ग्राम विकास ही है महान भारत की नींव, तो इंतज़ार किस बात का, चलिए "गाँव चलें हम"



भारत में औपनिवेशिक शासन के दौरान जो नीतियां बनीं, वे पूर्णतः भारत के शोषण हेतु थीं, क्योंकि सत्ताधीशों के लिए भारत महज एक बड़ा बाजार था । अतः स्वाभाविक ही पश्चिमी अर्थशास्त्र के सिद्धांतों को हम पर लादा गया | इसे ही समझकर देशभक्तों ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, एकजुट होकर स्वदेशी अभियान चलाया, आत्मनिर्भरता पर जोर दिया, "ग्रामोदय" और कुटीर उद्योगों के विकास पर जोर दिया । किन्तु दुर्भाग्य से स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात हमारे शासकों ने जो नीतियाँ बनाईं, वे रूसी समाजवाद और अमेरिकी पूंजीवाद का ऐसा विचित्र और अपवित्र मिश्रण थीं, जो भारतीय सन्दर्भों में पूरी तरह अप्रासंगिक और अनुपयुक्त थीं |

उन नीतियों के चलते देश का मूल स्वरुप जर्जर होता चला गया । 90 के दशक से तो भूमंडलीकरण की अवधारणा ने विकास की जो नई परिभाषा गढ़ी, उसने बेरोजगारी और पर्यावरण विनाश की इन्तहा कर दी | तेजी से बढ़ते शहरीकरण, शिक्षा के व्यवसाईकरण, आत्मनिर्भरता का अभाव, और सबसे बड़ी दुर्गति – राष्ट्रभाव की न्यूनता ने देश को उन्नति के स्थान पर अवनति के मार्ग पर धकेल दिया |

स्वाधीनता के पश्चात, वैश्वीकरण की अंधी दौड़ ने पाश्चात्य संस्कृति एवं जीवन पद्धती आधारित शहरीकरण का बोलबाला कर दिया और तथा भारत की एकात्मता के मूल तत्व अर्थात ग्राम्य जीवन की सरलता और सादगी से हम दूर होते गए | 

इस चिंतनीय दुर्दशा को रोकने के लिए देश की नई पीढ़ी ने कमर कसी और 1990 में Students for Development (SFD) अर्थात विकास के लिए छात्र नामक एक गैर सरकारी अभियान का प्रारम्भ हुआ | पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण और प्रबंधन, प्लास्टिक रीसाइक्लिंग, प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध, वन संरक्षण आदि मुद्दों को लेकर जन सहयोग से कार्य प्रारम्भ किया, साथ ही “विकास” की वास्तविक अवधारणा क्या है, इसे भी जन सामान्य के मनो मस्तिष्क तक पहुँचाना प्रारम्भ किया | 

जिसमें व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और समूची मानव जाति का विकास हो, वही वास्तविक विकास है । भौतिक विकास के साथ, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विकास भी आवश्यक है | एसएफडी ने 'विकास' की यही सही अवधारणा को समझाने, प्रचारित करने और प्रसार करने का कार्य प्रारम्भ किया, जिसमें सामान्य और विशिष्ट सभी लोग तथा नौजवान छात्र शामिल हैं।

देश को अगर एक बार पुनः विश्वगुरु बनाना है तो देश के मूल तत्व को समझना होगा | और यह मूल तत्व और कहीं, भारत के ग्रामीण जीवन में ही स्थित है | उसे देखकर तथा उसे अनुभव करके नई पीढी उसे आत्मसात करे, यह जिम्मेदारी कौन लेगा ? निश्चय ही भारत के युवाओं पर ही यह जिम्मेदारी है, क्योकि वे ही स्थिति को बदल सकने की सामर्थ्य रखते हैं | 

अतः एसएफडी ने योजना बनाई कि युवा देश के ग्रामीण भागों का दर्शन करें और उसकी अनुभूती लेकर शास्वत विकास हेतु मार्ग प्रशस्त करें | हो सकता है कि गाँवो की कुछ तात्कालिक समस्याएं भी हों, किन्तु यह भी तय है कि ग्राम्य जीवन में ही अनेक वैश्विक समस्याओं का निदान भी छुपा है | देश का युवा छात्र जब ग्रामीण जीवन का दर्शन करेगा तो सकारात्मक विचार से आप्लावित हो, शास्वत विकास की ओर आगे बढेगा | 

इसी नजरिये से विकासार्थ विद्यार्थी (SFD) द्वारा अनुभूती के इस सामाजिक प्रकल्प का आयोजन विगत 2 वर्षों से किया जा रहा है |.......... विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में रहकर ग्रामीण जीवन पद्धति को संजोकर रखने वाले ग्राम वासियों से मिलना, बातें करना, परिवार एवं समाज दर्शन करना और ग्रामीण जीवन की अनुभूति करना और फिर संभव हो तो वहां की समस्याओं को कुछ समाधान भी ढूँढना, यह प्रयास जारी है | 

जीवन को नई राह देने वाला ये प्रकल्प इस बार भी छात्र छात्राओं के लिए 15 से 18 मार्च 2018 के दौरान आयोजित किया जा रहा है | आप सभी इस प्रकल्प में सहभागी होकर देश को और नजदीक से जानें |

विकासार्थ विद्यार्थी (Student For Development)

