भारतीय किसान संघ की प्रतिनिधि सभा ने परभनी महाराष्ट्र में किया किसान हितों पर चिंतन मंथन


1 से 3 दिसंबर तक महाराष्ट्र के वसंतराव नाईक मराठवाड़ा कृषि विश्वविद्यालय, परभनी में भारतीय किसान संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक संपन्न हुई । तीन दिनों तक चले गहन चिंतन मनन, विचार विमर्श के बाद एक संकल्प पारित किया गया ।

"कृषि कार्य में रसायनों के उपयोग को लेकर नियम बनाए जाएँ तथा उनका पालन सुनिश्चित किया जाए"

स्मरणीय है कि कुछ दिन पूर्व ही कृषि रसायनों के घातक प्रभाव के कारण महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में 27 किसानों की मृत्यु हो गई थी और सैकड़ों किसानों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था, जहाँ वे जीवन और मृत्यु के बीच संघर्षरत रहे ।

इस घटना से पूर्व भी, तेलंगाना, ओडिशा, विदर्भ सहित देश के कई अन्य भागों में भी कई किसानों की इसी कारण से मृत्यु हो गई | इतना ही नहीं तो दिल्ली और पंजाब के कई किसान कृषि रसायनों के घातक दुष्प्रभाव के चलते केंसर जैसे गंभीर रोग से पीड़ित हुए ।

यह एक गंभीर चिंता का विषय है कि एग्रोकेमिकल्स के इस्तेमाल के लिए कोई प्रामाणिक अधिनियम नहीं है । सरकार के अधिकारियों का इन रसायनों की मात्रा, गुणवत्ता, मानक का परीक्षण करने के लिए नातो कोई नियंत्रण है और नाही कोई जांच प्रक्रिया।

आज देश के विभिन्न बाजारों में विभिन्न कीटनाशकों, हर्बाइसाइड, विकास प्रमोटर, सूक्ष्म पोषक तत्व और रिपेलेंट आदि उपलब्ध हैं। लेकिन उचित जांच की कमी के कारण अनेक "प्रतिबंधित रसायनों" को खुले बाजार में प्रचुर मात्रा में बेचा जा रहा है, जिससे किसानों के जीवन को गंभीर खतरे उत्पन्न हो गए हैं ।

पीड़ित होने की स्थिति में विनिर्माण कंपनियों द्वारा किसानों के जीवन की कीमत महज एक या दो लाख रुपये लगाकर मुआवजा देकर पल्ला झडका लिया जाता है। और किसानों को मौत के मुंह में धकेल कर ज़िम्मेदार कंपनी के मालिक और डीलर मजे से इन हानिकारक रसायनों को बेचते रहते हैं ।

गहन चर्चाओं के बाद, किसानों के कल्याण और सुरक्षा की दृष्टि से किसान संघ ने निम्नलिखित "संकल्प" पारित किये -

1) कृषि क्षेत्रों की जलवायु परिस्थितियों के अनुसार आवश्यक सामग्री, मानक, गुणवत्ता और रसायनों के अनुपात को जांचने परखने के लिए सरकार को "अनुसंधान विशेषज्ञों" की नियुक्ति करनी चाहिए ।

2) कीटनाशकों और एग्रोकेमिकल्स को सुरक्षित रूप से उपयोग करने के लिए "एक प्रबंधन विधेयक" पारित किया जाना चाहिए।

3) यदि कोई निर्माता "निर्धारित विनिर्देशों" की अनदेखी कर उत्पादन और बिक्री जारी रखता है, तो संबंधित व्यक्ति को सीआरपीसी अधिनियम के तहत दंडित किया जाकर, उस पर भारी दंड लगाया जाना चाहिए, और ऐसी कंपनियों को ब्लैक लिस्टेड कर प्रतिबंधित किया जाना चाहिए ।

4) हानिकारक रोगों को जन्म देने वाले ग्लाइफोसेट और अन्य रसायनों को सरकारी प्राधिकरण द्वारा "प्रतिबंधित" किया जाना चाहिए।

5) डीलरों और विक्रेताओं को "लाइसेंस" जारी करते वक्त दंड की न्यूनतम सीमा निर्धारित की जानी चाहिए ताकि वे किसानों और समाज की वफादारी से सेवा करें, अन्यथा वे दंड के भागी हों।

6) सभी प्रकार के एग्रोकेमिकल्स के निर्माताओं को जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि वे अपने उत्पादों से उपयोगकर्ताओं को अवगत कराएं और उन्हें रसायनों के सुरक्षित उपयोग हेतु प्रशिक्षित करें। इतना ही नहीं तो उपयोगकर्ताओं को खतरनाक प्रभावों से बचने के लिए उन्हें सुरक्षा उपकरणों की आपूर्ति भी करनी चाहिए।

7) यदि एग्रीकॉमिकल्स का कोई उत्पाद अपेक्षित सकारात्मक परिणाम नहीं निकालता है और किसानों को नुकसान पहुंचाता है, तो कंपनी को नकदी के रूप में किसान को क्षतिपूर्ति प्रदान करने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए।

8) यदि किसान अपनी ज़िन्दगी खो देता है या गंभीर रूप से बीमार हो जाता है, तो कंपनी को पीड़ितों के सम्पूर्ण जीवन के अनुपात में उनके परिवार को मुआवजे का भुगतान करना चाहिए।

9) निर्माताओं द्वारा सभी प्रचार और सूचनात्मक सामग्री केवल स्थानीय भाषाओं में प्रदान की जानी चाहिए।

10) सभी रसायनों के पैकेज पर चेतावनी अंकित होना चाहिए कि "यह सामग्री मानव जीवन के लिए खतरनाक है" । उन पर सामग्री, मात्रा और सुरक्षित उपयोग का विवरण भी दिया जाना चाहिए।

11) खरपतवार उन्मूलन की प्रक्रिया प्रकृति और पर्यावरण के अनुकूल होना चाहिए, जीवन के लिए हानिकारक रसायनों से नहीं।

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