अयोध्या – येरुसलम और बारसा - बलबीर पुंज



जहां एक ओर तो ​​दुनिया ईस्वी नए साल का स्वागत करने की तैयार में है, वहीं दूसरी ओर दो प्राचीन शहर, अपने अंतस में पीड़ा और संताप की अकथनीय गाथाएँ छुपाये आज भी सभ्यतागत परीक्षणों से गुजर रहे हैं |

2017 की विदाई और 2018 के स्वागत के बीच दो प्राचीन शहर - अयोध्या और यरूशलेम, कुछ अलग कारणों से सुर्ख़ियों में हैं | वर्ष के इस आखिरी महीने में अमरीकी ट्रंप प्रशासन ने इसराइल में अमेरिकी दूतावास को अपने मौजूदा स्थान तेल अवीव से यहूदियों के प्रमुख आध्यात्मिक केंद्र यरूशलेम, स्थानांतरित करने का फैसला किया।

बहीं हिन्दुओं के सबसे पावन शहर अयोध्या को लेकर भारत के सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मामले की सुनवाई प्रारंभ की । स्मरणीय है कि इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील पिछले सात वर्षों से सर्वोच्च न्यायालय के पास लंबित है।

विश्व के दो अलग-अलग हिस्सों में स्थित अयोध्या और यरूशलेम दोनों ने, अपने अपने धर्मों के प्रमुख देवस्थल होने के बाबजूद, संकटों के आघात समान रूप से झेले हैं, लगातार आक्रमणकारियों का सामना किया है ।

अयोध्या भगवान श्री राम की जन्मस्थली के रूप में श्रद्धा और आस्था का केंद्र है, तो यरूशलेम का इतिहास भी पुरातन काल से जुड़ा हुआ है | मान्यता है कि ईश्वर द्वारा निर्मित पहले इंसान “आदम” ने अपना पूरा जीवनकाल यरूशलेम में ही व्यतीत किया ।

यरूशलेम का दुखदाई इतिहास दर्शाता है कि इस पर 52 बार आक्रमणकारियों द्वारा कब्जा जमाया गया, जबकि 44 बार फिर से कब्जा बापस लिया गया कर लिया गया है, 23 बार इसकी घेराबंदी की गई, जबकि दो बार तो पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया। पहली ईस्वी शताब्दी में यरूशलेम ईसाई धर्म का जन्मस्थान बन गया। सम्राट कॉन्स्टेंटाइन ने शहर को पूजा के एक ईसाई केन्द्र के रूप में विकसित किया और यहूदियों का अपने ही शहर में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया।

638 ईसवी में, मुस्लिमों ने अपने पहले खलीफा उमर इब्न अल-खट्टाब के नेतृत्व में इस शहर पर कब्जा जमा लिया | किन्तु जुलाई 1099 में क्रुसेडर्स ने शहर पर कब्जा कर लगभग सभी मुस्लिम और यहूदी निवासियों का नरसंहार कर दिया। 1517 में, यरूशलेम पर ओटोमन साम्राज्य का आधिपत्य हुआ और उसके पतन के बाद इस पर अंग्रेजों द्वारा कब्जा कर लिया गया ।

जिस तरह से भगवान राम के कारण भारत और दुनिया भर में फैले हिंदुओं के लिए अयोध्या का महत्व है, उसी प्रकार यरूशलेम शहर यहूदियों की आस्था और पहचान का केंद्र है। आईये कुछ यहूदी रीति-रिवाज पर नजर डालें -

विवाह मंडप में जाने के पूर्व यहूदी दुल्हन के माथे पर थोड़ी सी राख छुआई जाती है, व इस प्रकार प्रतीकात्मक रूप से उसे याद दिलाया जाता है कि आमोद प्रमोद से कहीं अधिक वह यरूशलेम के बार बार हुए विनाश को स्मरण रखे ।

एक और प्राचीन प्रथा है कि घर के दरवाजे के सामने की दीवार पर कोई रंग रोगन नहीं किया जाता, ताकि सदैव स्मरण रहे कि आक्रमणकारियों के हाथों किस प्रकार मंदिरों और यरूशलेम शहर का विनाश किया गया था ।

बाइबल के अनुसार, टेम्पल माउंट पर यहूदी मंदिर स्थित था। यहूदी मान्यता और शास्त्र के अनुसार, यह पहला मंदिर राजा दाऊद के पुत्र राजा सुलैमान द्वारा सन् 1 9 7 ईसा पूर्व बनाया गया था, जिसे 586 ईसा पूर्व में बाबुलियन द्वारा नष्ट कर दिया गया । दूसरे मंदिर का निर्माण ज़रूब्बेल द्वारा 516 ईसा पूर्व में किया गया था, किन्तु उसे भी 70 ईस्वी में रोमन साम्राज्य द्वारा नष्ट कर दिया गया । यहूदी मान्यता है कि अब यहां एक तीसरा और अंतिम मंदिर भी बनाया जाएगा।

यह स्थान यहूदी धर्म में सबसे पवित्र स्थल है और इस जगह प्रार्थना करने को हर यहूदी लालायित रहता है । इसे अतिशय पवित्र मानकर बहुत से यहूदी माउंट पर नहीं चलते, क्योंकि रब्बिनिकल लॉ के अनुसार उस क्षेत्र में दिव्यता की उपस्थिति के कुछ चिन्ह आज भी मौजूद हैं।
हालांकि, 638 सीई में इस्लामी कब्जे के बाद, सुन्नी मुसलमानों ने इस पर्बत अपना तीसरा सबसे पवित्र स्थल घोषित किया | उनका मानना है कि पैगंबर मुहम्मद ने यरूशलेम यात्रा की और यहाँ से ही वे स्वर्ग गए ।

