कश्मीर से लेकर केरल तक आरएसएस की एक ही भूमिका – राष्ट्र सर्वोपरि - सतीश कुमार
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(लेखक हरियाणा के केंद्रीय विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख हैं) |
देश भर में लगने वाली
अपनी पचास हजार से अधिक शाखाओं के माध्यम से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस),
केवल एक ही विचार का प्रचार – प्रसार कर रहा है, वह है –
भारतीयता । यह दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य
है कि पिछले अनेक वर्षों में तथाकथित धर्मनिरपेक्षता ने इस राष्ट्रीय विचार को
सर्वाधिक क्षति पहुंचाई है ।
आरएसएस की अनेक
उपलब्धियों में से कश्मीर और केरल की उपलब्धियां सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं । इन
दोनों ही राज्यों में आरएसएस के स्वयंसेवक, लोगों की मानसिकता को बदलने के लिए अथक
परिश्रम में जुटे हैं । ऐसे माहौल में जबकि आरएसएस के कार्यकर्ताओं को लगातार
लक्षित किया जा रहा हो, यह कोई आसान काम
नहीं है । अगर केरल की बात करें, तो वहां तो आरएसएस के सैकड़ों स्वयंसेवकों की
हत्याएं तक हुई हैं । ये हमले केवल इस दक्षिण भारतीय राज्य तक ही सीमित नहीं हैं,
पिछले दिनों पंजाब में भी, एक वरिष्ठ आरएसएस
प्रचारक मारे गए ।
रविंदर गोसाईं
आरएसएस लुधियाना की रघुनाथ नगर मोहन शाखा के मुख्यशिक्षक थे। दरअसल आरएसएस से घृणा
करने वाले कई राजनीतिक संगठन आजकल डरे हुए हैं, क्योंकि जबसे भाजपा सरकार पूर्ण
बहुमत के साथ सत्ता में आई हैं, तब से उन्हें डर सता रहा है कि अब उनके दिन गिनेचुने
हैं। यही कारण है कि वे आरएसएस के खिलाफ षड्यंत्र रच रहे हैं और उसके स्वयंसेवकों खत्म
करने के लिए हिंसा का भी सहारा ले रहे हैं ताकि वे भयभीत होकर अपनी गतिविधियाँ रोक
दें । लेकिन आरएसएस मजबूती से अपने पाँव जमाये हुए है । यह सांस्कृतिक संगठन,
पाश्चात्य विचारों और वामपंथी बुद्धिजीवियों को एक साथ चुनौती दे रहा है,
जिन्होंने भारतीयता के आदर्श विचार को ही विकृत करने हेतु कमर कसी हुई है।
यही उपयुक्त समय
है, जब कांग्रेस सरकारों के समर्थन से वामपंथी बुद्धिजीवियों द्वारा लिखे गए पक्षपातपूर्ण
और मिथ्या इतिहास का पुनर्लेखन किया जाए । अब जम्मू कश्मीर की ही बात करें, जहाँ कश्मीर
की छवि ही विकृत हो गई है। पूरी बहस धारा 370 के इर्द गिर्द घूम रही है। सरकार का उद्देश्य है कि कैसे
वहां के बासिंदों को देश की मुख्यधारा में लाया जाये, तथा प्रदेश को अंतहीन हिंसा की आग से बचाया जाये । इसी उद्देश्य से पिछले दिनों केंद्र सरकार पूर्व खुफिया
ब्यूरो के प्रमुख दिनेश्वर शर्मा को भारत सरकार के विशेष प्रतिनिधि के रूप में
नियुक्त किया ताकि अलगाववादियों सहित सभी सम्बंधित पक्षों के साथ बातचीत शुरू हो
सके। आरएसएस भी राज्य में सक्रिय भूमिका निभा रहा है | संघप्रमुख मोहन भागवत ने भी
हाल ही के दशहरा संदेश में शेष भारत के साथ कश्मीर के लोगों की एकजुटता के महत्व को
रेखांकित किया था । 2011 में आरएसएस ने इसी
उद्देश्य को ध्यान में रखकर जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र नामक अपने एक विचार
संस्थान को प्रारम्भ किया था ।
जम्मू और कश्मीर
अध्ययन केंद्र के निदेशक आशुतोष भटनागर का स्पष्ट कथन है कि कि कश्मीर के मुद्दे
को समझने में मौलिक त्रुटियां हुई हैं। राम मनोहर लोहिया और सीपीआई सहित अनेक वरिष्ठ
