जब एक विधेयक को पास करा कर कांग्रेस कराना चाहती थी हिन्दुओं का कत्ले आम - दिवाकर शर्मा









आज जबकि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी गुजरात में मंदिर मंदिर मत्था टेकते घूम रहे हैं, और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह पैयां पैयां नर्मदा परिक्रमा का ढोंग कर रहे हैं, सीधे शब्दों में कहें तो स्वयं को हिंदुत्व का पुरोधा घोषित करने का प्रयास कर रहे हैं, तब कुछ सवाल जहन में उठना स्वाभाविक है |

क्या यह तथ्य भुलाया जा सकता है कि वर्ष २०१३ में कांग्रेस अपने आखिरी सत्र के दौरान एक ऐसा विधेयक पास कराना चाहती थी जो साम्प्रदायिक दंगों को रोकने की आड़ में पूरी तरह से हिन्दू विरोधी था ! 

क्या साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक बदनीयती पूर्ण नहीं था, तथा उस प्रस्तावित विधेयक में हिन्दुओं के प्रति घृणा परिलक्षित नहीं हो रही थी ?

क्या उक्त अधिनयम का प्रारूप संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्षा सोनिया गाँधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् के द्वारा तैयार नहीं किया गया था ? 

क्या उक्त विधेयक में महिलाओं पर होने वाले बलात्कार की सजा में भी भेदभाव प्रस्तावित नहीं था ? मसलन दंगों के दौरान किसी हिन्दू द्वारा मुस्लिम महिला पर बलात्कार की सख्त सजा, जबकि किसी मुस्लिम द्वारा हिन्दू महिला के साथ बलात्कार सामान्य अपराध की श्रेणी में ! 

इस अधिनियम की सबसे अधिक विवादस्पद बात ये थी कि इस विधेयक में यह बात पहले से ही मान ली गयी कि हिंसक केवल बहुसंख्यक होते हैं, अल्पसंख्यक नहीं ! 

जरा सोचिये यदि वह विधेयक पास हो जाता तो क्या होता ?

इस विधेयक को सर्वप्रथम मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार ने 2005 में लागू करने का प्रयास किया था परन्तु भारी विरोध को देखते हुए सरकार ने इसे वापस ले लिया था ! 2011 में पुनः सरकार इस विधेयक को कुछ संशोधनों के साथ प्रस्तुत किया ! इस विधेयक में इस बात पर जोर दिया गया था कि यदि कोई सांप्रदायिक हिंसा मुस्लिमों और अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजातियों के मध्य होती है तो उस स्थिति में यह विधेयक मुस्लिमों का साथ देगा और इस प्रकार दलितों की रक्षा के लिए बना हुआ दलित एक्ट भी अप्रभावी हो जाएगा ! 

इस विधेयक के अनुसार यदि दंगों के समय अल्पसंख्यक समुदाय के लोग बहुसंख्यक समुदाय की महिलाओं के साथ बलात्कार जैसा घिनौना कृत्य भी कारित कर दें तब भी अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को अपराधी नहीं माना जाएगा ! अगर अल्पसंख्यक समुदाय बहुल इलाके में बहुसंख्यक समुदाय पर अत्याचार हो और जिसकी वजह से दंगा हो तो भी बहुसंख्यक समुदाय को ही अपराधी माना जाए और उस पर कार्यवाही हो ! 

यह थे साम्प्रदायिक हिंसा विधेयक के मुख्य बिंदु

1. क़ानून व्यवस्था का मामला राज्य सरकार का है, परन्तु इस विधेयक के अनुसार यदि केंद्र सरकार चाहे तो साम्प्रदायिक दंगों की तीव्रता के अनुसार राज्य सरकार के कार्य में हस्तक्षेप कर सकती है एवं उसे बर्खास्त कर सकती है ! अर्थात यदि कुछ लोग मिलकर एक सुनियोजित तरीके स किसी राज्य में साम्प्रदायिक दंगा फैला दें तो राज्य सरकार को बर्खास्त करना आसान होगा ! 