जन, जंगल ,जमीन,जल और जानवर इनके संवर्धन के हेतु एवं इनके विकास हेतु छात्र का योगदान - इस विषय में SFD कार्यरत है | शास्वत विकास की कल्पना को आगे बढ़ाते हुये विकास - पर्यावरण पूरक एवं किसी का शोषण न करते हुए हो, इस विचार पर ये आयाम कार्य करता है |
पर्यावरण विषयक समस्याएं जैसे - वैश्विक तापमान वृद्धि , वृक्षविनाश, जल - वायु - ध्वनि प्रदूषण आदि कम कैसे हों, इस आयाम के माध्यम से इन पर विचार किया जाता है | छात्रों और समाज के सहयोग से इस प्रकार के अनेक अभियानों का आयोजन SFD के माध्यम से सदैव किया जाता है | 

प्लास्टिक मुक्त सिंहस्थ अभियान , नर्मदा अध्ययन यात्रा ,वृक्षारोपण ,जल संधारण प्रयास, श्रमानुभाव शिविर, ऐसे अनेक गतिविधियों के माध्यम से SFD सदैव कार्यरत रहता है | 

देश की नदियों को स्वच्छ एवं पुनः प्रवाहित करने हेतु SFD के माध्यम से अभियान एवं कार्य चलते हैं | 

विकासार्थ विद्यार्थी इस आयाम के द्वारा छात्र छात्राओं के लिए अनुभूती - ग्रामीण दर्शन इस सामाजिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया है | ग्रामीण जीवन का दर्शन एवं ग्रामीण जीवन अनुभूति करके ग्रामीण क्षेत्र को समझने का अवसर विकासर्थ विद्यार्थी आप सभी को उपलब्ध कराने जा रहा है | जीवन की दृष्टि को बदलने वाले इस कार्यक्रम में आप सभी सम्मिलित होकर सच्चे भारत का दर्शन कर अभिभूत हों |

अनुभूति क्या है ?

ये चार दिन का ग्रामीण जीवन अनुभव है । इसमें 30 से 40 छात्रों का एक समूह गाँव जायेगा और 500 गाँव में इस प्रकार के शिविर आयोजन किये जायेंगे, जिसमे २० हजार छात्र छात्राऐ गाँव जायेंगे और इस "गाँव चले हम " अभियान में हिस्सा लेंगे ।

भोपाल और इंदौर महानगरों में पढने वाले शहरी छात्र छात्राये गाँव में जायेंगे । प्रत्येक कॉलेज से 30 से 40 विद्यार्थी का समूह एस. एफ.डी. कार्यालय में पंजीयन करा सकता है । एक कॉलेज से एक या एक से अधिक समूह भी शिविर में सहभागिता कर सकते है। इस प्रकार के शिविर में ग्रामीण जन जीवन अध्ययन, वंहा का इतिहास, वहां की संस्कृति एवं वंहा की अन्य विशेषताओं को समझने का प्रयास किया जायेगा । 

शिविर के अंतर्गत व्यक्तित्व विकास (Personality Development) के लिए दिनचर्या में योग, व्यायाम, ध्यान, प्रभात फेरी, विभिन्न विषयों पर लेक्चर एवं चर्चा, खेल कूद एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम शामिल हैं। कार्यक्रम के अंत में विभिन्न प्रतियोगिताएं होंगी शिविर में सहभागिता करने वाले प्रत्येक शिविरार्थी को प्रमाण पत्र प्रदान किये जायेंगे । 

ये शिविर आपके कॉलेज परिसर से 100 से 150 कि.मी. की दूरी पर ग्रामीण क्षेत्रों में आयोजित किये जायेंगे । छात्राओं के लिए प्रथक से शिविर आयोजित होंगे । प्रत्येक शिविर में कॉलेज के प्राध्यापक एवं विभिन्न विषयों पर प्रबोधन एवम मार्गदर्शन हेतु प्रशिक्षक भी साथ रहेंगे । इस शिविर का पंजीयन शुल्क 100 रु. रहेगा । इस शुल्क में आना जाना शिविर स्थल पर ठहरना एवम भोजन व्यवस्था शामिल रहेगी ।

क्यों गाँव चले हम

हमारा भारत बसता है गाँव में| हमारे गाँव देश की वास्तविक तस्वीर हैं जिनको देखकर हम जीवन का लक्ष्य तय कर सकते हैं | गाँव को देखकर हम अपने सपने बुन सकते हैं | गाँव की छाँव में बैठकर हम भारत को विश्व गुरु बनाने की वह पगडंडी खोज सकते हैं, जिसकी हमें तलाश है | हम गाँव की जीवन शैली को समझकर संसार को सुखमय जीवन का सन्देश दे सकते हैं | 

हमारे गाँव ही हमारी विराट संस्कृति के आंगन हैं , जहाँ भारत की सदियों पुरानी परम्पराएँ हमें अपनी पहचान बताती हैं | गाँव नवाचार के वाहक हैं | यदि आप कोई नवाचार करना चाहते है तो उसके लिए गाँव को देखना, समझना, और उसे महसूस करना होगा | पूरी दुनिया भारत के गांवों को देखना चाहती है लेकिन हम शहर के माहोल में कंही गुम होते जा रहे हैं | हम वास्तव में अपनी पहचान से विमुख होकर स्वयं से ही दूर होते चले जा रहे हैं | गाँव की गुनगुनी धूप से मिलने वाली उर्जा से हम वंचित हो रहे हैं | 

गाँव उद्यमिता की प्रयोगशाला और प्रेरणा पुंज हैं | वंहा संबंधों की अद्भुत बनावट है जो सहभागिता का पाठ सिखाती है | गाँव की अनुभूती अनूठी है, इसकी जीवटता आपकी दृष्टिको को नई दिशा देगी तो आइए गाँव चले हम............
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