उड़ गई पंख पसार - भोजपुरी की मैना - संजय तिवारी



वह भोजपुरी की मैना ही थीं। हमेशा गाती हुई , गुनगुनाती हुई , कुछ रचती हुई , कुछ बसती हुई। उन्होंने भोजपुरी की लोकपरंपरा को गीतों में पिरोने का काम किया। लोकपरंपरा में भारतीय सामजिक परिवेश में रहन-सहन, जीवन-मरण से लेकर हर परिवेश को उन्होने बड़ी ही कुशलता से अपनी रचनाओं में भी उकेरा है। वह जीतनी अच्छी कवियत्री और लेखिका थी, उससे भी मधुर उनका स्वर था ।प्रारम्भ में मैनावती जी ने म्यूजिक कंपोजर के रूप में आकाशवाणी में काम किया। गोरखपुर में जब दूरदर्शन का क्षेत्रीय प्रसारण शुरू हुआ तब भी पहला स्वर मैनावती जी का ही था। हिंदी के मंचो पर वह हमेशा भोजपुरी की सशक्त प्रतिनिधि बन कर उपस्थित रहती थीं। यह दीगर बात है कि उन्हें कोई पद्म सम्मान इसलिए नहीं मिला क्योकि उनका मूल्यांकन इस रूप में करने वाला कोई नहीं था लेकिन मुझे यह लिखने में कोई संकोच नहीं है कि शारदा सिन्हा जी के बाद यदि किसी स्वर ने भोजपुरी को समृद्ध किया तो वह मैनावती देवी का ही स्वर था। 

यहाँ बरबस याद उन क्षणों की आती है जब गोरखपुर का साहित्य जगत बहुत समृद्ध हुआ करता था। उन दिनों यहाँ बहुत कविसम्मेलन हुआ करते थे। अखिल भारतीय स्वरुप के इन आयोजनों में मैनावती देवी का स्वर हर कही उपस्थित होता था। माधव मधुकर की परंपरा से लेकर राजेश राज तक की काव्य यात्रा में मैनावती देवी सशक्त सम्बल के रूप में उपस्थित थीं। मैंने स्वयं उनकी उपस्थिति में कई बार कई मंचो पर कविता पढ़ा है और उनका आशीर्वाद भी पाया है। उनकी एक कविता यहाँ उद्धृत काने का मन हो रहा है -

जहाँ मेढ़िये खेतवा चरि जाला
का करिहें भइया रखवाला।

जहाँ नदिये पानी पी जाई,
जहाँ फेड़वे फलवा खा जाई,
जहवाँ माली गजरा पहिरे
ऊ फूल के बाग उजरि जाला। 

जहाँ गगन पिये बरखा पानी,
धरती निगले सोना-चानी,
जहवाँ भाई-भाई झगड़े
उहवें सब बात बिगड़ि जाला। 

जहाँ मेढ़िये खेतवा चरि जाला
का करिहें भइया रखवाला।

लोकगीतोंसे सामाजिक जीवन को मानव पटल पर उतारने वाली लोकगायिका मैनावती देवी श्रीवास्तव का जन्म बिहार के सिवान जिले के पचरूखी में एक मई 1940 को हुआ था । उन्होनें अपनी कर्मभूमि गोरखपुर को बनाया। मैनावती जी ने लोकगायन की शुरूआत गोरखपुर से सन् 1974 में आकाशवाणी गोरखपुरकी शुरूआत के साथ की। आकाशवाणी गोरखपुर की शुरूआत मैनावती देवी श्रीवास्तव केगीतों से ही हुई। उनके गीतों के बाद से ही भोजपुरी संस्कृति को एक अलग पहचान मिली। उन्होने लोक गीतों के संरक्षण ,संवर्धन एंव प्रचार प्रसार पर काफी काम किया। उन्होंनेलोकपरंपरा के संस्कार गीतों को पिरोने का काम बा-खूबी किया। लोकपरंपरा में भारतीय सामाजिक परिवेश में रहन-सहन, जीवन-मरणसे लेकर हर परिवेश को उन्होने बड़ी ही कुशलता से अपनी रचनाओं में भी उकेरा है। वह कवियत्री और लेखिका भी थी। उन्होंने प्रयाग संगीत समिति से संगीत प्रभाकर की डिग्री ली थी। उनकी विरासत को इनके पुत्र राकेश श्रीवास्तवभी आज देश दुनिया में बढ़ा रहे है।
श्रीमती मैनावती देवी की प्रकाशित पुस्तको में 1977 में गांव के दो गीत(भोजपुरी गीत), श्री सरस्वतीचालीसा, श्रीचित्रगुप्त चालीसा, पपिहा सेवाती(भोजपुरी गीत), पुरखनके थाती(भोजपुरी पारंपरिक गीत), तथा अप्रकाशित पुस्तकों में कचरस(भोजपुरीगीत),याद करे तेरी मैना(इछहदी गीत), चोर के दाढ़ी में तिनका (कविता)औरबे घरनी घर भूत के डेरा(कहानी) जैसी रचनाएँ रही हैं । सन् 1974 सेलोकगायन की शुरूआत करने वाली मैनावती देवी को पहला सम्मान सन् 1981 मेंलोक कलाकार भिखारी ठाकुर के 94वें जन्मदिवस के अवसर परबिहारमें “भोजपुरी लोक साधिका” का सम्मान मिला। उसके बाद सन् 1994 मेंअखिल भारतीय भोजपुरी परिषद लखनऊ द्वारा “भोजपुरी शिरोमणि” का सम्मानठुमरी गायिका गिरजा देवी के हाथों प्राप्त किया था। इसके बाद उन्हे अनेकों सम्मानप्राप्त किया उनमें भोजपुरी रत्न सम्मान, 2001 में भोजपूरी भूषण सम्मान , 2005 में नवरत्न सम्मान, 2006 में 2012 मेंलोकनायकभिखारी ठाकुर सम्मान, लाइफ टाइम एचिवमेन्ट अवार्डतथा गोरखपुर गौरव जैसे सम्मान से नवाजा गया। उन्हे कोई राजकीय सम्मान नहीं मिलाफिर भी भोजपुरी की सेवा में रात दिन अंतिम सांस तक लगी रही।
आज जब वह सदेह गोरखपुर में उपस्थित नहीं हैं तो यह इस शहर और खास कर भोजपुरी को बहुत कचोटने वाली घडी है। जिस रचनाधर्मिता के साथ उन्होंने भोजपुरी को स्थापित किया है वह अपने आप में विलक्षण है। इस रचनाकार के बिना भोजपुरी और गोरखपुर के रचनासंसार का इतिहास पूरा नहीं हो सकता। ऐसी मैना को सादर श्रद्धांजलि।

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