भारत जमीन का टुकड़ा नहीं हमारी मां है, क्या मां को “बंद” करना जायज है ? – दिवाकर शर्मा


पहले 2 अप्रैल उसके बाद 10 अप्रैल को “भारत बंद” का आह्वान भारत के लिए अत्यंत चिंता का विषय है | भारत बंद के इन आयोजनों से एक सवाल जो मन में पैदा होता है कि क्या भारत “बंद” का आह्वान भारत के लिए सही है ? क्या भारत “बंद” से भारत की वर्तमान समस्याओं को ठीक किया जा सकता है ? भारत “बंद” को समर्थन देने वाले संगठन क्या भारत के प्रति चिंतित है ? क्योंकि भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ देश को मां का दर्जा दिया जाता है, तो क्या अपनी मां को उसके बेटों के द्वारा “बंद” किया जा सकता है ? “बंद” की आड़ में भाई भाई आपस में लड़ने-मरने-कटने को तैयार हो सकते है ? 

यदि भारत का इतिहास उठा कर देखा जाए तो हम जान पायेंगे कि सदैव से इस देश पर विदेशी आक्रमणकारी देश को गुलाम बनाने की नियत से आक्रमण करते आये है परन्तु हमेशा ही इस देश के वीर सपूतों ने इन विदेशी आक्रमणकारियों को उनके नापाक मंसूबों में कामयाब नहीं होने दिया है | सदैव इस देश के वीर सपूतों ने संगठित होकर इस देश का अहित चाहने वाली शक्तियों को धुल चटाई है | यह बात है उस समय कि जब इस देश को विदेशी शक्तियों से खतरा होता था, परन्तु आज की परिस्थितियां काफी भिन्न है | आज इस देश को देश के ही कुछ जयचंदों से खतरा है | यह जयचंद इस देश की आजादी के पश्चात से ही सत्ता सुख के इतने आदि हो चुके है कि अब सत्ता में रहने के लिए यह किसी भी हद तक जाने को नहीं चूक रहे है | जिस प्रकार नशे का आदि व्यक्ति नशा उपलब्ध न होने पर पागल सा हो उठता है ठीक उसी प्रकार इस देश के वह नेता जिन्हें सत्ता सुख की लत लग चुकी है विचलित होकर सत्ता प्राप्ति हेतु किसी भी हद तक जाने को तैयार है भले ही इसके लिए उन्हें अपनी मात्रभूमि के टुकड़े टुकड़े क्योँ न करने पड़े, भले ही इसके लिए उन्हें अपने बंधू बांधवों को आपस में लड़ा कर उनकी जान लेनी पड़े | उन्हें तो बस मतलब है सत्ता प्राप्ति से | 

26 मई 2014 का वह दिन जब भारत के लोकतंत्र में एक इतिहास रचते हुए भाजपा ने लोकसभा चुनावों में जीत हासिल करते हुए सत्ता का परिवर्तन किया उससे भारत का सम्पूर्ण वह तबका जिसे सत्ता की मलाई में लिप्त रहने की आदत लग चुकी थी अचानक ही सन्न की स्थिति में आ गया | सभी विपक्षी राजनैतिक दलों की एकजुटता के बावजूद नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री पद पर काबिज हुए | बस यहीं से प्रारंभ हुआ एक ऐसा षड़यंत्र जिसे हर किसी को जानने की आवश्यकता है | प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी की सम्पूर्ण विश्व में लोकप्रियता की सीढियां चढ़ रहे थे वहीँ विपक्षी दलों में हडकंप की स्थिति निर्मित होती चली जा रही थी | ऐसे में इन विपक्षी दलों को सयुंक्त रूप से सम्पूर्ण भारत वर्ष में मिल रही पराजयों की वजह से जातिवाद की राजनीति पर आधारित इन राजनैतिक दलों के माथे पर चिंता की लकीरें स्पष्ठ रूप से दिखाई देने लगीं | अभी तक हिन्दू-मुसलमानों को आपस में लड़ाकर देश पर राज करने वाले इन राजनैतिक दलों को महसूस हो गया कि इस प्रकार के षड़यंत्र से उन्हें ही भारी नुक्सान हो रहा है अतः उन्होंने अपना गेम चेंज करते हुए अब हिन्दुओं को हिन्दुओं के विरुद्ध लड़ाने का प्लान तैयार किया | हिन्दुओं के एक वर्ग विशेष में यह अवधारणा पैदा करने का प्रयास किया गया कि भाजपा और मोदी, संघ के कहने पर शीघ्र ही आरक्षण को समाप्त करना चाहते है जबकि सामाजिक समरसता के कार्य में जुटा संघ देश के सभी तबकों को समान दृष्टी से देखते हुए जातपात, छुआछूत, भेदभाव, सामाजिक बुराइयों को दूर करने का कार्य सम्पूर्ण देश में कर रहा है जिससे जातपात के आधार पर सत्ता में आने की लालसा रखने वाली राजनैतिक पार्टियों को महसूस होने लगा कि इस प्रकार से तो हमारा खेल समाप्त हो जाएगा | अतः इन विचलित विपक्षी राजनैतिक पार्टियों ने देश में जातपात के नाम से हो हल्ला मचाना प्रारंभ कर दिया | 

इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी (प्रिवेंशन ऑफ़ एट्रोसिटीज़) एक्ट को लेकर कहा था कि इन मामलों में तुरंत गिरफ़्तारी नहीं होनी चाहिए और शुरुआती जाँच के बाद ही कार्रवाई होनी चाहिए | शीर्ष अदालत ने तत्काल गिरफ्तारी के प्रावधान को लेकर कहा कि हमारा मकसद निर्दोष लोगों को फंसाने से बचाना है। निर्दोषों के मौलिक अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए। परन्तु सुप्रीम कोर्ट के इस बयान को जातपात के नाम पर अपनी राजनैतिक रोटियां सकने वाले दलों ने यह कहकर प्रचारित किया कि शीघ्र ही सुप्रीम कोर्ट आरक्षण को इस देश से समाप्त करने जा रही है | जैसे ही यह अफवाह फैली वैसे ही सम्पूर्ण भारत के भाजपा शासित राज्यों में 2 अप्रैल को “भारत बंद” के दौरान जमकर हिंसा हुई | हिंसा के कारण राजस्थान, पंजाब और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में इंटरनेट सर्विस को बंद करना बड़ा। कई इलाकों में कर्फ्यू लागनी पड़ी। मध्य प्रदेश के मुरैना और ग्वालियर जिले में सेना बुलानी पड़ी थी। 

2 अप्रैल को हुई हिंसा की यदि गहराई में जाए तो साफ़ दिखाई देता है कि हिंसा के दौरान जिस प्रकार से महिलाओं और हिन्दुओं की संपत्तियों को निशाना बनाया गया यह ठीक उसी प्रकार से था जब मुगलों ने इस देश में आने के बाद लूटपाट की थी | अचानक से एक वर्ग विशेष का सड़कों पर भारी मात्रा में उतरना आशंकित करता है कि इसके पीछे भी कोई न कोई बड़ी साजिश है | रातों रात एक आह्वान पर व्यक्तियों को एकत्रित कर उन्हें दंगाइयों के रूप में परिवर्तित कर देना कश्मीरी पंडितों के साथ कश्मीर में हुए नरसंहार की कहानी याद दिलाता है | बस इस बार फर्क इतना ही था कि सफ़ेद टोपियाँ नीली टोपियों में तब्दील हो चुकी थी | यह सब तब हुआ जबकि केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर कर दी थी | 

इस हिंसा के बाद कई राज्यों में सरकारों ने जांच कमिटि बैठाकर हिंसा फैलाने वाले लोगों के खिलाफ मुकदमा दायर करने का फैसला लिया | मध्यप्रदेश में ऐसी ही जांच कमिटि ने अपनी जांच में पाया है कि राज्य में भारत बंद के दौरान फैली हिंसा एक सुनियोजित साजिश का परिणाम थी | राज्य पुलिस मुख्यालय की इंटेलिजेंस शाखा ने हिंसा फैलाने के आरोप में गिरफ्तार लोगों से हुई पूछताछ के बाद ये तक पाया है कि इस हिंसा के लिए लोगों को ट्रेनिंग भी दी गई थी | पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक ग्वालियर और चंबल जैसे इलाकों में हिंसा भड़काने के लिए दर्जनों संगठन काम कर रहे थे | इन संगठनों ने लोगों को लाठी-डंडे भी मुहय्या कराए थे | पुलिस के मुताबिक इन संगठनों की पहचान की जा चुकी है | 

