क्षेत्र प्रचारक से अखिल भारतीय सह प्रचारक प्रमुख बने अरुण जी - कुछ संस्मरण !



लम्बे समय तक ग्वालियर संघ कार्यालय पुराने हाईकोर्ट के सामने विप्रदास के बाड़े की दूसरी मंजिल पर किराए के भवन में रहा | यहाँ पांच छोटे बड़े कमरे तथा दो विशाल छतें थीं, जिन पर काफी बड़ी संख्या में स्वयंसेवक एकत्रित हो सकते थे | इस संघ कार्यालय से अनेक स्वयंसेवकों की स्मृतियाँ जुड़ी हुई हैं | स्व. तराणेकर जी को स्नान के बाद तौलिया लपेटे अपनी इकलौती धोती का एक सिरा छत के एक छोर से बांधकर दूसरा सिरा स्वयं पकड़कर हिलाते और धोती को जल्दी सुखाने का प्रयत्न करते बहुधा, अनेक स्वयंसेवकों ने देखा था और उनकी वह छवि आज भी कईयों की स्मृति में सुरक्षित है | 

अस्तु, आज प्रसंग दूसरा है | संघ कार्य के विस्तार और आवश्यकता को देखते हुए स्वयं का कार्यालय बनाने का निर्णय लिया गया और नई सड़क पर माधव महाविद्यालय के सामने सरदार राजबाड़े साहब तथा श्री विष्णू भागवत के परस्पर सटे हुए भवनों को क्रय किया गया | संघ से प्रभावित राजबाड़े साहब ने पूरी राशि के भुगतान के पूर्व ही भवन का पंजीकरण स्वयंसेवकों द्वारा गठित राष्ट्रोत्थान न्यास के नाम पर कर दिया | शेष राशि बाद में किश्तों में चुकाई गई | 

राजबाड़े साहब बाले भाग में छोटे बड़े डेढ़ दर्जन कमरे, अनेक दालान, कई बरामदे व दो कुंए थे | किन्तु बहां कई किरायेदार भी वर्षों से जमे हुए थे | बड़ी जद्दो जहद के बाद उच्च न्यायालय के आदेश से भवन का कब्जा मिल पाया और तब संघ कार्यालय को विप्रदास के बाड़े से यहाँ स्थानांतरित किया गया | किन्तु तब तक श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश पर आपात काल थोपने के साथ संघ पर भी प्रतिवंध लगा दिया |और प्रशासन ने इस भवन को संघ कार्यालय होने के कारण सील कर दिया | राष्ट्रोत्थान न्यास ने संघ के स्थान पर इसे स्वयं की संपत्ति होने की दलील के साथ उच्च न्यायालय में चुनौती दी | न्यायालय ने प्रशासन की कार्यवाही को अवैधानिक मानते हुए भवन पर से सरकारी नियंत्रण हटाने के आदेश दिए | 

स्वयंसेवकों के सहयोग से सर्व सुविधायुक्त नया कार्यालय भवन तो १९९८ में निर्मित हुआ, किन्तु आपातकाल के बाद कार्यालय उस पुराने खँडहर नुमा आलीशान इमारत में चलता रहा | आज का संस्मरण उसी दौर का है | संभवतः 77 अंत या 78 प्रारम्भ की बात होगी, मैं, श्री गोपाल डंडौतिया और श्री महेश पांडे रात्रि के समय एक कमरे में विश्राम कर रहे थे | पुराना भवन होने के कारण बिजली फिटिंग तो थी नहीं, केवल तार के सहारे एक बल्ब छत पर लटका दिया गया था | बल्ब के ठीक नीचे हम तीनों फर्श पर लेटे हुए, नींद आने का इंतज़ार कर रहे थे | 

तभी पांडे जी बोले – गोपाल एक बात तो बता, यह बल्ब का खटका इतनी ऊपर क्यों लगाया गया है ? 

दरअसल बल्ब के साथ लगे तार पर कोई चीज चमक रही थी, जिसे महेश पांडे जी खटका कह रहे थे | 

गोपाल जी ने थोड़ा ध्यान से उसे देखा और फिर उठते हुए कहा – अरे भागो यह तो सांप है | 

सच में ही तार से एक सांप लिपटा हुआ था, जिसका जिस्म चमक कर भ्रम उत्पन्न कर रहा था | हम तीनों बगटुट भागते हुए कमरे से बाहर आये और सांप सांप की गुहार लगाईं | कई लोग इकट्ठे हो गए और आपस में चर्चा करने लगे कि क्या किया जाए | तभी एक नौजवान संघ का दंड लिए बहां आया और फुर्ती से उस सांप को नीचे गिराकर खटाखट निबटा कर दंड पर ही उसके मृत शरीर को झुलाते हुए बाहर सड़क पर फेंक आया और जाकर लम्बी तानकर सो गया | न किसी से कुछ बोला, न किसी की प्रतिक्रिया की परवाह की | 

