नमामि गंगे: संस्कृति की धारा में सड़ांध पैदा कर रहा सभ्यता का विकास - संजय तिवारी

यह सभ्यता के विकास का बहुत ही विद्रूप और घिनौना चेहरा है। इसे संस्कृति की नैसर्गिक धारा में सड़ांध पैदा करने से परहेज नहीं। इसे अपने सुख और साधन चाहिए। संस्कृति और उसके मूल्य इसके लिए बेमानी हैं। इसकी नजर गंगा की अविरलता और पवित्रता पर नही, उसको साफ करने के नाम पर आवंटित बजट पर टिकती है। ऐसा वर्षों से होता आ रहा है। आगे भी होता रहेगा। गंगा चाहे जीतनी कराहती रहे, इस सभ्य वर्ग का कोष बढ़ता रहेगा। बूंद-बूंद गंगा जल को जब तरसेगी यह धरती तब भी इस सभ्यता को शायद ही दर्द हो। यह सभ्यता और संस्कृति का युद्ध है, चलेगा ही। गंगा को शुद्ध करने के नाम पर अब तक जितने रुपए खर्च हुए हैं उनसे शायद एक नयी नदी की खुदाई हो सकती थी। लेकिन गंगा को साफ़ कौन कहे, दिन दशा बिगड़ती ही चली गयी। ऐसा नहीं है कि यह सब गंगा के साथ आज हो रहा है या केवल मैदानी इलाकों में ही हो रहा है, यह सब कुछ वहीं से शुरू हो जाता है जहां से यह निकल रही है। अभी-अभी एक ताजा रिपोर्ट हाथ लगी है। इसमें गोमुख से ही गंगा की गन्दगी की कथा है। यह रिपोर्ट बता रही है कि राष्ट्रीय नदी गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने के लिए नमामि गंगे परियोजना को लेकर केंद्र सरकार भले ही सक्रिय हो, लेकिन उत्तराखंड में धरातल पर वह गंभीरता नहीं दिखती, जिसकी दरकार है।

गोमुख से हरिद्वार तक 

गंगा के मायके गोमुख से हरिद्वार तक ऐसी ही तस्वीर नुमायां होती है। 253 किमी के इस फासले में चिह्नित 135 नालों में से अभी 65 टैप होने बाकी हैं, जबकि इस क्षेत्र के शहरों, कस्बों से रोजाना निकलने वाले 146 एमएलडी (मिलियन लीटर डेली) सीवरेज में से 65 एमएलडी का निस्तारण चुनौती बना है। उस पर सिस्टम की चुस्ती देखिये कि जिन नालों को टैप किए जाने का दावा है, उनकी गंदगी अभी भी गंगा में गिर रही है। उत्तरकाशी, देवप्रयाग, श्रीनगर इसके उदाहरण हैं। इन क्षेत्रों में टैप किए गए नाले अभी भी गंगा में गिर रहे हैं तो जगह-जगह ऐसे तमाम नाले हैं, जिन पर अफसरों की नजर नहीं जा रही।

गंगा एक्शन प्लान 

गंगा की स्वच्छता को लेकर 1985 से शुरू हुए गंगा एक्शन प्लान के तहत उत्तराखंड में भी कसरत हुई। तब गोमुख से हरिद्वार तक 70 नाले टैप करने की कवायद हुई और यह कार्य पूर्ण भी हो गया। इस बीच 2015 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में मामला पहुंचा तो ट्रिब्यूनल ने सभी नालों को गंगा में जाने से रोकने को कदम उठाने के निर्देश दिए। इस बीच केंद्र की मौजूदा सरकार ने गंगा स्वच्छता पर ध्यान केंद्रित किया और 2016 में अस्तित्व में आई नमामि गंगे परियोजना। प्रधानमंत्री के इस ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत उत्तराखंड में गंगा से लगे शहरों, कस्बों में नाले टैप करने और सीवरेज निस्तारण को सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) पर फोकस किया गया। परियोजना के निर्माण मंडल (गंगा) ने गोमुख से हरिद्वार तक पूर्व के 70 नालों समेत कुल 135 नाले चिह्नित किए। अब 65 में से 58 में कार्य शुरू किया गया है। साथ ही 19 शहरों, कस्बों से रोजाना निकलने वाले 146.1 एमएलडी सीवरेज के निस्तारण को 11 जगह एसटीपी निर्माण का निर्णय लिया गया। बताया गया कि इनमें से कई कार्य पूरे हो चुके हैं, जबकि बाकी में निर्माण कार्य चल रहा है।

