अजीब तमाशा है - क्या सचमुच लाल किला बिक गया ?



देश में बड़ा विचित्र तमाशा चल रहा है | सितंबर 2017 में भारत सरकार ने एक योजना प्रारम्भ करने की घोषणा की - ‘Adopt A Heritage’ (अपनी विरासत को सहेजें) | इस योजना के अंतर्गत भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थित लगभग 100 स्मारक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थलों को गोद लेने के लिए निविदा आमंत्रित की गईं । इन स्थलों में उत्तर प्रदेश का ताजमहल, हिमाचल प्रदेश का कांगड़ा किला, मुंबई की बौद्ध कनरी गुफाएं आदि भी शामिल थीं । इनके अतिरिक्त वे स्थान भी सूची में सम्मिलित थे, जिनका रख रखाव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा नहीं किया जाता, जैसे - हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले का चितकूल गांव, अरुणाचल प्रदेश में थंबांग और हरिद्वार, उत्तराखंड में सती घाट आदि । 

हैरत की बात यह है कि जब यह अधिसूचना जारी हुई, तब किसी विपक्षी दल को इस पर कोई आपत्ति नहीं हुई, किन्तु जैसे ही डालमिया समूह ने “स्मारक मित्र” के रूप में लाल किले को दत्तक लेने में सफलता पाई, चीख पुकार शुरू हो गई | कांग्रेस तो अब हर काम में आपत्ति दर्ज करने में महारत हासिल कर ही चुकी है, पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बैनर्जी ने भी ट्वीट कर ऐसा दर्शाया मानो भारत सरकार ने लाल किले का मालिकाना हक़ डालमिया समूह को दे डाला हो | 

हैरत इस बात की भी है कि इन महान नेताओं को यह भी ज्ञात नहीं है कि हर कंपनी को CSR के धन को जनहित में खर्च करना होता है वह.अब ऐतिहासिक धरोहरो. के संरक्षण में लगेगा, इसका यह मतलब नहीं कि वह खरीद रहे हैं । रख रखाव भी ASI की देख रेख में ही होगा किन्तु सरकार का धन बचेगा ।

आईये पूरी स्थिति पर एक नजर डालते हैं | डालमिया समूह ने लाल किले के साथ आंध्र प्रदेश का गांधीकोट किला भी माँगा था | कहा जाता है कि कोणार्क सूर्य मंदिर का अनुबंध भी अंतिम चरण में है । जबकि ताजमहल को अपनाने की दौड़ में जीएमआर स्पोर्ट्स और आईटीसी आगे हैं । 

अनुबंध की शर्तों के अनुसार डालमिया समूह भारत सरकार को पांच वर्ष के लिए पच्चीस करोड़ रुपये अदा करेगा | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से अपने वर्तमान कार्यकाल में अंतिम बार राष्ट्र को संबोधित करेंगे | अतः स्वाभाविक ही जुलाई में सुरक्षा एजेंसियां लाल किले को अपने कब्जे में ले लेंगी | डालमिया समूह के पास बहुत थोडा समय है अतः वह 23 मई से काम शुरू करने की तैयारी में है । डालमिया भारत समूह के शीर्ष अधिकारियों के अनुसार उनकी प्राथमिकता रात की आकर्षक रोशनी का कार्य पूर्ण करने की है । अनुबंध के अन्य पहलुओं पर काम उसके बाद पूरी तेजी से प्रारम्भ होगा, जिसमें प्रमुख हैं शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए विशेष स्पर्शशील फर्श और स्मारक के इतिहास को दर्शाने वाले संकेत लगाना, स्मारक के प्रति पर्यटकों की रुचि को बढ़ावा देने के लिए संगीत कार्यक्रमों और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन आदि । चूंकि कॉरपोरेट हाउस योजना बनाने में कुशल होते हैं, इसलिए स्वाभाविक ही लाल किले का नया परिवर्तित स्वरुप लोगों के आकर्षण का केंद्र बनेगा | 

सवाल उठता है कि कारपोरेट हाउस को इससे क्या लाभ ? जितने अधिक पर्यटक आयेंगे उतना ही उनकी विपणन गतिविधियों का विज्ञापन भी तो होगा । डालमिया ब्रांड के होर्डिंग लगेंगे । समूह स्मृति चिन्हों पर 'डालमिया' ब्रांड का नाम होगा, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के दौरान लाल किले के परिसर में उनके बैनर लग सकेंगे । लाल किले के प्रवेश द्वार पर लिखा होगा इसे डालमिया भारत लिमिटेड द्वारा अपनाया गया है। किन्तु शर्त यह है कि डालमिया भारत के ब्रांड को लाल किले से जोड़ने वाले इस तरह के “स्मारक मित्र” के संकेत का आकार और डिजाइन 17 वीं शताब्दी के इस स्मारक पर स्थापित होने से पहले एएसआई द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए | 

डालमिया भारत सीमेंट के समूह सीईओ महेंद्र सिंह का कहना है कि हम 30 दिनों के भीतर अपना काम शुरू कर देंगे । यह परियोजना ग्राहक केंद्रित होगी, क्योंकि यहाँ आने वाले आगंतुक एक प्रकार से हमारे ग्राहक ही होंगे। हम सिर्फ एक बार के आगंतुकों के स्थान पर नियमित रूप से यहां आने वाले पर्यटक चाहते हैं, यह तभी होगा जब दिल्ली और एनसीआर के अधिक से अधिक लोग यहाँ आयें । यूरोप के कुछ महलों पर नजर डालें, तो वे लाल किले के सामने कुछ भी नहीं हैं, किन्तु उनका रख रखाव बेजोड़ है । हम अपने इस राष्ट्रीय स्मारक को इस प्रकार विकसित करेंगे, कि वह आने वाले दिनों में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ स्मारकों में से एक होगा।" 

और शायद यही वह तथ्य है, जो विपक्षी दलों को डरा रहा है | कोई भी सफल योजना, उन्हें भयभीत करती है | उन्हें लगता है कि सफल योजनाओं से मोदी सरकार की लोकप्रियता बढ़ती है | और अगर मोदी इसी प्रकार लोकप्रिय होते गए, तो उनकी दूकान कैसे चलेगी ?
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