कश्मीर की पंचामृत सरकार का विसर्जन - प्रवीण गुगनानी

सीजफायर केवल सेना व आतंवादियों में नहीं था, भाजपा व पीडीपी में भी था. संघर्ष विराम पिछले रमजान माह मात्र में नहीं था बल्कि साढ़े तीन वर्षों से चल रहा था. सीजफायर छः वर्षों के लिए किया गया था जिसे साढ़े तीन वर्षों में अब योजना बद्ध नीति से तोड़ा गया है. विराम काल में एकत्रित ऊर्जा से अब भाजपा जीवंत संघर्ष करेगी कश्मीर में, देश को यही आशा है. सीजफायर समाप्त हुआ, संघर्ष प्रारंभ हुआ. संघर्ष में पीडीपी हताहत हो गई और बेमेल सरकार विसर्जित हो गई. बेमेल सरकार के विसर्जन के बाद अभी बहुत कुछ बाकी है कश्मीर में जिसे विसर्जित करने की शपथ भाजपा की पूँजी है.

कश्मीर की यह भाजपा-पीडीपी सरकार कश्मीर के इतिहास की सर्वाधिक चर्चित सरकारों में सदा शुमार रहेगी. इस सरकार को दोनों पक्षों के अंदरखानों ने पानी पी पी कर कोसा था. दोनों पक्षों को पता था सरकार अपना जीवन पूरा नहीं जी पाएगी. हां, इस सरकार की मृत्यु का समय बड़ा रहस्यमयी है! भाजपा के रणनीतिकारों द्वारा चुना गया यह समय व्यक्त करता है, कि, कहीं किसी भारी दुर्घटना की आशंका थी, और कोई बड़ा लक्ष्य चुक न जाए अतः सरकार का विसर्जन कर दिया गया. छः कारण सामने रखे भाजपा ने सरकार गिराने के - 

1 -रमजान में सीजफायर पर मतभेद
2 -ऑपरेशन ऑलआउट पर सहयोग नहीं
3 -लोकसभा चुनाव 2019 में पीडीपी से रिश्ते पर बीजेपी को नुकसान का खतरा
4 -पत्थरबाजों पर सख्ती नहीं हुई
5 -सेना के ऑपरेशन पर मतभेद. और मुख्यत: देखें तो राज्य में कानून-व्यवस्था की बिगड़ती हालत की वजह से भाजपा ने यह निर्णय लिया. पीडीपी चाहती थी कि सीजफायर को आगे बढ़ाया जाए और हुर्रियत से बातचीत हो. लेकिन बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व इससे सहमत नहीं था.