नालों की गंदगी सीधे गंगा में 

अब थोड़ा दावों की हकीकत पर नजर दौड़ाते हैं। नमामि गंगे में दावा किया गया कि उत्तरकाशी, देवप्रयाग में सभी चिह्नित नाले टैप कर दिए गए हैं। जबकि जमीनी हकीकत यह है कि उत्तरकाशी में टैप किए गए चार नालों में से तांबाखाणी, वाल्मीकि बस्ती व तिलोथ के नजदीक के नालों की गंदगी सीधे गंगा में समाहित हो रही है। इसी प्रकार देवप्रयाग में टैप दर्शाये गए चार नालों का पानी भी ओवरफ्लो होकर गंगा में गिर रहा है। कुछ ऐसा ही आलम अन्य शहरों व कस्बों का भी है। इसके अलावा बड़ी संख्या में ऐसे नाले भी हैं, जो अफसरों को नहीं दिख रहे। फिर चाहे वह उत्तरकाशी में गंगोरी से चिन्यालीसौड़ तक का क्षेत्र हो या फिर चिन्यालीसौड़ से हरिद्वार तक, सभी जगह नालों की गंदगी गंगा में जा रही है। सीवरेज निस्तारण को अभी तक एसटीपी में 79.89 एमएलडी का ही निस्तारण हो रहा है। हालांकि, इनकी क्षमता बढ़ाने व नए एसटीपी भी स्वीकृत हुए हैं, मगर ये तय समय में पूरे हो पाएंगे, इसे लेकर संदेह बना हुआ है। हालांकि, महाप्रबंधक निर्माण मंडल गंगा केके रस्तोगी कहते हैं कि सभी निर्माण कार्य मार्च 2019 तक पूरे करने को प्रयास किए जा रहे हैं।

काशी में अभी भी गिर रहे 33 नाले गंगा में 

यहाँ एक और हकीकत की तरफ ध्यान दिलाना उचित लगता है। गंगा के सर्वाधिक महत्व वाली काशी नगरी की दशा पर गौर करने की जरूरत है। यहाँ अभी जब फ्रांस के राष्ट्रपति आये थे तब गिराने वाले सभी नालों को होर्डिंग लगा कर ढाका गया था। हालांकि वाराणसी से ही सांसद बने प्रधानमंत्री के लिए गंगा की सफाई अपने आप में किसी मिशन जैसा है। लेकिन हालत में बहुत सुधार नहीं दिखता। यहाँ स्वच्छ गंगा रिसर्च लेबॉटरी (संकट मोचन फाउंडेशन) के प्रेसिडेंट व बीएचयू प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्र बता रहे हैं कि वाराणसी में वर्तमान में 33 नाले गंगा में गिरते हैं। 350 एमएलडी रॉ सीवेज सीधे गंगा में गिरता है।

प्रयाग में 165 नाले गंगा-यमुना में प्रवाहित 

तीर्थराज प्रयाग में इस समय छोटे-बड़े 165 नाले गंगा-यमुना में प्रवाहित हो रहे हैं। गंगा कार्य योजना के तहत बने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहे हैं, जिसके कारण गंदे नालों के साथ स्लॉटर हाउस से निकलने वाले खून व मांस के लोथड़े सीधे गंगा में बह रहे हैं। अटाला स्लॉटर हाउस से बहने वाले खून को सीधे यमुना में प्रवाहित होते कभी भी देखा जा सकता है। गंगा में खून और गंदे नालों का प्रवाह रोकने के लिए समाजसेवी सरदार पतविंदर सिंह और कौशल किशोर से चप्पलों की माला पहनकर संगमतट पर नग्न होकर प्रदर्शन करके लोगों को जागरूक किया। समाजसेवी पतविंदर सिंह ने कहा कि धर्म के नाम पर पैसा कमाने का अफसरों ने धंधा बना लिया है।

