चाणक्य की मौत और आज की राजनीति |



वह चाणक्य जिन्हें महान दार्शनिक, अर्थशास्त्री, न्यायविद और अपने समय का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति माना जाता है, वह इंसान जिसने भरत भूमि को विश्व विजेता अलेक्जेंडर के आक्रमणों से कई बार बचाया, जो महान रणनीतिकार और विश्लेषक थे, उनकी मौत कितनी कष्टप्रद और अपमानजनक हुई, यह जानकर किसका मन व्यथित न हो जायेगा । 

अर्थशास्त्र, राजनीति और दर्शनशास्त्र के उनके सिद्धांत आज भी निर्विवाद और सर्वमान्य हैं। वह प्रसिद्ध भारतीय राजनीतिक ग्रंथों के रचयिता तथा अर्थशास्त्र और चाणक्य नीती के प्रणेता थे। वे ही थे जिनके मार्गदर्शन में महान मौर्य साम्राज्य का अभ्युदय हुआ और एक सामान्य सा बालक भारत का महान सम्राट चंद्रगुप्त बन गया । नन्द के दरबार में हुए अपने अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए उन्होंने अपने हमउम्र बच्चों के साथ खेलते एक लड़के को चुना और उसे देश के सबसे सक्षम राजाओं में से एक में रूपांतरित कर दिया। लेकिन इससे भी बड़ी उनकी भूमिका थी कि देश पर आये संकटों का मुकाबला करने के लिए उन्होंने भारत के विभिन्न राजाओं को एकत्रित कर राष्ट्ररक्षा के लिए प्रवृत्त किया । उन्होंने सदैव समस्त भारतवासियों की एकता पर जोर दिया और राजनीति से राष्ट्रनीति को सर्वोपरि माना । अपने गुरु चाणक्य के मार्गदर्शन में, चंद्रगुप्त मौर्य एक सक्षम प्रशासक और एक सच्चे राष्ट्रनिर्माता साबित हुए। 

चाणक्य के उपदेश और विचारधारा आज कई लोगों के लिए वेदवाक्य बन गई हैं, लेकिन उनकी मृत्यु एक ऐसी पहेली है, जो आज भी एक रहस्य है | यह आश्चर्य की बात है कि इतिहास में यह विषय अनकहा रहा | 

चाणक्य की मृत्यु के बारे में वास्तविक सच्चाई को तो कोई भी नहीं जानता, किन्तु इतना तय है कि उनकी मृत्यु एक साजिश से ही हुई । 

चन्द्रगुप्त के बाद उनके बेटे बिंदुसार ने मौर्य साम्राज्य की बागडोर संभाली और चाणक्य ही उनके भी गुरु और मुख्य सलाहकार रहे। बिन्दुसार ने चाणक्य को अतिशय सम्मान दिया। लेकिन जैसा कि होता है, उन दोनों के बीच के आत्मीय सम्बन्ध, दरबार के अनेक लोगों को खटकने लगे । और फिर शुरू हुआ साजिशों और घात प्रतिघात का दौर । साजिश का सूत्रधार बना बिंदुसार का एक मंत्री सुबंधु । 

सुबंधु ने बिन्दुसार को यह विश्वास दिलाने में सफलता पाई कि चाणक्य ने ही उनकी मां की ह्त्या की थी । इसके बाद बिन्दुसार के मन में चाणक्य के लिए कटुता घर कर गई | बुद्धिमान चाणक्य को बिंदुसार के व्यवहार में आया परिवर्तन समझने में देर नहीं लगी साथ ही बिन्दुसारा के व्यवहार से उन्हें गहरा आघात भी लगा । 

इसके आगे की कहानी अर्थात चाणक्य का कारुणिक अंत, कहीं अधिक ही दुखांत है | इस कहानी को दो प्रकार से वर्णन किया गया है | एक मान्यता है कि जिस स्वाभिमानी चाणक्य ने पराये नन्द द्वारा किया गया अपमान नहीं सहा, वह अपने द्वारा ही निर्मित मौर्य साम्राज्य के राजा बिन्दुसार का उपेक्षित व्यवहार नहीं सहन कर पाए तथा राज्य छोड़कर चले गए और आमरण अनशन कर देह त्याग दी और इस प्रकार एक महान साम्राज्य के जन्मदाता की ऐसी गुमनाम मौत हुई कि उनकी कोई समाधि भी नहीं है | कोई नहीं जानता कि उनका अंतिम संस्कार कहाँ हुआ | 

लेकिन एक अन्य मान्यता भी है, जो और भी अधिक पीड़ादायक है | वह यह कि सम्राट की नाराजगी का उपयोग करते हुए सुबंधु ने चाणक्य को जीवित जला दिया था। 

अब सवाल उठता है कि आखिर चाणक्य के विरुद्ध लगाए गए, बिन्दुसार की मां को मारने के आरोप की सचाई क्या थी ? बिन्दुसार के समक्ष इस रहस्य पर से बाद में उनकी ही एक परिचारिका ने पर्दा उठाया | वास्तविकता यह थी कि सम्राट चंद्रगुप्त के भोजन में प्रतिदिन चाणक्य के निर्देश पर धीमा जहर मिलाया जाता था | इसके पीछे उनका उद्देश्य यह था कि अगर कभी चन्द्रगुप्त की ह्त्या करने को कोई शत्रु जहर दे, तो उनपर उसका कोई दुष्प्रभाव न हो | लेकिन रानी इस तथ्य से अनभिज्ञ थीं, अतः एक दिन उन्होंने चन्द्रगुप्त का विषाक्त भोजन स्वयं कर लिया । जिस समय यह घटना घटित हुई रानी गर्भवती भी थी। वे जहर को सहन करने में असमर्थ रहीं | उनका प्राणांत नजदीक देखकर चाणक्य ने बच्चे को बचाने के लिए आज की भाषा में कहें तो ऑपरेशन द्वारा बच्चे को गर्भ से बाहर निकाल लिया और इसीलिए उसे बिंदुसार नाम दिया। इस प्रक्रिया में, रानी की मृत्यु हो गई।" 

जब बिन्दुसार को यह सचाई ज्ञात हुई तो सुबंधु के प्रति उसके क्रोध का पारावार नहीं रहा और फिर बिंदुसार ने अपने गुरू चाणक्य की मौत का बदला लेने के लिए सुबन्धु को उसकी करनी का फल दिया, अर्थात प्राणदंड । 

राजनीति चाहे तब की हो या आज की, सज्जन शक्ति और दुष्टों का संघर्ष सतत जारी है | आज की बिन्दुसार जनता जनार्दन है, जिसे बरगला कर अपना हित साधने का प्रयत्न स्वार्थी राजनेता करते रहते हैं | सच्चा कौन है, अच्छा कौन है, यह पहचानना सच में टेढ़ी खीर है | हे बिन्दुसार जनता जनार्दन, जागरुक रहो, ताकि फिर कोई देशभक्त चाणक्य अकाल मृत्यु का शिकार न हो और दुष्टों के मंसूबे कामयाब न हों |
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