युवाओं के आदर्श रोल मॉडल – हनुमान !



हनुमान चालीसा का यह दोहा तो आपने पढ़ा ही होगा: 

बुद्धिहीन तनू जानके सुमिरहूँ पवनकुमार 

बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश बिकार 

इसका सामान्य अर्थ है – मैं जानता हूँ कि मुझमें बुद्धि नहीं है, अतः हे पवनपुत्र हनुमान जी मैं आपका स्मरण कर रहा हूँ, कृपया मुझे शक्ति, बुद्धि और ज्ञान प्रदान करें और सभी दुश्वारियों और बुराईयों से मुक्त करें | 

शायद ही कोई हिन्दू युवा ऐसा हो, जिसने अपने बचपन में, हनुमान चालीसा की यह पंक्तियाँ एक बार भी न पढी हों । जब भी डर लगता था, हनुमान चालीसा पढ़ते ही भय भाग जाता था, लगता था हनुमान जी साथ ही हैं । इतना ही नहीं तो परीक्षा के समय तनावग्रस्त अवस्था में आत्म-विश्वास जगाने का भी यह कारगर तरीका था | "सब कुछ ठीक है" और अच्छा ही होगा, क्योंकि हनुमान जी से प्रार्थना कर चुका हूँ । 

आह! वे बचपन के दिन थे। बिना यह जाने कि यह हम क्यों कर रहे हैं, या क्यों करना चाहिए, हम करते थे और उसका सुपरिणाम भी मिलता था | आज अगर हम आत्मविश्वासयुक्त और सफल हैं, और अधिक जिम्मेदारियां उठाने को तैयार हैं, तो उसके पीछे हनुमान जी एक प्रेरक तत्व हैं । याद कीजिए कि हमारे बड़ों से शायद हमने से कईयों ने अनजाने में कहा होगा कि हम हनुमान की तरह शक्तिशाली, निडर, सफल और चपल बनना चाहते हैं । 

लेकिन अफसोस! जैसे जैसे हम बड़े होते गए, हमारे रोल मॉडल बदलते गए । अब यातो हॉलीवुड का कोई हीरो हमारा रोल मॉडल है, या कोई क्रिकेटर । अपने बॉलीवुड स्टार या क्रिकेटर की प्रशंसा करना गलत नहीं है, क्योंकि उन्होंने बहुत कड़ी मेहनत के बूते इस सफलता को हासिल किया है और यही वजह है कि वे अपने क्षेत्र में लोकप्रिय हैं। इसलिए उनसे प्रेरणा लेना भी कोई गलत बात नहीं है, किन्तु जब हम अपने पूरे जीवन और जन्मजन्मान्तर का विचार करें तो केवल हनुमान जी ही एक उपयुक्त पात्र हो सकते हैं | वेदों की इस भूमि पर रहने वाले हम लोगों की भूमिका क्या हो, इसके लिए कौनसे गुण हम अपने आप में उत्पन्न करने का प्रयास करें, आईये इस विषय पर कुछ विचार करें | 

प्रथम प्रश्न मैं कौन हूँ, क्या हूँ ? 

पौराणिक आख्यान के अनुसार जब हनुमान सूर्य को एक लाल सेब समझकर उसे पकड़ने के लिए गए, तब इंद्र ने उन पर बज्र प्रहार किया । बाल हनुमान घायल हो गए, उनके जबड़े विकृत हो गए। और इसी कारण उनका नाम हनु(ठोडी)-मान (युक्त) हुआ | विकृत चेहरा हो जाने के बाद भी उनके मन में किसी प्रकार की हीन भावना नहीं आई, उन्होंने अपना चेहरा बदलने या छुपाने की कोई कोशिश नहीं की, वे जैसे थे बैसे ही रहे! 

यह समझने योग्य बहुत ही महत्वपूर्ण बात है कि जरूरी नहीं कि आप सर्वगुण संपन्न हों । हो भी नहीं सकते, कोई नहीं है। हो सकता है लोग हमारी किसी शारीरिक कमजोरी का मजाक बनाते हों, हम अधिक मोटे या दुबले हो सकते हैं, कोई अन्य विकृति भी हो सकती है, लेकिन उसके कारण तनाव या दबाब में आने की जरूरत नहीं । बस हनुमान जी के उक्त कथानक का स्मरण करें और अपनी कमजोरी को भूलकर अपने गुण और सामर्थ्य को बढाने पर ध्यान दें | उसका नाम कुछ भी हो सकता है | 

जो काम हाथ में लिया, उस पर ही ध्यान केंद्रित करें, जब तक वह कार्य पूर्ण न हो जाए, डगमगाना नहीं! 

जब हनुमान जी सीता माता को खोजने के लिए महासागर को पार कर रहे थे, तब पर्वतराज मैनाक ने उन्हें विश्राम का आग्रह किया, जिसे हनुमान जी ने विनम्रता से ठुकरा दिया और समय बर्बाद किए बिना आगे बढ़ गए । एक राक्षसी ने उनकी उड़ान रोकने का प्रयत्न करते हुए, उन्हें द्वंद्वयुद्ध की चुनौती दी। हनुमान जी ने पुनः युक्ति से काम लिया, स्वयं को बहुत छोटा बनाकर, बताकर, उसके अहं को तुष्ट कर अपनी यात्रा अबाधित रखी | वे उसके मुंह के माध्यम से प्रवेश कर उसके कान से बाहर निकले ताकि राक्षसी उनकी ताकत को भी समझ सके। वे अपने मार्ग से विचलित नहीं हुए, ना तो समय बर्बाद होने दिया और नाही किसी बाधा से प्रभावित हुए । 

यह एक महत्वपूर्ण सीख है कि जब हम कड़ी मेहनत कर रहे हैं, तो उस समय फिल्मों, मित्रों, खेलों आदि जैसी कई वाधाएं हमें विचलित करती हैं । यह संयोग ही है कि हनुमान जयन्ती हमारे परीक्षा के समय ही आती है, शायद इसमें यही अन्तर्निहित है कि हम हनुमान जी के उक्त गुणों से प्रेरणा लेकर अध्ययन पर ध्यान केन्द्रित करें । 

बड़े लक्ष्य रखकर चलें और मंजिल पर पहुँचने का हर संभव प्रयत्न करें! 

