संघ प्रमुख के बयान पर विवाद क्योँ ? - दिवाकर शर्मा


संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुजफ्फरपुर में एक कार्यक्रम के दौरान केवल इतना भर कहा कि 'अगर देश को जरूरत पड़े और देश का संविधान क़ानून कहे तो सेना तैयार करने को छः सात महीना लग जाएगा, संघ के स्वयंसेवक तीन दिन में तैयार हो जायेंगे | क्योंकि संघ स्वयंसेवक नियमित अनुशासन का अभ्यास करते हैं | यह हमारी क्षमता है पर हम सैन्य संगठन नहीं, पारिवारिक संगठन हैं लेकिन संघ में सेना जैसा अनुशासन है ! अगर कभी देश को जरूरत हो और संविधान इजाजत दे तो स्वयं सेवक मोर्चा संभाल लेंगे ! देश की विपदा में स्वयंसेवक हर वक्त मौजूद रहते हैं ! आशय स्पष्ट था कि अगर देश को आवश्यकता होगी तो संघ स्वयंसेवक मिलिट्री प्रशिक्षण लेकर सीमा पर जाने को भी तैयार हैं | साथ ही सामान्य व्यक्ति को मिलिट्री प्रशिक्षण लेने में अगर छः सात महीने लगेंगे तो स्वयंसेवक तीन दिन में प्रशिक्षित हो जायेंगे, क्योंकि नियमित अभ्यास से अनुशासन उनके स्वभाव में आ गया है |


यह है मोहन जी भागवत के भाषण के वे अंश –

बस इस बयान को लेकर राहुल गाँधी जी समेत देश के अनेक नेताओं ने संघ प्रमुख के इस बयान की आलोचना यह कहते हुए प्रारंभ कर दी कि संघ प्रमुख को सेना और शहीदों का अपमान करने के लिए शर्म आनी चाहिए ! अब सोचने वाली बात यह है कि शर्म किसे आनी चाहिए सेना को हर समय सहयोग देने वालों को या हर समय सेना का मनोबल तोड़ने की फिराक में रहने वाले नेताओं को ? 

आदर्श स्थिति तो यह होती कि मोहन जी भागवत के इस बयान की प्रतिक्रिया में कांग्रेस अध्यक्ष अपनी पार्टी की भी तत्परता दिखाते और कहते कि अगर देश को जरूरत होगी तो संघ स्वयंसेवक ही क्यों कांग्रेस जन भी ट्रेनिंग लेकर देश की रक्षा के लिए सीमा पर जाने को तत्पर हैं |अगर प्रतिस्पर्धा ही करनी है तो देश के लिए त्याग और बलिदान की करो, समाज को हतोत्साहित करने की नहीं | 

1925 में दशहरे के दिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी ! तब से लेकर अब तक संघ को सांप्रदायिक हिंदूवादी, फ़ासीवादी और न जाने किन किन शब्दों से पुकार कर आलोचना की जाती रही है ! दुनिया में शायद ही किसी संगठन की इतनी आलोचना की गई होगी ! वह भी बिना किसी आधार के ! संघ के ख़िलाफ़ लगा हर आरोप आख़िर में पूरी तरह कपोल-कल्पना और झूठ साबित हुआ है ! कोई शक नहीं कि आज भी कई लोग संघ को इसी नेहरूवादी दृष्टि से देखते हैं ! हालांकि ख़ुद नेहरू को जीते-जी अपना दृष्टि-दोष ठीक करने का एक दुखद अवसर तब मिल गया था, जब 1962 में देश पर चीन का आक्रमण हुआ था ! तब देश के बाहर पंचशील और लोकतंत्र वग़ैरह आदर्शों के मसीहा जवाहरलाल न ख़ुद को संभाल पा रहे थे, न देश की सीमाओं को ! लेकिन संघ अपना काम कर रहा था ! 

आइये जानते है भारत में आरएसएस के महत्वपूर्ण योगदान 

कश्मीर सीमा पर निगरानी, विभाजन पीड़ितों को आश्रय 

संघ के स्वयंसेवकों ने अक्टूबर 1947 से ही कश्मीर सीमा पर पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों पर बगैर किसी प्रशिक्षण के लगातार नज़र रखी ! यह काम न नेहरू-माउंटबेटन सरकार कर रही थी, न हरिसिंह सरकार ! उसी समय, जब पाकिस्तानी सेना की टुकड़ियों ने कश्मीर की सीमा लांघने की कोशिश की, तो सैनिकों के साथ कई स्वयंसेवकों ने भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए लड़ाई में प्राण दिए थे ! विभाजन के दंगे भड़कने पर, जब नेहरू सरकार पूरी तरह हैरान-परेशान थी, संघ ने पाकिस्तान से जान बचाकर आए शरणार्थियों के लिए 3000 से ज़्यादा राहत शिविर लगाए थे ! 