2. इस विधेयक के अनुसार दंगा हमेशा “बहुसंख्यकों” के द्वारा ही करवाया जाता है एवं “अल्पसंख्यक” हमेशा हिंसा का शिकार बनते है ! 

3. यदि दंगों के दौरान किसी “अल्पसंख्यक” महिला से बलात्कार होता है तो इस विधेयक में आरोपियों की सजा के लिए कड़े प्रावधान थे परन्तु “बहुसंख्यक” वर्ग की महिलाओं का बलात्कार होने की दशा में आरोपियों की सजा हेतु कोई भी प्रावधान नहीं था ! 

4. इस विधेयक के अनुसार किसी विशेष समुदाय (बहुसंख्यकों) के विरुद्ध सोशल मीडिया (फेसबुक, ट्वीटर, ब्लॉग और व्हाट्सएप्प) के माध्यम से “घृणा अभियान” चलाना भी दंडनीय अपराध है ! खंड 8 में यह निर्धारित किया गया कि 'घृणा संबंधी प्रचार’ उन हालात में अपराध माना जायेगा जब कोई व्यक्ति मौखिक तौर पर या लिखित तौर पर या स्पष्टतया अम्यावेदन करके किसी समूह से संबंध रखने वाले व्यक्ति के विरूद्ध घृणा फैलाता है ! पुनश्च समूह द्वारा बहुसंख्यकों के विरुद्ध घृणा फैलाने की स्थिति में यह विधेयक मौन है ! विधेयक का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है 'समूह की परिभाषा ! समूह से तात्पर्य पंथिक या भाषायी अल्पसंख्यकों से है ! पूरे विधेयक में सबसे ज्यादा आपत्ति इसी बिंदु पर है कि इसमें बहुसंख्यक समुदाय को समूह की भाषा से बाहर रखा गया !

5. इस विधेयक के अनुसार “अल्पसंख्यक समुदाय” के किसी सदस्य को इस क़ानून के तहत सजा नहीं दी जा सकती भले ही उसने बहुसंख्यक समुदाय के व्यक्ति के विरुद्ध दंगा अपराध किया हो, क्यूंकि ऐसा पहले ही मान लिया गया कि सिर्फ “बहुसंख्यक समुदाय” ही हिंसक व आक्रामक होता है, जबकि “अल्पसंख्यक” तो अपनी आत्मरक्षा करते है ! 

इस साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक का मसौदा तैयार करने वाले लोगों के नाम पढ़कर ही आप समझ सकते है कि इस विधेयक को किस लक्ष्य हेतु तैयार किया गया था ! इस अधिनियम का प्रारूप सोनिया गाँधी के नेतृत्व वाली २२ सदस्यों वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् ने किया था ! इस विधेयक के प्रारूप के बनाने वाली समिति के सदस्यों में गोपाल सुब्रमनियम, मजा दारूवाला, नजमी वजीरी, पी.आई. जोसे, प्रसाद सिरिवेल्ला, तीस्ता सीताल्वाडा, उषा रामनाथन (२० फरवरी २०११ तक), वृंदा ग्रोवर (२० फरवरी २०११तक), फराह नकवी, हर्ष मंदर शामिल थे, जबकि सलाहकार समिति के सदस्यों के रूप में बुसलेह शरफ, असगर अली इंजिनियर, गगन सेठी, एच.एस. फुल्का, जॉन दयाल, न्यायमूर्ति होस्बेत सुरेश, कमाल फारुकी, मंज़ूर आलम, मौलाना निअज़ फारुकी, राम पुनियानी, रूपरेखा वर्मा, समर सिंह, सौम्य उमा, शबनम हाश्मी, मारी स्कारिया, सुखदो थोरात, सैयद शहाबुद्दीन, उमा चक्रवर्ती, उपेन्द्र बक्सी जैसे सेक्युलर जमात के नाम शामिल थे जो केवल यह सिद्ध करना चाहते थे कि “बहुसंख्यक समाज” ही हमलावर एवं बलात्कारी होता है !

