भाजपा की त्रिपुरा विजय उत्तरप्रदेश की जीत से भी अधिक महत्वपूर्ण



त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में मिली चुनावी विजय का भारतीय जनता पार्टी के लिए "प्रतीकात्मक" महत्व है। इसका केवल यह मूल्यांकन नहीं किया जा सकता कि एक और राज्य में भाजपा को अकेले पूर्ण बहुमत मिला है और इससे भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल और बढेगा, बल्कि ज्यादा महत्वपूर्ण यह तथ्य है कि जनता ने 25 वर्ष पुराने मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी के बाम मोर्चा शासन को ठुकराया है | 

त्रिपुरा को साम्यवादियों कर लाल गढ़ के रूप में जाना जाता रहा है। इसी को लक्ष्य करके प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने त्रिपुरा में अभियान चलाया था कि यदि त्रिपुरा में बामदलों का सफाया होता है, तो यह साम्यवादी दलों के समापन का संकेत होगा, क्योंकि इसके बाद वे केवल केरल में दिखाई देंगे । त्रिपुरा में संपन्न हुए इन चुनावों को बामपंथ और दक्षिण पंथ का सीधा संघर्ष माना जा रहा था । भाजपा की विजय इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि 2013 के पिछले विधानसभा चुनाव तक त्रिपुरा में भाजपा अस्तित्वशून्य थी तथा बीजेपी ने इन चुनावों में एक भी सीट भी जीतने में सफलता नहीं पाई थी । उसका वोट प्रतिशत भी महज 1.2 प्रतिशत था और उसने जो पचास प्रत्यासी चुनाव में उतारे थे, उनमें से केवल एक अपनी जमानत बचाने में सफल हुए थे | जबकि आज, यह भगवा पार्टी सीपीआई-एम की अगुवाई वाली वाम मोर्चा सरकार को तबाह कर इतिहास बनाने जा रही है । 

देश के किसी भी कोने में किसी भी राजनीतिक दल के लिए इस प्रकार की अभूतपूर्व सफलता का उदाहरण मिलना दुर्लभ है। साथ ही एक रोचक तथ्य यह भी है कि 2013 में 45 प्रतिशत वोट पाने वाली कांग्रेस का इन चुनावों में मत प्रतिशत मात्र एक दशमलव नौ रह गया | कांग्रेस किस प्रकार जनता द्वारा बेइज्जती पूर्वक ठुकराई जा रही है, त्रिपुरा चुनाव इसकी सबसे नवीन मिसाल है |

पूर्वोत्तर क्षेत्र में भाजपा की वृद्धि और उदय

पूर्वोत्तर क्षेत्र में भाजपा ने अपना पहला विधानसभा चुनाव 2016 में, असम के रूप में जीता था। 2017 में, भाजपा ने मणिपुर विधानसभा चुनावों में सफलता अर्जित की । और अब, 2018 में, भाजपा त्रिपुरा में सत्ता संभालने जा रही है और इस प्रकार पूर्वोत्तर के चार राज्यों में उसकी सरकारें होंगी क्योंकि अरुणाचल प्रदेश में भी पार्टी पहले से ही सत्ता में है। चुनाव परिणाम यह भी संकेत दे रहे हैं कि बीजेपी और उसके गठबंधन सहयोगी, नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) नागालैंड में अगली सरकार बना सकते हैं। मेघालय में अवश्य अभी स्थिति अस्पष्ट है, किन्तु भाजपा क्षेत्रीय पार्टियों के सहयोग से यहाँ भी कांग्रेस के मंसूबों पर पानी फेर सकती है | बैसे भी कौन राजनैतिक दल होगा, जो केंद्र के साथ मधुर सम्बन्ध न रखना चाहे ? 

त्रिपुरा बनाम यूपी 

वर्ष 2017 में, उत्तर प्रदेश में भाजपा ने भारी जीत दर्ज की। 403 सदस्यीय उत्तर प्रदेश विधानसभा में पार्टी और उसके गठबंधन सहयोगियों ने 325 सीटें जीतीं। उत्तर प्रदेश में चुनाव जीत बहुत महत्वपूर्ण थी क्योंकि यह देश का सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में जीत ने पूरे देश में भाजपा की शक्ति को मजबूत किया। किन्तु त्रिपुरा में मिली जीत भाजपा के लिए उससे भी अधिक मधुर होगी । क्योंकि इसके बाद लम्बे समय से हिंसा का शिकार रहे भाजपा कार्यकर्ता और संघ स्वयंसेवकों को पश्चिम बंगाल और केरल में भी अच्छे दिन के सूर्योदय की संभावना दिखने लगी है | वे अब पश्चिम बंगाल और केरल में भी सफल हो सकते हैं क्योंकि दोनों राज्यों और त्रिपुरा में समानता भी है । बंगाल और त्रिपुरा दोनों बंगला भाषी हैं तो केरल और त्रिपुरा ने हमेशा वाम मोर्चे के प्रति अपना रुझान दिखाया है । 

संघ स्वयंसेवक कभी भूल नहीं सकते कि अटल जी की सरकार रहते त्रिपुरा से संघ के चार प्रचारकों का अपहरण किया जाकर उनकी बंगलादेश में नृशंसता पूर्वक ह्त्या कर दी गई थी | त्रिपुरा में वनवासी कल्याण आश्रम के कांचलछेड़ा छात्रावास से 6 अगस्त 1999 को उग्रवादी संगठन नेशनल लिबरेशन फ्रंट आफ त्रिपुरा (एन.एल.एफ.टी.) ने क्षेत्र कार्यवाह श्री श्यामल सेनगुप्त, प्रांतीय शारीरिक प्रमुख श्री दिनेन्द्र नाथ दे, अगरतला विभाग प्रचारक श्री सुधामय दत्त और जिला प्रचारक श्री शुभंकर चक्रवर्ती का अपहरण कर लिया। बाद में इस संगठन ने इनकी रिहाई के लिए इसने त्रिपुरा स्टेट राइफल्स (टी.एस.आर.) को भंग करने और दो करोड़ रुपए फिरौती देने की मांग की। आज उन प्रचारकों के बलिदान को स्मरण किया जाना भी समीचीन होगा | त्रिपुरा विजय एक प्रकार से उन शहीदों को श्रद्धांजलि कही जा सकती है !
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