वैदिक ग्रंथों में एयरोस्पेस प्रौद्योगिकी (विमान शास्त्र) के गूढ़ तत्वों की व्याख्या की दिशा में शोध कार्य की गाथा - पी.वी. प्रसाद



कहा जाता है कि उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ अर्थात १९०४-१९०५ में राइट ब्रदर्स - विलबर और ओरविले राइट ने पहला विमान बनाया और उस आविष्कार के साथ ही एक नया युग प्रारम्भ हुआ, क्योंकि बाद में यही पहला विमान आगे चलकर आधुनिक हवाई जहाज बन गया। लेकिन, बहुत कम लोगों को पता है कि भारत के अनंत ज्ञान के आधार ऋग वेद में जलयान, कारा, त्रितला, त्रिचक्र रथ, वायु रथ और यहाँ तक कि विद्युत रथ का उल्लेख मिलता है । 

वैदिक काव्य के समृद्ध ज्ञान का उपयोग करने के लिए प्राथमिक आवश्यकता है इन पुरातन ग्रंथों के गूढ़तत्वों को समझकर उसे आधुनिक तकनीक में ढालना । यदि इन महान ग्रंथों के अनुवाद और व्याख्या में सफलता मिलती है तो इसमें कोई दो राय नहीं कि ना केवल वायुयानों और अंतरिक्ष विज्ञान की तकनीक में और सुधार होगा, वरन वायु, पानी, जमीन और भूजल जैसे प्राकृतिक क्षेत्रों में भी लाभ मिल सकेगा । 

आजकल वद्दादी काव्या नामक एक युवा इंजीनियर वैदिक ग्रंथों की व्याख्या के इसी कठिन काम में जुटी हुई हैं | काव्या के माता-पिता ईस्ट गोदावरी, आंध्र प्रदेश से आकर नई दिल्ली में बस गए हैं | एरोनोटिकल इंजीनियर में बीटेक करने के बाद वे अंतरिक्ष विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में प्राचीन वैज्ञानिक ज्ञान (महर्षि भारद्वाज रचित वैमानिक शास्त्र} और उसका आधुनिक तकनीक में उपयोग विषय पर शोध कर रही हैं। 

काव्या का मानना है कि "प्राचीन तकनीक में शत प्रतिशत दक्षता के साथ प्रकृति द्वारा नि:शुल्क प्रदत्त ऊर्जा का उपयोग किया जाता था, तथा उससे प्रकृति को लेश मात्र भी हानि पहुँचने की संभावना नहीं होती थी । सचाई तो यह है कि प्राचीन काल में जिस उन्नत तकनीकों का उपयोग हुआ, उसकी तुलना में आज प्रयोग में आ रही तकनीक बहुत कम उन्नत है। हमारे अंतरिक्ष वाहन, अंतरिक्ष में जाकर निरर्थक मलबा न बनें, पर्यावरण प्रदूषित न हो, इसलिए यह आवश्यक है कि हम उस प्राचीन ज्ञान विज्ञान को अच्छी तरह से समझें। 

हैदराबाद में पैदा हुई काव्या को वाल्यकाल से ही पौराणिक गाथाओं और दैवीय साहित्य की व्याख्या में गहरी रुचि थी और बाद में वे वैदिक ग्रंथों में वायु, पानी और भूजल के उल्लेख को देखकर अत्याधिक प्रभावित हुईं । साथ ही जब बाल्यकाल में उन्होंने अपने बुजुर्गों से इच्छानुसार चलने वाले विमानों की कहानियां सुनीं तबसे ही उन्होंने इस विषय को समझने का ठान लिया |

उनका कहना है कि जिन दिनों में वैमानिक इंजीनियरिंग का अध्ययन कर रही थी, तब मैंने इस विषय पर ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया और अंत में वेडस कंपनी में एक डिजाइन इंजीनियर, सीएफडी और स्ट्रक्चरल विश्लेषक के रूप में काम करते समय इस में ही रम गई । प्राचीन प्रौद्योगिकियों को डिकोड करने की दिशा में अभी तक कोई महत्वपूर्ण शोध नहीं हुआ है, मैं संस्कृत ग्रंथों को आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के परिप्रेक्ष में समझने की कोशिश कर रही हूं। 

भारत मूलतः दार्शनिक परंपराओं पर गहन आस्थाओं का देश है, जहां वैदिक बनाम आधुनिक प्रौद्योगिकी को लेकर शोध में अनेक बाधाएं हैं क्योंकि उसके कारण नए सिद्धांतों की आलोचना और असहमति की संभावना उत्पन्न होती है । इसके बाद भी काव्या अपनी ओर से पूरी कोशिश कर रही है कि वह पुरातन तकनीक की व्याख्या कर सके । 

वर्तमान में वे विमान शास्त्र विषय पर काम करने में व्यस्त हैं और हाल ही में उन्होंने वैदिक विमान पर 3 डी मॉडलिंग को पूरा किया है और उनके सीएफ़डी विश्लेषण भी वैदिक साहित्य और महाकाव्यों में वर्णित अंतरिक्ष शिल्प की उड़ान क्षमताओं को प्रदर्शित करने के लिए तैयार है। वह उन्नत व्यावसायिक युद्धों, रक्षा प्रणालियों और अंतरिक्ष यात्रा को पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए, विमान शास्त्र से सम्बंधित श्लोकों की तकनीकी व्याख्याओं पर भी काम कर रही हैं। 

काव्या विज्ञान प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्यरत “scientific works on Advanced Space technology Investigators for Knowledge” (SWASTIK) के माध्यम से वैज्ञानिक शोधकर्ताओं के एक समूह का नेतृत्व कर रही है। 

उन्होंने इसरो, डीआरडीओ और नासा के पूर्व वैज्ञानिकों के समर्थन और मार्गदर्शन के साथ, उन्होंने वैदिक विमानों के निर्माण, संरचना, प्रणोदन, वायुगतिकी, अंतरिक्ष यांत्रिकी पर भी काम किया और वर्तमान में विमान प्रोटोटाइप, विशेष रूप से रिवर्स इंजीनियरिंग के पुन: अनुवाद और व्याख्या पर काम कर रही हैं। । 

उन्होंने दो पुस्तकें भी लिखी हैं - Vimanas and Wars of the Gods और Reverse Engineering in Vedic Vimanas 
काश विषय की गंभीरता को समझकर केंद्र सरकार का सहयोग भी उन्हें मिल पाए !
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