राजनेताओं ने जम्मू और कश्मीर में धारा 370 का समर्थन किया था । जबकि उस समय जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने अनुच्छेद 370 को हटाने के प्रस्ताव को पारित कर दिया था,
क्योंकि आम धारणा थी कि यह एक परेशानी है, सहूलियत नहीं ।
आरएसएस ने 2012 में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का गठन किया था,
जिसका मूल उद्देश्य था, शेष समाज के साथ भारतीय मुस्लिमों और कश्मीरी युवाओं को एकजुट
करना । इसके अतिरिक्त पंजाब पर भी ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है, जहां लगभग तीन
दशकों के बाद एक बार फिर से अलगाववाद का संकट सिर पर मंडराने लगा है। रिपोर्टों के
मुताबिक, सिख आतंकवादी कनाडा में
इकट्ठा हो रहे हैं और पंजाब में खालिस्तानी आंदोलन को पुनर्जीवित करने के लिए आतंकवादी
हमले की साजिश रच रहे हैं। समय रहते सतर्क होकर इन भारत विरोधी विचारों को जड़ से
समाप्त कर देना चाहिए ।
विचारणीय प्रश्न
है कि पंजाब में खालिस्तान आंदोलन क्यों पनप रहा है? कहीं इसके पीछे चुनावी राजनीति तो
नहीं है? जम्मू और कश्मीर में कौन
नफरत फैला रहा है? क्यों केरल भारत
के बाकी हिस्सों से अलग दिखता है? केरल की द्विदलीय
निर्वाचन राजनीति ने भारत विरोधी भावनाओं को बल दिया है । आईएसआईएस के एजेंट देश
के किसी भी अन्य हिस्से की तुलना में, केरल में अधिक सक्रिय हैं। भारतीयता के
विचार को सबसे अधिक खतरा किसी से है, तो वह है - उदार-धर्मनिरपेक्ष ब्रिगेड ।
श्यामा प्रसाद
मुखर्जी के राष्ट्रवादी विचार को कूड़ेदान में फेंक दिया गया । उनकी मृत्यु अभी भी
एक रहस्य है | लगभग सात दशकों के कांग्रेस शासन ने भारत की अवधारणा को विकृत कर
दिया।
विगत वर्षों में जिन विषयों पर एकांगी
विचार हुआ, जम्मू और कश्मीर भी उनमें से एक है |
जब देखो तब, केवल
कश्मीर की ही चर्चा होती है, जम्मू और लद्दाख को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया जाता
है । इस कमी को दूर करने के लिए, आरएसएस ने कश्मीर,
जम्मू और लद्दाख के विभिन्न हिस्सों में जमीनी
कार्य शुरू किया। आरएसएस का मानना है कि कश्मीर मूलतः हिंदू था और 13 वीं शताब्दी के बाद धीरे-धीरे इसका इस्लामीकरण
हुआ । स्वतंत्रता के तुरंत बाद से ही आरएसएस ने इस उपमहाद्वीप के "हिंदू
इतिहास" को पुनर्स्थापित करने का प्रयत्न किया, जिसे “भरत खण्ड” कहा जाता था ।
आरएसएस का कार्य यहाँ 1 9 40 के दशक में प्रारम्भ
हुआ तथा उसकी दृढ मान्यता रही कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है । 1 9 53 में प्रजा परिषद ने धारा 370 के खिलाफ राजनीतिक आंदोलन शुरू किया ।
आरएसएस की प्रेरणा
से चलने वाले जम्मू-कश्मीर अध्ययन केन्द्र (जेकेएससी) की जम्मू-कश्मीर के सभी 22 जिलों में अनेक शाखाएं हैं। जेकेएससी का
दृष्टिकोण जम्मू और कश्मीर के सभी तीन हिस्सों की छवि को विकृत किए बिना, वास्तविकता पर आधारित है ।
2011 के बाद, इस थिंक
टैंक की अनुसंधान रिपोर्टों के कारण ही कई अनजान तथ्य दुनिया के सामने आये । इनमें
से एक था अनुच्छेद 35 ए | क्षेत्रीय
वास्तविकता यह है कि जम्मू और कश्मीर का 82 प्रतिशत लद्दाख और गिलगित-बाल्तिस्तान है, जबकि स्वतंत्रता के बाद, केंद्र सरकार ने पूरा ध्यान केवल कश्मीर पर ही केंद्रित
रखा |
रणनीतिक महत्व की
