पर्यावरण सुरक्षा हेतु अनूठा सुझाव - पराली से बनाये जाएँ पैकिंग लिफ़ाफ़े - डॉ. विक्रम शर्मा



आज पूरा देश पर्यावरण की गंभीर समस्या से जूझ रहा है,कंही पराली के जलाने से उत्पन्न धुंआ तो कंही पॉलीथीन जैसे घातक प्लास्टिक मटेरियल से बने लिफाफों के कारण फैला कचरा... पोलीथिन खाकर असमय मरता, घटता गौवंश !

सोचा जाए आखिर इन दिखने में छोटी परन्तु गंभीर समस्याओं का तुरन्त क्या हल है जिससे आज इनसे उत्पन्न हो रही जघन्य बीमारियों से निपटा जा सके। विज्ञान के रसायन शास्त्र का शोध विद्यार्थी होने के नाते बहुत चिंतित होकर मैं सोचता रहा ! सोच रहा था कि क्या किया जाए जिससे आगामी पीढ़ी को आज जैसी पर्यावरण की समस्याओं का सामना न करना पड़े | मन विचलित था, अव्यवस्थित था, परन्तु निरन्तर विचार प्रवाह सकारात्मक शोध की दिशा में जा रहा था....

मैं सोच रहा था कि हमारे किसान, जिन्हें अन्नदाता के नाम से हम पुकारते हैं, उन्हें जय किसान से भी संबोधित करते हैं, परन्तु आज हमारा कृषक किन किन समस्याओं से जूझ रहा है, यह कोई नहीं देख समझ रहा | राजनेता महज किसानों से हमदर्दी दिखाकर, मात्र वोट बैंक की राजनीति में मशगूल है | क्योंकि उन्हें किसान के दर्द से कोई वास्ता नहीं हैं, वास्ता है केवल और केवल उसके वोट से | किसान को आत्मनिर्भर बनाने के स्थान पर, उसकी गरीबी और मजबूरी का फायदा उठाकर, उसे सब्सिडी की खैरात बंटाना नेताओं को ज्यादा मुफीद प्रतीत होता है | उसके वोट कबाडकर अपनी झोली में डालने का यह नुस्खा ज्यादा आसान जो है...

किसान अपने ही खेत में मजदूर बनता जा रहा है, जबकि सरकारी महकमे उनके नाम पर स्कीमें चला कर अच्छी खासी कमाई करके धनाढ्य बनते जा रहे हैं | दलाल किसान की कमाई को दीमक की तरह चट किये जा रहे हैं, परन्तु किसान का परिवार हर दिन एक अच्छे समय की आस में खेतों में मजदूरी करके पूरे देश ही नहीं अपितु पूरे विश्व का पेट पालता जा रहा है। 

जरा ध्यान पूर्वक योजना बनाई जाए, तो पर्यावरण सुरक्षा और कृषक हित एक साथ जोड़े जा सकते हैं | उदहारण के लिए ऊपर उल्लेखित पॉलिथीन से पर्यावरण को निजात व पराली से कणिक वायु प्रदूषण को बचाने पर ही ध्यान केन्द्रित करें ।

पराली या जिसे अंग्रेजी में stubble भी कहते है, एक ऐसा गंभीर धान खेती वेस्ट है जो आज एक बहुत ही बड़ी गंभीर समस्या उत्तपन्न किये हुए है जिससे किसान भी परेशान है और सरकार भी..

आखिर इसका स्थाई हल क्या है..

इसके लिए हमें क्या शोध करना पड़ेगा कि हम इसे सही तरीके से ठिकाने लगा सकें..

पराली एक bio-waste है जिसमे पोलीसैकराइड्स ,कॉम्लेक्स कार्बन पॉलीमर्स व हाई स्ट्रेंथ पोलीफाइबर्स पाए जाते हैं जो बायो-डिग्रेडेबल पैकेजिंग मेटेरियल बनाने के लिए एक अति उत्तम विकल्प के तौर पर प्रयोग किये जा सकते हैं। Stubble या धान के पराली से बना पैकिंग लिफाफा एक तरफ अन्य सिंथेटिक पोली-फाइबर्स मैटेरियल्स से ज्यादा मजबूत होगा साथ ही तुरन्त बायो-डिग्रेडेबल भी होगा जो पॉलीथीन बैग्स से पर्यावरण को हो रही हानि से तुरंत निजात दिलाएगा। दूसरी तरफ अगर भारत सरकार व CSIR व ICAR इस विषय पर अन्य शोध संस्थानों के साथ मिलकर प्रारम्भिक शोध करे तो जल्द ही दोनों समस्याओं से निजात पाई जा सकती है जो आज के समय मे पर्यावरण संरक्षण में एहम बाधा उत्पन्न कर रहे हैं।

है न आम के आम गुठली के दाम ? किसान को पराली बेचने से आय होगी, तो वह जलाएगा क्यों ? बल्कि उसे प्रेरित किया जाये तो गाँव गाँव में पराली से बैग बनाने के ग्रामोद्योग भी प्रारम्भ हो सकते है | एक नया रोजगार ग्रामीण युवाओं को मिल सकता है |

यह स्वागत योग्य है कि ऊर्जा मंत्रालय ने पराली से बिजली बनाने के लिए, किसान से पराली खरीदने की पहल की है |

(लेखक 

Ministry of Commerce and Industry में निदेशक तथा पूर्व वैज्ञनिक शोध कर्ता हैं )


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