1962 का युद्ध 

सेना की मदद के लिए देश भर से संघ के स्वयंसेवक जिस उत्साह से सीमा पर पहुंचे, उसे पूरे देश ने देखा और सराहा ! स्वयंसेवकों ने सरकारी कार्यों में और विशेष रूप से जवानों की मदद में पूरी ताकत लगा दी ! सैनिक आवाजाही मार्गों की चौकसी, प्रशासन की मदद, रसद और आपूर्ति में मदद, और यहां तक कि शहीदों के परिवारों की भी चिंता ! जवाहर लाल नेहरू को 1963 में 26 जनवरी की परेड में संघ को शामिल होने का निमंत्रण देना पड़ा ! परेड करने वालों को आज भी महीनों तैयारी करनी होती है, लेकिन मात्र दो दिन पहले मिले निमंत्रण पर 3500 स्वयंसेवक गणवेश में उपस्थित हो गए ! निमंत्रण दिए जाने की आलोचना होने पर नेहरू ने कहा- “यह दर्शाने के लिए कि केवल लाठी के बल पर भी सफलतापूर्वक बम और चीनी सशस्त्र बलों से लड़ा सकता है, विशेष रूप से 1963 के गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने के लिए आरएसएस को आकस्मिक आमंत्रित किया गया !” 

कश्मीर का विलय 

कश्मीर के महाराजा हरि सिंह विलय का फ़ैसला नहीं कर पा रहे थे और उधर कबाइलियों के भेष में पाकिस्तानी सेना सीमा में घुसती जा रही थी, तब नेहरू सरकार तो - हम क्या करें वाली मुद्रा में मुंह बिचकाए बैठी थी ! सरदार पटेल ने गुरु गोलवलकर से मदद मांगी ! गुरुजी श्रीनगर पहुंचे, महाराजा से मिले ! इसके बाद महाराजा ने कश्मीर के भारत में विलय पत्र का प्रस्ताव दिल्ली भेज दिया ! क्या बाद में महाराजा हरिसिंह के प्रति देखी गई नेहरू की नफ़रत की एक जड़ यहां थी? 

1965 के युद्ध में क़ानून-व्यवस्था संभाली 

पाकिस्तान से युद्ध के समय लालबहादुर शास्त्री को भी संघ याद आया था ! शास्त्री जी ने क़ानून-व्यवस्था की स्थिति संभालने में मदद देने और दिल्ली का यातायात नियंत्रण अपने हाथ में लेने का आग्रह किया, ताकि इन कार्यों से मुक्त किए गए पुलिसकर्मियों को सेना की मदद में लगाया जा सके ! घायल जवानों के लिए सबसे पहले रक्तदान करने वाले भी संघ के स्वयंसेवक थे ! युद्ध के दौरान कश्मीर की हवाईपट्टियों से बर्फ़ हटाने का काम संघ के स्वयंसेवकों ने किया था ! 

गोवा का विलय 

दादरा, नगर हवेली और गोवा के भारत विलय में संघ की निर्णायक भूमिका थी ! 21 जुलाई 1954 को दादरा को पुर्तगालियों से मुक्त कराया गया, 28 जुलाई को नरोली और फिपारिया मुक्त कराए गए और फिर राजधानी सिलवासा मुक्त कराई गई ! संघ के स्वयंसेवकों ने 2 अगस्त 1954 की सुबह पुतर्गाल का झंडा उतारकर भारत का तिरंगा फहराया, पूरा दादरा नगर हवेली पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त करा कर भारत सरकार को सौंप दिया ! संघ के स्वयंसेवक 1955 से गोवा मुक्ति संग्राम में प्रभावी रूप से शामिल हो चुके थे ! गोवा में सशस्त्र हस्तक्षेप करने से नेहरू के इनकार करने पर जगन्नाथ राव जोशी के नेतृत्व में संघ के कार्यकर्ताओं ने गोवा पहुंच कर आंदोलन शुरू किया, जिसका परिणाम जगन्नाथ राव जोशी सहित संघ के कार्यकर्ताओं को दस वर्ष की सजा सुनाए जाने में निकला ! हालत बिगड़ने पर अंततः भारत को सैनिक हस्तक्षेप करना पड़ा और 1961 में गोवा आज़ाद हुआ ! 

