टूटे मनोबल से कैसे जीत पायेगी कांग्रेस – मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान ? - हरिहर शर्मा



गुजरात में वोट प्रतिशत और सीटें बढ़ने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी होंसे फूले घूम रहे हैं | कांग्रेस के छुटभैये नेता भी मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में इसी वर्ष होने वाले चुनाव में अपने वनवास के ख़तम होने की आशा बांधे हुए हैं । लेकिन जमीनी हकीकत तो कुछ और ही बयान कर रही है |

माना जा रहा है कि इस साल जिन राज्यों में चुनाव होने वाले हैं उनमें कांग्रेस की सबसे प्रबल विजय संभावना राजस्थान में है। इस राज्य की दो लोकसभा सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं | ये सीटें हैं – अजमेर और अलवर | २०१४ के चुनाव में यहाँ से कांग्रेस के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट और राहुल जी के करीबी माने जाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री भंवर जितेंद्र सिंह क्रमशः पाने दो लाख और पाने तीन लाख के विशाल अन्तर से पराजित हुए थे | इन सीटों पर जीते दोनों सांसदों का निधन हो जाने के कारण अब यहाँ उपचुनाव हो रहे हैं। 

समाचार पत्रों की मानें तो जब प्रत्यासी चयन पर विचार हुआ तो सबसे पहले इन्हीं दोनों की उम्मीदवारी को लेकर चर्चा हुई | कहा गया कि अगर ये दोनों लड़कर जीते तो भाजपा का मनोबल राजस्थान में तो क्या, पूरे भारत में रसातल में पहुँच जाएगा और वर्ष के अंत में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव तो आसानी से जीत ही लिया जाएगा | 

किन्तु हुआ क्या ? हार के डर से सचिन पायलट और जितेंद्र सिंह ने हाथ खड़े कर दिए | मजे की बात यह है कि आगामी चुनाव में ये दोनों ही दिग्गज मुख्यमंत्री की कुर्सी के प्रबल दावेदार हैं । लेकिन इन दोनों ने ही पार्टी की संभावनाओं पर शुरूआती ग्रहण लगा दिया | इसके बाद मजबूरी में पार्टी ने अजमेर में रघु शर्मा को और अलवर में डॉक्टर कर्ण सिंह यादव को उम्मीदवार बनाया है।

सीधा सा अर्थ है कि माना गया कि अगर दोनों दिग्गज चुनाव हार गए तो विधानसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेस को बड़ा झटका लगेगा और भाजपा का मनोबल बढ़ेगा। एक ओर तो ये दोनों महाशय अपने आप को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मान रहे हैं और दूसरी ओर सकपकाए हुए भी हैं, कि अगर उपचुनाव नहीं जीते तो राजनैतिक भविष्य ही समाप्त हो जाएगा ।

कुछ ऐसा ही नजारा मध्यप्रदेश का भी है | यहाँ माना जा रहा था कि कांग्रेस इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया को भावी मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट कर चुनाव मैदान में उतरेगी | लेकिन अब कहा जा रहा है कि यह कांग्रेस की परिपाटी नहीं है | अतः अब बिना किसी नेता के ही कांग्रेस चुनाव मैदान में उतरेगी | सिंधिया सरकार व उनके समर्थकों का उत्साह तो बासी कढ़ी के उफान की तरह नदारद होना स्वाभाविक ही है, जो स्वप्नलोक में अपने आप को सिंहासनारूढ़ देख रहे थे | 

और छत्तीसगढ़ में तो यही तय नहीं है कि कांग्रेस के पूर्व छत्रप अजीत जोगी की वापसी होगी या नहीं ? चुनाव अजीत जोगी के नेतृत्व में होगा या वर्तमान नेताओं के नेतृत्व में |

सचमुच गुटों में बंटी कांग्रेस का मनोबल लड़ाई के पहले ही पेंदे में है |


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