मूर्खता दिवस - यूरोपीय मूर्खों द्वारा मनाया जाने वाला महापर्व - उद्गम और कारण कितने बौद्धिक ?



1 अप्रैल और मूर्खता दिवस के बीच अंतर्संबंध सर्वप्रथम जेफरी चौसर द्वारा 1392 में लिखित कैंटरबरी टेल्स की कहानी "नून के पुजारी की कहानी" से हुआ | यह कहानी एक चतुर लोमड़ी और बुद्धू मुर्गे की है | इस कहानी में चौसर ने शब्दप्रयोग किया - Syn March bigan thritty dayes and two. पाठकों ने इसे 32 मार्च अर्थात 1 अप्रैल समझा । आधुनिक विद्वानों का मानना ​​है कि यह मौजूदा पांडुलिपियों में प्रतिलिपि की गलती है और वास्तव में चौसर का आशय था कि सायन मार्च गया । अगर इसे माना जाए तो उक्त वर्णन मार्च के 32 दिन बाद अर्थात 2 मई होगा, जोकि इंग्लैंड के किंग रिचर्ड द्वितीय और ऐनी ऑफ़ बोहेमिया की शादी की सालगिरह है, जो 1381 में हुई थी।

1508 में, फ्रांसीसी कवि एलो डी अमारेल ने फ्रांस में इस दिवस के पहले समारोह का वर्णन अपने “फिश ऑफ़ अप्रैल” में किया है । मध्य युग में, अधिकतर यूरोपीय शहरों में 25 मार्च को नए साल का दिवस मनाया जाता था । जबकि फ्रांस के कुछ इलाकों में, नया साल 1 अप्रैल को खत्म होने वाला एक सप्ताह लंबी छुट्टी का अवसर था। कुछ लेखकों का मत है कि 1 जनवरी को नववर्ष मनाने वाले लोगों ने अन्य तारीखों पर नववर्ष मनाने वाले लोगों का मज़ाक उड़ाने के लिए अप्रैल फूल ईजाद किया, क्योंकि फ्रांस में 1 जनवरी को नए साल के दिन के रूप में 16 वीं सदी के मध्य में 1564 से आधिकारिक रूप से स्वीकार कर ली गई थी।

1539 में, फ्लेमिश कवि एडुआर्ड डी डेने ने एक महान व्यक्ति के बारे में लिखा, जिन्होंने 1 अप्रैल को अपने मूर्ख नौकरों को काम पर भेजा था।

1686 में, जॉन औब्रे ने इसे "बेवकूफों के पवित्र दिन" का उत्सव लिखा, जोकि प्रथम ब्रिटिश संदर्भ है । 1 अप्रैल, 1698 को कई लोग चतुराई पूर्वक "शेरों का स्नान” देखने के लिए टॉवर ऑफ़ लंदन पर चढने में सफल हो गए थे ।

हालांकि बाइबिल के किसी विद्वान या इतिहासकार ने इस विषय का कभी कोई उल्लेख नहीं किया है | अब इसके बाद भी यूरोपियन एक दूसरे को मूर्ख बनाने के लिए इस दिवस का लुत्फ़ उठाते हैं और उनके अंध अनुयाई भारत वासी भी देखा देखी मूर्खता के कुए में डूब स्वयं को कृतार्थ अनुभव करते हैं |
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