माना जाता है कि पैगंबर ने अपने चमत्कारिक घोड़े बुरक को लेकर यरूशलेम की यात्रा की, जहाँ से उन्होंने प्रार्थना के बाद एक ही रात में स्वर्ग का दौरा किया ।

मजे की बात यह है कि हिंदुओं को बार-बार अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थान को साबित करने के लिए कहा जाता है, जबकि किसी ने कभी भी उड़ने वाले घोड़े पर बैठकर स्वर्ग की यात्रा करने वाले पैगंबर विषयक इस्लामी आस्था का सबूत नहीं मांगा।

अपनी संस्कृति और आस्था के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता, अपनी एकता और उद्देश्य की स्पष्टता के कारण जहाँ आज यहूदियों ने यरूशलेम पर पूरा नियंत्रण कर रखा है। बहीं दूसरी ओर, विभाजित हिंदू सैकड़ों वर्षों से अपने जन्मस्थान में एक राम मंदिर बनाने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं, और वह भी बिना किसी ठोस परिणाम के।

हिंदूओं के मन में अयोध्या में भगवान श्री राम के जन्मस्थान पर एक भव्य राम मंदिर बनाने की जो आकांक्षा है, वह इस्लाम या मुसलमानों के खिलाफ नहीं है। 6 दिसंबर, 1992 को कारसेवकों जो ढांचा ध्वस्त किया, वह कोई पूजा स्थल नहीं था, वह तो केवल भारतीयों को अपमानित करने के लिए एक आक्रमणकारी द्वारा बनाया गया एक स्मारक था । वर्तमान शताब्दी के महान इतिहासकारों में से एक, अर्नोल्ड टॉयन्बी ने आजाद स्मारक पर व्याख्यान देते हुए इस विषय को इस प्रकार स्पष्ट किया :

"जब मैं यहाँ बोल रहा हूं, तब अपने दिमाग की आंखों से मैं यादों के कुछ चमकदार दृश्य भी देख रहा हूँ । उनमें से एक एक मानसिक चित्र उन्नीसवीं – बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध का है - पॉलिश सिटी ऑफ वॉर्सो के प्रिंसीपल स्क्वायर का । वारसॉ (1614-19 15) पर पहले रूसी कब्जे के दौरान रूसियों ने शहर के मध्य में एक पूर्वी रूढ़िवादी ईसाई कैथेड्रल का निर्माण किया था जो कि किसी समय स्वतंत्र रोमन कैथोलिक ईसाई देश पोलैंड की राजधानी थी।

"रूसियों ने पोलेंड वासियों को निरंतर यह याद दिलाने के लिए ऐसा किया था कि रूस अब उनका स्वामी है | जैसे ही 1918 में पोलैंड पुनः आजाद हुआ, जानते हैं उन्होंने सबसे पहला काम क्या किया ? सबसे पहले वह गिरजाघर ध्वस्त किया गया । रूसी चर्च का विध्वंस करने के लिए कमसेकम मैंने तो पोलिश सरकार को बहुत ज़्यादा दोष नहीं दिया | क्योंकि जिस प्रयोजन के लिए रूसियों ने उसे बनाया था वह धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक था, और इसका उद्देश्य जानबूझकर आक्रामक भी था।

"इसी प्रकार औरंगजेब ने जो तीन मस्जिदों के निर्माण करवाया, उसका उद्देश्य भी आक्रामक और राजनैतिक ही था, ठीक बैसे ही, जैसे रूसियों द्वारा वॉर्सा शहर के केंद्र में बनवाया गया रूढ़िवादी कैथेड्रल चर्च । उन तीन मस्जिदों का उद्देश्य यह जताना था कि एक इस्लामी सरकार यहाँ सर्वोच्च सत्ता है, यहां तक ​​कि हिंदू धर्म के पवित्रतम स्थानों पर भी।

"मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि औरंगजेब में प्रतीकात्मक स्थान चुनने की अद्भुत प्रतिभा थी। औरंगजेब और स्पेन के फिलिप द्वितीय एक समान है, जिन्होंने ईसाई-मुस्लिम-यहूदी धर्मों के मानने वालों की रगों में कट्टरता का जहर भरा ।

"औरंगजेब - एक हद दर्जे का गुमराह और बुरा इंसान, जिसने अपने आप को बुरा प्रमाणित करने वाले स्मारकों को बढ़ाने हेतु आजीवन कठोर परिश्रम किया | संभवत: पोलैंड वासियों को वारर्सो में रूसियों द्वारा निर्मित चर्च को नष्ट करने की कोई ख़ास जरूरत नहीं थी, क्योंकि वह अयोध्या के समान उनके किसी पवित्र स्थल पर निर्मित नहीं थी, फिर भी उन्होंने उसे नष्ट किया, क्योंकि उनकी नजर में वह विदेशी आक्रान्ता का स्मारक भर था ... "(एक विश्व और भारत, राष्ट्रीय पुस्तक संस्थान द्वारा संकलित, पीपी 59-61)

(लेखक एक प्रमुख राजनीतिक विश्लेषक और बीजेपी के पूर्व राज्यसभा सांसद हैं)

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