शब्दांजलि - थियेटर व अभिनय का एक युग, शशि कपूर - यूँ ही नहीं दिल लुभाता कोई - गीतिका वेदिका


वे बातें जो कुछ ही पलों में सदा से सुनी सुनाई सी लगने लगती हैं, वे तो जन्म-जन्मान्तरों की डोर हैं जिनमें हल्के से एक खिंचाव देने भर से ही किसी पुराने बंधन की लहर संगीतबद्ध हो कर झूम जाया करती है। ज़िन्दगी प्यार के सिवा है ही क्या? जब कुछ नहीं होता तो प्यार का इंतज़ार, जब प्यार आता है तो आधा क्षण प्यार में जीने का और आधा भय प्यार के खो देने का। प्यार में जियो तो प्यार के क्षण कब गुड़िया के बाल की तरह झट से सिंक हो जाते हैं, पता नहीं चलता और प्यार बिछुड़ जाए तो एक एक दिन की बिछुड़न एक एक साल की तरह कष्ट देती है। शेष जीवन भूली बिसरी प्यार की यादों को संजोने और भुलाने में ही लगा रहता है। मिल के कभी न बिछुड़ने के वादे पानी के बुलबुले हो जाया करते हैं। और बिछुड़न जैसे कोई जन्म से मिला स्थायी दंश जो मृत्यु पर ही जा के ठहरेगा; के समान निशदिन विष उगलते रहने वाला बिच्छू हो जाता है, जो दर्द, पीड़ा, आह और कराह के सिवा कुछ नहीं देता।

दो मन के दैहिक प्यार के क्षण सन्तति के रूप में पुष्पित पल्लवित होते हैं। उनके नादान प्रश्न के उत्तर आंसू के सिवा और क्या हुआ करते हैं? जहाँ शब्द गूंगे हो जाएं तो आंखें दिल की ज़बान बन जाती हैं और असफलता के सवालों के जवाब पलकें मींच के देने लगती हैं कि दो आँसू भरभरा के कपोलों पर लुढ़क जाया करते हैं। लेकिन प्यार को रुसवा नहीं करते। क्योंकि दोषी सदा परिस्थितियां हुआ करती हैं। प्रेम अथवा प्रेम में चोट खाये हुए प्रेमी नहीं।

दो दिलों की दूरियाँ अपने ठौर अलग-अलग बना लेती हैं तो उनकी छाया में पनपने वाला पौधा दुनिया की तेज और कँटीली धूप में अपना हरापन खो देता है। वक़्त की मार उसे विकल कर अपाहिज़ बना देती है। लेकिन तिस पर भी वह अपनी सौम्यता बरक़रार रखता है। जब जब बाहरी प्रेम का फूल अपने नन्हें और कमज़ोर कदमों से बहकता है तो आतंरिक प्यार स्वयं बाहें फैला के उसे सम्बल देता है, हॄदय से लगा लिया करता है।

कोई किसी को क्या सिखाये? वक़्त सबको अपने अनुसार जीना सिखा ही देता है, टूटे वादों के साथ, रूठी यादों के साथ, बिखरी तमन्नाओं के साथ ! फिर भी एक उम्मीद होती है कि प्यार लौट आएगा। क्योंकि जो राह जाने की होती है वही तो आने की भी होती है। उसी राह पर घण्टों, दिनों से महीनों और सालों की दूरी सिमटती है और आखिर में प्यार दुनिया का हर धागा तोड़ कर अपने नन्हें फूल की मुस्कुराहट देखने और उसे देखते रहने पागलों के माफ़िक भागता चला आता है और रो-रो के कहता है "आ गले लग जा" 

लेखिका परिचय -
मध्यप्रदेश के छोटे से कस्बे टीकमगढ़ में जन्मी - गीतिका वेदिका ने आपदा प्रबन्धन में स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण की है और एक आपदा प्रबन्धन विशेषज्ञ के रूप में उनकी ख्याति है | गीत/ नवगीत, कविता, ग़ज़ल, लघुकथा, सनातनी छंद, कहानी अर्थात साहित्य की हर विधा में उनकी गति है | इसके अतिरिक्त रंगमंच पर अभिनय व निर्देशन में भी वे सिद्ध हस्त हैं | प्रस्तुत आलेख उनके द्वारा लिखित शशि कपूर, शर्मिला टैगोर, शत्रुघ्न सिन्हा की अभिनयात्मक प्रस्तुति के अंश हैं !


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