कानपुर में हालत बहुत खऱाब 

कानपुर नगर में अधिकारी और कर्मचारी इस ओर लगातार लापरवाही बरत रहे हैं। गंगा सफाई के लिए शहर में कार्य तो किया जा रहा है लेकिन यह सफल कितना होगा कहा नहीं जा सकता है। सैकड़ों नालियां व छोटे नाले गंगा में लगातार दूषित जल गिरा रहे हैं। इतना ही नहीं सफाई कर्मचारी बड़े नालों मेें गंदगी डाल रहे हैं, ऐसे में गंगा सफाई और उसकी निर्मलता कैसे होगी यह सपना जैसा ही प्रतीत होता है। खलासी लाइन, ग्वालटोली क्षेत्र में शहर का मुख्य सीसामऊ नाला निकलता है जो सीधा गंगा में गिरता है। गंगा सफाई अभियान में हालांकि इस नाले को टेप किया जायेगा लेकिन वर्तमान में नाले का पानी गंगा में ही जा रहा है। विभागीय लापरवाही के कारण नाले में सीधे गंदगी फेंकी जा रही है और इस काम को सफाईकर्मी अंजाम दे रहे हैं। नाले के पास में कूड़ा डंप कर दिया जाता है फिर सफाईकर्मी पूरे कूड़े को नाले मे गिरा देते हंै। हर वर्ष बरसात के पहले नाले से सिल्ट निकाली जाती है, उसमें भी लापरवाही बरती जाती है। नाले से पूरी तरह सिल्ट न निकलने से बरसात में नाला उफान पर होता है और ग्वालटोली, अहिराना 480 तथा खलासीलाइन के क्षेत्र में पानी भर जाता है। गंगा में गंदगी व नाले गिरने पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण एनजीटी ने आदेश दिया था कि नाले व गंदगी गंगा में गिरती मिली तो सख्त कार्यवाही की जायेगी। वर्तमान समय में 21 बड़े नालों से दूषित जल गंगा में गिर रहा है। वर्तमान में 21 बड़े नालों में सीसामऊ नाले सहित अन्य 6 नालों को बंद करने का काम भी किया जा रहा है। वहीं कुछ दिन पहले नमामि गंगे के कामों की समीक्षा करने आये केंद्रीय जल संसाधन राज्यमंत्री ने सीसामऊ नाला अक्टूबर तक बंद करने के आदेश दिये थे।

सीधे गंगा में गिर रहे नाले 

कानपुर के घाटों के पास दर्जनों ऐसी अवैध बस्तियां हैं जिनसे हजारों लीटर गंदा पानी निकलकर सीधा गंगा में गिर रहा है। रानीघाट, भैरोघाट, परमट, सरसैया घाट, कालीघाट, बाबा घाट, बंगाली घाट, भगवतदास घाट, गोलाघाट, मैस्कर घाट, मनोहर नगर, बुडिय़ा घाट, सिद्धनाथ घाट तथा जाजमऊ जैसे गंगा बैराज से जाजमऊ तक 12 किमी. के क्षेत्र में गंगा किनारे दर्जनों बस्तियां बसी हैं। आंकड़ों को देखा जाये तो रोजाना इन बस्तियों से पांच करोड़ लीटर गंदा पानी सीवर पाइप के जरिये गंगा में गिरता है, इसका लेखा-जोखा नहीं है।

कानपुर में गंगा ज्यादा दूषित हो रही है। शहर के एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक हजारों नाले-नाली गंगा में दूषित जल गिरा रहे हैं तो वहीं केमिकल व अन्य खतरनाक रासायनिक पदार्थ भी गंगा के पानी में मिल रहे हैं। आने वाले जून में भीषण गर्मी होगी लेकिन अभी से गंगा का जलस्तर कम होने के साथ-साथ काला पानी भी तेजी से बढऩे लगा है। वहीं जलकल को लगभग 11 सौ कि.ली. क्लोरीन पानी को क्लीन करने में खर्च करना पड़ रहा है। जहां गंगा का पानी 40 हैजेन से उपर पहुंच चुका है तो वहीं नाईट्राईड भी .02 आ रहा है। पानी को शुद्ध करने के लिए तथा गंदगी हटाने के लिए पहले की अपेक्षा दो गुना फिटकरी भी खर्च की जा रही है। गिरते जलस्तर के कारण जलकल विभाग चिन्तित है ऐसे में भीषण गर्मी में गंगा के जलस्तर में और गिरावट होगी। जलकल विभाग द्वारा इस समस्या से निपटने की तैयारी की जा रही है।