जब हनुमान संजीवनी बूटी की खोज करने की कोशिश कर रहे थे, तो उलझन में थे, क्योंकि वे सही जड़ी-बूटी की पहचान नहीं कर पा रहे थे । लक्ष्य बड़ा था, लक्ष्मण जी के प्राण बचाने थे और केवल इतना पता था कि इसी पहाड़ पर वह बूटी है । उन्होंने खोजने में अधिक समय नहीं गँवाया, और पूरे अपनी पूरी शक्ति का उपयोग कर पहाड़ को ही ले आये, ताकि बैद्य तक सही समय पर औषधि पहुँच सके और वह लक्ष्मण जी के प्राण बचा सके । 

यहाँ से हमें यही सीख मिलती है कि परीक्षाएं और अंक महत्वपूर्ण हैं, लेकिन परीक्षाएं अंततः केवल एक साधन हैं, मूल विषय है कि जो कुछ आपने सीखा है, उसका आप समाज और देशहित में कितना उपयोग करते हैं, या आपने जो कुछ भी हासिल किया है, उससे आप क्या अधिकतम श्रेष्ठ कर सकते हैं। 

स्पष्ट संवाद, दूसरे के मनोभाव जानना और उन्हें उतना ही बताना, जितना उन्हें जानना चाहिए! 

जब हनुमान सीता माता को खोजने के बाद लंका से वापस लौटे, तो सबसे पहले मिलने वाले व्यक्ति जाम्बवान थे। बुजुर्ग जाम्बवान को उन्होंने एक छोटे बच्चे के समान समस्त प्रसंग सुनाये, जो कुछ किया वह सब कुछ सुनाया – कैसे उन्होंने अपनी असाधारण ताकत से अशोक वाटिका को उजाड़ा, कैसे महा पराक्रमी रावण की नाक के नीचे उसकी सुंदर नगरी लंका को जला डाला, आदि आदि । लेकिन जब वह श्री राम के पास पहुंचे तो उन्हें सबसे पहले वह बताया, जो वह जानना चाहते थे, अर्थात वे सीता माता से कैसे मिले, वे उनसे मिलने से पहले कितनी दुखी थीं, और अब राम के आगमन के समाचार से वे कितनी खुश हैं, कि राम आ गये, अब दुष्ट रावण का विनाश अवश्यंभावी है और वे शीघ्र ही अपने स्वामी श्री राम से मिल सकेंगी । 

यह महत्वपूर्ण है कि हमें पता होना चाहिए कि कब बोलना है, क्या बोलना है,क्यों बोलना है और कितना बोलना है, हमें अपने संदेश को तदनुसार ढालना आना चाहिए । 

उद्देश्य प्राप्ति हेतु संवाद! 

जब हनुमान अंततः सीतामाता में अशोक वनम में आए, तो उन्हें कुछ मिनटों से यह समझा गया कि वह श्री राम दोोटा हैं। सीता माता दुश्मन की भूमि में थी, उन्होंने पहले से ही रावण की कई मायावी चालों को देखा और अनुभव किया था, इसके बाद भी उनका दृढ विश्वास था कि श्री राम उन्हें बचाने अवश्य आएंगे | अतः जब हनुमान अशोक वाटिका में सीता माता के सामने पहुंचे तो सीता जी ने इसमें भी रावण की ही कोई चाल समझी | समझा जा सकता है कि ऐसी स्थिति में, उन्हें समझाना कितना मुश्किल रहा होगा कि वे राक्षस राज की माया नहीं, बल्कि श्री राम के दूत थे और यह बुरा समय अब समाप्त होने वाला है । लेकिन अपने वाक्चातुर्य से वे सफल हुए | 

हमें यही सीखने की ज़रूरत है | साक्षात्कार के दौरान हमारा सम्प्रेषण ही हमें सफल या असफल बनाता है - क्योंकि साक्षात्कारकर्ता जानना चाहता कि आपकी क्षमता कितनी है और आप क्या कर सकते हैं। 

हमारे सनातन धर्म में प्रत्येक त्यौहार सोद्देश्य है, और उसमें भी अपने महान ऐतिहासिक पूर्वजों के स्मरण द्वारा उनसे प्रेरणा प्राप्त करना सबसे महत्वपूर्ण है । और निसंदेह हनुमान एक महान प्रेरणा स्त्रोत हैं, आधुनिक भाषा में कहें तो आदर्श रोल मॉडल है। 

आलेख हनुमान चालीसा से दोहे से प्रारम्भ हुआ था, अतः समापन भी एक दोहे के साथ जो हमें तात्कालिक ज्ञान विज्ञान के विषय में बताता है – हमारे पूर्वज जानते थे कि पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी कितनी है - 

युग सहस्र योजन पर भानु 

लील्यो ताहि मधुर फल जानू 

जय श्री राम!!
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