श्योपुर के हिन्दू सम्मेलन में आरएसएस के अखिल भारतीय सह सरकार्यवाह सुरेश जी सोनी का सारगर्भित उद्बोधन !



यूं तो दुनिया में बहुत से देश हैं, किन्तु सम्पूर्ण विश्व को अपना परिवार मानने वाला, अपना मानने वाला, जड़ हो या चेतन हो, पक्षी हो या मनुष्य हो, सबमें ईश्वरत्व को देखने वाला, अगर कोई दर्शन है, धर्म है, संस्कृति है, तो वह हिन्दू है | इसीलिए जब १८९३ में अमरीका की धरती पर दुनिया के सभी धर्मों को मानने वाले लोग एकत्रित हुए थे, उस सभा के अन्दर, हिन्दू धर्म की विजय ध्वजा को जिन्होंने फहराया, उन विवेकानंद ने उस समय कहा था, कि मैं उस धर्म की ओर से यहाँ उपस्थित हूँ, जिसने दुनिया में अगर किसी को भी तकलीफ हुई तो, उसे सहारा दिया | 

हजारों साल पहले यहूदियों को उनके देश इजराईल से उखाड़ दिया गया, उन्हें शरण भारत की धरती ने दी | जब ईरान से अग्निपूजक पारसियों को इस्लाम के अनुयाईयों ने खदेड़ा, उन्हें शरण भारत ने दी | इस नाते से हिन्दू का जो तत्वज्ञान है, दर्शन है, जो जीवन मूल्य है, वह केवल भारत के भले के लिए नहीं, बल्कि दुनिया के सभी देशों को आपसी सहयोग, भाईचारे का सन्देश देने वाला है | 

हम अपने आसपास की छोटी छोटी बातों को देखें, मैं कोई पुराने ज़माने की बात नहीं कर रहा हूँ, कुछ समय पूर्व तक हिन्दुस्तान के हर घर में कुछ परम्पराएं थीं, जिन्हें हम आधुनिकता के दौर में भूल रहे हैं | घर में मां जब रोटी बनाती थी, तब पहली रोटी अपने भूखे बच्चे को भी नहीं देती थी, गाय के लिए रखती थी | इसी प्रकार आख़िरी रोटी कुत्ते के लिए निकाली जाती थी | सुबह उठते ही, पक्छियों के लिए दो मुट्ठी अनाज छत पर डालते थे | हर घर में पानी का पात्र टांगते थे | कोई पंक्छी प्यासा होगा तो उसे पानी पीने को मिलना चाहिए | आज हम उस हिन्दू भाव से दूर हुए, तो पक्छी तो छोड़ दीजिये, आदमी के लिए भी १५ रुपये की बोतल लेना पड़ती है | यह परम्परा थी जो पशु को, पंछी को, मछली को, चींटी को, हिन्दुस्थान के किसी घर में कोई अपरिचित भी जाए, तो उसे भोजन को पूछते थे | क्यों ? क्योंकि यह दुनिया एक परिवार है, यह भाव था | आज उस भाव को भूल रहे हैं, इसलिए याद दिलाने को यह हिन्दू सम्मेलन | उसका केवल वर्णन नहीं तो हमारे जीवन के व्यवहार के लिए है | 

हमारे यहाँ भगवान् मछली के रूप में अवतार लेता है – मत्स्यावतार | कछुए के रूप में अवतार लेता है – कूर्मावतार | आधा मनुष्य, आधा पशु तो नरसिंहावतार | प्रहलाद को जब उसका पिता हिरण्यकश्यपू पूछता है कि तेरा नारायण कहाँ है, तो वह जबाब देता है – वह सब जगह है | 

