टूटन की कगार पर कांग्रेस !


क्या आपने कांग्रेस के इतिहास पर गौर किया है ? जब जब अध्यक्ष बदला तब तब कांग्रेस में टूटन हुई | सोनिया गांधी 1998 में अध्यक्ष बनी थीं तो कांग्रेस टूटी थी। शरद पवार, तारिक अनवर और पीए संगमा ने अलग होकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बनाई थी। उससे पहले सीताराम केसरी अध्यक्ष बने थे तब भी पार्टी टूटी थी और ममता बनर्जी ने अलग होकर तृणमूल कांग्रेस बनाई थी। उससे भी पहले पीवी नरसिंह के राव के अध्यक्ष बनने के बाद भी पार्टी टूटी थी और नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में अर्जुन सिंह, माधव राव सिंधिया आदि नेताओं ने कांग्रेस तिवारी बनाई थी। उसी समय जीके मूपनार ने अलग होकर तमिल मनीला कांग्रेस बनाई थी। यह सिलसिला और पीछे तक जाता है। इंदिरा गांधी ने ब्रह्मानंद रेड्डी को अध्यक्ष बनवाया था, तब भी पार्टी टूटी थी और खुद इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री बनी थीं, तब भी कांग्रेस का विभाजन हुआ था। 

तो लाख टके का सवाल है कि अब जबकि तय हो गया है कि दिसंबर के पहले हफ्ते में राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बन जाएंगे, तो क्या एक बार फिर इतिहास दोहराया जायेगा ? सोनिया गांधी का कार्यकाल 2015 में समाप्त हो गया था, उसके तुरंत बाद उनकी ताजपोशी हो जाना चाहिए थी, किन्तु ऐसा हो नहीं पाया | घोषित तौर पर तो कारण बताया गया कि वे स्वयं तैयार नहीं हुए | किन्तु क्या यह वास्तविकता है ? उस समय तक उपाध्यक्ष के रूप में वे दो साल तक काम भी कर चुके थे।

सचाई तो यह है कि विगत वर्षों में जितने चुटकुले कांग्रेस के इन भावी अध्यक्ष महोदय को लेकर बने हैं, उतने किसी राजनेता को लेकर नहीं बने | कौन मानेगा कि आमजन की इस लहर से कांग्रेस के वरिष्ठ और घाघ नेता अछूते रहे होंगे ? स्वाभाविक है कि उनमें से कई नादान नेतृत्व के नीचे काम करने में स्वयं को असहज पा रहे हैं | पार्टी में सहमति न बन पाने के कारण ही बार बार सोनिया गांधी के कार्यकाल का विस्तार किया जाता रहा । अब जबकि चुनाव आयोग ने कोई और विस्तार देने से मना कर दिया, तो चुनाव कराने की मजबूरी हो गई । अब इसे चुनाव कहें या चयन, होने जा रहा है  

नया इंडिया समाचार पत्र ने तो कांग्रेस के नेताओं के हवाले से लिखा भी है कि सोनिया गांधी पार्टी के अंदर की संभावित बगावत रोकने का भरसक प्रयास कर रही हैं। सूत्रों के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही पार्टी में टूट का अंदेशा था। कपिल सिब्बल, कमलनाथ, आनंद शर्मा जैसे कई नेता इसकी धुरी बने थे, जिनके संपर्क में राज्यों के कई नेता आ गए थे। पर बाद में इन नेताओं से बात की गई और उनको मनाया गया।

किन्तु इसके बाद भी कपिल सिब्बल ने राजनीतिक मामलों में हाथ डालने से इनकार कर दिया, इसीलिए उनको मनाने के लिए उन्हें ज्यादा तरजीह दी जा रही है। पार्टी के दूसरे वकील नेताओं के मुकाबले इस समय वे ज्यादा सक्रिय हैं। इसी तरह कमलनाथ को भी मनाया गया है।

पर क्या खतरा पूरी तरह टल गया है ? क्या दिग्विजय सिंह जैसे घुटे हुए नेता नर्मदा यात्रा के बहाने बेबजह कोना दाबे हुए हैं ? क्या दिग्गी राजा और कमलनाथ सचमुच चुपचाप ज्योतिरादित्य सिंधिया को मध्यप्रदेश में अपना नेता स्वीकार कर लेंगे ?

गुजरात और हिमाचल में पार्टी का तिया पांचा होते ही कांग्रेस बिखरने वाली है | इसे भांपकर ही चुनाव परिणामों के पूर्व राहुल को अध्यक्ष बनाने का निर्णय हुआ है | किन्तु विघटन की रही सही कसर राहुल जी द्वारा अपनी टीम घोषित किये जाते ही पूरी हो जायेगी | कांग्रेस के नेता सत्ता के आदी हैं | राहुल सबको संतुष्ट कर नहीं सकते | अतः इतिहास दोहराया जाना तय है | नया अध्यक्ष और इसके साथ ही बनने वाली एक नई पार्टी |

सचमुच भाजपा के सितारे अभी बुलंदी पर हैं | इस बार 14 जनवरी मकर संक्रांति के साथ कांग्रेस का भी संक्रमण काल प्रारम्भ होने जा रहा है |

साभार आधार – नया इंडिया 


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