तीन वर्ष पूर्व जम्मू कश्मीर में हुए विस चुनावों के बाद मैनें वहां की नवगठित भाजपा-पीडीपी सरकार के गठन पर एक आलेख लिखा था, कश्मीर में भाजपा दुस्साहसी किन्तु प्रतिबद्ध भाजपा, इस लेख में मैनें इस युग्म सरकार को पंचामृत की संज्ञा दी थी और भाजपा को “दुस्साहसी किन्तु प्रतिबद्ध” की. पंचामृत भारतीय परम्परा का वह मिश्रण पदार्थ है जिसे नितांत विपरीत स्वभाव वाली वस्तुओं के सम्मिश्रण से बनाया जाता है. गोदुग्ध, गोदधि, गोघृत, शर्करा व शहद जैसी भिन्न व विरोधी प्रकृति से बननें वाले पंचामृत को बांटते समय पुजारी जिस मन्त्र का जाप करता है उसका अर्थ भी कश्मीर की मुफ़्ती सरकार से प्रासंगिक है- अर्थ है, अकाल मृत्यु का हरण करने वाले और समस्त रोगों के विनाशक, श्रीविष्णु का चरणोदक पीकर पुनर्जन्म नहीं होता वह चराचर जगत के बंधनों से मुक्त हो जाता है.” यह सरकार अटलजी की हीलिंग टच नीति को कश्मीर में साकार करनें का लक्ष्य लिए हुए थी. मुफ़्ती ने मुख्यमंत्री बनते ही, दस दिनों के भीतर ही “हीलिंग टच” पालिसी के नाम पर विकृत रूप दिखाना प्रारंभ कर दिया. मुफ़्ती ने कई अपराधी, अलगाववादियों को रिहा कर दिया और आगे भी ऐसा करनें का संकल्प प्रदर्शित किया! अफजल गुरु, पाकिस्तान की प्रशंसा और मसरत जैसे कांड भाजपा के लिए कटुक-बिटुक स्मृतियां बन गए थे. मुफ़्ती द्वारा मुख्यमंत्री बननें के तुरंत बाद किये गए इस बड़े निर्णय से भाजपा सकते में आ गयी थी. भाजपा को मुफ़्ती के साथ सरकार बनानें के निर्णय हेतु अपनें परम्परागत समर्थकों की पहले ही कभी दबी तो कभी मुखर आलोचना झेलनी पड़ रही थी. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के कश्मीर में हुए बलिदान,धारा 370, एक ध्वजा एक विधान जैसे मुद्दों पर चुप्पी साधे भाजपा को सत्ता लोलूप तक कहा जा रहा था. कश्मीर अलगाववादियों की रिहाई से भाजपा की कश्मीर नीति उसके अपनें समर्थकों के ही तीक्ष्ण निशानें पर आ गई तब भी उसनें धेर्य नहीं छोड़ा और इस विषय को आगे और रिहाई न होनें देकर संभाल लिया था. कहानी और अधिक तब उलझ गई थी जब सरकार के बनने के नौ माह बाद मुफ्ती मोहम्मद सईद का निधन हो गया और भाजपा का सामना सईद की बेटी महबूबा से हुआ जो प्रारंभ से ही इस सरकार गठन के संदर्भ में अपने पिता के निर्णय की विरोधी थी.

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही जो बड़े काम उन्हें मिले थे उसमे एक कश्मीर में चुनाव कराने की चुनौती भी थी. मोदी ने अमित शाह के साथ मिलकर न केवल कश्मीर में शांति पूर्ण चुनाव संपन्न करवाए बल्कि संघ परिवार के एक बड़े स्वप्न “कश्मीर में हिंदू मुख्यमंत्री” को अपना लक्ष्य भी बनाया. २०१४ के लोकसभा चुनाव में ३३ विधानसभा सीटों पर बढ़त हासिल करने वाली भाजपा का ऐसा स्वप्न स्वाभाविक ही था. २०१४ लोकसभा में ३३ स्थानों पर बढ़त प्राप्त करने वाली भाजपा अंततः ४४ का बहुमत का अंक हासिल न कर पाई. २०१५ के विस चुनाव में भाजपा को स्पष्ट बहुमत तो नहीं मिला और वह सबसे बड़ा दल कर उभरने से भी मात्र ३ सीट दूर रह गई. चुनाव बाद जो निर्णय आये थे उसके अनुसार भाजपा-पीडीपी संग यदि सरकार नहीं बनाती तो कश्मीर में सरकार का गठन हो ही नहीं सकता था. भाजपा के तीन रणनीतिकारों नरेंद्र मोदी, अमित शाह व संघ से आये राम माधव की त्रिमूर्ति ने चुनाव में बहुमत से दूर रहने के बाद घटना में छुपे अवसर को पहचाना और उनका दोहन किया. तब भाजपा द्वारा कश्मीर में मुफ़्ती के साथ सरकार बनाने को एक मात्र संज्ञा “दुर्घटना को अवसर में बदलनें का दुस्साहस” ही कहा जा सकता था.