हिरण्यकश्यपू पूछता है कि वह स्तम्भ में है क्या ? प्रहलाद का जबाब होता है - हाँ | और जब हिरण्यकश्यपू स्तम्भ में गदा मारता है तो उसमें से नृसिंह निकलते हैं | पत्थर में भी भगवान् | ऐसा मानने वाला हिन्दू समाज, उसमें यह बात कहाँ से आ गई कि कोई वन में रहने वाला है या किसी जाति विशेष में उत्पन्न हुआ है, तो हम छुएंगे नहीं | एक ओर तो हम कहते हैं कि राम ने शबरी के झूठे बेर खाए, किन्तु हमारे घर के पास जो शबरी रहती है, उसे हम कैसे देखते हैं ? अगर भगवान् कण कण में है, तो किसी जाति में कोई पैदा हो गया, तो उसे छुएंगे नहीं, यह हिन्दू होने का लक्षण है क्या ? हिन्दू तो सबकी चिंता करता है | अगर हमारे मोहल्ले में, गाँव में, पडौस में कोई बिना पढालिखा है, और हम चिंता नहीं करते, कोई गरीब है और हम चिंता नहीं करते, कोई भूखा है – हम चिंता नहीं करते, यह क्या हिन्दू होने का लक्षण है ? 

यह हिन्दू सम्मेलन और इसकी तैयारी में पिछले दो तीन महीनों से हुए कार्यक्रम, समाज को इन हिन्दू जीवन मूल्यों की ओर लौटाने का एक प्रयत्न हैं | आज का यह प्रसंग केवल ताली बजाने या जयजयकार करने का नहीं है, हरेक हिन्दू को अपने दिल के अन्दर गहराई से सोचने का है कि हम क्या थे, आज क्या हो गए हैं और कल को हमें क्या होना है | उस होने के लिए सबको प्रयत्न करने की आवश्यकता है | 

एक बात इतिहास हमको बताता है | जब जब हिन्दू समाज में हिन्दू भावना कम हुई, अपनी जाति की, अपने प्रांत की, अपनी भाषा की, भावनाएं उग्र हुईं, तो उसका परिणाम क्या हुआ ? एक गीत था – हिन्दू भाव को जब जब भूले, आई विपति महान | हम सब हिन्दू है, इस भाव को जब भी भूलते हैं तब आपत्ति आती है | क्या आपत्ति ? 

भाई छूटे, धरती खोई, मिटे धर्मसंस्थान | 

हमारे लोग धर्मान्तरित होकर पराये हो गए, किसी जमाने में गांधार हिन्दू देश था, आज मुस्लिम देश हो गया | पाकिस्तान सम्पूर्ण हिन्दू क्षेत्र था, आज मुस्लिम देश हो गया | जितने धर्मस्थान थे, वे भ्रष्ट हुए, अयोध्या का हो, काशी का हो, मथुरा का हो, या हमारे आसपास के गाँव का हो | और इस नाते से अगर हमारे देश पर समाज पर संकट नहीं लाना है, तो इस हिन्दू भाव को नहीं भूलना है | 

आजकल हिन्दुस्थान के अन्दर बहुत सी ताकतें सक्रिय हैं, जो छोटी छोटी निष्ठाओं को बढ़ा रही हैं, प्रचार कर रही हैं कि तुम हिन्दू नहीं हो | वनवासी समाज में जाते हैं और कहते हैं, तुम गोंड हो, तुम सहरिया हो, तुम भील हो, तुम भिलारा हो, तुम कोरकू हो, तुम ढिमासा हो, तुम हिन्दू नहीं हो | लेकिन वास्तविकता क्या है ? इस देश का अनुसूचित जाति का भाई हो या अनुसूचित जनजाति का वन्धु हो, अनादिकाल से इस हिन्दू परंपरा से जुड़े रहे हैं | सांस्कृतिक रूप से धार्मिक रूप से जुड़े रहे हैं | उदाहरण के लिए भारत में सूर्य सबसे पहले उगता है, पूर्व दिशा में अरुणांचल प्रदेश, वहां पर कितुविष्टि नामकी जनजाति है, वह स्वयं को भगवान् कृष्ण की पत्नी रुक्मणि के बड़े भाई रुक्मी का वंशज मानते हैं | हिमाषा और बोडो जनजाति के लोग, अपने को घटोत्कच का वंशज मानते हैं | नागालेंड के लोग सूर्य के उपासक हैं, मणिपुर का राजा, अर्जुन के पौत्र बब्रूवाहन का वंशज मानते हैं | त्रिपुरा के लोग ययाति के पुत्र देहू के वंशज मानते हैं, स्वयं को | मीजोरम में आप जायेंगे तो देखेंगे कि आज वे भले ही इसाई हैं, किन्तु खेती करते समय राम और लक्ष्मण की याद करते हैं | वे मानते हैं कि कच्चे मांस पर जीवन यापन करने वाले हम लोगों को राम और लक्ष्मण ने खेती करना सिखाया | कांगी लोग अपने को बाली और सुग्रीव का वंशज मानते हैं | उडीसा, छत्तीसगढ़, झारखंड, सब जगह भगवान् शिव, भगवान् राम, भगवान हनुमान, की उपासना की जाती है | इस प्रकार यह सम्पूर्ण समाज हिन्दू आस्थाओं और हिन्दू परम्पराओं से जुडा हुआ है | 