फर्रुखाबाद में ट्रीटमेंट प्लांट नहीं 

फर्रुखाबाद शहर से निकलने वाले नालों का पानी सीधा गंगा में प्रवाहित हो रहा है। उन नालों पर कोई भी ट्रीटमेंट प्लांट नहीं लगाया गया है। दूसरी तरफ बड़े नालों के बाद गंगा के किनारे बसे दर्जनों गांवों की गंदगी गंगा में जा रही है। वर्तमान समय में गंगा का जल स्तर भी बहुत कम हो गया है जिस कारण उसका जल का रंग भी बदला नजर आ रहा है। ट्रीटमेंट प्लांट को लेकर कई सालों से आंदोलन चलाये जा रहे हैं। बहुत से समाजसेवी आमरण अनशन पर भी बैठे हैं तो जिला प्रशासन ने उनको उठाने के लिए बड़े-बड़े वादे भी कर दिए लेकिन ट्रीटमेंट प्लांट नहीं लगाया जा सका। शहर में छपाई करने के सैकड़ों कारखाने चल रहे हैं, उनका रंगीन केमिकल्स युक्त पानी भी गंगा के जल में विष घोल रहा है। गंगा प्रदूषण नियंत्रण विभाग के कर्मचारी जब भी कारखानों पर छापेमारी करते हैं वहां लोग अपनी-अपनी जेब गर्म करने के बाद कोई कार्रवाई नहीं करते हैं। जबकि गंगा को अपनी मां के रूप में मानने वाले लोग उसके जल को पीने के बाद अपनी प्यास बुझाते हैं। जब गंगा में गिर रहे नालों को लेकर आम जनता से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि 20 वर्ष पहले जनसंख्या कम होने के साथ गंगा के जल का दोहन नहीं होता था, अब कई कार्यों में जल का दोहन किया जा रहा है।

गंदगी फैलाने वालों पर कार्रवाई नहीं 

गंगा में जो जल के रूप में पानी दिखाई दे रहा है उसके आधा पानी गन्दे नालों से आता है। सरकार गंगा सफाई में लाखों रुपया खर्च कर रही है लेकिन गंदगी फैलाने वालों पर कार्रवाई नहीं कर रही है। दूसरी तरफ नगर पालिका की तरफ से भी नालों से निकलने वाले पानी को साफ करने का कोई इंतजाम नहीं किया गया है। न ही कोई ऐसा इंतजाम किया कि लोगों के घरों से निकलने वाली गंदगी को समाप्त किया जा सके। शहर में जितने भी छपाई के कारखाने चल रहे हैं, उनको एक जगह स्थापित करने के लिए वर्षों से प्रयास चल रहे हैं लेकिन अभी तक स्थापित नहीं हो सके हैं। इस बारे में जिलाधिकारी मोनिका रानी कह रही हैं कि नाले के पानी को शमशाबाद की तरफ जाने बाले खन्ता नाला में डायवर्जन करा दिया जायेगा। नाले का प्रपोजल भेज दिया गया है, जल्द इस पर काम किया जा रहा है।

अमरोहा में गंगा किनारे निर्माण

अमरोहा में तिगरी गांव गंगा के तटबंध से सटा हुआ है और गांव में सामान्य रूप से अक्सर कुछ न कुछ निर्माण कार्य होते हैं जिनमें से अधिकांश 100 मीटर की परिधि में ही आते हैं। गंगा किनारे निर्माण पर पाबंदी होने से तिगरी के ग्रामीणों को बेहद कठिनाई का सामना करना पड़ेगा। ग्रामीणों के घरों की मरम्मत में भी दिक्कत होगी। तिगरी गांव के पास तटबंध के अंदर भी अवैध रूप से निर्माण पर प्रशासन लगाम नहीं लगा सका। गंगा किनारे तिगरी से मोहरका रोड पर अवैध रूप से नमामि गंगे नाम से कलोनी का भी निर्माण किया जा रहा है। निर्माण की शुरुआत में प्लाटिंग कर भूमि को समतल किया जा रहा है।

मुरादाबाद में बाजार का कूड़ा भी नदी में 

मुरादाबाद मंडल के अमरोहा व संभल जनपद में करीब 76 किलोमीटर दूरी में गंगा नदी बहती है। जिसमे अमरोहा जनपद में करीब 56 किलोमीटर व संभल जनपद के गुन्नौर तहसील इलाके में 20 किलोमीटर गंगा नदी की धारा बह रही है। गंगा नदी में कई स्थानों पर कूड़ा फेंका जाता है। अमरोहा के तिगरी व बृजघाट, संभल के राजघाट में स्नान व अंतिम संस्कार और कूड़ा करकट गंगा में गंदगी बढ़ा रहा है। पूजा सामग्री, प़लीथिन आदि गंगा में बहाते हैं। खादर क्षेत्र में गंगा किनारे के दर्जनों गांवों का कूड़ा नदी में बहा रहे हैं।

बिजनौर में भी वही हाल 

यूपी में गंगा के प्रवेश द्वार बिजनौर में गंगा नदी सबसे पहले नागल क्षेत्र में आती हैं। इसके बाद गंगाजी मंडावर होती हुई गंगा बैराज पहुंचती हैं। गंगा के किनारे बसे 45 ग्राम पंचायतों में से 25 ओडीएफ (खुले में शौचमुक्त) हो चुकी हैं। विदुर कुटी और गंज के किनारे बसे लोग नदी सफाई का ध्यान रखते हैं। हस्तिनापुर में कर्मकांड होने के कारण ब्रजघाट पर गंदगी दिखती है। बुलंदशहर जिले में गंगा किनारे स्याना क्षेत्र के भगवानपुर, बसी बांगर, फरीदा बांगर गांवों पर गंदगी रहती है।

नमामि गंगे योजना: ऐसे कैसे बचेगी गंगा 

स्वच्छ गंगा परियोजना का आधिकारिक नाम एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन परियोजना या ‘नमामि गंगे’ है। यह मूल रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम मिशन है। प्रधानमंत्री बनने से पहले ही मोदी ने गंगा की सफाई को बहुत समर्थन दिया था। उन्होंने वादा किया था कि वह यदि सत्ता में आए तो वो जल्द से जल्द यह परियोजना शुरू करेंगे। अपने वादे के अनुसार नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनते ही कुछ महीनों में यह परियोजना शुरू कर दी। इस परियोजना ने उन्हें लाभ भी देना शुरू कर दिया। इसका सबूत उनकी अमेरिका यात्रा में देखने को मिला जहां उन्हें क्लिंटन परिवार ने यह परियोजना शुरू करने पर बधाई दी। यह परियोजना तब खबरों में आई जब आरएसएस ने इसकी निगरानी करने का निर्णय लिया और साथ ही विभिन्न कर लाभ निवेश योजनाओं की घोषणा सरकार ने की।

स्वच्छ गंगा परियोजना 

जब केंद्रीय बजट 2014-15 में 2,037 करोड़ रुपयों की आरंभिक राशि के साथ नमामि गंगे नाम की एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन परियोजना शुरू की गई तब केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि अब तक इस नदी की सफाई और संरक्षण पर बहुत बड़ी राशि खर्च की गई है। लेकिन गंगा नदी की हालत में कोई अंतर नहीं आया। इस परियोजना को शुरू करने का यह आधिकारिक कारण है। इसके अलावा कई सालों से अनुपचारित सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट को भारी मात्रा में नदी में छोड़े जाने के कारण नदी की खराब हालत को भी ध्यान में रखने की आवश्यकता है। 

18 वर्ष में पूरी होगी परियोजना 

कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार से पूछा था कि स्वच्छ गंगा परियोजना कब पूरी होगी? सुप्रीम कोर्ट को जवाब में राष्ट्रीय प्रशासन ने कहा कि इस परियोजना को पूरा होने में 18 सालों का समय लगेगा। इस परियोजना की लंबाई और चैड़ाई को देखते हुए यह कोई असामान्य लक्ष्य नहीं है। यह परियोजना लगभग पूरे देश को कवर करती है क्योंकि यह पूरे उत्तर भारत के साथ उत्तर पश्चिम उत्तराखण्ड और पूर्व में पश्चिम बंगाल तक फैली है।

परियोजना का कवर क्षेत्र

भारत के पांच राज्य उत्तराखण्ड, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार गंगा नदी के पथ में आते हैं। इसके अलावा सहायक नदियों के कारण यह हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़ और दिल्ली के कुछ हिस्सों को भी छूता है। इसलिए स्वच्छ गंगा परियोजना इन क्षेत्रों को भी अपने अंतर्गत लेती है। कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार से पूछा था कि स्वच्छ गंगा परियोजना कब पूरी होगी? तब कहा गया था कि उन पांच राज्य सरकारों की सहायता भी इस परियोजना को पूरी करने में जरूरी होगी। भारत सरकार ने कहा था कि लोगों में नदी की स्वच्छता को लेकर जागरुकता पैदा करना राज्य सरकारों का काम है।

परियोजना का क्रियान्वयन

नमामि गंगे परियोजना कई चरणों में पूरी होगी। इसकी सटीक जानकारी तो नहीं है पर यह समझा जा सकता है कि सहायक नदियों की सफाई भी इसकी एक प्रमुख गतिविधि होगी। अधिकारियों को उन शहरों का भी प्रबंधन करना होगा जहां से यह नदी गुजरती है और औद्योगिक इकाइयां अपना अपशिष्ट और कचरा इसमें डालती हैं। इस परियोजना का एक प्रमुख भाग पर्यटन का विकास करना है जिससे इस परियोजना हेतु धन जुटाया जा सके। अधिकारियों को इलाहाबाद से पश्चिम बंगाल के हल्दिया तक एक चैनल भी विकसित करना होगा ताकि जल पर्यटन को बढ़ावा मिले।

परियोजना के प्रमुख मुद्दे

नमामि गंगे परियोजना का सबसे बड़ा मुद्दा नदी की लंबाई है। यह 2,500 किमी. की दूरी कवर करने के साथ ही 29 बड़े शहर, 48 कस्बे और 23 छोटे शहर कवर करती है। इससे अलावा नदी का भारी प्रदूषण स्तर और औद्योगिक इकाइयों का अपशिष्ट और कचरा और आम जनता के द्वारा डाला गया कचरा भी एक मुद्दा है। 

परियोजना से जुड़े विवाद

स्वच्छ गंगा परियोजना से कई विवाद भी जुड़े हैं, जिसमें से एक इसे चलाने के लिए गठित पैनल के सदस्यों के बीच मतभेद होना है। इस कमेटी का गठन जुलाई 2014 को विभिन्न विभागों के सचिवों के साथ किया गया था। इस परियोजना का एक प्रमुख मुद्दा इन क्षेत्रों में बढ़ती हुई आबादी से बाढ़ क्षेत्र वापस लेना है। इसके अलावा इनलैंड जलमार्ग के महत्व पर मतभेद भी एक मुद्दा है।

दावा: 2019 तक 80 फीसद साफ़ हो जाएगी गंगा 

केंद्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी का दावा है कि गंगा को स्वच्छ करने का काम तेजी के साथ किया जा रहा है और उम्मीद है कि अगले वर्ष मार्च तक नदी का 80 प्रतिशत हिस्सा स्वच्छ हो जाएगा। हम मार्च 2019 तक 70 से 80 प्रतिशत गंगा के स्वच्छ होने की उम्मीद करते हैं। यह आम धारणा है कि नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत कोई प्रगति नहीं हुई है, लेकिन यह सही नहीं है। 251 सकल प्रदूषण उद्योग (जीपीआई) को बंद कर दिया गया और गैर अनुपालन जीपीआई को बंद करने के आदेश दिए गए हैं। 938 उद्योगों और 211 मुख्य ‘नालों’ में प्रदूषण की ‘रियल-टाइम मॉनिटोरिंग’ पूरी हो चुकी है, जो नदी को प्रदूषित करते हैं उनकी पहचान हो चुकी है। उन्होंने कहा कि परियोजनाओं को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए राज्य सरकारों के अधिकारियों, ठेकेदारों और सलाहकारों के साथ समीक्षा बैठक पूरी हो चुकी है।

संजय तिवारी
संस्थापक - भारत संस्कृति न्यास (नयी दिल्ली)
वरिष्ठ पत्रकार 
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2 टिप्पणियाँ

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  2. जागरूकता का प्रसार करता साथक लेख , शेयर करने के लिए शुक्रिया

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