकास' रुक गया है शायद इसीलिए वे कह रहे हैं कि विकास पागल हो गया है।
अफसोस इस बात का है कि वे इस देश के दिल की आवाज को नहीं सुन पा रहे हैं जो चीख चीख कर कह रहा है कि अगर यह पागलपन है तो अच्छा है और अगर विकास पागल हो गया है तो उसे पागल ही रहने दो, क्योंकि देश की सेहत के लिए यह पागलपन लाभदायक है ।

साभार - पंजाब केसरी 
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