अंग्रेज शासनकाल में उनके विदेशी साम्राज्य से लड़ने वाले वनवासी बन्धु, उत्तर से दक्षिण और पूरव से पश्चिम तक थे | अरुणांचल में गुरिल्ला वार की तरह अंग्रेजों से लड़ने वाला जनजाति नेता मओ जिओ जांग था | आसाम में शम्भुधन गुन्ग्लू ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी | मेघालय के अन्दर तीन वनवासी जनजातियाँ हैं, जैसे यहाँ सहरिया हैं, वहां खासी, जयंतिया, और गारो हैं | खासी में युक्तिबक्षी, जयंतिया में लुन्गुवा और गारो में थोडांग सांतवा ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते लड़ते, अपने आप को वलिदान कर दिया | मणिपुर के अन्दर युद्धिरोग्सिंग, उडीसा के अन्दर वीर चक्कविश्वनी थे, जिन्होंने विदेशी सत्ता के खिलाफ संघर्ष किया | झारखंड में विरसा मुंडा, पाना भगत, मध्यभारत में तात्या भील, महाकौशल में शंकर शाह, राजस्थान में गोविन्द गुरू और धोनी रमणी, इन लोगों ने लोगों के अन्दर से विकार दूर किये, नशाबंदी की मुहीम चलाई और अंग्रेजों के विरुद्ध समाज को खड़ा किया | महाराष्ट्र के अन्दर उमाजी नायक, आंध्र में अन्नाजी सीताराम राजू तो केरल में बनाक्कम चंदू, ने अंग्रेजों से लोहा लिया | आज आवश्यकता इस बात की है कि वनवासी वन्धुओं को अपनी संस्कृति से जुड़ाव के सूत्रों की, विदेशी संस्कृति के विरुद्ध किये गए उनके संघर्ष की याद दिलाई जाए | 

इसी के साथसाथ एक भ्रम अंग्रेजों ने फैलाया है, कि जनजाति के लोगों का कोई धर्म नहीं है, इनका कोई दर्शन नहीं है, ये प्रकृति पूजक हैं | किन्तु वे यह भूल गए कि सारा हिन्दू समाज ही प्रकृति पूजक है | हम जल की पूजा करते है, सूर्य की पूजा करते हैं, हवा की पूजा करते हैं, पशु पक्षी पेड़ सबकी पूजा करते हैं | इतना ही नहीं तो सभी जनजातियों के अन्दर जो परम्पराएं हैं, ये धरती कैसे बनी, पुनर्जन्म होता है कि नहीं, जो बातें हमारे ऋषि मुनियों ने कही हैं, सभी जनजातियों की परम्पराओं के अन्दर भी वही बातें हैं | इस नाते से आज आवश्यकता इस बात की है कि सम्पूर्ण समाज में हिन्दू भाव को कमजोर करने का जो प्रयत्न चल रहा है, उसका हर धरातल पर उत्तर दिया जाए | 

हमारे समाज में अगर विषमताएं रहेंगी, हम छुआछूत में पड़े रहेंगे, तो देश कभी एक नहीं हो सकता | इसलिए हम संकल्प लें कि राम कृष्ण को मानने वाले, कण कण में ईश्वर को देखने वाले हम लोग, अब आगे से किसी भी जाति का हो, वह हमारा भाई है, उसका दुःख दर्द हमारा अपना है, इस भाव को अपने दैनंदिन व्यवहार में प्रदर्शित करेंगे | आज आवश्यकता इस बात की है कि जनजाति के लोगों में, गाँवों में जो गरीबी है, उसे दूर करने के लिए सामाजिक संस्थाएं खडी हों | उनके अन्दर शिक्षा का, संस्कार का, व्यसन मुक्ति का, प्रयत्न करने की आवश्यकता है | 

