आखिर मीडिया शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती का मृत्यु के बाद भी विरोधी क्यों है ?



आदि शंकराचार्य परंपरा में कांचीकामकोटि पीठ के ६९ वे शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती का वैशिष्ट्य यह था कि उन्होंने रूढ़िवाद की सीमाओं का अतिक्रमण कर मठ की पहुंच और प्रभाव को बढ़ाया | 

कल दिनांक 28 फरवरी को समाधिस्थ होने वाले शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती के पूर्ववर्ती शंकराचार्य और गुरु चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती को लगभग सभी लोग सम्मान से कांची महास्वामी का संबोधन देते थे । जबकि जयेन्द्र सरस्वती उनकी तुलना में विवादित रहे, क्योंकि उन्होंने अपेक्षाकृत अधिक कठिन परिस्थितियों का सामना किया । 

गुरु-शिष्य में अंतर - 

महास्वामी के कालखंड तक कांची मठ, देश का सर्वाधिक सम्मानित धार्मिक केंद्र था, और उसके मूल में महास्वामी की अनुपम दिव्यता, विनम्रता और सादगी थी, जिसने लाखों लोगों को आकर्षित किया। देश के मूर्धन्य बुद्धिजीवी, सर्वशक्तिमान नेतागण, उद्योगपति, धनिक और सर्वसाधारण जन उनके दर्शन करने और उपदेशों को सुनने के लिए कतारबद्ध खड़े होते थे । मठ की ख्याति उनके कालखंड में शिखर पर पहुंच गई थी । जबकि उनके शिष्य व उत्तराधिकारी जयेंद्र सरस्वती, लगभग एकदम विपरीत थे। 

महास्वामी शांत रहते थे, जबकि स्वामी जयेंद्र सरस्वती स्पष्टवादी थे। उनके गुरु अंतर्मुखी थे, प्रसिद्धि से दूर रहते थे, जबकि स्वामी जयेंद्र सरस्वती दुनिया के साथ वार्तालाप में संलग्न होते थे और सामजिक समस्याओं को सुलझाने का प्रयत्न करते थे । इसके चलते 1988 में एक असहज स्थिति उत्पन्न हुई, जब मठ के कुछ लोगों ने उनकी कार्यपद्धति पर उंगली उठाई और स्वामी जयेंद्र सरस्वती बिना किसी को कुछ बताये, मठ को छोड़कर अज्ञात स्थान पर चले गए । इस घटना ने मठ के लाखों अनुयायियों को हिलाकर रख दिया। हालांकि खुद को शांत करने के बाद वे वापस लौट आये, किन्तु इस घटना ने दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ा । 

अनचाहे क्षेत्र 

1994 के बाद में स्वामी जयेंद्र सरस्वती के नेतृत्व में मठ, शांति और आध्यात्मिकता का केंद्र होने के साथ, जनसेवा के कार्यों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगा | 

आज, कांची मठ एक विश्वविद्यालय, दर्जनों स्कूलों और अस्पतालों का संचालन करता है, साथ ही 50 से अधिक पारंपरिक वैदिक स्कूल और मंदिर भी मठ के अंतर्गत हैं । जयेंद्र ने मठ के निरोधक नियमों को तोड़ दिया और दलितों के पास तक पहुंचे। वे स्वयं भी हरिजन बस्तियों में गए और हजारों नए अनुयायियों और भक्तों को आकर्षित किया। उन्होंने एक आध्यात्मिक और अनुष्ठानिक मठ को सामाजिक रूप से जीवंत बना दिया। इससे उन्हें भारी लोकप्रियता मिली और देश के सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक नेताओं की भीड़ उनकी ओर आकर्षित हुई । हालांकि इसके लाभकारी और हानिप्रद दोनों परिणाम हुए । 

गिरफ्तारी और शातिर वातावरण 

जयेंद्र सरस्वती के इन नवीन और आधुनिक क्रियाकलापों से मठ के कुछ लोगों को लगा कि पुरातन परम्पराओं को छोड़ना उचित नहीं है । अतः उनके खिलाफ एक वातावरण निर्मित होने लगा और इसी दौरान असंतुष्टों में से एक की हत्या हो गई । तमिलनाडु जहाँ पहले से ही द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम और उसकी शाखाओं द्वारा हिंदुत्व पर लगातार अन्यायपूर्ण हमले हो ही रहे थे, राजनीतिक दलों को जयेंद्र सरस्वती पर हमला करने के लिए यह अवसर उपयुक्त लगा और अंतत उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया | 

इससे एक राष्ट्रव्यापी विवाद उत्पन्न हुआ, और हिंदुत्व विरोधी राजनीतिक दलों, बुद्धिजीवियों, कार्यकर्ताओं और यहां तक ​​कि मीडिया द्वारा भी दुष्प्रचार का एक दुष्चक्र चलाया गया। केवल न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने अकेले अभिमन्यू की तरह शंकराचार्य का पक्ष लिया और एस. गुरूमूर्ति जी के पांच लेख प्रकाशित किये | वातावरण का यह असर हुआ कि निर्दोष शंकराचार्य को मजिस्ट्रेट, सत्र न्यायालय और मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा जमानत भी नहीं मिल सकी । उनके खिलाफ आरोप पत्र दायर होने से पहले ही उन्हें एक अपराधी घोषित कर दिया गया था। अंत में, उन्हें सर्वोच्च न्यायालय से जमानत मिली ! 

बाद में, पुडुचेरी में प्रिंसिपल सत्र कोर्ट ने जयेंद्र सरस्वती, विजेंद्र सरस्वती और अन्य सभी को बरी कर दिया। लेकिन उस नौ साल में जो गहन दर्द और अपमान आचार्य ने सहा वह वर्णनातीत है | 

जयेंद्र सरस्वती अब हमारे बीच नहीं हैं और उनका दर्द भी उनके साथ ही मृत हो गया है। लेकिन मीडिया ने उनके प्रति अपना रुख नहीं बदला | ना तो उनके दोषमुक्त होने का समाचार अधिक चर्चित हुआ और उसी प्रकार समाधिस्थ होने के समाचार को भी मीडिया ने कोई तबज्जो नहीं दी | शराब के नशे में धुत्त होकर अपने ही बाथरूम के बाथटब में प्राण गंवाने वाली एक फिल्म अभिनेत्री की अंतिम यात्रा, इस आधुनिक सन्यासी के महाप्रयाण से अधिक महत्वपूर्ण मानी गई ।
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