मुगलों के सामने कभी घुटने न टेकने वाले भरतपुर सियासत के संस्थापक “महाराजा सूरजमल”

राजस्थान की रेतीली भूमि ने देश पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले महान वीरों को पैदा किया है ! यहाँ पैदा हुए वीर योद्धाओं ने अपने पराक्रम और शौर्य के बल पर न सिर्फ राजस्थान बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष का नाम रोशन किया है ! आज हम आपको इस वीर धरा पर पैदा हुए एक ऐसे महाराजा की कहानी बताने जा रहे है जिसने उस दौर में मुगलों से अकेले लोहा लिया जब यहाँ के राजा मुगलों से अपनी बेटियों के रिश्ते कर अपनी जागीरें बचा रहे थे ! यह वीर योद्धा स्वतंत्र हिन्दू राज्य बनाने का स्वप्न देखता था !

इस वीर योद्धा का नाम है महाराजा सूरजमल ! महाराजा सूरजमल का जन्म 13 फरवरी 1707 में हुआ ! यह इतिहास की वही तारीख है, जिस दिन हिन्दुस्तान के बादशाह औरंगजेब की मृत्यु हुई थी ! मुगलों के आक्रमण का मुंह तोड़ जवाब देने में उत्तर भारत में जिन राजाओं का विशेष स्थान रहा है, उनमें राजा सूरजमल का नाम बड़े ही गौरव के साथ लिया जाता है ! उनके जन्म को लेकर यह लोकगीत काफ़ी प्रचलित है !

'आखा' गढ गोमुखी बाजी, माँ भई देख मुख राजी.
धन्य धन्य गंगिया माजी, जिन जायो सूरज मल गाजी.
भइयन को राख्यो राजी, चाकी चहुं दिस नौबत बाजी.'

जब मुग़ल साम्राज्य पतन की ओर था, मराठों, सिखों और जाटों ने न केवल अपनी-अपनी प्रभावशाली राजसत्ता स्थापित कर ली थी, बल्कि दिल्ली सल्तनत को एक तरह से घेर लिया था ! उन दिनों इन रियासतों में कुछ ऐसे शासक पैदा हुए जिन्होंने अपनी बहादुरी तथा राजनय के बल पर न केवल उस समय की सियासत, बल्कि समाज पर भी गहरा असर डाला ! भरतपुर के जाट नरेश महाराजा सूरजमल इनमे अव्वल थे ! महज 56 वर्ष के जीवन-काल में उन्होंने आगरा और हरियाणा पर विजय प्राप्त करके अपने राज्य का विस्तार ही नहीं किया, बल्कि प्रशासनिक ढाँचे में भी उल्लेखनीय बदलाव किए ! जात समुदाय में आज भी उनका नाम बहुत गौरव और आदर के साथ लिया जाता है ! 