वह नौजवान और कोई नहीं, हमारे अरुण जी जैन ही थे, जो कल क्षेत्र प्रचारक से अखिल भारतीय सह प्रचारक प्रमुख बने हैं | यह मेरा उनका प्रथम परिचय था | बाद में तो जब भी स्व. तराणेकर जी से मिलने जाता, उनसे भेंट हो ही जाती थी | 

गजब के लो प्रोफाईल इंसान हैं अपने अरुण जी | चित्र में अटल जी के पीछे जिस शख्स की केवल आँखें दिखाई दे रही हैं, वह और कोई नहीं अरुण जी ही हैं | सर्व श्री चिकटे जी, तराणेकर जी, कुंटे जी, अटल जी, कप्तानसिंह जी, अन्नाजी और सबसे पीछे अरुण जी | फोटो खिंचाने के लिए कोई उत्सुकता ही नहीं, भले ही अटल जी जैसे व्यक्तित्व के साथ ही क्यों न हो | 

एक अन्य संस्मरण उस समय का है, जब वे सहक्षेत्र प्रचारक थे | शिवपुरी की राजनैतिक उठापटक से ऊबकर 2010 में मैंने उनसे कहा कि पारिवारिक दायित्वों से अब मुक्तप्राय हूँ, अतः अगर संभव हो तो मुझे शिवपुरी से बाहर कोई दायित्व दीजिये | मेरी लेखन रूचि उन्हें ज्ञात ही थी, तत्काल थमा दिया संघ गाथा अपडेशन का काम | मुझे कहा कि पूरे मध्यभारत में घूमकर संघ कार्य के संस्मरण संकलित कीजिए | इतना ही नहीं तो भिंड जिले के प्रवास में मुझे भी साथ ले लिया | 

ग्वालियर से भिंड जिले के प्रवास पर जाते समय ग्वालियर बेंहट मार्ग पर अरुण जी ने वाहन थोडा रुकवाया ! सामने था एक खेत की मेंड पर बना एक चबूतरा और उस पर लगा भगवा झंडा ! चबूतरे पर लगभग एक क्विंटल का तिकोना पत्थर रखा हुआ था ! मुझे कुछ भी खास नहीं लगा ! किन्तु जब अरुण जी ने बताया की बह तिकोना पत्थर आल्हा की कटार मानी जाती है, तब उत्सुकता जाग्रत हुई ! पास जाकर देखा तो लगा बह पत्थर नहीं वरन अष्टधातु की बनी कोई वस्तु है ! ध्यान से देखा तो कटार की मूंठ का आभास भी होने लगा ! एक क्विंटल की कटार, तो फिर उसका उपयोग करने बाले महापुरुष कितने विराट और शक्ति संपन्न होगे ! कल्पना के घोड़े दौडने लगे ! फिर शेष रास्ते ये ही सब चर्चा होती रही ! 

और शुरू हो गया क्षेत्र की भौगौलिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की जानकारी देने का क्रम | भिंड मुरैना का यह क्षेत्र आज भी अपने अक्खड़ता पूर्ण व्यवहार के लिए जाना जाता है ! इसके कारण की मीमांशा करने पर ज्ञात होता है कि किसी समय कन्नौज के जयचंद, दिल्ली के प्रथ्वीराज और महोबा के आल्हा ऊदल की रण भूमि यही क्षेत्र रहा है ! इसी लिए आल्हखंड के ओज और शौर्य के गीत आज भी इलाके में चाव से गाये जाते हैं ! 

बरस अठारह क्षत्रिय जीवे, आगे जीवन को धिक्कार 

या फिर – 

जाको बैरी सुख से सोवे, ताके जीवन को धिक्कार ! 

वाल्यावस्था से गाते गाते कब घुट्टी में यही भाव बच्चे बच्चे में आ जाता है पता ही नहीं चलता ! दिल के साफ किन्तु जवान के कडवे, मुंहफट किन्तु साहसी और उदार ! महानगरीय सभ्यता में आम लत, पीठ पीछे छुरा मारना, किन्तु यहाँ उसे सबसे बड़ा अपराध मानने बाले लोग ! 

पहले विवेकानंद सार्द्ध शती और बाद में विश्व संवाद केंद्र का दायित्व - 2010 से 2017 तक अर्थात लगभग सात वर्ष भोपाल रहा और इन सात वर्षों में भले ही अरुण जी से सात बार भी भेंट ना की हो, किन्तु एक आश्वस्ति थी कि कोई है, जो ध्यान दे रहा है |

तो ऐसे हैं हमारे अरुण जी | हंसते, बतियाते, सहज भाव से सामान्य कार्यकर्ता का मार्गदर्शन करने वाले अरुण जी का संभवतः मुख्यालय बदलेगा | इस श्वेतकेशी को अधिकार भाव से निसंकोच गलतियाँ बताने वाला अब मध्यभारत में कोई नहीं | मुझ जैसे व्यक्ति का शायद अब बिना बुलाये प्रांत कार्यालय समिधा जाने का क्रम भी बंद हो जाएगा | लेकिन आपकी अविश्रांत उन्नति यात्रा जारी है, यही सुकून है | यही तो आरएसएस है | चरैवेति चरैवेति |
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