क्षत्रपति शिवाजी महाराज के सहयोगी रहे महार समाज को अंग्रेजों का सहयोगी बताना उनका घोर अपमान |

आज जब देश की सीमाओं पर संकट के बादल घने हो रहे हैं, आये दिन पाकिस्तान हमारे सैनिकों पर कायराना हमले कर रहा है, ऐसे समय में यह दुर्भाग्य पूर्ण है कि राजनेता चेयर रेस में व्यस्त हैं | पाकिस्तान के साथ हमारे तीन घोषित युद्ध हो चुके है, जबकि लम्बे समय से छद्म युद्ध तो चल ही रहा है। पाकिस्तान की समस्या का स्थाई समाधान केवल एक है, और वह यह कि भारत भी जल्द से जल्द अमेरिका और रूस की तरह महाशक्ति बने । भारत आर्थिक मोर्चे पर चीन को पीछे छोड़े, इसे लक्ष्य बनाकर वर्तमान भारतीय नेतृत्व सतत क्रियाशील है ।  लेकिन यह तभी संभव है, जब विपक्ष टांग खींचना बंद करे | अगर ऐसा नहीं होता है तो जागरुक समाज ऐसे राजनीतिज्ञों को आईना दिखाए, दर किनार करे | आखिर यह कैसा मजाक है कि घोषित अपराधी चारा चोर नेता माना जाता है, ईमानदारी का चोगा पहिनकर सत्ता हासिल करने वाला एक मुख्यमंत्री राज्यसभा के टिकिट बेचता दिखाई देता है | 

किसी समय नेता एक सम्माननीय संबोधन माना जाता था, आज एक गाली बन गया है | अनास्था के इस दौर में देश के वर्तमान हालात को देखते हुए अब जनता के द्वारा यह मांग उठना चाहिए कि राजनेताओं के आपराधिक मामलों के त्वरित समाधान हेतु फास्ट ट्रेक कोर्ट हों | इसके पहले कि सत्तालोलुप भारत तोड़ो समूह, महाराष्ट्र के समान भारत के दूसरे हिस्सों में भी अराजकता का नग्न तांडव शुरू करे, उन पर कानूनी सिकंजा कसा जाना न्यायोचित है | बैसे भी पूर्व में न्यायालय यह निर्णय दे ही चुके हैं कि बंद और आन्दोलन के दौरान होने वाली सार्वजनिक और निजी संपत्ति की क्षति आयोजकों से बसूली जानी चाहिये | 

लेकिन अभी भड़काने वाले नेताओं पर आपराधिक मामले लागू कर उनका निराकरण छह महीनों में दिया जा सके, ऐसे क़ानून बनाये जाने की जरूरत है । यह सुविज्ञ तथ्य है कि आम आदमी का इस प्रकार के अराजक आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं होता, ये केवल निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा प्रेरित होते हैं। न्यायपालिका की ताकत को आम आदमी के हित में और उनके कल्याण में उपयोग करने की जरूरत है।

आईये अब महाराष्ट्र के प्रकरण पर विचार करें, जहाँ झूठे ऐतिहासिक आंकड़ों के माध्यम से जातीय संघर्ष भड़काने की साजिश रची गई | कहा गया कि तथाकथित दलित महार ब्राह्मण पेशवाओं के विरोधी थे, क्योंकि उनके ऊपर अत्याचार हुए थे |

प्रसिद्ध इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने अपनी पुस्तक “Shivaji and his Times” के पेज 363 पर उल्लेख किया है कि शिवाजी की सेना में बड़ी संख्या में महार भी थे | इतना ही नहीं तो शिवन्नक महार को तो उनके जीवट और बहाद्दुरी के लिए पुरष्कृत करते हुए शिवाजी के पुत्र राजाराम ने कलमबी गांव भेंट किया था। इसी शिवन्नक के पोते ने, जिसका नाम भी शिवन्नक ही था, 17 95 में निजाम के खिलाफ हुई खर्दा की लड़ाई में परशुराम भाऊ की प्राण रक्षा की थी । 

केव्ही कोटवाले ने अपनी पुस्तक “politics of the Dalits – 1974” के पेज 142-145 में उल्लेख किया है कि जब कुछ लोगों ने जाति के आधार पर शिवन्नक महार की मराठा शिविर में उपस्थिति पर आपत्ति जताई तो पेशवा के ब्राह्मण सलाहकार हीरोजी पाटनकर ने ही अभिमत दिया कि युद्ध क्षेत्र में जाति नहीं शौर्य मुख्य होता है | 

व्ही लोंगर लिखित “Forefront for Ever: The History of the Mahar Regiment” के पेज 12 पर नग्नक महार के युद्ध कौशल का उल्लेख है, जिसने मुसलमानों से वैराटगढ़ का किला जीतकर राजाराम को अर्पित किया | इससे प्रसन्न होकर राजाराम ने उन्हें सतारा का पाटिल नियुक्त किया |

इतिहास की इन यथार्थ कहानियों के स्थान पर काल्पनिक कथाओं को प्रचारित कर वर्ग संघर्ष के द्वारा भारत को कमजोर करने का षडयंत्र रचने वालों को बेनकाब करने और इतना ही नहीं तो दण्डित करने की मांग राष्ट्रभक्त समाज से उठना ही चाहिए | जनमत का यह दबाब इतना प्रबल हो कि सत्ता शीर्ष पर बैठे नेता भी विवश हो जाएँ कुछ करने को |

कोई भी समझदार व्यक्ति यह आसानी से समझ सकता है कि कुशल योद्धा कुछ महार अगर औपनिवेशिक अंग्रेजों के साथ थे, तो भारतीय मराठा सैन्य दल में भी थे | ब्रिटिश सेना के साथ हुए युद्ध में दोनों पक्षों के लोग हताहत हुए थे, यह भी ऐतिहासिक तथ्य है | पेशवा की सेना में भी अन्य समुदायों के साथ साथ तथाकथित दलित समुदाय के लोग भी थे | तो ऐसा क्यूं नहीं कहा जा सकता कि अंग्रजों ने वह युद्ध पेशवा सेना के दलितों के खिलाफ लड़ा था?

यह कैसा बिद्रूप मजाक है कि कोरेगांव के युद्ध को ब्रिटिश बनाम भारतीयों की लड़ाई के स्थान पर पेशवा और महार के बीच का युद्ध बना दिया गया | और 21 वीं सदी के आजाद भारत में इस गुलामी की मानसिकता पर कोई खुलकर बोलना भी नहीं चाहता!

क्या आपने किसी को शिवन्नक महार का महिमामंडन करते देखा सूना? क्योंकि उसके महिमा मंडन से भारत में जातीय संघर्ष को हवा नहीं मिलेगी, जैसा कि सत्तालोलुप भ्रष्ट राजनेता चाहते हैं ।

आखिर कोई तो यह पूछे कि आखिर महारों ने युद्ध कौशल सीखा कहाँ से? क्या अंग्रेजों ने उनके लिए कोई प्रशिक्षण संस्थान चलाया था ? शिवाजी महाराज से लेकर पेशवा काल तक महार मराठा सेना के अभिन्न अंग रहे। उनके उस समय के पराक्रम को भुलाने और अंग्रेजों के सहायक की भूमिका को चर्चित करना, क्या उनका अपमान नहीं है |

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