हिन्दू मुख्यमंत्री का लक्ष्य लेकर चले मोदी, शाह, राम माधव के सामनें विधानसभा चुनाव के समय अपेक्षित परिणाम न आने के बाद तब दो ही लक्ष्य थे, तात्कालिक लक्ष्य यह कि आम कश्मीरी भाजपा कार्यकर्ता जैसा सोचता है वैसा निर्णय कर अपनी दुर्लभ कश्मीरी कार्यकर्ता पूंजी का सरंक्षण करें और दीर्घकालीन लक्ष्य यह कि इस अवसर का लाभ उठाकर जम्मू और घाटी में अपनी उपस्थिति सुदृढ़ कर हिन्दू मुख्यमंत्री का लक्ष्य साधा जाए। केवल इस निर्णय से ही भाजपा का दलगत हित भी सध रहा था व उसका राष्ट्रवादी स्वरूप भी उभर कर सामने आ रहा था. ऐसा नहीं है कि भाजपा ने कश्मीर में कुछ खोया नहीं है. कश्मीर में सत्तारूढ़ होते ही तीसरे दिन मुफ़्ती द्वारा मसरत जैसे कट्टर आतंकवादियों की रिहाई का पक्षाघात (लकवा) भाजपा की स्मृति में अंकित हो गया था. महबूबा ने अपने पिता कि मृत्यु के बाद सरकार गठन के मामले को शोक के दिवस के नाम असहज सीमा तक लंबित किया और भाजपा से सौदेबाजी करती रही थी. सईद के निधन पश्चात भाजपा संग नई सरकार के गठन में महबूबा ने कई रंग/नखरे दिखाए किंतु मोदी, शाह, माधव दीर्घ समय तक, या यूं कहें कि प्रलय की कगार तक अडिग व अटल रहे. आनंद तब आया था जब महबूबा संग सरकार बनाने के निर्णयों में मोदी, शाह, माधव ने भाजपा के पक्ष को भी चोटिल होने दिया किंतु दीर्घकालीन राष्ट्रीय हितों को वरीयता दिए रहे. इस दौर में कई बार ऐसा लगा कि कश्मीर में सरकार तो जायेगी ही जायेगी, भाजपा भी इस क्षेत्र में अपना रहा जनाधार खो देगी. सईद के निधन के पश्चात महबूबा संग भाजपा के रुख से यह स्पष्ट हो गया था की यह सरकार पुरे छ: वर्ष चले अथवा न चले किन्तु कश्मीर में अब राष्ट्रबोध छ: वर्षो से बहुत आगे की नीवं डाल चुका था. इस सरकार ने बहुत से निर्णय अप्रिय व अशुभ भी लिए हैं जैसे सेना ने श्रीनगर स्थित 212 एकड़ के टट्टू ग्राउंड सहित जम्मू-कश्मीर के चार बड़े स्थानों को खाली कर दिया, सेना की उत्तरी कमान जम्मू विश्वविद्यालय परिसर के पास 16।30 एकड़ भूमि, अनंतनाग के हाईग्राउंड स्थित 456।60 कनाल भूमि तथा कारगिल के निचले खुरबा थांग स्थित जमीन को जम्मू कश्मीर सरकार को सौंप दिया. विश्वास स्थापना के नाम पर किया गया, महबूबा सरकार गठन के पूर्व का यह निर्णय गठबंधन के लिए और राष्ट्र के लिए किरकिरी बना रहेगा. 

सईद के निधन पश्चात तमाम विरोधाभासो के बाद महबूबा मुफ्ती का यह कहना कि उनके दिवंगत पिता मुफ्ती सईद का भगवा पार्टी के साथ गठबंधन करने का निर्णय उनके बच्चों के लिए एक पत्थर की लकीर व वसीयत की तरह है, जिसे अमल में लाना है, भले ही ऐसा करते हुए वे मिट जाएँ; भाजपा की त्रिमूर्ति की कुटनीतिक विजय थी. किंतु यह विजय संघ परिवार के कश्मीर संदर्भित लक्ष्यों व घोष वाक्यों के समक्ष अत्यल्प व क्षीणतर थी. साढ़े तीन वर्ष चली इस सरकार के दौरान एक निशान, एक विधान एक प्रधान", पं. श्यामाप्रसाद मुखर्जी, धारा ३७०, पाक द्वारा कब्जाया गया कश्मीर जैसे कई राष्ट्रवादी विषय सुप्तावस्था में चले गए थे. अब कश्मीर में सीजफायर समाप्त है, राजनीति में भी और युद्ध क्षेत्र में भी, अब देखते हैं नई परिस्थितियों में भाजपा किस प्रकार अपने घोष वाक्यों को घाटी में कितना गूंजा पाती है!!


प्रवीण गुगनानी
प्रदेश महामंत्री, अखिल भारतीय साहित्य परिषद, मध्यप्रदेश
प्रदेश सहसंयोजक, मप्र भाजपा, मीडिया संपर्क, मध्यप्रदेश
प्रदेश महासचिव, वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन भोपाल

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