2 अप्रैल के बाद 10 अप्रैल को भी पुनः एक बार “भारत बंद” का आयोजन चर्चा में है | 10 अप्रैल को लेकर जनरल और ओबीसी संगठनों द्वारा भारत बंद की मांग करते पोस्ट औऱ मेसेज वायरल होना प्रारंभ हो चुकी है | इनमें ‘आरक्षण हटाओ’ की मांग करते हुए देशभर में किए जा रहे प्रदर्शन में शामिल होने के लिए कहा जा रहा है | हालांकि 10 अप्रैल के भारत बंद को शांतिपूर्ण रखने की भी अपील की गई है, जबकि अधिकांश सवर्ण समाज प्रमुखों ने इन फर्जी संदेशों से दूर रहने की सलाह दी है | इनके अनुसार कुछ लोग सिर्फ डर और असमंजस की स्थिति बनाने के लिए इस तरह के संदेश वायरल कर रहे हैं | लोग इसे नजरअंदाज करें | कुल मिलकर 2 अप्रैल की ही तरह 10 अप्रैल का “भारत बंद” भी एक सोची समझी साजिश है | अब सवाल उठता है कि क्या इस प्रकार “भारत बंद” करा कर अपनी मांगों को पूर्ण कराया जा सकता है ? यदि हाँ फिर तो आये दिन ही “भारत बंद” का आयोजन इस देश में होता रहेगा | लोग अपनी समस्याओं को लेकर कोर्ट के निर्देशों को दरकिनार कर बस “भारत बंद” के माध्यम से ही अपनी बात सरकारों पर दवाब बना कर मनवाते रहेंगे अर्थात जिसकी लाठी उसकी भैस की तर्ज पर यह देश चलता रहेगा | 

अब एक सवाल यह भी मन में उठता है कि वर्तमान में उस देश में इस प्रकार की भयानक परिस्थितियां क्योँ उत्पन्न हो रही है जिस देश ने सम्पूर्ण विश्व जगत को खान-पान, रहन-सहन, चलना-फिरना, उठना-बैठना, बोलना यहाँ तक कि वस्त्र पहनना सिखाया | इस पर यदि हम विचार करें तो समझेंगे कि लापता हुए बच्चों को अपने मां-बाप का नाम, गाँव-शहर का पता होना जितना जरूरी है ठीक उसी प्रकार हमें अपने इतिहास के बारे में जानकारी होना भी उतना ही जरूरी है | समस्या यह है कि हम अपना इतिहास भूल चुके है | सदियों से जिन्होंने हम पर राज करने की कोशिश की है उन्होंने हमारी वीरता, हमारे आपसी भाईचारे, हमारी गौरव की गाथाओं को कहीं छुपा कर रख दिया है | धर्म बदलकर, स्थान बदलकर, भाषा बदलकर हमारी असली पहचान को ही मिटा दिया है | हमारा इतिहास किताबों में बंद होकर रह गया है या फिर किसी लायब्रेरी में धूल खाता हुआ सड रहा है | आज आवश्यकता है अपने इतिहास को जानने की | हमारी युवा पीढ़ी को जब हमारा गौरवशाली इतिहास पता होगा तभी उनमे पूरी दुनिया को मार्ग दिखाने का आत्मविश्वास पैदा होगा | यह सब अभी तक उन लोगों को नहीं बताया गया जो आज “भारत बंद” कराने पर आमादा है इसीलिए आज इस प्रकार का वातावरण निर्मित हुआ है | हमें यह जानना ओर जानकर दूसरे लोगों को यह बताना होगा कि इस पावन धरती पर न जाने कितने ऋषियों, मुनियों ने जन्म लिया है जिन्हें हम भूल गए है परन्तु वह सब आज भी आपके डीएनए में जिन्दा है, आपकी रग-रग में जिन्दा है | हमें उनके दिए हुए ज्ञान को आगे बढाना है और इन “भारत बंद” की आड़ में देश को विभाजित करने का षड़यंत्र रच रही आसुरी शक्तियों को सबक सिखाना है |

दिवाकर शर्मा
संपादक - क्रांतिदूत डॉट इन
प्रदेश अध्यक्ष – भारत संस्कृति न्यास
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