लो आ गए लोकसभा चुनाव भी - हरिहर शर्मा



अब तो पूरी संभावना नजर आने लगी है कि लोकसभा के चुनाव भी इसी वर्ष होने जा रहे हैं |

पूर्वोत्तर विजय के बाद इस महीने उत्तर प्रदेश की दो लोकसभा सीटों के उपचुनाव में और उसके बाद होने वाले कर्णाटक विधान सभा चुनाव में भी भाजपा को बड़ी जीत की उम्मीद है। 

सो भाजपा का सोच है कि भला जीत के इस क्रम को क्यों खंडित किया जाए ?

इस वर्ष के अंत में होने वाले मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में से एकाध में भी अगर यह सिलसिला टूट गया तो विपक्ष को संजीवनी मिल सकती है । 

इसीलिए मध्यप्रदेश में तो जन संपर्क मंत्री डॉ.नरोत्तम मिश्रा की अध्यक्षता में एक समिति बनाकर इसके लिए वातावरण बनाना प्रारम्भ भी कर दिया गया है |

जहाँ तक विपक्ष का सवाल है तो इस समय बैसे ही पूरी तरह से पस्त पड़ा है और बिखरा हुआ भी है। और सबसे बड़ी बात, चुनावी फंड भी उनके सामने एक बड़ी समस्या है क्योंकि अधिकाँश राज्यों में एनडीए ही काबिज हो चुका है | 

अपनी बेचारगी जाहिर करते हुए कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य और प्रख्यात वकील विवेक तनखा ने कांग्रेस में चुनावी फंड की समस्या यह कहते हुए जगजाहिर कर दी कि मोदी सरकार ने बोंड के माध्यम से चुनावी चंदा अनिवार्य कर दिया है, अतः उद्योगपति गुपचुप चंदा नहीं दे पाते और खुले आम कांग्रेस को चंदा देने से कतरा रहे हैं |

उनकी बात का भावार्थ यही है कि ब्लैक मनी के चंदे का धंधा अब मंदा हो चुका है |

अब लेदेकर विरोधियों को केवल अपने पुराने सहयोगी बामपंथी मीडिया घरानों का ही आसरा है |

वे अपने पुराने सहयोगी मीडिया के भरोसे गाल बजायेंगे,और अपने बडबोलेपन से भाजपा की नैय्या पार लगायेंगे ।

हाँ एक बात जरूर है 😄

हकबकाया हुआ विपक्ष एकजुट अवश्य हो सकता है, शेर बकरी एक साथ दिखाई दे सकते हैं, सांप नेवले अपनी दुश्मनी भूल सकते हैं |

लेकिन क्या वे मोदी रूपी समुद्री ज्वार का उफ्फान इससे थाम पायेंगे ?

खातिर जमा रखिये नानी के हग को गए छुटकन को उनके चम्पू भले ही नेता मानें, शेष दलों में तो कोई मानने से रहा |

एनडीए के कुछ सहयोगी हट सकते हैं तो कुछ नए जुड़ भी सकते हैं | जहाँ हटेंगे, वहां भाजपा को फायदा ही होगा |

और देश एक बार फिर हरदनहल्ली दुंडेगौड़ा देवेगौड़ा जैसे किसी प्रयोग की तुलना में, जांचे परखे खरे मोदी को ही पुनः अवसर देगा, इसमें मुझे तो रत्ती भर भी संदेह नहीं | 

एक बात अवश्य ध्यान देने योग्य है और वह यह कि 2014 में भाजपा केवल 31 प्रतिशत वोट के आधार पर 283 सीटें जीती थी | इसके पूर्व 1967 में कांग्रेस 40 प्रतिशत वोट पाकर 284 सीटें जीती थी | अतः कहा जा सकता है कि न्यूनतम वोट पाकर पूर्ण बहुमत में आई मोदी सरकार देश को मिली  | 

इस बार जरूरी नहीं है कि वोट इतने बटें | जिस प्रकार पूर्व में कांग्रेस विरुद्ध शेष की रणनीति बनती थी,  इस बार यदि भाजपा के विरूद्ध सबने मिलकर एक प्रत्यासी लड़ाया तो भाजपा की सफलता कितनी होगी, यह समय के गर्भ में है | उत्तर प्रदेश में बसपा ने समाजवादी पार्टी के साथ और मध्यप्रदेश में कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने के संकेत देने प्रारम्भ भी कर दिए हैं | 

समय से पूर्व लोकसभा चुनाव होने से जहाँ मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में मोदी के नाम पर वैतरणी पार हो सकती है, तो बहीं एंटी इनकम्बेंसी का लोकसभा परिणाम में खामियाजा भी उठाना पड़ सकता है | किन्तु वह खामियाजा तो चुनाव 18 में हों या 19 में उठाना ही है | देश के शेष हिस्सों में तो घर घर मोदी चलेगा ही | तो यह खतरा तो खतरों के खिलाड़ी मोदी जी उठाएंगे ही, यह आभाष मिलता है |

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