त्रिपुरा में भाजपा की विजय और ईसाई चर्च की सशत्र वाहिनी नेशनल लिबरेशन फ्रंट आफ त्रिपुरा


1940 के दशक में न्यूजीलैंड के मिशनरियों ने त्रिपुरा में बैपटिस्ट चर्च की शुरूआत की । जैसा कि उनकी प्राथमिकता होती है, स्थानीय लोगों में ईसाई धर्म का प्रचार और धर्मांतरण, यहाँ भी उनके प्रयत्न चालू हुए | किन्तु बहुत कोशिश करने के बाद भी 1 9 80 के दशक तक चर्च को कोई ख़ास सफलता त्रिपुरा में नहीं मिल सकी, महज कुछ हजार लोगों ने ईसाई धर्म स्वीकार किया । दुर्भाग्य से त्रिपुरा में बड़े पैमाने पर जातीय दंगे हुए और उस स्थिति का फायदा उठाने के लिए बैपटिस्ट चर्च ऑफ त्रिपुरा की प्रेरणा से दिसंबर १९८९ में नॅशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ़ त्रिपुरा (एनएलएफटी) का जन्म हुआ । 

तब से ही यह अलगाववादी संगठन त्रिपुरा में सशस्त्र विद्रोह का मार्ग अपनाए हुए है तथा उसका घोषित उद्देश्य है - "साम्राज्यवादी हिंदुस्तानी (भारत) की अधीनता से मुक्ति" और त्रिपुरा को एक पृथक ईसाई राज्य बनाना । 

हिंसक गतिविधियाँ - 

सचाई तो यह है कि एनएलएफटी हिंसा के माध्यम से जनजातियों को ईसाई बनने हेतु विवश करता है | सरकारें जानती हैं कि इस संगठन को बैपटिस्ट चर्च ऑफ त्रिपुरा के मध्यम से ही हथियार उपलब्ध कराये जाते हैं | इसका पुष्ट प्रमाण तब प्राप्त हुआ, जब अप्रैल 2000 में, नापारा बैप्टिस्ट चर्च के सचिव, नागानलाल हलम को विस्फोटकों के साथ गिरफ्तार किया गया और उसने स्वीकार किया कि वह पिछले दो वर्षों से एनएलएफटी के लिए विस्फोटक खरीद रहा था। 

2000 में ही एनएलएफटी ने दुर्गा पूजा का धार्मिक त्यौहार मनाने पर हिंदुओं को जान से मारने की धमकी दी। 

ऐसा माना जाता है कि 1 999 से 2001 तक 5000 जनजातीय ग्रामीणों को जबरन धर्मान्तरित किया गया तथा ईसाई धर्म स्वीकार न करने पर त्रिपुरा में कम से कम 20 हिंदू एनएलएफटी द्वारा मारे गए । 

2000 के शुरुआती दिनों में, 16 बंगाली हिन्दू गौरांगटिला में एनएलएफटी द्वारा मारे गए । 20 मई 2000 को एनएफ़एफ़टी ने बग़बर शरणार्थी शिविर में 25 बंगाली हिंदुओं को मार डाला। अगस्त 2000 में, एक आदिवासी हिंदू आध्यात्मिक नेता, शांति काली, की दस एनएलएफटी गुरिल्लाओं ने गोली मारकर हत्या कर दी । दिसंबर 2000 में, राज्य के दूसरे सबसे बड़े हिंदू समूह के एक धार्मिक नेता, लाह कुमार जमातिया को एनएलएफटी द्वारा अपहरण कर लिया गया, और बाद में वे दक्षिणी त्रिपुरा के दलाक गांव के जंगल में मृत पाये गए । पुलिस के अनुसार, एनएलएफटी के विद्रोहियों ने जमैतिया को ईसाई धर्म स्वीकार करने को कहा, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। स्पष्ट ही ये लोग राज्य में सभी लोगों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करना चाहते हैं | 

अकेले 2001 में ही त्रिपुरा में 826 आतंकवादी हमलों में 405 लोगों की मौत हुई और एनएलएफटी और संबंधित संगठन जैसे क्रिश्चियन ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स (एटीटीपी) द्वारा 481 अपहरण किए गए । 

अंततः 2002 में एनएलएफटी पर आतंकवाद रोकथाम अधिनियम के तहत प्रतिबन्ध लगा कर उसे एक आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया गया । 

अनैतिक संगठन – 

इतना भर नहीं है, चर्च के इन अनैतिक कपूतों के विषय में सबसे अधिक चोंकाने वाला खुलासा 2005 में बीबीसी ने किया जो इस प्रकार था – 

स्वतंत्र जांच और आत्मसमर्पण करने वाले सदस्यों के बयान से पता चला है कि एनएलएफटी अपनी गतिविधियों के वित्तपोषण के लिए पोर्नोग्राफ़ी बना और बेच रहा है । इस समूह में अश्लील फिल्मों की डीवीडी शामिल है जिसका फिल्मांकन करने के लिए आदिवासी पुरुषों और महिलाओं का अपहरण कर उन्हें यौन कृत्यों में भाग लेने के लिए मजबूर किया गया है। फिल्मों को विभिन्न भाषाओं में डब करवा कर पूरे क्षेत्र में अवैध रूप से बेचा जाता है और प्राप्त धन से वे अपनी गतिविधियाँ संचालित करते हैं । और यह तो सर्वज्ञात तथ्य है कि 9 0% एनएलएफटी के संचालक ईसाई हैं। 

