राहुल गाँधी को सलाम - कमसेकम सचाई को स्वीकार तो किया कि नहीं हूँ मैं हिन्दू - संजय तिवारी



नेहरू गांधी खानदान की उत्पत्ति और उनकी बिरादरी को लेकर बहुत कुछ लिखा जाता रहा है, उस पर हमेशा रहस्य का कुहासा छाया रहा है। श्रीमती सोनिया गाँधी के कैथोलिक ईसाई होने को लेकर भी चर्चाओं का बाजार गर्म रहा है । डॉ. सुभ्रमण्यम स्वामी तो शुरू से कहते रहे हैं कि राजीव जी ने कैथोलिक बन कर ही सोनिया से विवाह किया था। राहुल और प्रियंका का वास्तविक नाम राउल विन्ची और बियांका विन्ची है। 

जहाँ तक जवाहर लाल नेहरू जी का प्रश्न है, देश में आम तौर पर लोग उन्हें ब्राह्मण मानकर ही इज्जत देते रहे हैं। इंदिरा गांधी को भी उसी वजह से सम्मान मिलता रहा। लेकिन आज गुजरात के सोमनाथ मंदिर में राहुल गाँधी ने जो सच्चाई देश के सामने रखी उसके लिए मैं राहुल की ईमानदारी को प्रणाम करता हूँ। ईश्वर के घर में वह न तो कोई बहाना बना सके , न ही झूठ लिख सके। वह चाहते तो खुद को हिन्दू घोषित कर उस रजिस्टर पर हस्ताक्षर कर सकते थे जो हिन्दू समुदाय के लिए रखा है। उन्होंने ईमानदारी से गैर हिन्दू वाला रजिस्टर लिया और उस पर हस्ताक्षर भी किया। यह काम उन्होंने अहमद पटेल के साथ किया। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि भूल से यह हो गया। यह तो राहुल की ईमानदारी है जो उन्होंने देश को बता दिया।

लेकिन इसके साथ ही अब यहाँ यह प्रश्न खड़ा होना स्वाभाविक है कि यदि वे हिन्दू नहीं हैं तो फिर किस पंथ से राहुल जी का सम्बन्ध है ? 

हालांकि सोनिया के पति राजीव जी के बारे में आप सभी सोचते होंगे, कि आप सब कुछ जानते हैं, परंतु फिर भी मैं राजीव जी के जीवन पर कुछ प्रकाश डालना चाहूँगा। उम्मीद है कि, कि इससे आपको कुछ नयी जानकारी अवश्य प्राप्त होगी। राजीव के पितामह नवाब खान जूनागढ़ गुजरात के रहने वाले थे तथा इलाहाबाद में शराब का धंधा किया करते थे। राजीव गाँधी के पिता का नाम फिरोज खान था जो कि आनंद भवन में शराब सप्लार्इ किया करते थे। 

कुछ लेखकों का कहना है कि इंदिरा गाँधी ने फिरोज खान से निकाह करने के पहले इस्लाम धर्म गृहण कर लिया था परंतु महात्मा गाँधी के दवाब में फिरोज खान का सरनेम बदलकर गाँधी कर दिया गया तथा बाद में उनका वैदिक विवाह कराया गया। यह शत-प्रतिशत सत्य है कि, राजीव के पिता इस्लाम धर्म को मानने वाले थे। यह अलग बात है कि उनकी मृत्यु के बाद उन्हे दफनाने की जगह उनका दाह-संस्कार किया गया। दाह-संस्कार के पीछे प्रमुख कारण, इस देश की हिंदू बहूल आबादी को इस बात का एहसास कराना था कि, फिरोज खान मुस्लिम नही थे। 

धर्म निरपेक्षता का ढिंडोरा पीटने वाला नेहरु-गाँधी खानदान इस बात से सदैव डरता रहा कि कहीं उनकी सच्चार्इ आम जनता को पता न चल जाए। (यहां मुसिलम भार्इयों को गौर फरमाना चाहिए कि हिन्दुओं को खुश करने के लिए नेहरु-गाँधी खानदान के लोग किसी भी हद तक जा सकते हैं, यहां तक कि एक मुस्लिम का मरने के बाद दाह-संस्कार भी कर सकते हैं।) 

इसके बाद हद तो तब हो गयी जब राजीव गाँधी ने लंदन में प्रेस को संबोधित करते हुए कहा कि वे पारसी धर्म को मानने वाले हैं। जिसके माता-पिता-दादा तीनो पारसी न हों वह पारसी कैसे हो सकता है? राजीव गाँधी के पुत्र राहुल गाँधी ने आज साफ़ कर दिया कि वह हिन्दू तो नहीं है। बाकी आप खुद समझिये।

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