कैसे हूई हिन्दू धर्मरक्षक महाराजा सूरजमल की हत्या -

"दिल्ली के बादशाह नवाब नजीबुद्दौला के दरबार में एक सुखपाल नाम का व्यक्ति कार्य करता था ! एक दिन उसकी पुत्री अपने पिता को भोजन देने महल में चली गयी , मुग़ल बादशाह उसके रूप पर मोहित हो गया और सुखपाल की पुत्री का विवाह स्वयं से करने का दवाब बनाने लगा और बदले में उसको जागीरदार बनाने का लालच दिया ! सुखपाल मान गया और अपनी पुत्री का विवाह मुग़ल बादशाह से करने को तैयार हो गया ! जब लड़की को इस बात की खबर हुई तो उसने विवाह से इंकार कर दिया इससे क्रोधित होकर मुग़ल बादशाह ने लड़की को जिन्दा जलाने का आदेश दिया ! मौलवियो ने बादशाह से कहा ऐसा तो यह मर जायेगी ! आप इस को जेल में डालकर कष्ट दो और इस पर हरम में आने का दबाव डालो ! बादशाह बात मान गया और लड़की को जेल में डाल दिया ! लड़की ने जेल की जमादारनी से कहा कि क्या इस देश में कोई ऐसा राजा नहीं है जो हिन्दू लड़की की लाज बचा सके । जमादारनी ने कहा ऐसा वीर तो सिर्फ एक ही है महाराजा सूरजमल जाट ! बेटी तू एक पत्र लिख वो पत्र मैं तेरी माँ को दे दूंगी ! लड़की के दुखो को देख वहाँ काम करने वाली जमादारनी ने लड़की की मदद की और लड़की ने महाराजा सूरजमल के नाम एक पत्र लिखा और उसकी माँ वो पत्र लेकर महाराजा सूरजमल से पास गयी ! उसकी कहानी सुन सूरजमल ने लड़की को छुड़ाने के लिए अपने दूत वीरपाल गुर्जर को दिल्ली भेजा ! वहाँ दिल्ली दरबार में जब गूर्जर ने महाराजा सूरजमल जाट का पक्ष रखते हुए लड़की को छोड़ने की बात कही तो बादशाह ने कहा कि "सूरजमल जाट हमसे क्या उस लड़की को छुडवाएगा, सूरजमल जाट को जाकर कहना कि अपनी जाटनी महारानी को भी हमारे पास लेकर आए !" 

अपनी जाटनी महारानी के अपमान में यह शब्द सूनकर गुर्जर मुसलमानों के भरे दरबार में क्रोध से टूट पड़ा ! तब बादशाह ने गुर्जर कि हत्या कर दी और मरते मरते गूर्जर दूत ने कहा कि "वो पूत जाटनी का है , तेरी नानी याद दिला देगा !" 

अपने दूत की हत्या की सूचना और महारानी के अपमान की बात जब भरतपुर में महाराजा सूरजमल ने सुनी तो गुर्रा के खेड़े हुए और बोले :-

"चालो र जाट - हिला दो दिल्ली के पाट" और दिल्ली पर जाटों ने चढाई कर दी !

सूरजमल जाट अपने साथ अपनी जाटनी महारानी को भी युद्ध में ले गए ! जाटों ने दिल्ली घेर ली और बादशाह के पास संदेश भिजवाया कि मैं अपनी जाटनी महारनी को साथ लेकर आया हूँ और अब देखता हूँ कि तू मुझसे जाटनी लेकर जाता है या नाक रगड़कर उस हिन्दू कन्या को सम्मान सहित लौटाकर जाता है !

25 दिसंबर 1763 को दोनों सेनाओं के बीच युद्ध हुआ और महाराजा सूरजमल युद्ध जीत गए ! बादशाह नजीबुद्दौला ने महाराजा सूरजमल के पैर पकड़ लिये और बोला मैं तो आपकी गाय हूँ मुझे छोड़ दो महाराजा ! बादशाह ने सम्मान सहित उस बालिका को सूरजमल को लौटा दिया ! बादशाह ने पैरों में पड़कर महाराजा सूरजमल से संधि की भीख मांगी और उन्हें उनके साथ दिल्ली चलने का न्योता दिया ! युद्ध जीतकर महाराजा सूरजमल ने अपनी सेना को लौटा दिया और खुद जीत की खुशी मे मगन होकर मुस्लिम बादशाह पर ताबेदारी दिखाने के लिए कुछ सैनिकों को लेकर उनके साथ चल दिए ! रास्ते में हिडन नदी के तट पर उन्हें धोखा देकर उनकी हत्या कर दी !

यह हिन्दू धर्म की जातीय एकता का अनूठा उदाहरण है कि एक पंडित की बेटी की लाज बचाने के लिए पंडिताईन जाटों से गुहार लगाती है ! जाट अपने विश्वासपात्र गूर्जर को भेजते है ! जाटनी के अपमान में गूर्जर वीरगति को प्राप्त होता है ! गूर्जर की मौत से जाट दिल्ली पर चढ़ाई कर देते हैं ! आज इस प्रसंग से सम्पूर्ण भारतवर्ष के हिन्दुओं को प्रेरणा लेने की आवश्यकता है !

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