इस्लामी जिहादी समूहों से गठजोड़ – 

बैपटिस्ट चर्च से मिलने वाले आर्थिक और नैतिक समर्थन के अतिरिक्त एनएलएफटी ने अनेक इस्लामी जिहादी समूहों के साथ भी संबंध मजबूत किये और उनसे प्रशिक्षण, सलाह और सैन्य सहायता प्राप्त की | 

यही कारण है कि एनएफएलटी के अधिकांश आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर बांग्लादेश में स्थित हैं और इस प्रकार भारतीय सुरक्षा बलों की न्यायिक पहुंच से बाहर है। इस्लामी बांग्लादेश सरकार ने इन आतंकवादी समूहों पर कोई कार्रवाई करने से लगातार इंकार किया जाता है। 

इतना ही नहीं तो एनएलएफटी ने पाकिस्तान की इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस एजेंसी (आईएसआई), और बांग्लादेश में इसके समकक्ष, फील्ड खुफिया निदेशालय (डीजीएफआई) के साथ भी सम्बन्ध विकसित किये हैं । 1997-98 के दौरान, एनएलएफटी के लीडर आईएसआई से प्रशिक्षण और हथियार प्राप्त करने के लिए पाकिस्तान भी गए थे। कहा जाता है कि इसके लिय आवश्यक पासपोर्ट और वीजा का इंतजाम आईएसआई ने ही किया था । 

पुलिस के अनुसार, एनएफ़एफ़टीटी ने म्यांमार और भूटान में ट्रांस-बॉर्डर लिंक भी विकसित किए हैं तथा साथ ही वे इस क्षेत्र के अन्य ईसाई, इस्लामी और कम्युनिस्ट आतंकवादी समूहों के साथ मिलकर काम करते है | जैसे कि त्रिपुरा टाइगर फोर्स (एटीटीएफ), नागालैंड स्थित नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-इस्का-मुइवा (एनएससीएन-आईएम), मणिपुर स्थित कांगली यॉल काना लूप (केवाईकेएल) और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी), जो भारतीय राज्य असम में सक्रिय है। 

संघ का संघर्ष 

त्रिपुरा के जनजातीय क्षेत्र में ईसाई मिशनरियों के धर्मांतरण अभियान को सबसे बड़ी चुनौती वनवासी कल्याण आश्रम की गतिविधियों ने दी | यही कारण रहा कि वनवासी कल्याण आश्रम के कांचलछेड़ा छात्रावास से 6 अगस्त 1999 को उग्रवादी संगठन नेशनल लिबरेशन फ्रंट आफ त्रिपुरा (एन.एल.एफ.टी.) ने क्षेत्र कार्यवाह श्री श्यामल सेनगुप्त, प्रांतीय शारीरिक प्रमुख श्री दिनेन्द्र नाथ दे, अगरतला विभाग प्रचारक श्री सुधामय दत्त और जिला प्रचारक श्री शुभंकर चक्रवर्ती का अपहरण कर लिया। तथा बंगलादेश में लेजाकर उनकी ह्त्या कर दी | 

किन्तु इससे राष्ट्रवादी संगठनों के होंसले पस्त नहीं हुए, वे दूने जोश से कार्य करने लगे | इन तपस्वियों के त्याग और आत्माहुति के भाव ने धीरे धीरे जनजातीय लोगों का दिल जीत लिया, जिसका परिणाम भाजपा की विजय के रूप में सामने आया है | देखिये उनके कार्य की एक बानगी – 

पूर्वोत्तर राज्यों में कार्य करने बाले राष्ट्रवादी संगठनो द्वारा योजनापूर्वक वहां के निर्धन, अनाथ बालकों को शेष भारत के प्रान्तों में स्थापित किया गया ! इसी क्रम में २९ अप्रेल २००९ चैत्र नवरात्री पर तीन से नौ वर्ष की आयु की ९ निर्धन कन्याएं ग्वालियर आईं ! सरस्वती नगर शिशुमंदिर में इनके अध्ययन की व्यवस्था की गई ! नवरात्रि पर आने के कारण समाज ने इन बच्चियों को मां कामाख्या के रूप में ग्रहण कर आत्मीय स्वागत किया ! किसी ने कूलर दिया तो किसी ने फ्रिज ! नवरात्रि पर कन्याभोजन कार्यक्रम में खीर पूड़ी के लिये आत्मीय आग्रह आने लगे ! शिशु मंदिर के आचार्य दीदियों ने भी विशेष ध्यान देकर पढ़ाई के साथ अल्पाहार, भोजन, स्वास्थ्य इत्यादि की चिंता की ! योग गीत नृत्य चित्रकला आदि के प्रशिक्षण की विशेष व्यवस्था उत्साही जनों द्वारा की गई !
२०१० में पुनः ९ बच्चियां मां कामाख्या के दरवार से ग्वालियर पधारीं ! ग्वालियर वासियों ने स्वयं को कृत कृत्य मानकर उनका भी स्वागत किया ! इन बच्चियों के सर्वांगीण विकास की बानगी यह है कि बच्चियों ने धनवाद वा पुणे में आयोजित होने बाली ताईक्वांडो प्रतियोगिता में भाग लेकर स्वर्ण वा कांस्य पदक जीतने का गौरव प्राप्त किया ! 

यहाँ यह भी स्मरण रखने योग्य तथ्य है कि 21 मई 1991 को राजीव गांधी की हत्या तथा श्रीमती सोनिया गांधी के अभ्युदय के बाद ही पूर्वोत्तर के राज्यों में धर्मांतरण और अलगाववाद की गतिविधियों में तेजी आई थी | 

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