दृष्टि से भी लद्दाख सबसे प्रमुख है, क्योंकि हिमालय की दक्षिणी तलहटी पर बसे लद्दाख
से ही चीन की सीमाएं मिलती हैं ।
इसके आंतरिक
महत्व के अलावा, तारिम बेसिन और
तिब्बती पठार तक सीधी पहुंच वाले लद्दाख के रणनीतिक मूल्य को समझने में भी त्रुटी
हुई । नेहरू जी ने जम्मू और कश्मीर राज्य बनाते समय लद्दाख के प्रतिरोध को ठुकरा
दिया और उन्हें शेख अब्दुल्ला के हाथों में भाग्यभरोसे छोड़ दिया, जिसका इस क्षेत्र से कोई संबंध ही नहीं था। इसके
कारण लद्दाख को जनसांख्यिकीय असंतुलन का सामना करना पड़ा |
कश्मीरियत तीन
क्षेत्रों और तीन धर्मों का संगम है, इसका भूभाग कश्मीर घाटी की तुलना में जम्मू और लद्दाख में अधिक हैं।
जहाँ कश्मीर घाटी के अधिकांश जिलों में मुसलमानों का
प्रभुत्व है और इस्लामीकरण का बोलबाला है, जबकि जम्मू के लगभग सभी जिलों में विभिन्न धर्मों की एकता परिलक्षित होती है। किन्तु
मीडिया जब भी कश्मीरियत की बात करती है, तो उसका ध्यान केवल कश्मीर घाटी पर होता
है | जबकि कश्मीरीयत का अर्थ है - शैव, बौद्ध धर्म और सूफीवाद | कश्मीरियत का सूत्र वह दीर्घकालिक विश्वास है कि हर धर्म एक ही
दिव्य लक्ष्य तक पहुंचाता है ।
केरल प्रकरण
आरएसएस के कारण भाजपा
को केरल में जमीन मिल रही है, तथा उसका वोट प्रतिशत बढ़कर 15 प्रतिशत हो गया है। हाल ही में राज्य में भाजपा का जनाधार
और बढाने के लिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी
आदित्यनाथ ने अभियान चलाया।
कन्नूर जिला राजनीतिक
हिंसा के चलते लाल क्रूरता सबसे बड़ा प्रमाण है | इसके साथ ही यहाँ आईएसआईएस का खतरा
भी बढ़ा है। मुसलमानों द्वारा हिंदुओं का धर्मांतरण ही जिले में व्यापक पैमाने पर
होता है, यहाँ केवल एलडीएफ केडर का
शासन चलता है।
फिर क्यों कम्युनिस्ट
केरल में परेशान हैं?
पिछले चुनावों
में पहली बार केरल विधानसभा में भाजपा का खाता खुला है | इससे हैरान हुए
कम्युनिस्टों ने राजनीतिक प्रतिशोध शुरू किया और फिर केरल का उत्तरी जिला कन्नूर
आरएसएस और सीपीआई (एम) के बीच संघर्ष का केंद्र बन गया।
कन्नूर में
राजनीतिक हत्याएं एक अच्छी तरह से विकसित राजकीय परियोजना हैं, जिसे वाम सरकार,
पार्टी और पुलिस का गठबंधन संचालित करता है।
स्वतंत्र भारत के
बाद नेहरूवादी विचारधारा का विस्तार हुआ, जो स्वदेशी कम और विदेशी अधिक है। कश्मीर का इतिहास विकृतियों से भरा है। जिन
लोगों ने कांग्रेस से अलग होने की कोशिश की, उन्हें जेल की हवा खानी पडी । सड़कों और भवनों के नाम उन मुगल
शासकों के नाम पर रखे गये, जिन्होंने
भारतीयों को मारा और भारतीय खजाने को लूटा । भारत के गृह मंत्री ने स्पष्ट कहा था
कि महाराणा प्रताप हमारे राष्ट्रीय नायक हैं। कुछ उदारवादी इसे पसंद नहीं करते,
लेकिन इसमें क्या गलत है? प्राचीन इतिहास
की विरासत जानबूझकर भूलाई गई । जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने
कहा कि ताजमहल भारतीयों के श्रम और बलिदानों के कारण महान है, तो उदारवादी
बुद्धिजीवियों ने उन पर एक विकृत हमला शुरू कर दिया |
आरएसएस के एक
विचारक सुनील अंबेकर ने कहा, मौजूदा संरचना को
चुनौती देने के लिए "भारतीयता के विचार” को बल देना होगा; औपनिवेशिक मानसिकता को बाहर फेंक दिया जाना चाहिए। "
भारत को झूठ और
सच्चाई के बीच भेद करना होगा। हमें भारत पर गर्व करने की आवश्यकता है
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