इस विधेयक को ठीक लोकसभा चुनाव से पूर्व संसद में पास करा कर मुस्लिम वोटरों को लुभाना एक मात्र उद्धेश्य था ! उस समय इस विधेयक के विरोध में जनता पार्टी के अध्यक्ष डॉ॰ सुब्रमनियम स्वामी ने दिल्ली पुलिस में २४ अक्टूबर २०११ को एक प्रथिमिकी दर्ज करवाई ! जिसमे सोनिया गाँधी एवं राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् के विरुद्ध आरोप लगाया गया था कि सांप्रदायिक और लक्ष्यित हिंसा निवारण विधेयक बनाकर भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को क्षति पहुचाने का प्रयास किया जा रहा है तथा हिन्दुओं और मुस्लिमों में मध्य सांप्रदायिक सौहार्द को समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है ! दिल्ली में हुई मुख्यमंत्रियों की बैठक में अधिकांश गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने इस विधेयक का यह कह कर विरोध किया था कि इसका राजनैतिक दुरूपयोग हो सकता है जिसकी पूरी पूरी संभावना भी थी !

जहाँ एक और इस विधेयक के विरोध में भाजपा एवं कुछ दल खड़े हुए थे वहीँ इसी विधेयक के समर्थन में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी सहित अनेकों मुस्लिम वोटों की भूखी पार्टियां खडी नजर आयीं ! आप स्वयं सोचिये कि ऐसी पार्टियां वोट बैंक की राजनीति के लिए किस हद तक जा सकती है ! एक ओर तो ऐसी पार्टियां गंगा-जमुनी तहजीब की बात करती है वहीँ दूसरी ओर हिन्दुओं को कमजोर करने की कोई कसर भी नहीं छोडती ! आपको कांग्रेस कार्यकाल के दौरान वर्ष १९९० में काश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार तो याद होंगे ही, जिसमे करीब 5 लाख से अधिक हिन्दुओं को काश्मीर से निकाल दिया गया था ! हिन्दुओं पर इस समय हुए अत्याचारों का वर्णन करते हुए आँखों से अश्रुधारा बहने लगती है ! हजारों हिन्दू महिलाओं का बलात्कार किया गया, न जाने कितने हिन्दुओं का कत्लेआम किया गया, नवजात शिशुओं को भी इन दरिंदों ने नहीं छोड़ा और अमानवीयता की सभी हदों को पार कर दिया गया ! ऐसे हैवानों को दंड देना तो दूर एक केस तक दर्ज नहीं हुआ ! इसी कृत्य को सम्पूर्ण भारत में दोहराने के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार कानूनी रूप से इस विधयक को पास कराना चाहती थी !

इस विधेयक के माध्यम से कांग्रेस यह सन्देश देना चाहती थी कि बहुसंख्यक समाज हिंसा करता है और अल्पसंख्यक समाज इसका शिकार होता है, जबकि भारत का इतिहास कुछ और ही कहानी कहता है ! इतिहास साक्षी है कि हिन्दुओं ने कभी गैर हिन्दुओं को नहीं सताया, सदैव उन्हें संरक्षण ही दिया है ! हिन्दुओं ने कभी हिंसा नहीं की बल्कि वह खुद हमेशा हिंसा का शिकार हुआ है ! यदि उस समय यह विधेयक पास जो जाता तो इस देश में अफजल गुरु जैसे आतंकी की फांसी की मांग करना, बांग्लादेशी घुसपैठियों के निष्कासन की मांग करना, धर्मांतरण पर रोक लगाने की मांग करना एवं वर्तमान में अवैध रूप से भारत में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों को देश से बाहर निकालने की मांग करना भी अपराध हो जाता !

अब निर्णय हमें और आपको करना है कि कांग्रेस को क्या समझें ?
हिन्दू हितैषी या हिन्दू द्रोही ?






दिवाकर शर्मा
krantidooot@gmail.com
8109449187


एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें