सोनिया और राहुल गांधी की कंपनी ने हवाला ऑपरेटर से ऋण लिया, अधिकारियों को काले धन का संदेह !


अब तक हम में से अधिकांश नेशनल हेराल्ड केस के विषय में अच्छी प्रकार जान चुके हैं कि कैसे आरोपों की सुई गांधी परिवार के स्वामित्व वाली एक कंपनी के चारों ओर घूमती है | यंग इंडियन नामक इस कम्पनी ने केवल 50 लाख रुपये का भुगतान करके, 90.21 करोड़ रुपये का ऋण खरीदा और बाद में इस ऋण को शेयरों में रूपांतरित करते हुए एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) की संपत्ति हथिया ली। हालांकि लेन-देन तो पूरा ही संदिग्ध है, किन्तु एक लेन-देन विशेष रूप से काबिले गौर है।

यंग इन्डियन 23.11.2010 को 5 लाख रुपये की शेयर पूंजी के साथ प्रारम्भ हुई । दिसंबर में एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड पर आल इंडिया कांग्रेस कमेटी के बकाया लोन को एआईसीसी ने यंग इंडियन को हस्तांतरित कर दिया । अर्थात अब एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड कम्पनी, एआईसीसी के स्थान पर यंग इंडियन की ऋणी हो गई । माना जाता है कि यंग इंडियन ने इस ऋण को खरीदने के लिए 50 लाख रुपये का भुगतान एआईसीसी को किया।

मजे की बात यह कि इस समय तक सिर्फ 1 महीने पुरानी इस यंग इंडियन कंपनी के पास एआईसीसी के ऋण का भुगतान करने के लिए कोई पैसा नहीं था। यंग इंडियन ने इस धन की व्यवस्था केवल 2 महीने में कर ली । जबकि इसके पहले एआईसीसी को 50 लाख रुपये का भुगतान करने के लिए भी यंग इन्डियन ने 01.03.2011 को 1 करोड़ रुपये का ऋण लिया था ।

चलिए इस चर्चा में हम इस महत्वपूर्ण मुद्दे को भूल जाते हैं कि आखिर एआईसीसी ने मात्र 50 लाख रुपये में यंग इंडियन को 90.21 करोड़ रुपये की ऋण राशि क्यों हस्तांतरित की ? आइए हम यह भी भूल जाते हैं कि बाद में यह अधिकार एजेएल के शेयरों में क्यों परिवर्तित किया गया ? आइए हम यह भी भूल जाते हैं कि उपरोक्त आधार पर एजीएल की संपत्तियां यंग इंडियन की कैसे हो गई ?

केवल एक लेनदेन पर ध्यान केन्द्रित करें कि यंग इंडियन को एक करोड़ का ऋण किसने दिया ? यह ऋण जिस कम्पनी ने एक करोड़ का ऋण दिया, उसका गठन महज तीन माह पूर्व ही हुआ था, या यूं कहा जाए कि वह एक प्रकार से कागजी संस्था थी | तो अब सवाल उठता है कि उस कम्पनी के पास आखिर यह एक करोड़ रुपये आये कहाँ से ?

आयकर विभाग का नवीन आदेश इसी पहलू को उजागर करता है:

1. यंग इंडियन ने मेसर्स डॉटेक्स मर्चेंडाइज प्राइवेट लिमिटेड (डॉटेक्स) से 15.02.2011 को 1 करोड़ रुपये का ऋण लिया। 

2. आदेश में कहा गया है कि जब तक मूल आय कर मामले को अंतिम रूप न दे दिया जाए, तब तक डॉटेक्स कम्पनी को मूलधन और ब्याज वापस न चुकाया जाए ।

3. यंग इंडियन द्वारा प्रस्तुत पुष्टिकरण पत्र के अनुसार ऋण की शर्तों में उल्लेखित है कि ऋण वापसी की अवधी चेक की तारीख से 1 वर्ष की है। अर्थात एक प्रकार से यंग इंडियन ने ऋण भुगतान में, ऋण के नियमों और शर्तों का गंभीर उल्लंघन किया, किन्तु इसके बाद भी डॉटेक्स ने कभी भी यंग इंडियन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। डॉटएक्स इस विषय पर कोई भी उचित स्पष्टीकरण देने में विफल रहा कि उसने ऋण की वापसी के लिए कोई प्रयत्न क्यों नहीं किया ।

4. आदेश के अनुसार, ऋण का अंतिम रूप से भुगतान वित्तीय वर्ष 2015-16 में किया गया था "जब जांच की कार्यवाही प्रारम्भ हो गई थी और यंग इन्डियन के कर्ताधर्ताओं को यह समझ में आ गया कि अब यह तथ्य नहीं छुप सकता कि मैसर्स डोटेक्स मर्चेंडाइज प्राइवेट लिमिटेड, हवाला मामले में उलझी हुई एक कागजी कम्पनी है । "

5. श्री सुनील भंडारी और श्री सुनील सांनेरिया डॉटेक्स के निदेशक थे। ये दोनों डॉटेक्स के अतिरिक्त कोलकाता स्थित 50 अन्य कंपनियों के भी निदेशक थे | आदेश में कहा गया है कि आयकर विभाग द्वारा छापे / सर्वेक्षणों के दौरान, इनमें से कई कंपनियों को "आवास प्रविष्टियां" प्रदान करने के व्यवसाय में संलग्न पाया गया । आवास प्रविष्टि का अर्थ है - "नकद लेकर समतुल्य राशि के चेक जारी करना" | बैंक खातों की प्रतियां ने इसे पूरी तरह साबित भी कर दिया ।

6. आदेश में आवास प्रविष्टियों के इस कारोबार को स्पष्ट किया गया है : चेक प्राप्तकर्ता द्वारा समतुल्य राशि के नकद भुगतान के बदले इन कंपनियों द्वारा चेक जारी किए जाते हैं, अर्थात् एक कंपनी नकद के साथ इन कंपनियों तक पहुंचती है, और वे चेक की रकम के बराबर राशि देते हैं | बदले में ये कंपनियों ने ऐसे सौदे पर 1% से 5% कमीशन लेती हैं । जारी किए गए चेक प्राप्तकर्ता की पुस्तकों में "ऋण" के रूप में दिखाए गए, जिन्हें कभी भी चुकाया नहीं गया, क्योंकि यह ऋण नहीं, बल्कि मनी लांड्रिंग का मामला था" |

7. आदेश यह भी स्पष्ट करता है कि यंग इंडियन को 1 करोड़ रुपये का ऋण देने वाली यह नई कंपनी केवल 5 लाख की आधार पूंजी वाली कम्पनी थी, जिसने बिना किसी गारंटी के यह लोन दिया ।

8. आदेश में डॉटेक्स को एक "ज्ञात हवाला प्रविष्टि ऑपरेटर" और "हवाला प्रदान करने में लगी एक कंपनी" के रूप में संदर्भित किया गया है । इस प्रकार यंग इंडियन के साथ हुआ 1 करोड़ रुपये का यह लेन-देन भी भारत सरकार की वित्तीय खुफिया इकाई की नज़रों में "संदिग्ध लेनदेन " के रूप देखी जा रही है ।

9. आगे यह आदेश बताता है कि ऋण की मौजूदगी को साबित करने के लिए, यंग इंडियन ने केवल अपने कन्फर्मेशन लेटर की एक प्रति दायर की है, जिसमें ना तो यह पत्र जारी करने वाले व्यक्ति का नाम है और ना ही कोई पता । यंग इन्डियन द्वारा ना तो इस लेनदेन की वास्तविकता दर्शाने वाले कोई दस्तावेज प्रस्तुत किये हैं और ना ही यह साबित किया गया है कि डॉटेक्स के पास ऋण दी गई राशि आई कहाँ से ।

10. इस आदेश ने ऋण के लिए दिए गए पुष्टिकरण पत्र में कई दोष दर्शाए हैं । उदाहरण के लिए, इसमें ना तो डॉटेक्स का पता था और ना ही अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता का नाम | यहाँ तक कि डॉटेक्स के पैन नंबर का भी उल्लेख नहीं किया गया था। उसमें यंग इंडियन का पता भी नहीं था।

उपरोक्त सभी आधार पर, यह निष्कर्ष निकाला गया कि:

"इस मामले में 1 करोड़ रुपये की राशि मैसर्स यंग इंडियन की स्वयं की है"

उपरोक्त सभी बातें आयकर के आदेश में उल्लेखित है। इससे एक बड़ा सवाल उठता है -

कि क्या वास्तव में यंग इन्डियन द्वारा जमा कराये गए 1 करोड़ रुपये वस्तुतः काला धन था ? 

है ना मजेदार सवाल ?

यह सवाल तब और महत्वपूर्ण हो जाता है जब हम यंग इंडियन के कर्ताधर्ताओं के नामों पर नजर डालते हैं –

१ श्रीमती सोनिया गांधी – २२ जनवरी २०११ से डायरेक्टर कुल शेयर १९०० (३८ % )

2 राहुल गांधी – १३ दिसंबर २०१० से डायरेक्टर कुल शेयर १९०० (३८ % )

३ मोतीलाल वोरा - २२ जनवरी २०११ से डायरेक्टर कुल शेयर ६०० (१२ % )

4 ओस्कर फर्नांडीज - २२ जनवरी २०११ से डायरेक्टर कुल शेयर ६०० (१२ % )

५ सर्यन गंगाराम पित्रोदा उपाख्य सेम पित्रोदा – २३ नवम्बर २०१० से डायरेक्टर कुल शेयर ५५० जो ओस्कर फर्नांडीज को ट्रांसफर कर दिए गए 

६ सुमन दुबे - २३ नवम्बर २०१० से डायरेक्टर कुल शेयर ५५० जो मोतीलाल वोरा को ट्रांसफर किये गए 

क्या यंग इन्डियन के उपरोक्त शेयरधारक और निदेशक इस 1 करोड़ रुपये के काले धन के स्रोत को बता सकते हैं, जिसे लेकर आरोप है कि पहले डीटेक्स को इसका भुगतान किया गया, ताकि यंग इंडियन को "ऋण" के रूप में वापस प्राप्त किया जा सके ? इसे बाद में तब चुकाया गया जब आयकर विभाग ने यंग इंडियन को बताया कि डॉटेक्स वस्तुतः एक हवाला ऑपरेटर था?

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