आपातकाल 

1975 से 1977 के बीच आपातकाल के ख़िलाफ़ संघर्ष और जनता पार्टी के गठन तक में संघ की भूमिका की याद अब भी कई लोगों के लिए ताज़ा है ! सत्याग्रह में हजारों स्वयंसेवकों की गिरफ्तारी के बाद संघ के कार्यकर्ताओं ने भूमिगत रह कर आंदोलन चलाना शुरु किया ! आपातकाल के खिलाफ पोस्टर सड़कों पर चिपकाना, जनता को सूचनाएं देना और जेलों में बंद विभिन्न राजनीतिक कार्यकर्ताओं –नेताओं के बीच संवाद सूत्र का काम संघ कार्यकर्ताओं ने संभाला ! जब लगभग सारे ही नेता जेलों में बंद थे, तब सारे दलों का विलय करा कर जनता पार्टी का गठन करवाने की कोशिशें संघ की ही मदद से चल सकी थीं ! 

भारतीय मज़दूर संघ 

1955 में बना भारतीय मज़दूर संघ शायद विश्व का पहला ऐसा मज़दूर आंदोलन था, जो विध्वंस के बजाए निर्माण की धारणा पर चलता था ! कारखानों में विश्वकर्मा जयंती का चलन भारतीय मज़दूर संघ ने ही शुरू किया था ! आज यह विश्व का सबसे बड़ा, शांतिपूर्ण और रचनात्मक मज़दूर संगठन है ! 

ज़मींदारी प्रथा का ख़ात्मा 

जहां बड़ी संख्या में ज़मींदार थे उस राजस्थान में ख़ुद सीपीएम को यह कहना पड़ा था कि भैरों सिंह शेखावत राजस्थान में प्रगतिशील शक्तियों के नेता हैं ! संघ के स्वयंसेवक शेखावत बाद में भारत के उपराष्ट्रपति भी बने ! 

भारतीय विद्यार्थी परिषद, शिक्षा भारती, एकल विद्यालय, स्वदेशी जागरण मंच, विद्या भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की स्थापना ! विद्या भारती आज 20 हजार से ज्यादा स्कूल चलाता है, लगभग दो दर्जन शिक्षक प्रशिक्षण कॉलेज, डेढ़ दर्जन कॉलेज, 10 से ज्यादा रोजगार एवं प्रशिक्षण संस्थाएं चलाता है ! केन्द्र और राज्य सरकारों से मान्यता प्राप्त इन सरस्वती शिशु मंदिरों में लगभग 30 लाख छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं और 1 लाख से अधिक शिक्षक पढ़ाते हैं ! संख्या बल से भी बड़ी बात है कि ये संस्थाएं भारतीय संस्कारों को शिक्षा के साथ जोड़े रखती हैं ! 

अकेला सेवा भारती देश भर के दूरदराज़ के और दुर्गम इलाक़ों में सेवा के एक लाख से ज़्यादा काम कर रहा है ! लगभग 35 हज़ार एकल विद्यालयों में 10 लाख से ज़्यादा छात्र अपना जीवन संवार रहे हैं ! उदाहरण के तौर पर सेवा भारती ने जम्मू कश्मीर से आतंकवाद से अनाथ हुए 57 बच्चों को गोद लिया है जिनमें 38 मुस्लिम और 19 हिंदू बच्चे हैं ! 

सेवा कार्य 

1971 में ओडिशा में आए भयंकर चंक्रवात से लेकर भोपाल की गैस त्रासदी तक, 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों से लेकर गुजरात के भूकंप, सुनामी की प्रलय, उत्तराखंड की बाढ़ और कारगिल युद्ध के घायलों की सेवा तक - संघ ने राहत और बचाव का काम हमेशा सबसे आगे होकर किया है ! भारत में ही नहीं, नेपाल, श्रीलंका और सुमात्रा तक में ! 

दिवाकर शर्मा
संपादक - क्रांतिदूत डॉट इन
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