आंध्र में कुछ सरकारी अफसर एक गाँव में कोई स्कीम लेकर गए | गाँव की महिलाओं ने एकत्रित होकर कहा कि आप तो और कुछ मत करिए, बस एक काम कर दीजिये तो सब ठीक हो जाएगा | शराब बंदी कर दीजिये | जो कुछ कमाई होती है, शराब पीने में बर्बाद हो जाती है | शराब पीने के बाद घरों में जो व्यवहार होता है, उसके कारण घर टूट जाते हैं | आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि उत्तराखंड के एक गाँव कि महिलाओं ने स्वयं आगे बढ़कर सब भट्टियां बंद करवा दीं, दुकानें बंद करवा दीं और दो साल के अन्दर उस गाँव के हर घर में मोटर साईकिलें, और स्कोर्पियो गाड़ियां खरीदी जाने लगीं | व्यसन मुक्त समाज की आर्थिक स्थिति में कितना बड़ा अंतर आता है, परिवारों की टूटन कितनी रुक जाती है, यह उसका प्रमाण है | इसलिए अपने हर मोहल्ले में, ग्रामीण क्षेत्र में, इन विकृतियों, कुरीतियों से मुक्ति के लिए आज सामाजिक नेतृत्व को, सामाजिक संगठनों को, सबको मिलकर प्रयत्न करने की आवश्यकता है | 

आज सम्पूर्ण देश में जो अनाचार, अत्याचार, भ्रष्टाचार दिखाई देता है, उसका मूल कारण यही है कि हिन्दू परंपरा ने जो मूल सन्देश हमको दिए थे, उसको हम भूल गए | हमारे पूर्वजों ने कहा था, पराये धन को मिट्टी समझो | जब समाज इस पर चलता था, तब केवल मेरे पुरुषार्थ से कमाए धन को ही अपना माना जाता था | यह केवल भाषण नहीं था, आज से कुछ साल पहले तक अगर सोना भी रास्ते में पड़ा हो तो गाँव में कोई हाथ नहीं लगाता था | पुराने जमाने के लोगों को स्मरण होगा, कि किसी काम के लिए अगर कोई रिश्वत देता था, तो कुछ लोग ऐसे भी होते थे, जो कहते थे, कि नहीं बाबू, घूस का पैसा हम नहीं लेंगे, हम बाल बच्चे वाले हैं, उनको नुक्सान होगा | यह पराया धन मिट्टी का जीवन मूल्य हमने छोड़ दिया | परिणाम यह हुआ कि रिश्वत लेने से मना करने के स्थान पर रिश्वत मांगी जाने लगी और वह भी यह कहकर कि क्या करें, हमारे भी तो बाल वच्चे हैं | शब्द तो वही हैं, किन्तु अर्थ बदल गए | क्यों ? क्योंकि जीवन से नैतिक मूल्य निकल गया | 

हमारे यहाँ कहते थे, पराई स्त्री को मां समझो | शिवाजी ने मुस्लिम सरदार की सुन्दर पत्नी को यह कहकर ससम्मान वापस लौटा दिया कि अगर मेरी मां भी इतनी सुन्दर होती, तो मैं भी सुन्दर होता | आज जब हम छः छः महीने, नौ नौ महीने की बच्चियों के साथ बलात्कार की खबरें जब अखबारों में पढ़ते हैं, तब नैतिक मूल्य समाज से निकल जाने पर समाज का क्या चित्र बनता है, यह ध्यान में आता है | इसलिए एक ही श्लोक में जो तीन बातें हमारे ऋषियों ने कही थीं, उन्हें अगर हिन्दू समाज मान ले तो भारत पुनः विश्वगुरू बन सकता है – 

मातृवत पर दारेषु, पर द्रव्येषु लोष्ठवत, आत्मवत सर्व भूतेशु !

पराई स्त्री मां के समान, पराया धन मिट्टी के समान और आसपास जितने भी मनुष्य पशु पक्षी जड़ चेतन हैं, उन्हें स्वयं के समान समझो | अगर ऐसा समझने लगे तो संस्कार, समरसता, समृद्धि, आदि सभी बातें अपने समाज में जागृत होंगी | आज इसी सन्दर्भ में विचार करने की आवश्यकता है | समाज के हर वर्ग को शिक्षा, संस्कार और कौशल विकास के लिए कार्य करना है | 

आज एक चर्चा चलती है कि हमें हमारे जनजाति के वन्धुओं को कुछ सिखाना है | मुझे लगता है कि शहरी लोगों को इस अहंकार से बाहर निकलना चाहिए | शायद अच्छे मकान, अच्छे कपडे शहर वाले दे सकते हैं, किन्तु आत्मीयता और अच्छे संस्कार, अच्छी परम्पराएं तो इन वनवासियों के जीवन में झांककर हम देखेंगे तो मिलेंगे | आज पंजाब और हरियाणा का संकट क्या है ? स्त्री और पुरुष का अनुपात कम हो रहा है | क्यों ? क्योंकि बच्चियों को पैदा ही नहीं होने दिया जाता, भ्रूण ह्त्या कर दी जाती है | इसलिए सरकारों को संस्थाओं को आन्दोलन चलाने पड़ते हैं कि बेटी बचाओ, बेटी पढाओ | किसी वनवासी समाज में आपको कन्या भ्रूण ह्त्या नहीं मिलेगी | अगर किसी ने कर दी तो हमेशा के लिए बहिष्कृत हो जाएगा | उनके जीवन में जो आत्मीयता है, 

गुजरात में जब भुज का भूकंप आया था, उसके पूर्व की घटना है | एक हजार महिलाएं वनवासी गाँवों में गईं, यह सोचकर कि हम कुछ बताएँगे | वहां जाकर क्या देखा ? जब गए तो अतिथि मानकर हर महिला के पैर गर्म पानी से धोये गए, मकानों को लीपकर रखा गया था, हर घर के दरवाजे पर तुलसी का पौधा था, जिसमें हर सुबह जल दिया जाता था | शहर की महिलाओं को लगा कि हम सिखाने आये थे, लगता है, सीखकर जाना पडेगा | महीने भर रहने के बाद जब महिलाएं लौटीं, तब उस झोंपड़ी में रहने वाले वनवासी परिवार ने उन्हें खिचडी दी, यह कहकर कि हमारे यहाँ जब लडकी ससुराल जाती है, तब उसे खिचडी दी जाती है | माना जाता है कि लड़की अपने घर जाकर वह बनाएगी तो घर के सब सदस्यों में बड़ा प्रेम रहेगा | उसके पांच सात दिन बाद भूकंप आया | यह दूर दराज के गाँव में रहने वाला वनवासी, मीलों पैदल चलकर कसबे में पहुंचता है और दिए गए फोन नंबर पर फोन करवाकर कुशल क्षेम पूछता है | तुम्हारे यहाँ भूकंप आया है, वहां अगर कोई तकलीफ हो तो यहाँ आ जाओ, यहाँ सब ठीक ठाक है | यह आत्मीयता, यह संस्कार, अनेक बातें सामजिक जीवन के व्यवहारों में आज भी रची बसी हैं | 

अतः मुझे लगता है कि कौशल विकास और भौतिक उन्नति के लिए शहरों में रहने वाले लोग, अपने वनवासी वन्धुओं का सहयोग करें, उनका हाथ थामें, और वनवासी के जीवन कि जो सरलता है, उसकी जो भक्ति है, उसकी जो आत्मीयता है, वह हम सबके अन्दर आये और हम सब मिलकर, समरस हिन्दू समाज खड़ा करें तो आने वाले समय में निश्चित रूप से सम्पूर्ण विश्व में भारत माता की जयजयकार होगी | इस प्रकार का भारत बनाने के लिए भगवान् हम सबको सामर्थ्य और प्रेरणा दे |
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